मुम्बई: ऐसा लगता है कि महाराष्ट्र उप-मुख्यमंत्री अजित पवार इस बात से नाराज़ हैं, कि राज्य के विभाग अपने सरकारी प्रस्ताव, अधिसूचनाएं, और सर्कुलर, उन्हें मार्क नहीं कर रहे हैं, जो आमतौर पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के कार्यालय को प्रेषित किए जाते हैं.
पवार के ऑफिस ने उप-मुख्यमंत्री की शिकायत पर, इस बारे में राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) को लिखा है, जो ठाकरे के अंतर्गत आता है.
पत्र के बाद, जीएडी ने 3 जून को एक सरकारी प्रस्ताव जारी किया, जिसमें महाराष्ट्र सरकार के सभी विभागों को निर्देश दिया गया, कि अपने सभी प्रस्ताव, सर्कुलर, और अधिसूचनाएं, डिप्टी-सीएम ऑफिस को प्रेषित करें.
डीएडी निर्देश में, जिसकी एक कॉपी दिप्रिंट ने देखी है, कहा गया है, ‘डिप्टी-सीएम ऑफिस ने इस विभाग को अवगत कराया है, कि ये प्रतिलिपियां माननीय डिप्टी-सीएम के ऑफिस को प्रेषित नहीं की जा रहीं हैं. इसलिए, सभी मंत्रालय विभागों को एक बार फिर निर्देश दिया जाता है, कि वो अपने प्रस्ताव, सर्कुलर्स, और अधिसूचनाएं, डिप्टी-सीएम ऑफिस को प्रेषित करने को लेकर सतर्क रहें’.
लेकिन, जैसा कि निर्देश से संकेत मिलता है, ये पहली बार नहीं है, कि जीएडी ने ऐसा पत्र जारी किया है.
प्रशासन विभाग ने पहली बार ऐसे निर्देश, अक्तूबर 2020 में जारी किए थे, जब पवार ने, जिनके पास वित्त और योजना विभाग भी हैं, विभाग को ये सुनिश्चित करने के लिए कहा था, कि सभी प्रस्ताव, सर्कुलर्स, और अधिसूचनाएं, उन्हें मार्क की जाएं.
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PWD के एक सरकारी प्रस्ताव से उठा विवाद
डीएडी के सभी विभागों को जारी नोटिस में, ये उल्लेख नहीं है कि क्या उन्हें अपने तमाम सर्कुलर्स, अधिसूचनाएं और प्रस्ताव, पवार के ऑफिस को मार्क करने हैं, या केवल कुछ ख़ास.
लेकिन, पवार के ऑफिस के एक सूत्र ने, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा कि डिप्टी सीएम को पहले से ही, वो सभी अधिसूचनाएं, प्रस्ताव और सर्कुलर्स मिलते हैं, जिनका संबंध उनके योजना तथा वित्त विभागों से है, लेकिन वो विशेष रूप से अपेक्षा करते हैं, कि उन्हें वो तमाम अधिसूचनाएं, प्रस्ताव, और सर्कुलर्स प्राप्त हों, जो सीएमओ को दूसरे विभागों से मिलते हैं.
सीएम ठाकरे के कार्यालय के एक अधिकारी ने कहा, कि विभाग अपने सभी फैसले सीएमओ को मार्क नहीं करते.
उन्होंने कहा, ‘सीएमओ को वो सभी अधिसूचनाएं, सर्कुलर्स, और दूसरे पत्राचार मार्क होते हैं, जो उन विभागों के अंतर्गत आते हैं, जिन्हें सीएम ने अपने पास रखा है, और वो भी, जिनका ताल्लुक़ दूसरे विभागों से है, लेकिन जो महत्वपूर्ण हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘नई प्रमुख स्कीमों, सब्सीडीज़, लाभ का विस्तार, या अहम मानकों में बदलाव से जुड़े, सभी प्रस्ताव और सर्कुलर्स, सीएमओ को प्रेषित किए जाते हैं.
उन्होंने आगे कहा, ‘इसमें कोई दिक़्क़त नहीं है, अगर डिप्टी सीएम ऐसे सभी कागज़ात से ख़ुद को अवगत रखना चाहते हैं’.
डिप्टी सीएमओ की ओर से डीएडी को ताज़ा संदेश, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) नेता पवार के कहने के बाद भेजा गया, जिन्हें राज्य लोक निर्माण विभाग के, एक सरकारी प्रस्ताव का पता ही नहीं चला था. 20 मई के इस प्रस्ताव के तहत, राज्य लोक निर्माण विभाग 10 लाख रुपए तक के काम के लिए नियमित टेंडर, और उससे अधिक के लिए ई-टेंडर जारी कर सकता है. पहले ये सीमा 3 लाख थी.
पवार के ऑफिस के ऊपर उल्लिखित सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, कि जब किसी ने उप-मुख्यमंत्री को इस बारे में बताया, तो उन्हें इस सरकारी प्रस्ताव का पता ही नहीं था.
उन्होंने कहा, ‘इसे लेकर वो हमारे स्टाफ से ग़ुस्सा थे. दादा (जो पवार को अकसर कहा जाता है) ने बहुत स्पष्ट निर्देश दिए हैं, कि सीएम ऑफिस को भेजे जाने वाले तमाम सरकारी प्रस्ताव, और अधिसूचनाएं हमारे पास आनी चाहिएं, लेकिन ऐसे आदेशों के बावजूद, विभाग उनका पालन नहीं करते. इसलिए हमने जीएडी को, इस बारे में फिर एक पत्र भेजा है’.
