scorecardresearch
Saturday, 21 December, 2024
होमराजनीतिबिहार में सीटों के बंटवारे को लेकर उलझा विपक्षी गठबंधन

बिहार में सीटों के बंटवारे को लेकर उलझा विपक्षी गठबंधन

राष्ट्रीय जनता दल जनवरी के अंत तक चुनावी समझौता पूरा कर लेना चाहती है लेकिन सीटों को लेकर हुए बंटवारे ने गठबंधन में दरार डाल दी है.

Text Size:

पटना: लोकसभा चुनाव 2019 से पहले बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व में बन रहे गठबंधन में सीटों के बंटवारे को जनवरी तक पूरा कर लेना चाहती है, लेकिन उसे गठबंधन की ही कुछ पार्टियों से मशक्कत झेलनी पड़ रही है.

किसी समय भाजपा की सहयोगी रही पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की ‘राष्ट्रीय लोक समता दल’ और मुकेश सहनी की ‘विकासशील इंसान पार्टी’ के साथ आने से 40 लोकसभा सीटों के लिए विपक्षी गठबंधन में सात दल एक साथ आ गए हैं.

जहां कांग्रेस 12 सीटों पर चुनाव लड़ना चाह रही है, वहीं सीपीआई और सहनी की पार्टी तीन-तीन सीटों की मांग कर रही है. सीपीआई (एमएल), आरएसएलपी और जीतन राम मांझी की ‘हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (हम)’ चार सीटों पर लड़ना चाहती है.


यह भी पढ़ें: झारखंड में महागठबंधन का केंद्र बनने की कोशिश न करे कांग्रेस


ऐसा माना जा रहा है कि यूपी की सीमा से सटे गोपालगंज लोकसभा सीट को मायावती से अच्छे तालमेल बिठाने के लिए राजद ने वहां से चुनाव नहीं लड़ने का मन बनाया है.

लेकिन सीटों को लेकर उड़ रही अफवाहों ने राजद को मंझधार में डाल दिया है. पूर्व सांसद और एक वरिष्ठ नेता का कहना है, ‘अगर हम राजद की मांगों को मान लें तो फिर हमारे पास कुछ नहीं बचेगा.’

राजद के एक पूर्व सांसद का कहना है, ‘बिहार में कांग्रेस हाशिए पर है और वह भाजपा से सीधी लड़ाई से बचना चाहेगी. पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार और पूर्व सांसद तारिक अनवर के अलावा उसके पास कोई जिताऊ प्रत्याशी नहीं है.’

पूर्व केंद्रीय मंत्री और राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद ने कहा कि पार्टी ने डील पूरी करने के लिए अपनी चादर छोटी कर ली है. सिंह ने कहा, ‘हम बहुत संकट में हैं. हर उम्मीदवार सीटों के लिए कड़ा मोलभाव कर रहा है. समझौता करने में मुश्किले आएंगी.’


यह भी पढ़ें: भाजपा विरोधी पार्टियां एकजुट, लेकिन अभी तक नहीं हुआ कोई गठबंधन


हालांकि, राजद के सूत्रों का कहना है कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने सीटों के बंटवारे को इस महीने के अंत तक पूरा कर लेना चाहते हैं और इसके लिए उन्होंने कई दलों से संपर्क साधे हैं.

राजद के एक नेता ने कहा, ‘उन्होंने (लालू) शरद यादव से भी राजद के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए बात की है.’ नेता ने कहा कि लालू सीटों के बंटवारे को लेकर पूराने खिलाड़ी रहे हैं और ऐसे में वे सीटों को बांटने से पहले अपने सहयोगी दलों के ऊपर प्रत्याशी घोषित करने का दवाब बनाएंगे.

दरारें उभरने लगी हैं

सीटों के बंटवारे को लेकर गठबंधन में दरार आना शुरू हो गयी है. बुधवार को आरएलएसपी के बिहार अध्यक्ष नागमणि ने उन रिपोर्टों का खंडन किया जिसमें यह कहा गया है कि जहानाबाद लोकसभा सीट से राजद के सुरेंद्र यादव ने चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है.

