नई दिल्ली: तजिंदर पाल सिंह बग्गा जैसे आम आदमी पार्टी (आप) के आलोचकों पर पंजाब सरकार की कार्रवाई को पार्टी के भीतर उन लोगों को एक कड़ा संदेश भेजने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है, जो उसकी नजर में परेशानी खड़े करने वाले साबित हो सकते हैं.
पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि न केवल बग्गा बल्कि पार्टी के दो पूर्व नेताओं अलका लांबा और कुमार विश्वास के खिलाफ पंजाब पुलिस की कार्रवाई को पार्टी के राष्ट्रीय स्तर पर उभरने के मौजूदा प्रयास के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए.
10 मार्च को पंजाब में आप की भारी जीत से उत्साहित पार्टी की निगाहें अब गुजरात और हिमाचल प्रदेश पर टिकी हैं, जिन दोनों राज्यों में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. आप के दो नेताओं के मुताबिक, पार्टी को उम्मीद है कि इस तरह की धारणा बनने से दोनों राज्यों में उसे अपनी छवि मजबूत करने में मदद मिलेगी. इन दोनों राज्यों में फिलहाल भाजपा सत्ता में है.
आप के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘आलोचकों के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई से पार्टी सुर्खियां बटोर रही है और उन जगहों पर उसे गंभीरता से लिया जा रहा है जहां वह अपनी मौजूदगी बढ़ाने की कोशिश में जुटी है.’
हालांकि, इस रणनीति को लेकर आप के भीतर भी कई लोग सवाल उठा रहे हैं. पार्टी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी के अंदर नेताओं का एक वर्ग इस रणनीति के जोखिमों को लेकर चिंतित है.
सूत्रों के मुताबिक, इस वर्ग ने कानूनी संकट उत्पन्न होने की चिंता जताई है, खासकर ऐसे समय में जब आप को कर्ज में डूबे पंजाब में कोई बड़ा सुधार करना बाकी है. सूत्रों ने कहा कि ये वर्ग इसे लेकर भी चिंतित है कि अगर रणनीति उल्टी पड़ गई तो राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों से मुकाबले की आप की क्षमता के बारे में जनता की क्या धारणा बनेगी.
पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा कि विरोधियों पर पार्टी की कार्रवाई केवल राजनीतिक कारणों से परे है.
संजय सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह रणनीति सीधे तौर पर रिकॉर्ड सेट करने के बारे में है. इस तरह की कार्रवाई से पता चलता है कि भाजपा और कांग्रेस वास्तव में किस तरह के राजनीतिक दल हैं, वे किस तरह के लोगों को आगे बढ़ाते हैं. हालिया प्रकरण (तजिंदर बग्गा के संबंध में) ने यह उजागर कर दिया है कि भाजपा नफरत फैलाने वालों का केंद्र है.’
यह भी पढ़ें : हिमाचल प्रदेश में 1360 वालंटियर के भरोसे AAP के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश में लगे केजरीवाल
आलोचकों पर ‘कार्रवाई’
कुमार विश्वास—जिनके आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के साथ 2017 के पंजाब विधानसभा चुनावों से पहले ही रिश्ते बिगड़ गए थे—ने अपने पूर्व मित्र पर खालिस्तानी अलगाववादियों के समर्थन का आरोप लगाया था, जो इस साल विधानसभा चुनाव से ऐन पहले वायरल हो गया था.
मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व में आप सरकार के सत्तासीन होने के एक माह से भी कम समय में 20 अप्रैल को पंजाब पुलिस ने विश्वास के यहां पहुंची और आरोपों के संबंध में पूछताछ के लिए उन्हें तलब किया. विश्वास ने एफआईआर के खिलाफ 2 मई को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसने उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी.
पूर्व में आप में उनकी सहयोगी रही अलका लांबा, जो अभी कांग्रेस नेता हैं, पर भी ‘भड़काऊ बयानों’ को लेकर मामला दर्ज किया गया था. पंजाब पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि 27 अप्रैल को वह पंजाब पुलिस के समक्ष पेश हुईं लेकिन लांबा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई.
बग्गा का मामला अब तक के तीनों मामलों में सबसे ज्यादा नाटकीय साबित हुआ है. पंजाब पुलिस ने 6 मई को दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता बग्गा को गिरफ्तार किया. लेकिन जब उन्हें पंजाब ले जाया जा रहा था, दिल्ली पुलिस ने कथित तौर पर बग्गा के परिवार की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए उनके अपहरण का मामला दर्ज कर लिया. इस बीच, हरियाणा पुलिस ने कुरुक्षेत्र में पंजाब टीम को रोका और बग्गा को वापस दिल्ली ले आई.
दिल्ली पुलिस केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन आती है, जबकि हरियाणा में भाजपा की सरकार है.
बग्गा की गिरफ्तारी केजरीवाल के खिलाफ कथित आपराधिक धमकी और भड़काऊ टिप्पणी के लिए उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर के आधार पर हुई थी. 10 मई को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने 6 जुलाई तक बग्गा की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी.
‘बेहद जोखिम भरी रणनीति’
हालांकि, पार्टी में हर कोई आलोचकों के खिलाफ पार्टी की तरफ से इस तरह कार्रवाई किए जाने से सहमत नहीं है. पंजाब में आप के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया कि इस कार्रवाई से ‘कानूनी दिक्कत’ हो रही है.
नेता ने कहा, ‘इस मुकाम पर यह सब करना वास्तव में ठीक नहीं है.’
आप के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा कि नई रणनीति का मतलब है कि कोई भी गलती पार्टी के लिए संभावित शर्मिंदगी का सबब बन सकती है।
नेता ने कहा, ‘असफलता के लिए कोई जगह नहीं है. यह एक बड़ा जोखिम है. अगर पार्टी आलोचकों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के बाद कोई ठोस कदम उठा पाने में नाकाम रही, तो इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि जनता उन्हें पंजाब में बादल जैसे बड़े सियासी प्रतिद्वंद्वियों पर शिकंजा कसने में असमर्थ मानने लगेगी.’
पार्टी पदाधिकारी ने कहा, ‘ये चिंताएं ऐसे समय में और बढ़ जाती हैं क्योंकि आप ने इस आक्रामक रणनीति को ऐसे समय अपनाया है जब पंजाब में उसकी सरकार ने कर्ज में डूबे राज्य के लिए अतिरिक्त धन जुटाने के उद्देश्य से कोई बड़ा सुधार भी नहीं किया है.’
हालांकि, आप नेता संजय सिंह ने दावा किया कि इस कदम का मकसद सांप्रदायिक नफरत फैलाने वालों पर नकेल कसना है.
संजय सिंह ने कहा, ‘ये सांप्रदायिक नफरत की आग भड़का रहे हैं. और उनके खिलाफ कार्रवाई करके हम सांप्रदायिक नफरत के खिलाफ काम कर रहे हैं. वे बेरोजगारी, मुद्रास्फीति, अर्थव्यवस्था में गिरावट जैसे मुद्दों से ध्यान भटकाना चाहते हैं. जबकि हम इन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं और सुशासन और कल्याणकारी राजनीति के बारे में बात करना चाहते हैं. यही हमारी बड़ी राजनीतिक रणनीति है.’
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें : मोदी की मिमिक्री करने से लेकर आप नेता बनने तक- स्टैंडअप कॉमेडियन श्याम रंगीला ने राजनीति को ही क्यों चुना