कोलकाता: बालुरघाट से बीजेपी सांसद और पश्चिम बंगाल भाजपा प्रमुख सुकांत मजूमदार ने कहा है कि इस वक्त राज्य में रह रहे और बांग्लादेश से सताए गए हिंदुओं के लिए सीएए एक बड़ी राहत बनकर आया है. मजूमदार को इस बार भी लोकसभा चुनाव 2024 में बालुरघाट से टिकट दिया गया है.
फोन पर दिप्रिंट से बात करते हुए मजूमदार ने कहा कि जैसा कि कुछ विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं, ऐसा नहीं है कि सीएए को किसी क्षुद्र राजनीतिक लाभ के लिए अधिसूचित किया गया है.
उन्होंने कहा, “सीएए यहां शरणार्थियों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए है. भाजपा ने अपने घोषणापत्र में सीएए का वादा किया था और ‘मोदी की गारंटी’ ने उस वादे को पूरा किया है. सीएए पश्चिम बंगाल में रह रहे बांग्लादेश के हिंदुओं को सुरक्षा प्रदान करेगा.”
बंगाल भाजपा प्रमुख ने कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने मुस्लिम वोट बैंक को मजबूत करने के लिए सीएए का विरोध कर रही हैं. “ऐसा करके, वह मुसलमानों को भड़का रही हैं और राज्य को तीखे सांप्रदायिक आधार पर विभाजित कर रही है. मैं तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और ममता बनर्जी को याद दिला दूं कि नागरिकता संघ सूची में है और भारत की संसद ने इसे एक अधिनियम बनाने के लिए सीएए पर कानून बनाया है. पश्चिम बंगाल में सीएए लागू नहीं होने देने वाली ममता बनर्जी कौन हैं?” मजूमदार ने पूछा, इस मुद्दे पर ममता की टिप्पणियां “भारत” के संविधान और संप्रभुता पर हमला हैं.
13 मार्च को, केंद्र सरकार द्वारा सीएए को लागू करने के लिए अधिसूचना जारी करने के दो दिन बाद, ममता ने कहा था कि सीएए एनआरसी से जुड़ा हुआ है और वह नए कानून का विरोध करेंगी. उन्होंने कहा कि वह असम की तरह पश्चिम बंगाल में डिटेंशन कैंप की अनुमति नहीं देंगी.
7 मार्च को – सीएए लागू होने से ठीक पहले – एक मटुआ नेता और भाजपा विधायक मुकुट मणि अधिकारी टीएमसी में शामिल हो गए, उन्होंने कहा कि उनके निर्वाचन क्षेत्र के लोग पिछले पांच वर्षों में “वंचित” रहे हैं. सीएए अधिसूचित होने के कुछ घंटों बाद, राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में जश्न मनाया गया, जहां शरणार्थियों का वर्चस्व है, विशेष रूप से उत्तर 24 परगना जिले के ठाकुरनगर में. इस क्षेत्र में अनुसूचित जाति के एक वर्ग मटुआओं का प्रभुत्व है, जो कि पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 8 में निर्णायक भूमिका निभाता है. मटुआओं की नागरिकता की स्थिति राज्य में विवाद का विषय रही है.
जबकि भाजपा ने सीएए के तहत मटुआओं को नागरिकता देने का वादा किया था, वहीं अधिकारी के टीएमसी में जाने से सवाल खड़ा हो गया है कि मटुआ अब किसके पक्ष में मतदान करेंगे.
हालांकि, मजूमदार ने कहा कि अधिकारी के पाला बदलने से भाजपा को कोई नुकसान नहीं होगा.
मजूमदार ने दिप्रिंट को बताया, “वह समुदाय में उतना लोकप्रिय नहीं है. साथ ही टीएमसी को लगता है कि सीएए से सिर्फ मटुआ समुदाय को फायदा होगा. उन्हें लगता है कि अधिकारी को लेकर वे पश्चिम बंगाल में रहने वाले सभी हिंदू शरणार्थियों की लंबे समय से चली आ रही मांग के महत्त्व को कम कर सकती हैं. मैं भी शरणार्थी हूं, नामशूद्र और कई अन्य समुदाय भी शरणार्थी हैं.”
मजूमदार ने कहा, एक चीज जो सीएए नहीं कर सकता, वह है पश्चिम बंगाल के बंगाली हिंदुओं को उम्मीद देना. उन्होंने कहा कि सदेशखाली में सामने आई घटनाओं से पता चलता है कि ममता बनर्जी के शासन में बंगाली हिंदू कितने असुरक्षित हैं.
अनेक संदेशखाली, अनेक शाहजहां
मजूमदार, जो भूमि हड़पने और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के यौन शोषण के आरोप सामने आने के बाद अपने स्थानीय नेता शेख शाहजहां को बचाने के लिए टीएमसी सरकार के खिलाफ विपक्ष के विरोध प्रदर्शन में सबसे आगे थे, ने कहा कि मुद्दा अभी खत्म नहीं हुआ है. भले ही शाहजहां अब सीबीआई की हिरासत में हैं.
