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Saturday, 2 November, 2024
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झारखंड में भाजपा को दफन करने की कसम खाकर पार्टी से निकले बाबूलाल मरांडी की हो रही है घर वापसी

18 साल बाद बाबूलाल मरांडी अपने पुराने घर यानी बीजेपी में लौट रहे हैं. वहीं बाबूलाल जिन्होंने चुनाव से कुछ माह पहले बीजेपी में शामिल होने के सवाल पर कहा था कि 'उसे यहीं दफना देंगे. इस बार बीजेपी दफन हो जाएगी.’

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रांची: राजधानी रांची में शुक्रवार को तेज धूप के साथ गर्मी बढ़ी. जैकेट खोल लोग सामान्य कपड़ों में नजर आए. शनिवार की सुबह धुंध ने शहर को अपने आगोश में ले रखा था. रविवार सुबह तेज बारिश ने भिगो दिया. इसी तरह पिछले कुछ दिनों से राजनीतिक घटनाक्रम भी तेजी से बदल रहा है. ठीक 18 साल बाद बाबूलाल मरांडी अपने पुराने घर यानी बीजेपी में लौट रहे हैं. वहीं बाबूलाल जिन्होंने चुनाव से कुछ माह पहले बीजेपी में शामिल होने के सवाल पर कहा था कि ‘उसे यहीं दफना देंगे. इस बार बीजेपी दफन हो जाएगी.’

झारखंड विधानसभा चुनाव के परिणाम 23 दिसंबर को आए. झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला. जीत के अगले दिन शाम को हेमंत सोरेन बाबूलाल मरांडी के आवास पहुंचे और उनसे आशीर्वाद मांगा. बाबूलाल ने भी हेमंत की सरकार को बिना शर्त समर्थन देने की बात कही.

इस बीच एक बार फिर बाबूलाल के बीजेपी में जाने की चर्चा जोर-शोर से शुरू हो गई. वह कभी हां कह रहे थे, तो कभी ‘बीजेपी में जाने का सवाल ही नहीं’ अपना पुराना डायलॉग दोहरा रहे थे. उन्होंने जेवीएम की कार्यकारिणी को भंग किया और निकल गए विदेश यात्रा पर. नई कार्यकारिणी बनाई और उसमें से अपने दोनों वर्तमान विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को बाहर किया, क्योंकि विलय को लेकर दोनों के सुर बाबूलाल से अलग थे.

प्रदीप यादव पहले पार्टी के प्रधान महासचिव थे और बंधू तिर्की महासचिव पद पर थे. वर्तमान कार्यकारिणी में वह मात्र सदस्य रह गए हैं. इधर इन दोनों को छोड़कर पार्टी के सभी जिलाध्यक्ष बाबूलाल के साथ हैं. यानी विलय के समर्थन में. जानकरी के मुताबिक पार्टी के दो तिहाई सदस्य अगर विलय के समर्थन में हैं, तो विलय संभव है. यह फैसला कार्यकारिणी समिति करती है.

हेमंत को बिना शर्त समर्थन के बाद मामला बिगड़ा क्यों

जेवीएम के एक सक्रिय सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि चुनाव परिणाम आने के बाद ही बंधू तिर्की कांग्रेस के संपर्क में आ गए. इस बात की भनक जब बाबूलाल को लगी तो उन्होंने आनन-फानन में हेमंत की सरकार को बिना शर्त समर्थन कर दिया. बात बिगड़ी शपथ ग्रहण समारोह के दौरान, जब बाबूलाल को मंच पर दूसरी पंक्ति में जगह दी गई. वहां से लौटते ही उन्होंने अपने लोगों से कहा कि पांच जनवरी को कार्यकारिणी बुलाओ. कार्यकर्ता समझ नहीं पाए अचानक वह ऐसा क्यों कह रहे हैं.


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शुरू कर दिया है बीजेपी के पक्ष में बोलना

सभी चुनाव में बीजेपी बाबूलाल के संपर्क में रही है. इस चुनाव में भी बाबूलाल को बार-बार इस सवाल का सामना करना पड़ा कि चुनाव बाद आप बीजेपी में शामिल हो रहे हैं? बीजेपी की बी टीम हैं?

18 जनवरी को जब वह अपने गृह ज़िला गिरिडीह पहुंचे, तो यहां उन्होंने खुलकर बीजेपी का पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि वह उसी पाठशाला से पढ़कर आए हैं. इसलिए वह जानते हैं कि जनसंघ काल से बीजेपी का अनुच्छेद 370 हटाना, राम मंदिर, हिन्दू शरणार्थियों के नागरिकता देना, एनआरसी आदि एजेंडा रहा है. जब पूर्ण बहुमत मिला तो बीजेपी उसे पूरा कर रही है. इसमें लोगों को एतराज नहीं होना चाहिए, जब कांग्रेस सरकार में आएगी और अपना एजेंडा पूरा करेगी तो बीजेपी भी उसके खिलाफ बोलेगी. यह राजनीति है और राजनीति में यह सब चलता रहता है.

