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Friday, 4 October, 2024
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हरियाणा में विधानसभा चुनाव से पहले मोदी की 10 से घटकर सिर्फ 4 रैलियां, 2014 से 2024 तक क्या बदल गया है

नरेंद्र मोदी द्वारा अपनी पार्टी के लिए प्रचार करना हरियाणा में भाजपा की 2014 की जीत के लिए महत्वपूर्ण माना जाता था. लेकिन अब प्रधानमंत्री स्थानीय उम्मीदवारों के लिए पीछे हट गए हैं.

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गुरुग्राम: 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी के राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार अपने दम पर सत्ता संभालने के बाद से ही पार्टी ने राज्यों, खासकर हरियाणा में विधानसभा चुनाव जीतने के लिए उनकी विशाल रैलियों पर बहुत अधिक भरोसा किया है.

2014 के विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में अपनी 10 रैलियों के साथ, मोदी ने हरियाणा में भाजपा को एक ऐसी पार्टी के रूप में खड़ा कर दिया, जिसकी सीटें कभी विधानसभा में सिंगल डिजिट तक सीमित थीं, लेकिन इसके बाद वह 90 सदस्यीय राज्य विधानसभा में 47 सीटों के साथ पहली बार अपने दम पर सरकार बनाने वाली पार्टी बन गई.

हरियाणा में भाजपा ने 2019 में भी मोदी पर भरोसा किया, लेकिन उनकी रैलियों की संख्या घटकर सिर्फ छह रह गईं. 2019 में भाजपा ने 40 विधानसभा सीटें जीतीं, लेकिन मोदी ने 10 सीटें जीतने वाली दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (JJP) के साथ चुनाव के बाद गठबंधन करके बीजेपी को फिर से सत्ता में वापस लाने में मदद की.

इस बार, 5 अक्टूबर को मतदान से पहले, मोदी ने हरियाणा में केवल चार रैलियों को संबोधित किया है. उनकी घटती रैलियों की संख्या हरियाणा में भाजपा के कैंपेन स्ट्रेटजी को आकार देने वाले अंतर्निहित कारकों के बारे में सवाल उठाती है.

दिल्ली में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) की शोधकर्ता ज्योति मिश्रा ने कहा, “यह रुझान एक रणनीतिक बदलाव को दर्शाता है क्योंकि भाजपा बढ़ती सत्ता विरोधी भावनाओं और पार्टी की अंदरूनी डायनमिक्स से निपट रही है. पार्टी मोदी का व्यक्तिगत रूप से प्रचार करने के बजाय स्थापित स्थानीय मशीनरी पर अधिक निर्भर करती दिख रही है, खासकर तब जब उन्हें फिर से उभरती कांग्रेस और स्थानीय मुद्दों से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.”

मिश्रा ने कहा कि यह रुझान यह भी दर्शाता है कि स्थानीय उम्मीदवारों ने हरियाणा के मतदाताओं के बीच मोदी की तुलना में अधिक महत्व हासिल कर लिया है. जो कि लोकनीति-सीएसडीएस के आंकड़ों के अनुसार, 2014 के चुनावों के विपरीत है जब मोदी की उपस्थिति एक महत्वपूर्ण आकर्षण हुआ करती थी.

उन्होंने कहा, “यह बदलाव बताता है कि अब मतदाता राष्ट्रीय हस्तियों की तुलना में स्थानीय मुद्दों और नेतृत्व को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिससे भाजपा ज़मीनी स्तर की रणनीतियों और सामुदायिक जुड़ाव पर ध्यान केंद्रित कर रही है. नतीजतन, स्थानीय नेताओं पर जोर हरियाणा के आगामी विधानसभा चुनावों में चुनावी परिदृश्य को काफी प्रभावित कर सकता है. स्थानीय प्रतिनिधियों के माध्यम से मतदाताओं से जुड़ने और क्षेत्रीय चिंताओं को दूर करने की भाजपा की क्षमता इसकी सफलता को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण होगी, जो संभावित रूप से 2024 में हरियाणा की राजनीति की डायनमिक्स को नया रूप दे सकती है.”

हरियाणा के लाडवा में इंदिरा गांधी नेशनल कॉलेज के प्रिंसिपल और दिल्ली में लोकनीति हरियाणा सीएसडीएस के पूर्व समन्वयक कुशल पाल ने कहा कि न केवल दूसरे लोग बल्कि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व का भी मानना है कि भाजपा एक “मजबूत” सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है.

