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Thursday, 28 March, 2024
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करोड़ो परिवार को हेल्थ कवरेज देना स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के लिए होगी चुनौती

भारत में 16 सौ व्यक्ति पर एक डॉक्टर हैं. डॉक्टर बड़ी संख्या में विदेश चले जाते हैं और मरीज और डॉक्टरों के आंकड़ें को कम करना सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है.

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नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी ने देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने का डॉ. हर्षवर्धन के जिम्मे सौंपा है. मोदी सरकार का फोकस स्वास्थ्य विभाग पर होगा क्योंकि स्वास्थ्य से जुड़ी कई योजनाओं ने पीएम मोदी को दुबारा सत्ता में लाने में अहम भूमिका निभाई है.

वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 मई को अपनी विक्टरी स्पीच में कहा था कि यह अकेली हमारी और भाजपा की जीत नहीं है बल्कि देश की जीत है. देश की सरकार लोगों के बीच पहुंची है. देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले हमारे देशवासी जो ईलाज में अपना सबकुछ गंवा देते हैं आज आयुष्मान भारत की योजना ने गरीबों के न केवल पैसा बचाने में मदद की है बल्कि लोगों के स्वास्थ्य कवर में आयुष्मान भारत ने अहम भूमिका निभाई है.

देश के नए स्वास्थ्य मंत्री के सामने कई चुनौतियां हैं. स्वास्थ्य विभाग में कई ऐसी समस्याएं हैं जिनसे उन्हें पार पाना है. देश में मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों की कमी हो या अस्पताल में डाक्टरों की, अस्पतालों में आधारभूत संरचना का विकास भी चुनौती है.

आयुष्मान भारत योजना 

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में आयुष्मान भारत योजना शुरू की. इस योजना के अंतर्गत देश की 10 करोड़ 74 लाख परिवार यानि लगभग 50 करोड़ की आबादी को पांच लाख रुपए तक का हेल्थ इंश्योरेंस दिया गया. यह विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना के तौर पर देखी गई.  इसके अलावा सरकार ने देशभर में 2022 तक 50 हजार हेल्थ वेलनेंस सेंटर बनाने का लक्ष्य रखा था. इसके तहत अभी तक 20 हजार हेल्थ वेलनेंस सेंटर देशभर में बनाए जा चुके हैं. इस योजना में करीब 12 तरह की स्वास्थ्य सुविधा दी जा रही है. इसमें कैंसर और महिलाओं से संबंधित बीमारियां शामिल हैं.

एमसीआई बनाम नेशनल मेडिकल कमीशन

एनडीए सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में जेपी नड्डा को स्वास्थ्य मंत्रालय सौंपा था. उनके कार्यकाल में आयुष्मान भारत सहित कई स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं को देश भर में शुरू करवाया और गांव-गांव तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच लोगों तक पहुंचाई. मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया में कार्यकारिणी सदस्यों को हटाया. इस संस्था पर आए दिन भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते थे. इसके चलते केंद्र सरकार ने मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया में कार्यकारिणी सदस्यों को हटाया .इसके बाद बोर्ड आफ गवर्नर का गठन किया गया. इसमें सरकारी डॉक्टर, नीति आयोग के सदस्यों और डायरेक्टर जनरल हेल्थ सर्विस को रखा गया. इससे मेडिकल कॉलेज में होने वाली धांधली पर काबू पाया गया. बीते कार्यकाल में एम्स को छोड़कर मेडिकल कॉलेज के लिए दाखिले के लिए नीट परीक्षा को अनिवार्य किया गया. इसके अलावा सेरोगेसी बिल, एड्स के रोगी के साथ भेदभाव में संबंध में बिल भी पास हुआ.

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नए स्वास्थ्य मंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती नेशनल मेडिकल कमीशन का गठन करना है. जो एमसीआई का स्थान लेगा. इस कमीशन में तय मानकों के अनुसार कोई भी मेडिकल कॉलेज डॉक्टर की सीट बढ़ा सकता है. वहीं डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाले बच्चों की फीस भी कम होगी. कई प्राइवेट डॉक्टर इस कमीशन के गठन का विरोध कर रहे है. इसके चलते यह बिल संसद में पास नहीं हो पाया है.इस सरकार में नए सिरे यह बिल लाना होगा.

टीबी से निपटना होगा बड़ा चैलेंज: भारत को टीबी मुक्त 2025 कराने का फैसला लिया है. अगर यूएन के इस लक्ष्य को पूरा करना है तो हमें आज से देश को टीबी मुख्त करने के लिए काम करना होगा. सरकार ने इसओर अपनी फंड में पिछले तीन सालों में 300 फीसदी की बढ़ोतरी की है.

नई सरकार के लिए विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी को पूरा करना एक बड़ी चुनौती है. देश के ग्रामीण क्षेत्र विशेषज्ञ डॉक्टर की कमी से जूझ रहा है. 2018 के ग्रामीठ स्वास्थ्य आंकड़े बताते हैं कि देशभर के गांवों में कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर में 74 फीसदी डॉक्टरों की सीटें खाली हैं.

9 करोड़ परिवार के लिए क्या करेगे स्वास्थ्य मंत्री

इसके अलावा 9 करोड़ परिवार को किसी भी तरह का सरकार हेल्थ कवर नहीं मिल पाया है. इन परिवार को हेल्थ कवरेज देना सरकार के ​लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी. वहीं डॉक्टरों और मरीजों के रेश्यों पर भी सरकार को काम करने की जरूरत है. अभी भारत में 16 सौ व्यक्ति पर एक डॉक्टर है.​ जिसे कम करना सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है.

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