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Sunday, 3 November, 2024
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भीम आर्मी चीफ आजाद ने कहा- मायावती ने मेरे लिए सारे रास्ते बंद कर दिए, BSP को बना रहीं परिवार की पार्टी

भीम आर्मी प्रमुख ने दिप्रिंट को दिए इंटरव्यू में भाजपा से मुकाबले के लिए सपा, रालोद और अपनी पार्टी के संभावित गठजोड़ की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा की. साथ ही संकेत दिए कि आगामी निकाय चुनावों में ही यह गठबंधन आकार ले सकता है.

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छुटमलपुर (उत्तर प्रदेश): 2024 के लोकसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ किसी भी तरह के गठजोड़ की संभावना से साफ तौर पर इनकार करते हुए भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि मायावती ने बसपा को एक ‘पारिवारिक संगठन’ में बदल दिया है, जो उनकी पार्टी के लिए ही नुकसानदेह साबित हो रहा है.

आजाद ने गुरुवार को दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में समाजवादी पार्टी (सपा), राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) और अपनी आजाद समाज पार्टी (एएसपी) के बीच गठजोड़ की संभावनाओं के साथ इस पर भी चर्चा की कि कैसे ‘किसानों और मजदूरों’ का बड़ा गठजोड़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए चुनौती साबित हो सकता है.

खतौली विधानसभा उपचुनाव के परिणाम से उत्साहित आजाद ने कहा कि बड़ा गठबंधन पश्चिमी यूपी में कम से कम 19 लोकसभा सीटें जीत सकता है. गौरतलब है कि खतौली में एएसपी के समर्थन से सपा-रालोद उम्मीदवार मदन भैया ने जीत हासिल की है जहां 2017 और 2022 में भाजपा ने जीत हासिल की थी. पश्चिमी यूपी क्षेत्र में 29 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें 20 अभी भाजपा के खाते में हैं.

सपा-रालोद गठबंधन में अपनी भूमिका के बारे में पूछे जाने पर आजाद ने कहा कि औपचारिक तौर पर गठबंधन के लिए पिछले आठ महीनों से रालोद प्रमुख जयंत चौधरी के साथ बातचीत चल रही है और वह 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को सत्ता में आने से रोकने की हरसंभव कोशिश करेंगे.

मायावती और बसपा के साथ गठबंधन पर

निकट भविष्य में बसपा के साथ किसी भी तरह के गठबंधन की संभावना से इनकार करते हुए आजाद ने कहा कि उन्होंने कई बार पार्टी के साथ गठजोड़ की कोशिश की, लेकिन मायावती ने उनके लिए सभी रास्ते बंद कर दिए.

उन्होंने कहा, ‘मैंने 2022 में कोशिश की. मैं उनसे बहुत छोटा हूं और उन्होंने मुझसे ज्यादा संघर्ष किया है. मैंने अपनी तरफ से हरसंभव कोशिश करके देख लिया लेकिन उन्होंने मेरे लिए कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा. मैं क्या कर सकता था? मैंने कई बार कोशिश की है, लेकिन अब, मैं एएसपी को आगे ले जाने और बहुजन समाज (एससी, एसटी, ओबीसी, मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यकों की संयुक्त आबादी) की राजनीतिक ताकत बनाने के लिए प्रतिबद्ध हूं.’ साथ ही जोड़ा कि कुछ लोगों का यह आरोप एकदम निराधार है कि वह बसपा को नुकसान पहुंचा रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘आपने कहा कि बसपा (यूपी में) एक सीट पर सिमट गई. लेकिन मुझे लगता है कि इसके लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं. कुछ लोग यह कहते हैं कि मैं बसपा को नुकसान पहुंचा रहा हूं, लेकिन मेरा उनसे यही कहना है कि इसमें मेरी कोई जरूरत नहीं है, इसके लिए तो बहनजी ही काफी हैं. मैंने कोशिश की कि बड़े नेताओं के संघर्ष से बना संगठन (बसपा) फले-फूले, लेकिन उन्होंने इसे पारिवारिक संगठन बनाकर रख दिया है. यदि उनकी नीतियां विफल हो रही हैं, तो मुझे गाली देने या भीम आर्मी के संघर्ष को नकारने के बजाय उन्हें खुद आत्म-विश्लेषण करना चाहिए. आपको उन लोगों के साथ खड़े होने की जरूरत है जिनसे आप वोट लेते हैं. क्या आपने पिछले पांच चुनावों में बहनजी को किसी संघर्ष के लिए खड़े होते देखा है?’


