बेंगलुरु: शुक्रवार को अपनी पदोन्नति के बाद से, कर्नाटक भाजपा प्रमुख बी.वाई. विजयेंद्र ने वरिष्ठ नेताओं एच.डी.देवगौड़ा, एच.डी.कुमारस्वामी, एस.एम.कृष्णा, बसवराज बोम्मई के साथ-साथ आदि चुनचुनगिरि और श्री सिद्धगंगा मठों के मठाधीशों का आशीर्वाद लेने के लिए उनसे मुलाकात की है.
लेकिन, कर्नाटक में 2024 के आम चुनाव से पहले असंतोष की लहर से भाजपा के लिए समस्याएं बढ़ने का खतरा है.
पद के लिए नजरअंदाज किए गए, वी.सोमन्ना जैसे वरिष्ठ नेता एक भयानक चुप्पी बनाए हुए हैं, जिससे पार्टी के भीतर बढ़े हुए तनाव के कभी भी उबल पड़न का खतरा मंडरा रहा है. मई में सत्ता जाने के बाद से ही पार्टी में काफी असंतोष की स्थिति बनी हुई है.
कई ‘पुराने लोगों’ ने माना कि विजयेंद्र की पदोन्नति ने उनकी मूल वैचारिक मान्यताओं को हिलाकर रख दिया है, जिससे उनमें से कुछ लोगों में उस समय की तुलना में अधिक असंतोष पैदा हो गया जब उनके पिता बी.एस.येदियुरप्पा को सत्ता से हटाए जाने की खुली मांग के बावजूद वे सत्ता में बने रहे.
एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, “हमने लगभग चार दशक पहले भाजपा का हिस्सा बनने का फैसला किया था जब उसके पास कोई शक्ति नहीं थी, केवल एक विधायक और एक पंचायत सदस्य था. लेकिन हम इसकी हिंदुत्व की विचारधारा और वंशवाद विरोधी राजनीति में विश्वास करते थे. लेकिन हमारे जैसे लोग जो इस विचारधारा में विश्वास करते हैं और जिन्होंने पार्टी को आज इस स्तर तक बढ़ाने में मदद की है, उनके लिए विजयेंद्र को आगे बढ़ाया जाना क्या संदेश देता है? पिछली सीट से उन्हें पहली बेंच दे दी गई है. सही? हमारी पूरी वैचारिक जड़ें हिल गई हैं,”
“…हमने एक पार्टी के रूप में वंशवाद की राजनीति को लेकर कांग्रेस और जेडी(एस) पर सवाल उठाया है, लेकिन अपने भीतर झांकने में विफल रहे हैं. हम इसे योग्यता नहीं कह सकते क्योंकि फिर यह तर्क तो अन्य परिवार आधारित पार्टियां भी दे सकती हैं.”
शिकारीपुरा से पहली बार विधायक बने विजयेंद्र और उनके पिता बी.एस.येदियुरप्पा की बसनगौड़ा पाटिल यतनाल जैसे वरिष्ठ नेताओं द्वारा भ्रष्टाचार में लिप्त होने के लिए आलोचना की गई थी.
दो वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि येदियुरप्पा को 2011 के साथ-साथ 2021 में भी सीएम पद छोड़ने के लिए कहे जाने का मुख्य कारण उन्हें ही माना जाता है.
भाजपा के एक वरिष्ठ विधायक ने 2021 के उन गुमनाम पत्रों का जिक्र करते हुए, जिसमें येदियुरप्पा को पद छोड़ने के लिए कहा गया था क्योंकि उनका बेटा समानांतर सरकार चला रहा था, कहा, “विजयेंद्र एक बहुत प्रभावशाली जन नेता और मुख्यमंत्री के बेटे हैं. वह संबंध बनाने और एक मजबूत नेता के रूप में उभरने के लिए बहुत अच्छी स्थिति में थे. इसके बजाय, उन्होंने सब कुछ बर्बाद कर दिया.”
कहा जाता है कि ये पत्र येदियुरप्पा के वफादारों के एक वर्ग द्वारा लिखे गए थे, जो विजयेंद्र द्वारा किसी भी सरकारी काम को पूरा कराने या स्वीकृत कराने में अपमानित महसूस करते थे.
