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Friday, 3 May, 2024
होमराजनीति'भारत जोड़ो यात्रा' के सहारे कैसे 2024 के लिए विपक्ष का चेहरा बनने की कोशिश कर रहे हैं राहुल गांधी

‘भारत जोड़ो यात्रा’ के सहारे कैसे 2024 के लिए विपक्ष का चेहरा बनने की कोशिश कर रहे हैं राहुल गांधी

सितंबर में कन्याकुमारी से इस यात्रा की शुरुआत कांग्रेस के एक कार्यक्रम के तौर पर हुई थी. लेकिन उत्तर भारत में प्रवेश के साथ ही प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल इसे व्यापक-विपक्ष का रंग देने की एक कोशिश मानने लगे हैं.

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नई दिल्ली: राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के उत्तर भारत- जहां कई राज्यों में कांग्रेस का प्रभाव लगातार घट रहा है—में प्रवेश करने के साथ ही 3,500 किलोमीटर की इस अखिल भारतीय यात्रा में एक चारित्रिक बदलाव नजर आने लगा है.

यह यात्रा कांग्रेस के अपने एकल प्रयास के तौर पर शुरू हुई थी, जिसमें कभी नागरिक समाज संगठन के कार्यकर्ताओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया तो कभी तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में सहयोगी दलों के समर्थन ने इसे मजबूती प्रदान की. लेकिन, अब बहुजन समाज पार्टी (बसपा), पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) जैसे राजनीतिक दलों के साथ संपर्क साधकर इस यात्रा को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के दायरे से बाहर निकालने की कोशिश की जा रही है.

देश को जोड़ने के इरादे के साथ 7 सितंबर को शुरू हुई यात्रा के दौरान कन्याकुमारी में कश्मीर तक की दूरी कवर की जानी है और इसके अपने मुकाम पर पहुंचने से पहले से जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस के इसमें शामिल होने की पुष्टि हो चुकी है. इसका मतलब है कि जैसे ही यह यात्रा अपने अंतिम गंतव्य श्रीनगर के करीब पहुंचेगी, जम्मू-कश्मीर राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके तीन नेता महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला इसमें शामिल हो जाएंगे.

हालांकि, यात्रा के दौरान तमिलनाडु में राहुल गांधी के साथ चलने वाले डीएमके और महाराष्ट्र में शामिल हुए शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी तो कांग्रेस के सहयोगी दलों में शुमार हैं, इसके विपरीत मौजूदा समय में पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस में कोई भी कांग्रेस का सहयोगी दल नहीं है.

विपक्षी नेता अन्य सियासी दलों को यात्रा में शामिल होने के लिए मिल रहे न्योते को कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालने से दूर रहने के लिए पार्टी सहयोगियों का दबाव झेलने वाले राहुल गांधी को 2024 के संसदीय चुनाव में भाजपा के खिलाफ एकजुट विपक्ष के चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट करने की कोशिश मान रहे हैं.

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तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक सुखेंदु शेखर रे ने दिप्रिंट से कहा कि कांग्रेस की ‘हरसंभव’ कोशिशों के बावजूद पार्टी को अभी तक ‘यूपीए के दायरे से बाहर कोई समर्थन नहीं मिला है, सिर्फ कुछ प्रतीकात्मक मौजूदगी के अलावा.’

उन्होंने कहा, ‘अगर कोई पार्टी देशभर में घूमती है और लोगों से मिलती-जुलती है तो निश्चित तौर पर कुछ प्रभाव तो होता ही है. मैं कोई तुलना नहीं कर रहा लेकिन महात्मा गांधी के दांडी या नमक मार्च, विनोबा भावे के भूदान आंदोलन, या फिर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर अथवा आरएसएस प्रमुख गोलवलकर को ही ले लीजिए, इन सभी ने यात्राएं कीं और उनका असर दिखा. आडवाणी की रथ यात्रा ने भी कारसेवकों में उत्साह भरा था.’ साथ ही जोड़ा, ‘यह अच्छी बात है कि ड्राइंगरूम राजनीति में व्यस्त रही कांग्रेस आखिरकार 20 साल की अपनी कुंभकर्णी नींद से जागी है, लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि यह गति जारी रहनी चाहिए.’

एक उदाहरण के तौर पर रे ने 1997 में कोलकाता स्थित नेताजी इंडोर स्टेडियम में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के सत्र का जिक्र किया, जब स्टेडियम के अंदर मौजूद भीड़ से ज्यादा लोग तो उसके ठीक बाहर तत्कालीन असंतुष्ट कांग्रेसी नेता ममता बनर्जी की सभा में जुट गए थे.

रे ने कहा, ‘हमारी नेता हमेशा एक जननेता रही हैं और उनका शासन और उनकी राजनीति लोगों से जुड़ी रही हैं.’

कांग्रेस का दावा है कि टीएमसी ने यात्रा में शामिल होने के कांग्रेस के निमंत्रण को खारिज कर दिया. हालांकि, टीएमसी के सूत्रों का कहना है कि पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी सड़क की राजनीति में एक ट्रेंडसेटर हैं और इसलिए उन्हें किसी और के लिए ऐसी भूमिका निभाने की जरूरत नहीं है.

