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Thursday, 19 December, 2024
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सत्ता-विरोधी लहर, ‘गरीब’ उम्मीदवारों का चयन, जातिगत कारक — बिहार में NDA मोदी के ‘जादू’ पर निर्भर

आखिरी दौर की रैलियों के लिए पीएम मोदी शनिवार को बिहार में हैं. 2019 की उपलब्धि को दोहराने के लिए एनडीए की रणनीति मोदी और केंद्र सरकार पर ध्यान केंद्रित करने के इर्द-गिर्द घूम रही है.

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नई दिल्ली/पटना: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की क्लीन स्वीप की संभावनाओं को अंतिम रूप देने के लिए तीन और रैलियों को संबोधित करने के लिए शनिवार को बिहार में हैं. 2019 में एनडीए ने पूर्वी राज्य की 40 में से 39 सीटें जीती थीं.

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, केंद्रीय नेतृत्व को जानकारी मिली है कि बिहार में मौजूदा सांसदों को जाति-राजनीति की कहानी और विपक्ष के उत्साही अभियान के अलावा सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है और इसीलिए प्रधानमंत्री ने यह जिम्मेदारी खुद पर ले ली है.

नेता ने कहा, “चुनाव की घोषणा के बाद पीएम मोदी ने जमुई से मिशन 2024 की शुरुआत की थी और तब से उन्होंने कई रैलियां की हैं और अब 25 मई को तीन और रैलियां करने जा रहे हैं.”

मोदी के पाटलिपुत्र, बक्सर और काराकाट में प्रचार करने की उम्मीद है, जहां 1 जून को अंतिम चरण में मतदान होगा, जिससे 12 मई की यात्रा के दौरान पटना में उनके रोड शो के अलावा, बिहार में उनके द्वारा संबोधित रैलियों की कुल संख्या 15 हो जाएगी.

मोदी के अलावा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी स्थिति का जायजा लेने के लिए गुरुवार को पटना पहुंचे क्योंकि यह छठे चरण के चुनाव प्रचार का आखिरी दिन था. सूत्रों के मुताबिक, भाजपा ने अंतिम चरण में अपने स्टार प्रचारकों द्वारा “ब्लिट्जक्रेग” की योजना बनाई है.

बिहार के लिए पीएम की अभियान रणनीति के महत्व को समझाते हुए पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, “अब तक पीएम ने 12 रैलियां की हैं, और 25 मई को तीन और रैलियों को संबोधित करेंगे. उन्होंने पटना में एक रोड शो भी किया, जो किसी पीएम के लिए पहला रोड शो था. यह भी पहली बार हुआ कि कोई प्रधानमंत्री एक सप्ताह के भीतर दो बार बिहार में रात के लिए रुके हों. इससे पता चलता है कि पार्टी और पीएम बिहार को लेकर कितने गंभीर हैं, लेकिन, इससे यह भी पता चलता है कि स्थिति बहुत अच्छी नहीं है.”

पूर्व एमएलसी प्रेम कुमार मणि ने कहा, “बीजेपी और जनता दल (यूनाइटेड) दोनों को एहसास है कि उनके पास जो वोट आधार है वह पीएम के कारण है न कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कारण.”

उन्होंने कहा, “जब पीएम मोदी एक चुनावी रैली को संबोधित करते हैं, तो वे मतदाताओं को एनडीए के पक्ष में प्रेरित करते हैं — खासकर ऊंची जातियों के मतदाताओं को. यह बात समझ में आती है कि एनडीए का हर उम्मीदवार चाहता है कि मोदी उसके निर्वाचन क्षेत्र में एक सभा को संबोधित करें.”

बीजेपी के भीतर कई लोगों को लगता है कि नीतीश इस बार अपने चुनाव अभियान में सुस्त दिख रहे हैं, जिसका असर एनडीए की संभावनाओं पर भी पड़ रहा है.