विधायक ने कहा कि विजयेंद्र की पदोन्नति ने पार्टी को 2024 से पहले एकजुट करने के बजाय और अधिक ‘बिखेर’ दिया है.
लेकिन कुछ अन्य लोगों के लिए, विजयेंद्र का पदोन्नयन “समय की ज़रूरत” है. एक पूर्व भाजपा विधायक ने कहा, “अगर हम कतार में आगे वालों को ही मौका देंगे तो युवाओं को इन पदों तक पहुंचने में 25 साल लग जाएंगे. उन्हें योग्यता के आधार पर पद दिया गया है.”
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‘ऊर्ध्वाधर विरासत’
समानांतर रूप से, लगभग चार साल तक दरकिनार किए जाने के बाद, येदियुरप्पा को भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बी.एल.संतोष के साथ अपने शीत युद्ध में बढ़त मिलती दिख रही है.
भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव सी.टी.रवि को राज्य प्रमुख के रूप में नलिन कतील की जगह लेने की संभावना जताई गई थी. दोनों नेता संतोष के करीबी माने जाते हैं.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने कहा कि पार्टी आलाकमान द्वारा दूसरे नंबर के नेता संतोष को नजरअंदाज करना यह दर्शाता है कि कैसे येदियुरप्पा ने पार्टी पर फिर से नियंत्रण हासिल कर लिया है.
हालांकि येदियुरप्पा की सहयोगी केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे का नाम चर्चा में था, लेकिन विजयेंद्र का नामांकन ज्यादातर लोगों के लिए झटका है.
ऊपर जिनका जिक्र किया गया है उन वरिष्ठ नेता ने कहा, “इस ऊर्ध्वाधर विरासत के अच्छे राजनीतिक लाभ हो सकते हैं. लेकिन विचारधारा का क्या? हमारी विचारधारा का वर्तमान और भविष्य बुरी तरह प्रभावित हुआ है,”
हालांकि, भाजपा पिछले कुछ समय से भाजपा में अंदर ही अंदर बहुत कुछ उबल रहा है, खासकर 2021 में येदियुरप्पा के जबरन बाहर निकलने के बाद नेतृत्व संकट के कारण, इसके आलाकमान द्वारा किसी भी फैसले की आलोचना को हल्के में लेने की संभावना नहीं है. नेता ने जोर देकर कहा, “ऐसा नहीं है कि हम इसलिए विद्रोह नहीं कर रहे हैं क्योंकि हम कर नहीं सकते, बल्कि हम अनुशासन के कारण विद्रोह नहीं कर रहे हैं.”
भाजपा के एक अंदरूनी सूत्र ने कहा कि वरिष्ठ विधायक वी.सोमन्ना की चुप्पी ने अटकलों को हवा दे दी है कि उनके कांग्रेस की ओर जाने की संभावना है.
रवि से भी टिप्पणी के लिए संपर्क नहीं हो सका.
रवि ने सोमवार को संवाददाताओं से कहा कि उनके पास सिर्फ भाजपा है और वह जो भी पद या आदेश देगी, उसका सम्मान करेंगे. उन्होंने बेंगलुरु में कहा,“अध्यक्ष का पद एक बड़ा पद है. उस पद का जो भी सम्मान होना चाहिए, हम करेंगे. अगर मुझे कोई पद नहीं दिया गया तो भी मैं अपनी ताकत से अपनी पार्टी के लिए वोट मांगूंगा, किसी और के लिए नहीं. जब से मुझे थोड़ी समझ आई है मैंने सिर्फ बीजेपी के लिए वोट मांगा है और वोट भी उन्हें ही दिया है. मेरे पास सिर्फ बीजेपी है. अगर मुझसे कहा जाए कि राजनीति मत करो तो मैं बाहर बैठ जाऊंगा लेकिन किसी और पार्टी के साथ नहीं जाऊंगा.
एक दिन पहले, रवि ने कहा था कि विजयेंद्र की पदोन्नति के बारे में वह जो भी कहेंगे उसे “गलत अर्थ” दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि वह अपने “विश्लेषण” को उचित मंच के जरिए कहने के लिए सुरक्षित रखेंगे.
विजयेंद्र ने सोमवार शाम को बेंगलुरु में रवि के आवास पर उनसे मुलाकात की. रवि ने पहले भी कहा था कि वह (प्रदेश) अध्यक्ष के पद का सम्मान करते रहेंगे लेकिन उन्होंने आगे कोई टिप्पणी करने से परहेज किया.