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खतौली की जीत और ‘भाजपा को रोकने की जरूरत’

रालोद के समर्थन का प्रमुख आधार माना जाने वाला जाट वोट बैंक पश्चिमी यूपी में मथुरा, बागपत, मुजफ्फरनगर और मेरठ लोकसभा सीटों पर काफी असरदार है. 2011 की जनगणना के अनुसार दलित समुदाय—जिसके एएसपी की ठीक-ठाक पैठ है—पूरे राज्य की आबादी का 20 प्रतिशत है. पश्चिमी यूपी में दलित आबादी जाटों की तुलना में लगभग पांच गुना मानी जाती है, जो कि 10 प्रतिशत से अधिक है.

आजाद ने कहा कि खतौली उपचुनाव के नतीजों के बाद यूपी ही नहीं पूरे देश के राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने यही राय जताई है कि अगर गठबंधन (सपा-रालोद-एएसपी) यूपी चुनाव के दौरान हुआ होता, तो गठबंधन सरकार सत्ता में होती, और भाजपा सरकार को दूसरे कार्यकाल के लिए बहुमत नहीं मिल पाता.

उन्होंने कहा कि राज्य में कई विधानसभा सीटों पर हार का अंतर बहुत कम था. वहां भाजपा इसलिए सफल रही क्योंकि विपक्ष बिखर गया था.

उन्होंने कहा, ‘आज सरकार लोगों के छोटे-मोटे अधिकारों को लगातार खत्म करने की साजिश कर रही है…माता-पिता बच्चों को इसलिए पढ़ाते हैं कि उन्हें सरकारी नौकरी मिल सके लेकिन आज लोग पीड़ित हैं और इस सरकार से आजादी चाहते हैं. चूंकि गठबंधन टूट गया था, भाजपा को इसका फायदा हुआ (2022 में). लेकिन अब हम उन्हें (भाजपा को) फायदा उठाने का कोई मौका नहीं देंगे.’

आजाद ने कहा, ‘आज सरकारी नौकरियां कम हैं, आरक्षण खत्म किया जा रहा है और दलितों, मुसलमानों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों जैसे कमजोर तबकों के साथ अन्याय हो रहा है. व्यापारियों, किसानों व महिलाओं को तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. हमारा संगठन (भीम आर्मी) और पार्टी इसे रोकने की कोशिश करेगी और भाजपा की गलत नीतियों के बारे में लोगों को बताएगी ताकि जनता को झूठे वादों और ध्रुवीकरण की राजनीति से बचाया जा सके. मेरी भूमिका 2024 में भाजपा को सत्ता में आने से रोकने की होगी.’

उन्होंने कहा कि जहां (सपा-रालोद-एएसपी) गठबंधन पश्चिमी यूपी में 19 लोकसभा सीटें जीत सकता है, वहीं वे (गठबंधन घटक) यह आकलन करने में लगे हैं कि अन्य सीटों पर जीत कैसे हासिल की जा सकती है.

सपा-रालोद से गठबंधन पर बातचीत

आजाद ने कहा कि यूपी में हार के बाद उनके और रालोद प्रमुख जयंत चौधरी के बीच पिछले सात-आठ महीनों से (एएसपी के गठबंधन में शामिल होने के लिए) बातचीत चल रही थी.

भीम आर्मी प्रमुख ने बताया कि उन्होंने रामपुर में सपा प्रमुख अखिलेश यादव से भी बात की थी, जहां वह 5 दिसंबर को खतौली और मैनपुरी के साथ हुए उपचुनावों के दौरान सपा उम्मीदवार आसिम राजा के लिए प्रचार करने पहुंचे थे.

आजाद ने कहा कि उम्मीद है गठबंधन के घटक एक-दूसरे के प्रति सम्मान के साथ आगे बढ़ेंगे और लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी में भाजपा को हराने में सफल होंगे. उन्होंने कहा, ‘जब मैं रामपुर में उनसे (अखिलेश) मिला तो हमारी लंबी बातचीत हुई. मैनपुरी में भी हमारी टीम ने काफी मेहनत की. मुझे उम्मीद है कि भविष्य में हम एक-दूसरे की भूमिका की अहमियत के साथ यह भी समझेंगे कि गठबंधन कितना महत्वपूर्ण है और हमें एक-दूसरे की जरूरत क्यों है.’