यही नहीं, उन्होंने हेमंत की सरकार पर भी निशाना साधा. उन्होंने कहा कि शपथ ग्रहण के 20 दिन से ज्यादा हो गए हैं. मंत्रिमंडल का गठन नहीं हुआ है, इससे उन्हें दुःख और चिंता होती है. मंत्रिमंडल का गठन करने की जगह सरकार में शामिल लोग दिल्ली दौड़ लगा रहे हैं, ध्यान रहे बीजेपी ने भी अभी तक नेता प्रतिपक्ष तय नहीं किया है. इस पद के लिए पहले नीलकंठ सिंह मुंडा और सीपी सिंह के नाम सबसे ऊपर थे. लेकिन अब चर्चा है कि यह पद बाबूलाल मरांडी को दिया जाएगा.

रांची से छठी बार विधायक बने सीपी सिंह ने कहा कि उन्हें इसके बारे में कुछ नहीं पता. बाबूलाल के शामिल होने से बीजेपी को फायदा होगा या नुकसान यह तो केंन्द्रीय नेतृत्व समझेगा. वह तो कार्यकर्ता मात्र हैं. वहीं नेता प्रतिपक्ष की पद के रेस में होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि ‘वह घोड़ा थोड़े हैं. आलाकामन जो कहेगा, वह करेंगे.’

वहीं बीजेपी प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि ‘बाबूलाल के आने से बीजेपी को फायदा ही होगा, जहां तक नेता प्रतिपक्ष के पद पर उनको बिठाने की बात है, उससे थोड़ी दुविधा तो उत्पन्न होगी. लेकिन यह सब केंद्रीय नेतृत्व तय करेगा.’

इधर जेवीएम ने बंधु तिर्की को नोटिस भेजा है. जिसमें कहा गया है कि विधानसभा चुनाव के दौरान हटिया विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार किया. उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधि में शामिल होने के आरोपों का 48 घंटे के भीतर जवाब देने को कहा है.

ऐसा इसलिए किया गया है कि नोटिस के बहाने के बंधू तिर्की को पार्टी से निकाल दिया जाएगा. ऐसे में उनकी विधायकी बची रह जाएगी. वहीं प्रदीप यादव ने कहा कि बाबूलाल से उन्हें कोई विरोध नहीं है, लेकिन वह बीजेपी में शामिल नहीं होंगे.

पिछली सरकार में बीजेपी ने बाबूलाल मरांडी की पार्टी के छह विधायकों को तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल कर लिया था. हालिया संपन्न विधानसभा चुनाव में बचे हुए दो विधायकों में एक ने चुनाव से कुछ माह पहले ही बीजेपी का दामन थाम लिया था. उनके साथ मात्र प्रदीप यादव रह गए थे. विधानसभा ने मामले में जेवीएम के खिलाफ फैसला दिया. फिलहाल झारखंड हाईकोर्ट में मामला पेंडिंग है.

गोविंदाचार्य के चहेते थे बाबूलाल, सर्वसम्मति से बने थे मुख्यमंत्री

वर्षों की राजनीतिक लड़ाई के बाद साल 2000 में केंद्र की वाजपेयी सरकार ने झारखंड को नए राज्य में स्वीकृति दी. हिन्दुस्तान अखबार के झारखंड संस्करण के राजनीतिक संपादक चंदन मिश्र कहते हैं ‘बाबूलाल के ऊपर गोविंदाचार्य का गहरा असर है. उस वक्त गोविंदाचार्य बिहार के प्रभारी थे. सर्वसम्मति से उन्हें झारखंड का पहला मुख्यमंत्री चुन लिया गया. कुल 28 महीने सरकार चली. इस दौरान मंत्रिमंडल के कई साथी उनसे नाराज़ हो गए. सबने एक-एक कर बाबूलाल के खिलाफ दिल्ली को शिकायत भेजने लगे. इस बीच डोमिसाइल नीति तय होने लगी. राज्य में बड़े स्तर पर प्रदर्शन शुरु हो गए. आंदोलनों में कुछ लोग मारे गए.’


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चंदन मिश्र बताते हैं, ‘ऐसे में तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष वैंकेया नायडू ने राजनाथ सिंह को ऑब्ज़र्बर बनाकर झारखंड भेजा. उन्होंने रिपोर्ट सौंपी. बाबूलाल ने कहा कि अगर मेरे इस्तीफे से सरकार बच सकती है तो मैं इसके लिए तैयार हूं. उन्होंने इस्तीफा दिया और अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बनाए गए.’ इसके बाद भी बाबूलाल पार्टी में जगह बनाने को लेकर प्रयासरत रहे, लेकिन वह सफल नहीं हुए. साल 2006 में उन्होंने अपनी पार्टी बना ली.

अगर बाबूलाल मरांडी बीजेपी में जाते हैं तो झारखंड की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू होगा. अगर वह नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर बैठते हैं तो विपक्ष में बीजेपी की ज़ोरदार उपस्थिति हो सकती है. इन सब के बीच देखने वाली बात होगी कि बीजेपी का एक और बड़े आदिवासी नेता अर्जुन मुंडा किस तरह राज्य की राजनीति में अपनी पकड़ बनाए रखते हैं.

(लेखक झारखंड से स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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