नई दिल्ली: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में दो प्रमुख दलों – भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर के बीच बागियों ने मुकाबले को और दिलचस्प बना दिया है.
राजस्थान पत्रिका अखबार ने खबर छापी है कि ‘अपनों की बगावत से ही दिग्गजों का दम फूलने लगा है. बागियों की वजह से कहीं मुकाबला त्रिकोणीय तो कहीं बहुकोणीय हो गया है.’ कई सीटों पर बागी नेताओं के कारण समीकरण बदल गए हैं. वहीं भाजपा का कहना है कि जो नेता टिकट न मिलने के कारण बगावत पर उतर आए हैं, जनता उनको सबक सिखाएगी.
अखबार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी रैलियों में दिए भाषण को मुख्य खबर बनाते हुए लिखा है कि ‘कांग्रेस के भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए नोटबंदी जैसी जहरीली दवा दी.’ उन्होंने कहा कि जब दीमक लगती है तो जहरीली दवा डालनी पड़ती है.
दैनिक भास्कर ने भी मोदी के भाषण को प्रमुखता से तरजी दी है. प्रधानमंत्री ने कांग्रेस के किसान कर्ज माफी के वादे पर कैग के हवाले से प्रहार किया और इसे महज चुनावी वादा कहा.
कांग्रेस के आरोप पत्र के बारे में अखबार ने पहले पन्ने पर लिखा है कि कांग्रेस ने भाजपा शासन के 21 घोटालों और 25 आरोपों का पुलिंदा पेश किया है.
नई दुनिया अखबार ने पहले पन्ने पर खबर दी है कि ‘चुनाव में भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों ने उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र से बदमाश बुलाए हैं.’ इस खुफिया रिपोर्ट से पुलिस के होश उड़ गए हैं. 455 पोलिंग बूथों को चिन्हित किया गया है जहां पर गड़बड़ी की आशंका है. पुलिस इन इलाकों में विशेष चौकसी बरत रही है.
अखबार ने कमलनाथ के उस आरोप को भी पहले पन्ने पर जगह दी है जिसमें वे कह रहे हैं कि भाजपा ने गुजरात की तरह प्रेशर और डर्टी पॉलिटिक्स शुरू कर दी है.
प्रमुख हिंदी अखबार दैनिक जागरण ने भी खबर दी है कि भाजपा के लिए करीब दो दर्जन सीटों पर भितरघात का खतरा मंडरा रहा है. पार्टी को अपने कार्यकर्ताओं की नाराजगी भारी पड़ रही है. हालांकि, भाजपा ऐसे कार्यकर्ताओं को चिन्हित कर उन्हें मनाने की कोशिश में जुटी है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस काम में भाजपा की मदद कर रहा है.
अंग्रेजी अखबार टाइम्स आॅफ इंडिया ने प्रधानमंत्री की चुनावी रैली को पहले पन्ने पर रखा है. पीएम मोदी ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए लिखा है कि कांग्रेस का मतलब है कम्युनलिज्म और करप्शन यानी सांप्रदायिकता और भ्रष्टाचार.
राजस्थान में भी अन्य दलों के प्रत्याशियों ने भाजपा कांग्रेस की मुसीबत बढ़ा दी है. राजस्थान पत्रिका ने लिखा है कि थर्ड फ्रंट नहीं बन पाने से भले ही भाजपा कांग्रेस ने राहत की सांस ली हो, लेकिन कई ऐसी महत्वपूर्ण सीटें हैं, जिनपर अन्य दलों के प्रत्याशियों ने दोनों दलों के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है.
वसुंधरा सरकार के मंत्रियों की बगावत को पत्रिका ने मुख्य खबर बनाया है. अखबार ने लिखा है कि वसुंधरा सरकार के पांच मंत्री बगावत पर उतर आए हैं. इनमें से तीन तो अपने बगावत के निर्णय पर अटल हैं, लेकिन दो के सुर थोड़े नरम हैं. उनका कहना है कि उन्हें कोई मनाने नहीं आया. बागियों को समझाने-मनाने के लिए दोनों पार्टियों के केंद्रीय नेताओं ने राजस्थान में डेरा डाल दिया है.
हिंदी अखबार दैनिक भास्कर ने खबर दी है कि ‘भाजपा और कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में 30 प्रतिशत और राजस्थान में 15 प्रतिशत सीटों पर नेताओं के परिवार को टिकट दिए हैं. मध्यप्रदेश की 230 सीटों में से भाजपा ने 48, कांग्रेस ने 23 सीटों पर भाई-भतीजों, बेटे, बहू को टिकट दिए. वहीं राजस्थान में 200 सीटों में से कांग्रेस ने 20 और भाजपा ने 10 सीटों पर प्रत्याशियों का चयन राजनीतिक परिवारों से किया.’ यानी दूसरे शब्दों में कहें तो कांग्रेस पर परिवारवादी होने का आरोप लगाने वाली भाजपा ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस को इस मामले में भी पछाड़ दिया है.
भास्कर के मुताबिक, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मंगलवार को मध्य प्रदेश के बैतूल, नरसिंहपुर और देवास में तीन सभाएं कीं. इस दौरान उन्होंने कहा कि राहुल को इटालियन चश्मा पहनकर किसानों की बात नहीं करना चाहिए. अमित शाह ने पूछा कि उन्होंने कभी बैल भी जोते हैं?
राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर अमर उजाला ने खबर दी है कि ‘सीएम पद के उम्मीदवारों को पहली बार खासी चुनौती मिल रही है.’ खबर के मुताबिक, ‘आमतौर पर ऐसे मजबूत प्रत्याशियों से सामने विरोधी पार्टियां कमजोर उम्मीदवारों को खड़ा कर औपचारिकता निभाती रही हैं, लेकिन इस बार दोनों ही प्रमुख दलों ने विरोधी पार्टी से मुख्यमंत्री पद के दावेदारों के सामने ऐसे उम्मीदवार खड़े किए हैं जो राजनीति में अच्छा-खासा वजूद रखते हैं.’
वहीं मिजोरम को लेकर अमर उजाला ने लिखा है, पू्र्वोत्तर के ईसाई-बहुल राज्य मिजोरम में तमाम क्षेत्रीय दल भाजपा से दूरी बरत रहे हैं. दरअसल, भाजपा के साथ कोई तालमेल कर वे राज्य की ईसाई भावनाओं व चर्च की नाराजगी मोल लेने का खतरा नहीं उठाना चाहते. यही वजह है कि एमडीए और नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (नेडा) में उसके सहयोगी मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) तक ने उससे कन्नी काट ली है. भाजपा नेता भले यहां पार्टी की स्वीकार्यता बढ़ने का दावा कर रहे हों, लेकिन जमीनी हकीकत एकदम उलट है.