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Saturday, 21 December, 2024
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यूपी में SP हो या BJP का विरोध करने वाली कोई भी पार्टी, भीम आर्मी उसका समर्थन करने को तैयार- चंद्रशेखर आजाद

पार्टी अपने कार्यकर्त्ताओं और आज़ाद के बीच, बैठकें भी आयोजित करा रही है, ताकि उनकी चुनावी तैयारियों को, बेहतर तरीक़े से समझा जा सके. इस तरह की क़रीब 13 बैठकें पहले ही हो चुकी हैं.

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नई दिल्ली: भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आज़ाद ने कहा है, कि वो समाजवादी पार्टी (एसपी) या किसी भी दूसरे दल से हाथ मिलाने को तैयार हैं, जो उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ है.

बुधवार को दिप्रिंट के साथ एक इंटरव्यू में आज़ाद ने कहा, ‘मैं समाजवादी पार्टी के साथ जाने के लिए तैयार हूं, लेकिन अभी तक मैं अखिलेश यादव से मिला नहीं हूं’. उन्होंने ये भी कहा कि उनके अखिलेश के साथ, तीन बार मिलने की ख़बरें झूठी हैं.

लेकिन, एक समाजवादी पार्टी नेता ने दिप्रिंट को बताया, कि आज़ाद लगातार अखिलेश यादव के संपर्क में बने हुए हैं.

एसपी प्रमुख, जो गठबंधन सहयोगियों के चुनाव को लेकर, दो बार अपनी उंगलियां जला चुके हैं- 2017 विधान सभा चुनावों में कांग्रेस, और 2019 लोकसभा चुनावों में बीएसपी- अभी अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं. राज्य में विधान सभा चुनाव 2022 में होने हैं.

राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है, किसी भी गठजोड़ से दोनों पार्टियां फायदे में रहेंगी.

लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सुधीर पंवार का कहना था, ‘आज़ाद दलित युवाओं के बीच एक नायक बन चुके हैं. अगर वो अपनी फैन फॉलोइंग को, चुनावी कामयाबी में तब्दील कर पाएं, तो ये गठबंधन अच्छा प्रदर्शन करेगा’.

पत्रकार अजय बोस, जिन्होंने ‘बहन जी: मायावती का उत्थान और पतन’ लिखी है, जिसमें बीएसपी सुप्रीमो का इतिहास दर्ज किया गया है, पंवार से सहमत थे. ‘2019 लोकसभा चुनावों में, गठबंधन की वजह से मायावती को दस सीटें मिलीं, लेकिन वो अपने दलित वोट, एसपी को ट्रांसफर नहीं कर पाईं’.

‘अगर आज़ाद और अखिलेश हाथ मिला लेते हैं, तो यादव-मुस्लिम-दलित गठजोड़ बनाया जा सकता है, जो यूपी में काफी कामयाब रहा है’.


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काडर का विस्तार

आज़ाद ने दिप्रिंट को बताया, कि संभावित गठबंधनों की तलाश करने के अलावा, उनकी आज़ाद समाज पार्टी अपने काडर का भी विस्तार कर रही है. उन्होंने ये भी कहा कि उनकी पार्टी ज़िला स्तर पर, एक सदस्यता अभियान चला रही है, और अभी तक 5 लाख लोग पंजीकरण करा चुके हैं. हर मेम्बरशिप कार्ड की क़ीमत 20 रुपए है.

उन्होंने कहा, ‘हम अपने काडर को मज़बूत करने की तैयारी कर रहे हैं. हमारे पास मुद्दे भी हैं, और ऊर्जा भी; हम अपने मतदाताओं तक भी पहुंच सकते हैं.’

पार्टी अपने कार्यकर्त्ताओं और आज़ाद के बीच, बैठकें भी आयोजित करा रही है, ताकि उनकी चुनावी तैयारियों को, बेहतर तरीक़े से समझा जा सके. इस तरह की क़रीब 13 बैठकें पहले ही हो चुकी हैं.

आज़ाद ने कहा, ‘हम एक नई पार्टी हैं. हमें काडर जुटाने का कोई अनुभव नहीं है. इसलिए इस वक़्त, हर कार्यकर्त्ता को बूथ प्रबंधन की ट्रेनिंग दिए जाने की ज़रूरत है’.


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एक उभरते हुए नेता

भीम आर्मी चीफ़ को, अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए आयोजित कार्यक्रमों में, उनकी उपस्थिति पर राष्ट्रीय तवज्जो मिल रही है. पिछले साल हाथरस गैंग रेप मामले में, उन्होंने सफदरजंग अस्पताल के बाहर विरोध प्रदर्शन किया था, और दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन में भी मौजूद थे.

इन तस्वीरों से उनकी पहचान बनने में भी फायदा मिला है, और टाइम पत्रिका ने भी उन्हें, ऐसे 100 लोगों की सालाना लिस्ट में जगह दी, जो ‘उभरते हुए नेता हैं और भविष्य को आकार दे रहे हैं’.

उन्होंने कहा, ‘दलितों पर अत्याचार के खिलाफ प्रदर्शनों के अलावा, वो (टाइम की लिस्ट में होना) मेरे राजनीतिक करियर की सबसे बड़ी कामयाबी है’.

मायावती फैक्टर

उनका उदय संयोगवश ऐसे समय में हो रहा है, जब यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती, जो यक़ीनन देश की सबसे बड़ी दलित लीडर हैं, तेज़ी से पीछे हटती दिख रही हैं. कई मौक़ों पर बीएसपी से हाथ मिलाने की आज़ाद की कोशिशों के बावजूद, मायावती ने समय-समय पर उनपर हमले किए हैं.

बीजेपी का समर्थन न मिलने पर बात करते हुए, आज़ाद ने कहा, ‘मैं नेताओं से प्रमाण हासिल करने में, अपनी ऊर्जा बरबाद नहीं करना चाहता. उसके बजाय मैं अपनी ख़ुद की पार्टी को, विस्तार देने पर ध्यान केंद्रित करूंगा. और मुझे नहीं लगता कि मेरे पास राजनीतिक सलाहकारों की कमी है.

उन्होंने आगे कहा, ‘मायावती के पास कांशीराम की विरासत हो सकती है, लेकिन कांशीराम के सिद्धांत मेरे पास हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘युवा उत्तेजित और मुखर हैं. बैलट बॉक्स पर इसका इस्तेमाल किया जा सकता है’.
आज़ाद ने ये भी कहा कि वो अपने आपको, सिर्फ एक दलित नेता के तौर पर नहीं देखते. उन्होंने कहा, ‘राजनीतिक पंडित मुझे सिर्फ एक दलित नेता कहकर अलग-थलग नहीं कर सकते’. उन्होंने ये भी कहा, ‘मैं पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों को एकजुट कर रहा हूं, जो कुल मतदाताओं का क़रीब 85 प्रतिशत होते हैं’.


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