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Friday, 22 November, 2024
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दशकों से कांग्रेस के लिए ‘जादूगर’ रहे अशोक गहलोत का भविष्य अब डगमगाता नजर आ रहा है

इंदिरा गांधी की पसंद और राजीव गांधी द्वारा राजस्थान पीसीसी प्रमुख बनाए गए गहलोत लंबे समय से कांग्रेस के भरोसेमंद नेता माने जाते रहे हैं. पार्टी के अंदरूनी सूत्र ने पिछले सप्ताह उनके 'विद्रोह' को 'असामान्य' बताया.

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नई दिल्ली: गुरुवार को विवादों के बीच अशोक गहलोत ने सोनिया गांधी से मुलाकात की और उसके बाद वह उस बेकाबू मीडिया का सामना करने के लिए तैयार थे, जो बेहिसाब सवालों के साथ उनका इंतजार कर रही थी. राजस्थान के मुख्यमंत्री ने चारों ओर देखा, अपने परिचित पत्रकारों को देखकर मुस्कुराए और उन्हें हाथ के इशारे से आश्वासन दिया कि उन्हें उन सभी सवालों का जवाब मिलेगा, जिनकी तलाश में वे परेशान हैं.

गहलोत के लिए कांग्रेस अध्यक्ष के 10 जनपथ आवास के बाहर मंच बनाया गया. शांत लेकिन दृढ़ दिखाई देने वाले 71 वर्षीय गहलोत ने अपने संबोधन की शुरुआत यह कहकर की कि वह पिछले 50 सालों से कांग्रेस के ‘भरोसेमंद सैनिक’ रहे हैं. उन्होंने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव और सोनिया गांधी के नेतृत्व में पार्टी की सेवा की है.

गहलोत ने कहा कि राजस्थान कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के नेता के रूप में उन्होंने महसूस किया कि उन्होंने कांग्रेस की परंपरा को तोड़ा है, क्योंकि वह मुख्यमंत्री होने के नाते पार्टी अध्यक्ष के लिए एक-लाइन का प्रस्ताव पारित नहीं करवा सके.

फिर उन्होंने समझाया, हमारे यहां इस तरह के प्रस्ताव पास करने की हमेशा से एक ‘परंपरा’ रही है जिस पर पार्टी मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति, चुनाव से पहले टिकट बांटने और कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) के सदस्यों को नामित करने के लिए भरोसा करती है. उन्होंने कहा कि इस तरह के असाधारण व्यवहार की नैतिक जिम्मेदारी ने मुझे कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने के बारे में अपना विचार बदलने के लिए मजबूर कर दिया. तीन बार सीएम रहे गहलोत के लिए शीर्ष पद का चुनाव एक आसान जीत बताया जा रहा था.

कुछ समय के लिए छुट्टी पर जाने से पहले उन्होंने कहा, ‘सोनिया गांधी और (नया) कांग्रेस अध्यक्ष तय करेंगे कि राजस्थान का मुख्यमंत्री कौन बनेगा.’ यह दर्शाता है कि पिछले सप्ताह के घटनाक्रम की वजह से उन्होंने न सिर्फ राष्ट्रपति पद के नामांकन की कीमत चुकाई, बल्कि सीएम की कुर्सी पर उनके दावे को भी कम कर दिया, जिस पर बने रहने के लिए वह पिछले कई सालों से अप्रत्याशित रूप से कुछ न कुछ करते रहे हैं.

जोधपुर का ‘जादूगर’

जोधपुर में जादूगरों के परिवार में जन्मे गहलोत को कांग्रेस के हलकों में एक ‘ऑर्गेनाइजेशन मैन’ के रूप में जाना जाता है. ऐसा व्यक्ति जो पार्टी में रैंक दर रैंक आगे बढ़ा. कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में राजनीतिक विरोधियों को पछाड़ने की उनकी क्षमता किसी जादू-टोने से कम नहीं है.

