नई दिल्ली: बिहार चुनाव के तीसरे चरण के मतदान खत्म होते ही टीवी चैनलों के एग्जिट पोल में बतौर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को देखने वाले लोगों का प्रतिशत घटता हुआ दिखा. स्वभाव से संयमित माने जाने वाले नीतीश बीते 15 सालों से राज्य की सत्ता चला रहे हैं.
नीतीश कुमार की जदयू और भाजपा इस बार साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ रही है. बिहार की 243 सीटों में से 122 पर जदयू और 121 पर भाजपा के उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं. जीतनराम मांझी की हम और मुकेश साहनी की वीआईपी पार्टी भी इस गठबंधन का हिस्सा है.
बिहार में इस बार कौन सरकार बनाएगा, ये बड़ा सवाल बना हुआ है. नीतीश कुमार अपने 15 सालों के काम पर वोट मांगते हुए दिखे तो तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी का मुद्दा उठाया और सत्ता पक्ष को घेरने का काम किया.
10 नवबंर को नतीजों के साथ ही मालूम होगा कि राज्य में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर इस बार कौन काबिज होगा.
ये जानना दिलचस्प होगा कि बीते 3 दशकों से जो भी राज्य की सत्ता में हैं वो जयप्रकाश नारायण के 1974-75 के आंदोलन से निकले नेता ही हैं. चाहे 1990-91 से 2005 तक लालू-राबड़ी देवी की सरकार हो या फिर 2005 से लेकर 2020 तक नीतीश कुमार का शासन.
2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव ने मिलकर चुनाव लड़ा था. उस समय नीतीश की पार्टी जदयू को 71 सीटें मिली थी लेकिन कुछ महीनों बाद उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर राज्य में सरकार बना ली थी.
चुनाव प्रचार के दौरान नीतीश कुमार ने किन मुद्दों को उठाया, आइए जानते हैं.
‘आखिरी चुनाव’ का दांव
अपने चिर-परिचित शांत स्वभाव के विपरीत नीतीश कुमार कई बार चुनावी सभा में गुस्साते हुए भी नजर आए. उन्होंने प्रचार के दौरान कई बार आपत्तिजनक बयान भी दिया जिसमें लालू यादव के परिवार का नाम लिए बिना ही बच्चों की संख्या वाला बयान भी शामिल था.
पूर्णिया की रैली में नीतीश कुमार ने जनता से कहा कि ये उनका आखिरी चुनाव है. उन्होंने कहा था, ‘जान लीजिए, आज चुनाव प्रचार का आखिरी दिन है. परसों मतदान होगा. ये मेरा अंतिम चुनाव है. अंत भला तो सब भला.’
बता दें कि नीतीश की मधुबनी में हुई रैली में उनपर प्याज फेंकने की कोशिश की गई थी जिसपर वो गुस्सा हो गए थे. उन्होंने कहा था, ‘आज जो नौकरी देने की बात कह रहे हैं, 15 सालों में कितने लोगों को नौकरी उन्होंने दी.’ उनका निशाना लालू-राबड़ी देवी के 15 साल के शासन काल पर था.
‘जंगलराज का डर’
नीतीश कुमार ने अपने चुनाव प्रचार में जनता को लगातार लालू यादव-राबड़ी देवी के शासन काल के ‘जंगलराज’ के डर की बात रखते रहे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लालू-राबड़ी देवी के शासन काल को जंगलराज बताया और तेजस्वी को ‘जंगलराज का युवराज‘ बताया.
‘महिला वोटबैंक’
जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार की राजनीतिक सफलता में महिला वोटरों का खास योगदान रहा है. क्योंकि जिस कुर्मी जाति से मुख्यमंत्री आते हैं राज्य में उसका उतना खासा प्रभाव नहीं है कि वो ज्यादा बड़ा राजनीतिक फायदा दिला सके.
बिहार में करीब 47 प्रतिशत महिलाओं की हिस्सेदारी है. नीतीश कुमार ने 2015 में सात निश्चय योजना शुरू की थी जब वो लालू यादव की राजद के साथ मिलकर सरकार चला रहे थे. लेकिन भाजपा के साथ मिलकर भी उन्होंने इस योजना को जारी रखा था.
इस बार चुनाव से पहले वो सात निश्चय पार्ट-2 लेकर आए थे जिसमें ‘सशक्त महिला, सक्षम महिला’ को प्रमुख केंद्र बनाया.
मुख्यमंत्री ने कक्षा 12 की अविवाहित छात्राओं के लिए सरकारी अनुदान 12,000 रुपये से बढ़ाकर 25,000 रुपये और स्नातक छात्राओं (विवाहितों समेत) के लिए 25,000 रुपये से 50,000 रुपये तक बढ़ाने की बात भी कही.
नीतीश कुमार ने सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का उल्लेख भी किया जिसकी घोषणा उन्होंने 2016 में की थी.
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