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Thursday, 28 March, 2024
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अपर्णा अलग राह अपनाने वाली पहली यादव भी नहीं, देश में 9 बार राजनीति पारिवारिक रिश्तों में आड़े आई

सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव के भाजपा में जाने से राजनीतिक पारिवारों में फूट की घटनाएं एक बार फिर सुर्खियों में हैं. ऐसे मामले तमाम राज्यों और पार्टियों में सामने आए हैं.

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नई दिल्ली: समाजवादी पार्टी (सपा) के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव बुधवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गईं. यह घटना राजनीति के कारण परिवारों में फूट पड़ने का एक और उदाहरण है.

अखिलेश यादव के सौतेले भाई प्रतीक की पत्नी अपर्णा ने 2017 का विधानसभा चुनाव सपा के टिकट पर लड़ा था, लेकिन लखनऊ कैंट सीट पर वह भाजपा की रीता बहुगुणा जोशी से हार गईं. वह अब उसी निर्वाचन क्षेत्र से टिकट पाने की कोशिश में लगी हैं, लेकिन भाजपा की तरफ से.

वहीं, मुलायम सिंह यादव के साले और सपा के पूर्व विधायक प्रमोद कुमार गुप्ता भी भाजपा में शामिल हो गए हैं.

हालांकि, राजनीतिक विचारधाराओं और बेहतर अवसरों की तलाश में सियासी परिवारों का इस तरह टूटना उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं रहा है. चुनावी मौसम में इस तरह के घटनाक्रम आमतौर पर सभी पार्टियों और राज्यों में चलते रहते हैं.

पिछले हफ्ते पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के भाई मनोहर सिंह ने आगामी चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरने का फैसला किया, उन्हें कांग्रेस की तरफ से टिकट देने से इनकार कर दिया गया था.

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देश में सियासी परिवारों के इस तरह बंटने का सबसे बड़ा उदाहरण तो गांधी परिवार में देखा गया है. जहां पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी और बच्चों राहुल और प्रियंका गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाल रखी हैं, वहीं परिवार का दूसरा हिस्सा यानी राजीव गांधी के भाई संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी और वरुण गांधी दशकों से भाजपा के साथ हैं.

यहां पेश हैं कुछ ऐसे ही प्रमुख उदाहरण जब राजनीतिक परिवारों के सदस्यों ने विभिन्न कारणों से अलग सियासी राह अपनाई.


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उत्तर प्रदेश में यादव

अपर्णा यादव का भाजपा में जाना यादव परिवार में फूट का पहला उदाहरण नहीं है. इससे पहले, अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव के बीच सत्ता संघर्ष चला और यह अखिलेश यादव के अपने पिता मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत हासिल करने के साथ खत्म हुआ.

कभी शिवपाल पर निर्भर रहने वाले अखिलेश ने 2016 में यूपी में मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए अपने चाचा को सरकार से बर्खास्त कर दिया था. वह जनवरी 2017 में सपा अध्यक्ष बने और दूसरी तरफ शिवपाल ने अपनी अलग पार्टी बनाई.

हालांकि, पिछले महीने अखिलेश ने शिवपाल की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के साथ गठबंधन की घोषणा की थी.

हरियाणा में चौटाला

हरियाणा के राजनीतिक परिदृश्य में दशकों से चौटाला परिवार का वर्चस्व रहा है. हालांकि, पिछले विधानसभा चुनावों से पहले पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के पोते दुष्यंत चौटाला ने इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) से दूरी बनाने का फैसला किया और 2018 में जननायक जनता पार्टी गठित कर ली.

दुष्यंत ने अंततः भाजपा के साथ गठबंधन किया और उन्हें डिप्टी सीएम का पद दिया गया.

परिवार के एक अन्य नेता और ओम प्रकाश चौटाला के भाई रंजीत सिंह चौटाला ने भी 2019 का चुनाव जीता लेकिन एक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर. मौजूदा समय में वह हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं.