उन्होंने जुलाई में राज्यसभा चुनावों के दौरान अपने राजनीतिक कौशल का प्रदर्शन किया. जब कांग्रेस ने राजस्थान में दो सीटों पर जीत के लिए पर्याप्त संख्या (108) के साथ तीन उम्मीदवारों को मैदान में उतारा. गहलोत ने यह सुनिश्चित करने के लिए छोटे दलों (रालोद, सीपीएम, बीटीपी) और निर्दलीय उम्मीदवारों को अपने साथ लिया कि पार्टी 126 वोट हासिल करके तीनों सीटों पर जीत हासिल करेगी. यहां तक कि कथित तौर पर भारतीय जनता पार्टी की विधायक शोभा रानी कुशवाहा से भी अतिरिक्त वोट पाया.

बाद में पार्टी के तीसरे उम्मीदवार प्रमोद तिवारी जिन्होंने अपने पांच दशकों के राजनीतिक करियर में कभी भी कोई चुनाव नहीं हारा था, ने स्वीकार किया कि यह गहलोत का जादू था जिसने उच्च सदन में उनकी जीत को राह दिखाई.

यह जादू पहले भी कई बार दिखा है. गहलोत ने राज्य के प्रभारी महासचिव के रूप में 2017 के गुजरात चुनावों के लिए कांग्रेस पार्टी के अभियान का नेतृत्व किया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य में भाजपा से हारने के बावजूद, कांग्रेस ने 182 सदस्यीय विधानसभा में 77 सीटें हासिल कीं.


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इंदिरा, राजीव ने किया तैयार

1970 के दशक में इंदिरा गांधी ने गहलोत को चुना था और कांग्रेस पार्टी की स्टूडेंट विंग, नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) की राजस्थान इकाई में शामिल किया. 1980 में जोधपुर से लोकसभा के लिए चुने जाने से पहले उन्होंने सरदारपुरा से जोधपुर विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव और 1977 के विधानसभा चुनावों में असफल का स्वाद चखा था.

वह 1982 में इंदिरा गांधी सरकार में पर्यटन और नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री (MoS) बने. गहलोत को राजीव गांधी सरकार में एक जूनियर मंत्री के रूप में बनाए रखा गया. उन्हें कपड़ा और खेल विभागों को संभालने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.

1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) अध्यक्ष नियुक्त करके पार्टी की राजस्थान इकाई की जिम्मेदारी सौंपी. यह वह पद था जिसपर 1989 तक बने रहे. और एक बार फिर से 1994 में उन्हें ये जिम्मेदारी सौंपी गई, जिस पर वह 1999 तक कब्जा जमाए रखे.

पीसीसी प्रमुख के रूप में गहलोत ने 1998 के चुनावों में भैरों सिंह शेखावत के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को एक आश्चर्यजनक झटका दिया था. उस समय कांग्रेस ने राजस्थान विधानसभा में 197 में से 150 पर जीत हासिल की थी और गहलोत पहली बार मुख्यमंत्री बने. उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया, लेकिन 2003 में उनकी पार्टी सत्ता से बाहर हो गई. सीएम के रूप में उन्होंने 2008 और फिर 2018 में वापसी की.

2008 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को शिकस्त दी. हालांकि कांग्रेस- 96 सीटों के साथ- बहुमत से थोड़ी दूर थी. इसका श्रेय गहलोत को ही दिया गया, जिन्होंने भाजपा के कड़े विरोध के बावजूद अल्पमत सरकार को पूरे कार्यकाल तक बनाए रखा.

बाहरी समर्थन हासिल करने की उनकी क्षमता भी बाकी सबसे अलग है. मुख्यमंत्री के रूप में अपने पिछले दो कार्यकालों में बसपा के विधायकों को कांग्रेस में विलय के लिए राजी करना, इसका जीता-जागता उदाहरण हैं.

लेकिन गहलोत उत्तर प्रदेश में पार्टी की गिरती किस्मत को नहीं बदल सके. उन्हें राज्य में पार्टी को आगे ले जाने के लिए 2007 के विधानसभा चुनावों से पहले प्रभारी महासचिव बनाया गया था.