‘डिप्टी सीएम की भूमिका बिल्कुल स्पष्ट नहीं है, इसलिए ऐसी चीज़ें हो जाती हैं’
दिप्रिंट ने जिन वरिष्ठ राजनेताओं और टीकाकारों से बात की, उनका कहना था कि चूंकि डिप्टी सीएम कोई संवैधानिक पद नहीं है, और इसके अधिकारों तथा ज़िम्मेदारियों को लेकर, कोई लिखित नियम नहीं हैं, इसलिए इस पद की भूमिका, इसपर बैठे हुए व्यक्ति पर निर्भर करती है.
एक पूर्व सीएम ने, जो अपना नाम छिपाना चाहते थे, कहा, ‘डिप्टी सीएम का पद गठबंधन सरकार में केवल प्रोटोकोल पद होता है. ये कोई संवैधानिक ऑफिस नहीं है, जिसके कोई लिखित नियम हों’.
पूर्व सीएम ने आगे कहा, ‘वो सीएम की अनुपस्थिति में, उसकी जगह काम कर सकता है, लेकिन अन्यथा उसकी भूमिका क्या है, और क्या वो भी समकक्षों में पृथम है, इस पर कोई स्पष्टता नहीं है’.
‘सरकार के भीतर कार्य संचालन नियमों में उल्लेख नहीं है, कि डिप्टी सीएम को क्या करना चाहिए. इसलिए ये पद उस हिसाब से विकसित होता है, कि इसपर बैठने वाला व्यक्ति, अपना कितना रुतबा दिखा सकता है’.
राजनीतिक टीकाकार प्रताप एसबे का कहना था, कि ये स्थिति अभूतपूर्व नहीं है.
एसबे ने आगे कहा, ‘ऐसी चीज़ें अकसर हुई हैं. 1978 में, तत्कालीन डिप्टी सीएम नासिकराव तिरपुड़े ने, इस बात पर ज़ोर दिया था, कि सीएम को जाने वाली सभी फाइलें, उनके पास आनी चाहिएं. उन्होंने केवल अपनी पार्टी के मंत्रियों की, अलग से कैबिनेट बैठकें करने की प्रथा भी शुरू की थी’.
‘बतौर डिप्टी सीएम, रामराव आदिक ने भी इसी तरह की मांग की थी. उनके पास वित्त विभाग था, और अधिकतर सरकारी फैसलों के वित्तीय पहलू होते हैं, इसलिए वित्त के प्रभारी मंत्री को, उनके बारे में जानना होता है. पवार के मामले में भी ऐसा ही हो सकता है’.
तिरपुड़े और आदिक दोनों, पूर्व सीएम वसंतदादा पाटिल के डिप्टी रहे थे. तिरपुड़े मार्च से जुलाई 1978 तक डिप्टी सीएम थे, जबकि आदिक फरवरी 1983 से, मार्च 1985 तक इस पद पर रहे.
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मामूली कहासुनी के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते
एनसीपी नेता पवार के मुख्यमंत्री ठाकरे से, जो शिवसेना अध्यक्ष भी हैं, महा विकास अघाड़ी सरकार में, काफी हद तक सौहार्दपूर्ण रिश्ते रहे हैं, जिसकी एक साझीदार कांग्रेस भी है.
डिप्टी सीएम के तौर पर, पवार का ये चौथा कार्यकाल है, जिनमें पहले दो नवंबर 2010 और सितंबर 2014 के बीच थे, जब कांग्रेस के पृथ्वीराज चव्हाण सीएम थे, और तीसरा 72 घंटे के अल्प समय के लिए था, जब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के देवेंद्र फड़णवीस सीएम थे.
एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने, जो 2009-14 कांग्रेस-एनसीपी सरकार में एक मंत्री थे, कहा, ‘पवार के सीएम के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते बताए जाते थे, लेकिन कभी कभी सदन में जवाब देने जैसे छोटी बातों पर, वो सीएम की जगह लेने की कोशिश करते दिखाई देते थे’.
मौजूदा एमवीए प्रशासन के सूत्रों का कहना है, कि सीएम ठाकरे के डिप्टी के नाते पवार, जो एक महत्वाकांक्षी नेता, और सख़्त काम लेने वाले माने जाते हैं, ज़्यादा मुखर नहीं रहे हैं. न तो उन्होंने ज़्यादा प्रेस वार्त्ताओं को संबोधित किया है, और ना ही सीधे तौर पर, सीएम की ताक़त को चुनौती देने की कोशिश की है.
लेकिन पवार ने कई बार गूढ़ संकेतों के ज़रिए, अपनी स्थिति को जताने की कोशिश की है.
मसलन, पिछले साल जुलाई में, पवार ने अपनी एक फोटो ट्वीट की थी, जिसमें वो और सीएम एक खुली कार में बैठे थे, और उनके साथ कुछ अन्य नेता, एक्टर आमिर ख़ान, और सुरक्षाकर्मी भी थे. उस ट्वीट ने जिस चीज़ का आभास कराया, वो ये थी कि कार का स्टियरिंग व्हील, पवार के हाथ में था, जबकि ठाकरे यात्री सीट पर बैठे थे.
इस ट्वीट से कुछ घंटे पहले ही, शिवसेना मुखपत्र सामना में ठाकरे का एक इंटरव्यू छपा था, जिसमें उन्होंने एमवीए सरकार की तुलना- जिसमें शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस शामिल थीं- तीन पहियों वाली रिक्शा से की थी, जिसमें वो ड्राइवर सीट पर थे.
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