एक अन्य नेता ने इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि पीएम ने एक हफ्ते में बिहार के दो दौरे किए हैं, कहा, “वे बीच में बीमार भी पड़ गए. अगर हम उनकी रैलियों की तुलना 2019 की रैलियों से करें तो उन्होंने निश्चित रूप से कम प्रदर्शन किया है. पक्षी खेमे में तेजस्वी यादव ने कमान संभाल ली है और अब तक 200 से ज्यादा रैलियां कर चुके हैं. पीएम ने अब तेजस्वी और लालू का मुकाबला करने का बीड़ा उठाया है.”

2019 के लोकसभा चुनावों में एनडीए को तत्कालीन महागठबंधन पर 22 प्रतिशत से अधिक वोटों का फायदा हुआ था — 54 प्रतिशत बनाम 32 प्रतिशत. 2024 में एनडीए नए सदस्यों — पूर्व सीएम जीतन राम मांझी और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा, के साथ मैदान में है, जो पिछली बार महागठबंधन के साथ थे.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “एनडीए को 39 सीटें हासिल करने का अपना कारनामा दोहराने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए थी. फिर भी हर चरण के मतदान के बाद गठबंधन संघर्ष करता नज़र आ रहा है. यह राज्य इकाई को बता दिया गया है और तब से कैडर को प्रेरित करने के प्रयास किए गए हैं और यह सुनिश्चित किया गया है कि फोकस पीएम मोदी पर बना रहे.”

एक अन्य वरिष्ठ नेता के अनुसार, चूंकि, भाजपा बिहार में काफी हद तक ‘मोदी फैक्टर’ पर निर्भर है, इसलिए पार्टी उन पर और केंद्र द्वारा किए गए कार्यों पर सुर्खियों में रहना चाहती है.

21 मई को मोदी पटना में राज्य पार्टी कार्यालय का दौरा करने वाले भाजपा के पहले प्रधानमंत्री बने.

वहां मौजूद एक नेता ने याद किया,“उन्होंने पूछा कि बिहार में हालात कैसे हैं. हम सभी तनाव में थे और उन्होंने मज़ाक में कहा कि वे हमारे दांत नहीं देख सके क्योंकि हम मुस्कुरा नहीं रहे थे.”

नेता ने आगे उस समस्या के बारे में बताया जिसका सामना एनडीए को इन चुनावों में करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा, “हमारे पास एक बेहद लोकप्रिय प्रधानमंत्री हैं, साथ ही अलोकप्रिय उम्मीदवारों को एक दशक तक अपनी सीटों का प्रतिनिधित्व करने के बाद प्रमुख सत्ता विरोधी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. एनडीए के 40 उम्मीदवारों में से केवल मुट्ठी भर, जिनमें केंद्रीय मंत्री आर.के. सिंह भी शामिल हैं. इतने प्रभावित नहीं हैं.”


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जाति कार्ड

बीजेपी के एक अन्य पदाधिकारी ने पार्टी की इस स्थिति के लिए “खराब” उम्मीदवार चयन को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा, “उम्मीदवारों का चयन, विशेष रूप से भाजपा और जद (यू) द्वारा कमजोर था. जाति संरचना के कारण बमुश्किल कुछ उम्मीदवारों को बदला गया. उदाहरण के लिए भाजपा सांसद रमा देवी, जो वैश्य समुदाय से हैं, को शिवहर से हटा दिया गया और यह सीट जद (यू) को दे दी गई, जिन्होंने राजपूत और आनंद मोहन सिंह की पत्नी लवली आनंद को मैदान में उतारा.”

उन्होंने आगे कहा, “इसी तरह, निकटवर्ती सीतामढी में मौजूदा सांसद सुनील कुमार पिंटू को जद (यू) ने हटा दिया और देवेश कुमार ठाकुर को टिकट दिया गया. नतीजा यह हुआ कि इससे वैश्य समुदाय नाराज़ हो गया, जिसकी शिवहर, सीतामढी, पश्चिमी चंपारण और पूर्वी चंपारण में अच्छी खासी आबादी है.”