संगठन के भीतर उन्हें पहली बार जनवरी और जुलाई 2004 के बीच एआईसीसी के विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया. उसी साल उन्हें पार्टी का महासचिव नियुक्त किया गया और उन्हें उत्तर प्रदेश, दिल्ली और सेवा दल का प्रभार दिया गया. गहलोत को 2018 में फिर से पार्टी के महासचिव के रूप में नामित किया गया था.

पायलट के साथ तनातनी

मुख्यमंत्री के रूप में अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान, गहलोत को उनके तत्कालीन डिप्टी सचिन पायलट की सीधी चुनौती का सामना करना पड़ा. पायलट की मांग थी कि गहलोत की जगह उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाए. पायलट ने करीब 20 विधायकों के समर्थन से सरकार गिराने की धमकी दी, लेकिन गहलोत ने उन पर बीजेपी के साथ साजिश करने का आरोप लगाते हुए पलटी मार दी. पायलट के मुखर इनकार और गांधी परिवार के प्रयासों के बावजूद यह आरोप कहीं न कहीं बने रहे.

पायलट को अंधेरे में रोशनी की एक किरण नजर आई जब गहलोत ने घोषणा की कि वह कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव लड़ेंगे. इस साल की शुरुआत में उदयपुर घोषणा पत्र के मुताबिक उन्हें पार्टी के ‘वन-मैन, वन-पोस्ट’ नियम के चलते मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली करनी पड़ती.

लेकिन गहलोत ने पिछले हफ्ते इसमें अड़ंगा डालते हुए दिखा दिया कि 80 से अधिक विधायकों का समर्थन उनके साथ है. उन्होंने पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति के लिए 19 अक्टूबर तक रुकने के लिए कहा. उसी दिन कांग्रेस के राष्ट्रपति चुनावों के परिणाम घोषित किए जाने हैं.

गहलोत की आगे की राह

गहलोत ने स्वीकार किया कि सोनिया गांधी ही उनके उत्तराधिकारी की नियुक्ति करेंगी. यह साफ है कि पार्टी आलाकमान ने दिग्गज कांग्रेसी को बता दिया है कि उनकी स्थिति पर पुनर्विचार किया जा रहा है. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उनके जैसे व्यक्ति – गांधी परिवार के ‘करीबी घेरे’ का एक सदस्य – के लिए पिछले हफ्ते का विद्रोह ‘असामान्य’ था.

दिल्ली में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, ‘उन्हें एक मृदुभाषी व्यक्ति के रूप में जाना जाता है, जो गांधी और पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा रखते हैं. लेकिन वह चुनाव के इतने करीब राजस्थान को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे और शुरू से ही यह साफ था कि वह राजस्थान की कीमत पर (कांग्रेस) अध्यक्ष का पद नहीं चाहते.’

दिल्ली में पार्टी के एक अन्य नेता ने कहा कि गहलोत जिस स्थिति में खुद को पाते हैं वह गांधी परिवार के भीतर ‘युवा और बूढ़े’ विचारों के अंतर को दर्शाता है. नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘श्रीमती गांधी चाहती हैं कि वह (गहलोत) दिल्ली में कार्यभार संभालें. लेकिन यह भी सच है कि राहुल और प्रियंका एक युवा सीएम चेहरे के रूप में पायलट के लिए बल्लेबाजी कर रहे हैं. एक समय के बाद हर राजनेता को अपनी कुर्सी के लिए लड़ना पड़ता है और गहलोत की वफादारी ही उन्हें इतनी दूर तक ले जा सकती है. अब उनकी राजनीति पार्टी में उनके भाग्य का फैसला करेगी.’

गुरुवार को पत्रकारों से बातचीत के दौरान गहलोत ने इस बात पर जोर दिया कि सोनिया गांधी से उनकी माफी बिना शर्त और दिल से मांगी गई थी.

उन्होंने कहा, ‘मैंने श्रीमती गांधी से सॉरी कहा है और उनसे माफी मांगी है,’ जिस पर एक रिपोर्टर ने गहलोत से पूछा: ‘माफ कर दिया क्या?’

जोधपुर के ‘जादूगर’ का राजनीतिक भविष्य अब इसी सवाल के जवाब पर टिका है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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