मजूमदार ने कहा, “मुझे लगता है कि संदेशखाली टीएमसी का कब्रिस्तान बन जाएगा. संदेशखाली की घटनाएं नंदीग्राम की तुलना में कहीं अधिक भयावह थीं. नंदीग्राम ज़मीन हड़पने और लोगों द्वारा अपनी ज़मीन उद्योग को न देने की इच्छा के बारे में था. संदेशखाली टीएमसी और ममता बनर्जी के संरक्षण में शेख शाहजहां और उसके गुंडों द्वारा हिंदू महिलाओं, जिनमें ज्यादातर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से हैं, उनके यौन शोषण के बारे में है.”
मजूमदार ने आरोप लगाया कि शेख शाहजहां की गिरफ्तारी के बाद भी उनके भाई संदेशखाली में स्थानीय महिलाओं को धमकी दे रहे हैं. “मैं संदेशखाली का नियमित दौरा करता हूं क्योंकि हमें उन लोगों के साथ खड़े होने की जरूरत है जो टीएमसी शासन के तहत अपने को कमजोर हमसूस करते हैं.”
उन्होंने आरोप लगाया, ”बंगाल में कई शेख शाहजहां हैं जो राजनीतिक रूप से टीएमसी के साथ जुड़े हुए हैं.”
उन्होंने कहा, “उत्तर 24 परगना में, शेख शाहजहां है, दक्षिण 24 परगना में आपके पास जहांगीर नाम का गुंडा है. कुछ दिन पहले उत्तरी बंगाल में टीएमसी के गुंडों ने एक हिंदू घर में तोड़फोड़ की थी. ये मुस्लिम गुंडे हैं जिन्हें सत्तारूढ़ टीएमसी द्वारा संरक्षण दिया गया है.”
टीएमसी ने लोकसभा चुनाव के लिए संदेशखाली क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले बशीरहाट निर्वाचन क्षेत्र से हाजी नुरुल इस्लाम को मैदान में उतारा है.
मजूमदार ने दावा किया कि नुरुल इस्लाम 2010 के हिंदू विरोधी दंगों का मुख्य आरोपी है.
मजूमदार ने कहा, “हाजी नुरुल इस्लाम बशीरहाट के निवासी भी नहीं हैं. लेकिन स्थानीय हिंदुओं में डर पैदा करने के लिए उन्हें टिकट दिया गया है.’ यह ममता बनर्जी की हिंदू विरोधी मानसिकता को उजागर करता है.”
बंगाल बीजेपी के लिए विवाद की एक और वजह अभिनेत्री सायोनी घोष की उम्मीदवारी है, जिन्होंने फरवरी 2015 में, महा शिवरात्रि के अवसर पर, एक महिला द्वारा शिवलिंग पर कंडोम चढ़ाते हुए एक कार्टून ट्वीट किया था. हालांकि, बाद में अभिनेत्री ने पोस्ट के लिए माफी मांगते हुए कहा था कि उनका अकाउंट हैक हो गया था लेकिन विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है.
घोष अब जादवपुर से लोकसभा चुनाव लड़ेंगी. हालांकि, मजूमदार ने कहा कि हिंदुओं ने 2015 के अपराध के लिए उन्हें माफ नहीं किया है.
“आप हिंदू सहिष्णुता को हल्के में नहीं ले सकते. अब समय आ गया है कि हमारे धर्म और पवित्र प्रतीकों का अपमान बंद हो. बंगाल के मतदाता सायोनी घोष और उनका समर्थन करने वाली पार्टी को दंडित करेंगे.”
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‘बाहरी बनाम अंदरूनी’ बहस
2021 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के दौरान, ममता ने भाजपा को “बोहिरागोटो (बाहरी लोगों)” की पार्टी कहकर आड़े हाथों लिया. चुनाव के लिए टीएमसी का नारा था “बांग्ला निजेर मेयेकेई चाई (बंगाल अपनी बेटी चाहता है)”.
मजूमदार ने कहा कि टीएमसी ने अब बंगाल के बाहर से कई उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, चाहे वे क्रिकेटर यूसुफ पठान और कीर्ति आजाद हों या अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा हों.
मजूमदार ने पूछा, “यह अपने चरम स्तर का पाखंड है. पार्टी के उम्मीदवारों की सूची की घोषणा करने से ठीक पहले, टीएमसी महासचिव अभिषेक बनर्जी ने भाजपा पर हमला करते हुए कहा कि यह बोहिरागोटो से भरी हुई है). और फिर उन्होंने आज़ाद, सिन्हा और पठान को मैदान में उतारा. क्या ये तीनों बांग्ला बोल सकते हैं? क्या वे बंगाली हैं? मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए गुजराती मुस्लिम युसूफ पठान को मैदान में उतारा गया है. ऐसा कैसे हो गया कि यूसुफ़ पठान बोहिरागोटो नहीं है लेकिन हमारे देश का प्रधानमंत्री एक बाहरी व्यक्ति है?”