विजयेंद्र ने रविवार को बेंगलुरु में कहा, “यह आम बात है कि जो व्यक्ति राष्ट्रीय महासचिव रहा है, जो पार्टी और संगठन में शामिल रहा है…उसकी अपनी राय होगी…मेरा कर्तव्य है कि मैं सभी वरिष्ठों की सलाह लूं और आगे बढ़ूं.”
मंगलवार को, विजयेंद्र की टीम ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा का एक बयान साझा किया, जिसमें उन्होंने टिप्पणी की थी कि कर्नाटक इकाई के प्रमुख को केवल उनकी क्षमताओं के आधार पर चुना गया है.
हिंदी अखबार दैनिक जागरण को दिए एक साक्षात्कार में, नड्डा को यह कहते हुए उद्धृत किया गया कि विजयेंद्र ने “अपनी क्षमताओं के माध्यम से नेतृत्व की भूमिका अर्जित की” और वह एक “मूल्यवान संपत्ति” हैं जिनके योगदान से भाजपा को फायदा हुआ है.
नए भाजपा अध्यक्ष के कार्यालय द्वारा साझा किए गए बयान के अनुसार, “नियुक्ति पार्टी के भीतर मेहनती युवाओं को पहचानने और उन्हें बढ़ावा देने की पार्टी की प्रतिबद्धता को भी दर्शाती है.”
बयान के मुताबिक, “प्राथमिक संदेश यह है कि विजयेंद्र ने अपनी क्षमताओं के माध्यम से यह नेतृत्व भूमिका अर्जित की है. पार्टी संगठन के लिए काफी समय समर्पित करने के बाद, वह एक संपत्ति साबित हुए हैं, उनके योगदान से भाजपा को लाभ हुआ है. बयान के अनुसार, विजयेंद्र, जो एक युवा नेता हैं, की नियुक्ति स्पष्ट रूप से बताती है कि भाजपा मेहनती युवाओं को महत्व देती है और उन्हें बढ़ावा देती है.”
विजयेंद्र का उदय
1999 में बेंगलुरु जिला सचिव बनाए जाने के बाद से विजयेंद्र कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं. उन्हें 2019 में के.आर.पेटे उपचुनाव का प्रभारी बनाया गया और उन्होंने मांड्या जिले से भाजपा की पहली जीत दिलाई. इसके बाद सिरा में जीत हासिल हुई. लेकिन 2021 में विजयेंद्र मास्की उपचुनाव हार गए.
कोविड लहर के चरम पर उन्हें भाजपा का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया. हालांकि, उन्हें मई 2022 में एमएलसी नामांकन से वंचित कर दिया गया था. दो महीने बाद, येदियुरप्पा ने घोषणा की कि विजयेंद्र शिकारीपुरा में उनकी जगह लेंगे. यह एक ऐसी जगह थी जिसका उन्होंने 1983 से प्रतिनिधित्व किया था.
फरवरी में उन्हें मोर्चा सम्मेलनों का प्रभारी बनाया गया. लेकिन विजयेंद्र के वोट शेयर में भारी गिरावट दर्ज की गई. 2018 में, येदियुरप्पा ने शिकारीपुरा में 56.16 प्रतिशत वोट हासिल किए और 35,000 से अधिक के अंतर से जीत हासिल की. इस साल, विजयेंद्र सिर्फ 10,000 से अधिक वोटों से जीते, संभवतः इसलिए क्योंकि कांग्रेस उम्मीदवार ने टिकट न मिलने पर विद्रोह कर दिया था. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, निर्दलीय कैंडीडेट को 70,371 वोट मिले, जबकि विजयेंद्र को 81,810 वोट मिले.
येदियुरप्पा ने हमेशा विजयेंद्र को न केवल अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में, बल्कि प्रमुख लिंगायत समुदाय के अग्रणी नेता के रूप में भी पेश करने की कोशिश की है. लेकिन विजयेंद्र की चुनौतियां उनकी अपनी पार्टी के भीतर बनी हुई हैं, जो अब तक काफी विभाजित है. वह पार्टी को एकजुट कर पाएंगे या विभाजन हो जाएगा, यह देखने वाली बात होगी.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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