जहां तक जाति कारक का सवाल है, भाजपा नेता ने कहा कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने अपने कार्ड काफी बेहतर तरीके से खेले.

उन्होंने कहा, “इसने कुशवाहों को सात सीटें दीं, जो जद (यू) के प्रमुख समर्थक हैं. ऐसी खबरें हैं कि नवादा और औरंगाबाद में कुशवाहा समुदाय के एनडीए मतदाताओं ने राजद उम्मीदवारों को वोट दिया है, जिससे चुनाव परिणामों की भविष्यवाणी करना मुश्किल हो गया है.”

नेता ने बताया, “अलगाव की शुरुआत मुंगेर से हुई, जब राजद ने गैंगस्टर अशोक महतो की पत्नी आशा देवी को मैदान में उतारा. महतो धानुक जाति से हैं, जो कुर्मियों के करीबी हैं और हाल के वर्षों में भाजपा की ओर चले गए थे. आशा देवी का मुकाबला जेडीयू नेता लल्लन सिंह से था. यह सीट, जो एनडीए के लिए आसान होनी चाहिए थी, जाति-आधारित मुकाबले में बदल गई.”

यहां तक कि दरभंगा और मधुबनी जैसी सीटें, जहां भाजपा भारी अंतर से जीती थी, वहां भी उसे संघर्ष करते देखा जा रहा है. 2019 में बीजेपी सांसद अशोक यादव ने 4.5 लाख से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की. इस बार मतदान के बाद बीजेपी नेता भी मान रहे हैं कि मार्जिन गिर सकता है.

क्षेत्र से बीजेपी के एक विधायक ने दिप्रिंट को बताया, “इस बार यादव वोट राजद को गए. समुदाय को लगता है कि उसे तेजस्वी का समर्थन करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विधानसभा चुनावों में उनका मनोबल न गिरे. नेता ने इस पर जोर दिया कि मुकेश सहनी की इंडिया ब्लॉक के प्रति निष्ठा के कारण मल्लाह (मछुआरे) मतदाता आधार में भी गिरावट आई है.

बिहार में एनडीए के लिए क्या काम कर रहा है?

सारण में सांसद राजीव प्रताप रूडी के खिलाफ सत्ता विरोधी माहौल है. मतदाताओं का दावा है कि वे लोगों से कम ही मिलते हैं.

मिथिलेश सिंह ने कहा, जो सारण के सोहना चौक पर एक दुकान चलाते हैं और जाति से कुर्मी हैं, “लेकिन मैं फिर भी उन्हें वोट दूंगा क्योंकि हम चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी फिर से पीएम बनें. अगर रूडी जीतते हैं, तो यह मोदी के कारण होगा.”

महराजगंज के गोरियाकोठी ब्लॉक में चाय की दुकान चलाने वाले सोहन साहू, जहां से भाजपा के जनार्दन सिंह सिग्रीवाल मौजूदा सांसद हैं, ने कहा, “मोदी जी की वजह से हमें 5 किलो चावल मिलता है. हम और किसे वोट देंगे?” उन्होंने कहा, सिग्रीवाल ने पिछले 10 वर्षों में महाराजगंज के लिए कुछ नहीं किया है.

जहानाबाद शहर में, जेवन कुशवाहा ने टिप्पणी की कि अगर वो अपनी पत्नी से राजद को वोट देने के लिए कहेंगे, तो भी वे नहीं सुनेंगी. उन्होंने कहा, “मोदी जी के कार्यकाल में हमें एक शौचालय, एक रसोई गैस और हर महीने 5 किलो चावल मिला है.”

इन योजना लाभार्थियों में बड़ी संख्या में लोग आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों और दलितों से हैं, जो अभी भी मोदी की कसम खाते हैं. ऐसे बहुत कम लोग हैं जो नीतीश कुमार के बारे में बात करते हैं – वह व्यक्ति जो पिछले 18 साल से बिहार के मुख्यमंत्री हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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