बाहरी लोगों के सवाल पर उस वक्त विवाद खड़ा हो गया जब बीजेपी ने आसनसोल से भोजपुरी गायक-अभिनेता पवन सिंह को मैदान में उतारा. इसके तुरंत बाद, सिंह की फिल्म के पोस्टर और लोकप्रिय गीतों के बोल, जो विशेष रूप से बंगाली महिलाओं के प्रति अपमानजनक थे, सोशल मीडिया पर साझा किए जाने लगे. सिंह ने घोषणा की कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे.
मजूमदार ने कहा कि यह उनका निजी फैसला है.
“महान बंगाली अभिनेता उत्पल दत्त ने फिल्मों में कई नकारात्मक भूमिकाएं निभाईं. वास्तविक जीवन में वह एक सम्मानित व्यक्ति थे. पवन सिंह की उम्मीदवारी वापस लेने का इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि उन्होंने किस तरह की फिल्में कीं या गाने गाए हैं. यह उनका निजी फैसला था और पार्टी का इससे कोई लेना-देना नहीं है.”
यदि पवन सिंह की उम्मीदवारी भाजपा के लिए शर्मिंदगी का पल बन गई, तो कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अभिजीत गांगुली का अपने पद से हटकर भाजपा में शामिल होना पार्टी के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा था. भ्रष्टाचार के कई मामलों पर कड़े शब्दों में बयान देकर सत्तारूढ़ टीएमसी को अदालत में खींचने के लिए गांगुली पश्चिम बंगाल में स्थानीय प्रेस और विपक्षी दलों दोनों के प्रिय रहे हैं.
इसके बजाय, टीएमसी और अन्य पार्टियों ने मांग की कि उनके कुछ फैसलों पर दोबारा गौर किया जाना चाहिए क्योंकि गांगुली ने एक प्रेस वार्ता में कहा था कि बीजेपी कुछ समय से उनके साथ बातचीत कर रही है.
मजूमदार ने कहा कि न्यायमूर्ति गांगुली के इस्तीफा देने तक भाजपा का उनके साथ कोई संबंध नहीं था. उन्होंने यह भी दावा किया कि जस्टिस गांगुली के फैसलों को टीएमसी ने वैसे भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
“जस्टिस गांगुली एक ‘जनता के न्यायाधीश’ रहे हैं और टीएमसी के आरोप केवल निचले स्तर की राजनीति हैं. वे किस तरह की मिसाल कायम करना चाहते हैं? मैं उन्हें याद दिला दूं कि न्यायमूर्ति नूर आलम चौधरी कलकत्ता उच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त होने के बाद टीएमसी में शामिल हो गए थे. तो, टीएमसी के तर्क से, न्यायमूर्ति चौधरी द्वारा दिए गए सभी निर्णयों पर दोबारा गौर किया जाना चाहिए? मजूमदार ने कहा, ”ममता बनर्जी को हमारी स्वतंत्र संस्थाओं, खासकर न्यायपालिका का सम्मान करना सीखना चाहिए.”
मजूमदार ने ममता के इन आरोपों पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की कि केंद्र राज्य को धन रोक रहा है, उन्होंने कहा कि वह झूठे आरोप लगाने में माहिर हैं, लेकिन उनके झूठ का समर्थन करने के लिए उनके पास डेटा नहीं है.
“जब बनर्जी यूपीए-1 की सरकार में केंद्रीय मंत्री थीं, तो बंगाल को 300-400 करोड़ रुपये आवंटित किए जाते थे. अब मोदी सरकार में बंगाल का रेल बजट 12,000 करोड़ रुपये से ज्यादा है. यह वह रणनीति है जो उन्होंने वामपंथ से चुनी है. मजूमदार ने कहा, वाम मोर्चा इस झूठ का प्रचार करता था कि केंद्र सरकार को कभी भी बंगालियों की परवाह नहीं है और बंगाल के अविकसित राज्य बने रहने के लिए दिल्ली जिम्मेदार है.
बंगाल भाजपा प्रमुख ने कहा कि वामपंथ और अब ममता बनर्जी की राजनीति केंद्र को राज्य के खिलाफ, लोगों को लोगों के खिलाफ और एक भाषा को दूसरी भाषा के खिलाफ खड़ा करना है. “वामपंथियों ने राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचाने के लिए वह सब किया जो वे कर सकते थे. ममता भी इसी झूठ में लिप्त हैं और वह हर मुद्दे को दिल्ली बनाम कोलकाता बता रही हैं.”
मजूमदार ने कहा कि ऐसी रणनीति अब मतदाताओं के साथ काम नहीं करेगी क्योंकि भाजपा को भरोसा है कि बंगाल में उसे 42 लोकसभा सीटों में से कम से कम 35 सीटें मिलेंगी.
“हाल ही में, पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह दोनों ने हमें बंगाल से 35 सीटें जीतने का लक्ष्य दिया था. हम ऐसा करने को लेकर आश्वस्त हैं. हमारी नजर 35 सीटों पर है.”
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