नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी का पहला राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सम्मेलन (राष्ट्रीय सम्मेलन) ताकत का प्रदर्शन प्रतीत हो रहा है, जिसमें पार्टी शासित पंजाब और दिल्ली सहित 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लगभग 1,500 प्रतिनिधियों के शामिल होने की बात कही जा रही है.
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में यह सम्मेलन 18 सितंबर को दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में हुआ था. पार्टी की ओर से जारी एक प्रेस बयान के अनुसार, इस कार्यक्रम में उसके 14,46 ‘जनप्रतिनिधियों’ ने भाग लिया.
आप की तरफ से सम्मेलन में शामिल होने वाले प्रतिभागियों की तैयार की गई लिस्ट को दिप्रिंट ने देखा है, इसमें दिल्ली (62), पंजाब (92) और गोवा (2) के पार्टी के 10 राज्यसभा सांसद और 156 विधायकों के अलावा बड़ी संख्या में पार्षद, ग्राम प्रधान, वार्ड सदस्य, नगर पालिका सदस्य, प्रखंड समिति सदस्य, जिला पंचायत सदस्य एवं जिला विकास समिति सदस्य शामिल हैं.
प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, दिल्ली, पंजाब और गोवा के अलावा, पार्टी के जनप्रतिनिधियों ने असम, ओडिशा, बिहार, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और हरियाणा से लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों से शिरकत की थी.
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समर्थन आधार का विस्तार
आप के वरिष्ठ नेता और दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने कहा, ‘आप कई सालों से राज्यों में अपने समर्थन आधार का विस्तार कर रही है. लेकिन पंजाब की जीत ने चल उनकी काफी हौसला-अफजाई की है. दिल्ली और अब पंजाब में पार्टी के विकास-समर्थक और कल्याण-समर्थक शासन मॉडल के कारण बड़ी संख्या में राजनीतिक लाइनों के जन-प्रतिनिधि भी आप में शामिल हो रहे हैं.’
विधानसभा चुनावों के अलावा पार्टी ने पिछले डेढ़ साल में कई राज्यों में नगर निकायों में अच्छा प्रदर्शन किया है.
पिछले साल फरवरी में AAP ने गुजरात के सूरत में नगरपालिका चुनावों में 27 वार्ड में जीत हासिल की थी. फिर इस साल अप्रैल में पार्टी ने असम के गुवाहाटी में एक नगरपालिका वार्ड जीता.
जून में AAP ने हरियाणा में नगरपालिका चुनावों में भी अपना हाथ आजमाया और 133 वार्डों में से पांच पर जीत हासिल की. इसी तरह मध्य प्रदेश में पार्टी ने 15 सीटें जीतीं, लेकिन जुलाई में हुए नगरपालिका चुनावों में एक नगर निकाय में मेयर पद पर कब्जा कर लिया.
पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि प्रतिभागियों की सूची में ऐसे कई नेताओं के नाम शामिल हैं जो किसी अन्य पार्टी के टिकट पर या एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित हुए और बाद में आप में शामिल हो गए.
पिछले दो सालों में जम्मू-कश्मीर और गोवा में दल बदलने के ऐसे कई मामले देखे गए हैं.
वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी भाग लिया. उन्होंने बिना किसी पार्टी से जुड़े जिला परिषद, ग्राम पंचायत और अन्य स्थानीय चुनावों में जीत हासिल की, लेकिन उन्हें आप का समर्थन प्राप्त था.
उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में AAP ने दावा किया कि उसके समर्थित 83 उम्मीदवारों ने मई 2021 में जिला पंचायत चुनाव जीते थे. इसी तरह पार्टी ने महाराष्ट्र में 300 ग्राम पंचायत सीटों में से 145 पर जीत का दावा किया था.
चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, लेकिन इन दोनों राज्यों के ग्राम पंचायत और जिला पंचायत चुनावों में पार्टी के प्रतीकों का इस्तेमाल नहीं किया गया.
निराधार दावे या स्मार्ट रणनीति?
हालांकि राजनीतिक विरोधी आप के दावे पर सवाल उठा रहे हैं.
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गुरु प्रकाश पासवान ने दिप्रिंट को बताया, ‘आप का दिल्ली मॉडल, पंजाब मॉडल का दावा सभी निराधार हैं. यह एक व्यक्ति द्वारा चलाई जा रही एक अलोकतांत्रिक पार्टी हैं. उन्होंने चुनाव से पहले बहुत हवा बनाने के लिए यह रणनीति अपनाई है. उन्होंने अपने समर्थन आधार के दावों को काफी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है.’
कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता शमा मोहम्मद ने दिप्रिंट से कहा, ‘अगर आप के पास वास्तव में राज्यों में इतना अधिक समर्थन आधार है, तो वे उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और गोवा में चुनाव जीतने में कैसे विफल रहे? जीतने वाली सीटों को भूल जाइए, उनसे जरा इन राज्यों में उनके वोट शेयर के बारे में पूछें. जनप्रतिनिधियों पर इस तरह के भ्रामक आंकड़े और बड़े जनाधार का दावा करने से उन्हें चुनाव जीतने में मदद नहीं मिलेगी.’
दिल्ली स्थित एक शोध संस्थान सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज के राजनीतिक विश्लेषक प्रवीण राय ने दिप्रिंट को बताया कि पंजाब में जीत के बाद पार्टी का ‘निस्संदेह’ विस्तार हो रहा है.
राय ने कहा, ‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके राजनीतिक विरोधी क्या कह रहे हैं. मैं हाल के इवेंट को ताकत दिखाने के मामले में एक स्मार्ट कदम के रूप में देखूंगा. इस अहम समय में जब पार्टी गुजरात और हिमाचल (प्रदेश) में जी जान से लगी है, वह इसके जरिए मतदाताओं के बीच विश्वास पैदा कर सकती है.’
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