वहीं, कांग्रेस नेता इस बात से इनकार कर रहे हैं कि यह विपक्षी खेमे में वर्चस्व कायम करने की कोई कोशिश है. एआईसीसी महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने दिप्रिंट से कहा, ‘जो कुछ वजूद में नहीं है, उसके बहुत ज्यादा निहितार्थ न निकालें. और जो लोग मोदी को विदा करना चाहते हैं, उनका (यात्रा में) स्वागत है.’


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भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुईं तमाम हस्तियां

यात्रा ने ग्लैमर के कारण भी ध्यान आकृष्ट किया. पिछले हफ्ते, दक्षिण भारत के सुपरस्टार कमल हासन के दिल्ली में इस यात्रा में शामिल होने के फैसले को लेकर सवाल खड़े हुए – खासकर इस वजह से भी कि उनके अपने गृह राज्य तमिलनाडु में इसमें शामिल होने का ज्यादा असर पड़ता और भारत जोड़ो यात्रा सबसे पहले उसी राज्य से शुरू हुई थी.

फरवरी 2018 में अपनी राजनीतिक पार्टी मक्कल निधि मय्यम (एमएनएम) लॉन्च करने वाले अभिनेता कमल हासन यह यात्रा तमिलनाडु में होने के दौरान उसमें शामिल नहीं हुए थे.

हालांकि, कांग्रेस के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि कमल हासन के दिल्ली में शामिल होने और अपने राज्य में यात्रा में मौजूद न रहने का कारण सिर्फ उनकी उपलब्धता पर आधारित था और कोई अन्य वजह नहीं है.

राहुल गांधी ने राजस्थान में यात्रा में शामिल होने के लिए कई मशहूर हस्तियों को व्यक्तिगत तौर पर पत्र भी लिखे थे, जहां सीएम की कुर्सी को लेकर कांग्रेस अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सियासी झगड़े में उलझी है.

उनके न्योते पर जवाब देने वालों में आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन सबसे प्रमुख चेहरा थे.

सपा-बसपा ने ठुकराया न्योता

भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने का कांग्रेस का न्योता ठुकराने वाले दलों में पूर्व सहयोगी समाजवादी पार्टी (सपा), बसपा और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) शामिल हैं.

यह यात्रा 3 जनवरी को उत्तर प्रदेश में प्रवेश करेगी.

सपा के राज्यसभा सदस्य जावेद अली खान ने दिप्रिंट को बताया कि भारत जोड़ो यात्रा एक अच्छे उद्देश्य के साथ निकाली गई और उनकी पार्टी इसकी सफलता के लिए कांग्रेस को ‘शुभकामनाएं’ देती है. लेकिन उनकी पार्टी के इसमें शामिल होने का कोई तुक नहीं बनता क्योंकि यह निश्चित तौर पर एक अलग राजनीतिक दल का प्रमुख कार्यक्रम है.

उन्होंने कहा, ‘हम सहयोगी दल नहीं हैं. हम भाजपा को हराने और देश के सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने के उसके मंसूबों को नाकाम करने के लिए अपने स्तर पर गतिविधियां चला रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में ज्यादा मौजूदगी नहीं है और वह राज्य में भाजपा से मुकाबला नहीं कर सकती है.

खान ने कहा, ‘यात्रा की प्रतिक्रिया को लेकर ज्यादा निहितार्थ निकालने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि भारत में लोगों के स्वागत की परंपरा रही है लेकिन असल सवाल यह है कि क्या उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कोई पहचान है. लेकिन ऐसा नहीं है. यह कुछ ऐसा है जैसे सपा तमिलनाडु या तेलंगाना में कोई मार्च निकाले. विपक्षी एकता का मतलब है कि हर पार्टी अपनी ताकत से खेले. कांग्रेस का यूपी में भाजपा के साथ मुकाबले की कोशिश करना वैसा ही है जैसे कोई विदेशी पहलवान हमारे अखाड़े में प्रतिद्वंद्वी को हराने की कोशिश कर रहा हो. इसका कोई मतलब नहीं है.’

हालांकि, कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि भारत जोड़ो यात्रा को विपक्ष का शक्ति प्रदर्शन बनाने के बारे में सोच-समझकर कोई निर्णय नहीं लिया गया था, लेकिन ऐसा लगता है कि इस यात्रा के दौरान राष्ट्रीय अखंडता और आर्थिक मुद्दों को जिस तरह उठाया गया है, उससे कई राजनीतिक दल खुद को इससे जुड़ा पा रहे हैं और इसका हिस्सा बनना चाहते हैं.

एआईसीसी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘यह उन पर ही निर्भर करता है. वे चाहें तो जुड़ सकते हैं. और न चाहें तो नहीं भी जुड़ सकते हैं. कांग्रेस गंगा की तरह है जिसकी कई सहायक नदियां बहती रहती हैं. यह भारतीय राजनीति की मुख्यधारा का प्रतिनिधित्व करती है जो भारतीय संविधान में निहित कई विचारों और विचारधाराओं का संगम है. इसलिए हमें किसी के साथ जुड़ने में कोई झिझक नहीं है.’

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(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादन: अलमिना खातून)


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