पंजाब में बादल

शिरोमणि अकाली दल के नेता और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत सिंह बादल ने अपने चाचा और चचेरे भाई सुखबीर सिंह बादल के साथ मतभेदों के चलते 2010 में पार्टी छोड़ दी थी. इसके बाद मनप्रीत ने पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब के नाम से अपना अलग दल बनाया. 2016 में वह कांग्रेस में शामिल हो गए और अपनी पार्टी का उसमें विलय कर दिया.

राजस्थान और मध्य प्रदेश में सिंधिया परिवार

ग्वालियर के राजघराने सिंधिया परिवार की विजयाराजे सिंधिया दशकों तक भाजपा नेता रहीं, और उनकी बेटी और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी यही राह चुनी. हालांकि, विजयाराजे के बेटे दिवंगत माधवराव सिंधिया कुछ समय के लिए तो जनसंघ से जुड़े रहे लेकिन बाद में कांग्रेस का हिस्सा बने और केंद्रीय मंत्री के तौर पर काम किया.

माधव राव सिंधिया के पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया भी बतौर मंत्री मनमोहन सिंह सरकार में शामिल रहे. लेकिन मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री का पद न मिलने पर उन्होंने 2020 में भाजपा का दामन थाम लिया और कमलनाथ सरकार गिरा दी. अभी वह केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री हैं.


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तमिलनाडु में द्रमुक परिवार

द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) नेता और एम. करुणानिधि के बड़े बेटे एम.के. अलागिरी को कथित अनुशासनहीनता के कारण 2014 में चुनावों से ऐन पहले पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था.

2018 में पूर्व द्रमुक नेता ने यह भी कहा कि अगर उन्हें पार्टी में वापस ले लिया जाए तो वह अपने छोटे भाई और पार्टी अध्यक्ष एम.के. स्टालिन को अपने नेता के तौर पर स्वीकारने को तैयार हैं. हालांकि, इस पहल का कोई नतीजा नहीं निकल सका.

2020 में तमिलनाडु विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले अलागिरी ने दावा किया कि वह अपनी अलग राजनीतिक पार्टी बनाने पर विचार कर रहे हैं.

झारखंड में सिन्हा

भाजपा के पूर्व कद्दावर नेता यशवंत सिन्हा अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री थे. लेकिन 2018 में नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी के साथ उनकी कार्यशैली को लेकर मतभेदों के कारण उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी.

हालांकि, उनके बेटे जयंत सिन्हा 2019 के चुनाव तक मोदी सरकार में मंत्री रहे. मौजूदा समय में जयंत झारखंड के हजारीबाग निर्वाचन क्षेत्र से सांसद हैं, जहां से उनके पिता तीन बार भाजपा सांसद रहे थे.

यशवंत सिन्हा पिछले साल मार्च में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए थे. 2018 में उन्होंने राजनीतिक मतभेदों के कारण पिता-पुत्र का ‘सामान्य रिश्ता’ भी ‘प्रभावित’ होने की बात कही थी.

महाराष्ट्र में पवार परिवार

महाराष्ट्र में रिश्तों में मजबूती से बंधा पवार परिवार भी राजनीति को लेकर एक छोटे-मोटे परिवारिक झगड़े से बचा नहीं रह सका.

2019 में विधानसभा चुनावों के बाद त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति उत्पन्न होने पर एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने कुछ समय के लिए अपनी पार्टी छोड़कर भाजपा के देवेंद्र फडणवीस के साथ हाथ मिला लिया. इसके बाद वह महाराष्ट्र में बनी भाजपा की अल्पकालिक सरकार में मात्र तीन दिन के लिए डिप्टी सीएम भी बने.

हालांकि, अजीत पवार जल्द ही फिर एनसीपी में शामिल हो गए और पार्टी सुप्रीमो द्वारा शिवसेना और कांग्रेस के साथ मिलकर बनाई गई महा विकास अघाड़ी सरकार के तहत डिप्टी सीएम बने.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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