गौरतलब है कि जनवरी में स्थिति एकदम अलग थी जब आजाद ने गुस्से में कहा कि सपा को केवल दलित वोट चाहिए, उनके नेता नहीं. उन्होंने आरोप लगाया था कि वह सीट बंटवारे पर निर्णायक बातचीत के लिए दो दिन तक लखनऊ में रहे लेकिन अखिलेश की ओर से कोई प्रतिक्रिया ही नहीं आई, और इसी के बाद गठबंधन की चर्चाओं पर विराम लग गया था.

गठबंधन के प्रति सपा के रुख के बारे में पूछे जाने पर आजाद ने कहा, ‘मैंने (विधानसभा चुनाव में) गठबंधन की कोशिश की थी ताकि लोगों को भाजपा की तानाशाही और गलत नीतियों से छुटकारा दिलाया जा सके लेकिन किन्हीं कारणों से ऐसा नहीं हो पाया. वैसे भी गठबंधन कभी स्थायी नहीं होते. इसके कई कारण हो सकते हैं, यह बात मैंने हाल ही में एक इंटरव्यू में यह पूछे जाने पर कही थी कि क्या मैं फिर से बातचीत करूंगा. मैं उन कारणों के बारे में बोल सकता हूं जिससे गलतफहमी पैदा हुई…’

अगले साल के शुरू में होने वाले नगरपालिका चुनावों में गठबंधन के खुद को दोहराने की संभावनाओं के बारे में पूछे जाने पर आजाद ने कहा कि समन्वय समिति उन उम्मीदवारों के नामों पर विचार कर रही है जो चुनाव जीत सकते हैं.

17 नगर निगमों के महापौर, 200 नगर निगमों के अध्यक्ष और 546 नगर पंचायत प्रमुखों को चुनने के लिए प्रस्तावित नगर निकाय चुनाव अगले साल के शुरू में होने की संभावना है, क्योंकि शहरी स्थानीय निकाय सीटों में ओबीसी आरक्षण का मामला फिलहाल हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ के समक्ष विचाराधीन है.

उन्होंने कहा, ‘जैसे ही (ओबीसी) आरक्षण पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश आएगा, जिन सीटों पर विचार हो रहा है, उन्हें आरक्षित कर दिया जाएगा. हम भाजपा से नगर निगम की 14 सीटें छीनने की कोशिश करेंगे जहां वह सत्ता में है और स्वच्छता, बिजली, पानी, हाउस टैक्स आदि के मुद्दे उठाएंगे. पिछला नगरपालिका चुनाव एक चरण में हुआ था. अब कई चरणों में मतदान की बात हो रही है, जिससे साफ है कि भाजपा सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल करना चाहती है. गठबंधन इसे रोकने की हरसंभव कोशिश करेगा.’

‘गठबंधन समिति कहेगी तो लोकसभा चुनाव लड़ूंगा’

अगले आम चुनाव के बाबत आजाद ने कहा कि अगर गठबंधन को औपचारिक रूप देने पर फैसले के लिए बनाई गई गठबंधन घटकों की समिति उनसे चुनाव लड़ने को कहेगी तो वह चुनाव लड़ेंगे.

आजाद रालोद प्रमुख जयंत चौधरी के एक बयान पर टिप्पणी कर रहे थे—नवंबर में खतौली में एक संयुक्त रैली में जयंत ने कहा था कि उनका ‘गठबंधन खतौली की जीत तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि दिल्ली में भी समीकरणों को बदलेगा.’

उन्होंने कहा, ‘मेरे ऊपर एक समिति है, जो गठबंधन पर अंतिम निर्णय लेगी, क्योंकि मैं सिर्फ एक कार्यकर्ता हूं. मैं गठबंधन समिति के फैसले का पालन करूंगा. यह गठबंधन का ही निर्देश था कि हमें गांव-गांव जाकर (खतौली में) मेहनत करनी हैं. हमने इसे स्वीकार किया, मैं आपको सिर्फ 2024 के संभावित समीकरणों के बारे में बता रहा हूं.’

उन्होंने ‘अगर मुझे चुनाव लड़ने के लिए कहा गया, तो मैं ऐसा करूंगा और अगर नहीं कहा गया, तो नहीं लड़ूंगा. हम कमेटी के निर्देश पर चलेंगे क्योंकि संगठन व्यक्ति से बड़ा होता है और संगठन की कमेटी उससे बड़ी होती है…और मुझे लगता है कि देश की सबसे बड़ी जरूरत यह है कि तानाशाह सरकार को रोका जाए, जो लोगों को बांट रही है…एक साल में आप बड़ा बदलाव देखेंगे.’

(संपादनः शिव पाण्डेय । अनुवादः रावी द्विवेदी)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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