दिप्रिंट को दी जानकारी में नागमणि ने बताया, ‘यह ध्यान देना ज़रूरी है कि सुरेंद्र यादव जहानाबाद से दो बार लोकसभा चुनाव हार चुके हैं. जब भी वह चुनाव लड़ते हैं, गैर यादव जातियां उनके खिलाफ लामबंद हो जाती हैं.’

आरएलएसपी नेता जहानाबाद की सीट अपनी पत्नी के लिए मांग रहे हैं और छात्र (झारखंड) की सीट से खुद लड़ना चाह रहे हैं.

यह समस्या जहानाबाद की अकेली नहीं है. दरभंगा संसदीय क्षेत्र में तीन बड़े प्रतिद्वंदी मैदान में हैं. राजद के अब्दुल बारी सिद्दीकी, कांग्रेस से पूर्व क्रिकेटर और अरुण जेटली के विरोधी कीर्ति आजाद और दरभंगा से आने वाले सहनी. सीतामढ़ी से शरद यादव पूर्व सांसद अर्जुन राय को लड़ाना चाहते हैं वहीं राजद से पूर्व मंत्री सीताराम यादव वह सीट अपने लिए चाहते हैं. अभी वहां आरएलएसपी का सांसद है और वह अपनी सीट बचाने की कोशिश में लगा है.

अन्य मुद्दे

इस अनुभवहीन गठबंधन के साथ कुछ बुनियादी दिक्कतें भी हैं. जब राजद के रघुवंश प्रसाद ने सुझाया था कि सभी पार्टियां एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम और एक चिन्ह पर चुनाव लड़ें, तब उन्हें इसका विरोध झेलना पड़ा.
‘हम’ के नेता और पूर्व मुख्य मंत्री जीतन राम मांझी ने पूछा, ‘हमें रघुवंश बाबू को कितनी गंभीरता से लेना चाहिए?’

मांझी जो कि अभी आरआईएमएस अस्पताल रांची में भर्ती हैं, वे उस समय गुस्सा हो गये थे, जब 29 दिसंबर को लालू की कुशवाहा और सहनी के साथ हुई मीटिंग में उन्हें नहीं बुलाया गया. उन्होंने चेतावनी दी है कि उन्हें हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए और अब उन्होंने लालू और शरद के साथ रांची में 5 जनवरी को मीटिंग फिक्स की है.

राजद मांझी और कुशवाहा से सतर्क हैं. ‘जिसने (नीतिश कुमार) उनको मुख्यमंत्री बनाया, मांझी ने उन्हें ही धोखा दे दिया. लालू यादव के करीबी ने बताया, ‘उपेंद्र अभी कुछ दिनों पहले तक नरेंद्र मोदी को 2019 के बाद भी प्रधानमंत्री बनाने पर ज़ोर दे रहे थे. ऐसे में भंग लोकसभा की स्थिति में उन्हें पाला बदलने से कौन रोक पाएगा?’


यह भी पढ़ें: ये गठबंधन युग है, यहां कोई भी ‘शेर’ अकेला नहीं चलता


विपक्षी गठबंधन को सीटों के बंटवारे में मशक्कत करनी पड़ रही है, ऐसे में उसकी नज़र जाति समीकरण पर है. दलितों को अपने साथ लाने के साथ ही कुशवाहा और ईबीसी वोटों में भी सेंध लगाने की संभावाना है. यह और प्रत्याशियों के आने से कम हो सकता है.

राजद के एक नेता ने कहा, ‘यहां तक कि बदमाश से नेता बने रामा सिंह और अनंता सिंह ने गठबंधन से जुड़ने की इच्छा जताई है जिससे राजद नेता तेजस्वी यादव को गुंडों के टिकट काटने के लिए प्रोत्साहित किया है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘मधेपुरा के सांसद पप्पू यादव भी कांग्रेस के रास्ते घुसना चाह रहे हैं. उनकी पत्नी रंजीत रंजन सुपौल सीट से मौजूदा कांग्रेस सांसद है.’

यह लेख अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

share & View comments