उन्होंने कहा, “2014 में दस रैलियां करना स्वाभाविक था, क्योंकि भाजपा पहली बार हरियाणा में अपना गढ़ बनाने जा रही थी. 2019 में विधानसभा चुनाव भाजपा द्वारा बालाकोट हवाई हमलों के बाद उत्तर भारत में लोकसभा चुनावों में जीत हासिल करने और हरियाणा की सभी दस लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने के तीन महीने बाद ही हुए. मोदी ने फिर भी राज्य में 10 रैलियां कीं. 2024 के लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी के दस में से पांच सीटें हारने के बाद, अब विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए भरपाई करने के लिए बहुत कम बचा है.”

2014 में मोदी: भाजपा के उत्थान की शुरुआत

2014 के हरियाणा विधानसभा चुनावों से पहले, मोदी ने राष्ट्रीय चुनाव की अपनी गति से प्रेरित एक हाई-फ्रीक्वेंसी कैंपेन में 10 रैलियां कीं.

उस समय भाजपा का लक्ष्य पारंपरिक रूप से भारतीय राष्ट्रीय लोकदल (आईएनएलडी) और कांग्रेस जैसे क्षेत्रीय दलों के वर्चस्व वाले राज्य में अपनी महत्वपूर्ण पैठ बनाना था.

अक्टूबर 2001 में गुजरात में अपनी सरकार का नेतृत्व करने के लिए भाजपा द्वारा चुने जाने से पहले, मोदी हरियाणा में पार्टी मामलों के प्रभारी थे.

मोदी की रैलियां, जो अपनी भारी भीड़ और मजबूत बयानबाजी के लिए जानी जाती हैं, ने राज्य में मतदाताओं को भाजपा की ओर आकर्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे पार्टी को 2014 में 90 में से 47 सीटें जीतने में अभूतपूर्व योगदान मिला.

हरियाणा का राजनीतिक परिदृश्य भी बदलाव के दौर से गुजर रहा था. कांग्रेस से मतदाताओं का मोहभंग और इनेलो के भीतर की कलह ने भाजपा के लिए अवसर की एक खिड़की खोल दी, और पार्टी ने इसका फ़ायदा उठाया. 2014 में मोदी की कई रैलियों ने शहरी और ग्रामीण मतदाताओं को आकर्षित किया और पार्टी को बहुत ज़रूरी बढ़त दिलाई.

2014 का चुनाव मोदी की राष्ट्रीय अपील के साथ-साथ स्थानीय शासन के मुद्दों पर भी उतना ही महत्वपूर्ण था. भाजपा की जीत के बाद, मोदी ने अपने चुने हुए मनोहर लाल खट्टर को हरियाणा का पहला भाजपा मुख्यमंत्री बनाया.

2019 में 75 पार के लक्ष्य के वक्त भी कम रैलियां

2019 में, जब मोदी रिकॉर्ड 303 सीटों के साथ केंद्र की सत्ता में लौटे, तो खट्टर के नेतृत्व में हरियाणा में भाजपा की सरकार 75 पार का लक्ष्य लेकर चल रही थी.

2019 में मोदी ने हरियाणा में अपनी रैलियों की संख्या घटाकर छह कर दी. इस समय तक, भाजपा ने राज्य में अपनी स्थिति मज़बूत कर ली थी और मोदी का राष्ट्रीय कद और बढ़ गया था. सीएम खट्टर के नेतृत्व में भाजपा को पहले से ही 2019 के विधानसभा चुनाव में सबसे आगे देखा जा रहा था. इसलिए, मोदी की रैलियां उन क्षेत्रों पर केंद्रित थीं जहां भाजपा को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा था या जहां कार्यकर्ताओं को ऊर्जा की ज़रूरत थी.

हालांकि उस चुनाव में हरियाणा में भाजपा की सीटों की संख्या घटकर 40 रह गई, लेकिन, भले की जेजेपी के साथ गठबंधन करके ही सही पर मोदी की रैलियों को पार्टी के फिर से चुनाव जीतने में महत्वपूर्ण माना गया.

2024 में, जैसे-जैसे मोदी करिश्मा कम होता जा रहा था, उन्होंने केवल चार रैलियां कीं. राजनीतिक विश्लेषक इसके पीछे जमीनी हकीकत और भाजपा की राजनीतिक रणनीति व राज्य स्तरीय चुनावों के प्रति विकसित होते दृष्टिकोण को जिम्मेदार मानते हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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