मुगाथी, आंध्र प्रदेश: आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले के मुगाथी गांव में कैंपसाइट के बाहर खासी भीड़ जमा है. पास ही के गांव यम्मीगनूर में रहने वाले 55 साल के मल्लेश बाबू भी गुरुवार को चार घंटे से ज्यादा समय से धैर्यपूर्वक यहां खड़े थे. सबको इंतजार राहुल गांधी की एक झलक पाने का है. उन्हें बताया गया था कि वह अपनी मेगा वॉकथॉन भारत जोड़ो यात्रा से एक छोटा ब्रेक लेने के लिए इसी जगह पर रुकेंगे.
मल्लेश ने वायनाड के कांग्रेस सांसद को कई बार टेलीविजन पर देखा है लेकिन वह उन्हें सामने से देखना चाहते हैं. यह पूछे जाने पर कि क्या वह जानते हैं कि गांधी देश की लंबी यात्रा का नेतृत्व क्यों कर रहे हैं, मल्लेश के पास कोई जवाब नहीं था और न ही वह अपने निर्वाचन क्षेत्र से 2019 के कांग्रेस उम्मीदवार का नाम बता पाए.
मल्लेश एकमात्र ऐसे प्रशंसक नहीं हैं. गांधी जिन कुरनूल गांवों का दौरा कर रहे हैं, वहां कांग्रेस के स्थापित शिविरों के बाहर उनके जैसे सैकड़ों लोग इंतजार करते नजर आ रहे हैं.
अगर देखा जाए तो, आंध्र में कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक इसकी राज्य इकाई में जाने-पहचानने चेहरों की कमी है.
पार्टी को उम्मीद है कि भारत जोड़ो यात्रा उस राज्य में एक ‘शुरुआत’ होगी जहां पार्टी पूरी तरह खत्म हो चुकी है. संचार प्रभारी कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि आंध्र में कांग्रेस का पुनरुद्धार एक लंबा प्रोजेक्ट है और बहुत चुनौतीपूर्ण भी.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘वास्तव में पार्टी आंध्र प्रदेश में अपना जनाधार खो चुकी है और विभाजन (तेलंगाना के निर्माण) पर गुस्सा अभी भी बना हुआ है. 2014 और 2019 में हमारी चुनावी हार हुई थी…. कांग्रेस का पुनरुद्धार एक या दो साल में नहीं होने वाला है, यह एक लंबे समय तक चलने वाली प्रक्रिया होगी.’
वह कहते हैं,‘यह एक 20 साल का प्रोजेक्ट है. भारत जोड़ो यात्रा राज्य में हमारे लिए एक ओपनिंग की तरह है. हम लौट आए हैं और साथ ही हम राजनीति, मीडिया और सिविल सोसायटी नैरेटिव में भी वापस आ गए हैं. अब यह हमारे ऊपर है कि हम इसे कैसे आगे बढ़ाते हैं.’
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आंध्र प्रदेश में मतदाताओं ने 2019 में राज्य विधानसभा या संसद के लिए एक भी कांग्रेस प्रतिनिधि को नहीं चुना. पार्टी की राज्य इकाई आंतरिक नेतृत्व के झगड़े, नेताओं के बीच खराब कोर्डिनेशन , जमीन स्तर पर नेताओं का नदारद होना और बड़े चेहरों की कमी जैसे मुद्दों से जूझ रही है.
राज्य कांग्रेस के एक नेता ने नाम न बताने के शर्त पर कहा, ‘हम चाय की दुकानों पर लोगों से, सब्जी विक्रेताओं और फेरीवालों के साथ चलते-फिरते बातचीत कर रहे हैं. हमें सबसे ज्यादा मिलने वाली प्रतिक्रिया यह थी कि वे नहीं जानते कि स्थानीय कांग्रेस उम्मीदवार कौन है.’
उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि यह ‘सिर्फ एक जाना-पहचाना चेहरा होने के बारे में नहीं है. यह इस बारे में भी है कि वह उम्मीदवार कितनी बार मतदाताओं से जाकर मिला है. हमने महसूस किया कि कुछ इलाकों में तो ऐसा न के बराबर हुआ है. अपने फीडबैक में हमने राहुल गांधी जी को भी यही बताया है.’
राहुल गांधी के साथ यात्रा कर रहे ‘भारत यात्रियों’ ने कहा कि केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में लोगों की भीड़ अपेक्षाकृत ज्यादा थी.
आंध्र में कांग्रेस के चुनावी हाल को देखते हुए पार्टी कैडर को इस बात की उम्मीद कम ही थी कि वो ज्यादा संख्या में स्थानीय लोगों की भीड़ जुटा पाएंगे. उन्होंने कहा, लेकिन लोगों की भीड़ उनकी अपेक्षा से कहीं ज्यादा थी.
नाम न छापने की शर्त पर आंध्र कांग्रेस के नेताओं ने बताया, कैडर ने हर जिले से कम से कम सौ लोगों को इकट्ठा किया. यात्रा के लिए युवा विंग को एक हजार से ज्यादा लोगों को जुटाने के लिए कहा गया था. साथ ही महिला कांग्रेस को भी इसका जिम्मा सौंपा गया था. राज्य में राहुल गांधी के वॉकथॉन के पूरे रास्ते के बारे में 10 दिन पहले ही जानकारी दे दी गई थी.
रमेश ने कहा, ‘तमिलनाडु और केरल में यात्रा के लिए जहां हमारे पास एक अच्छा-खासा वोट शेयर है और लोगों की अच्छी प्रतिक्रिया मिली है. लेकिन आंध्र प्रदेश अलग है. हमारा वोट शेयर यहां दो प्रतिशत से भी कम है. फिर भी हमें उम्मीद से ज्यादा प्रतिक्रिया मिली है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हालांकि मुझे लगता है कि हमने अभी राज्य के रायलसीमा में एक जिले का दौरा किया है और अगर हम तटीय इलाकों में जाते हैं, तो हमें उस गुस्से का सामना करना पड़ सकता है जिसकी वजह राज्य का विभाजन है … हमें अभी एक लंबा रास्ता तय करना है.’
विभाजन, अमरावती एकमात्र राजधानी
2009 में कांग्रेस ने राज्य की 42 लोकसभा सीटों- 2009 और 2014 में आंध्र की 25 और तेलांगना की 17 सीटों को एक साथ गिना गया- में से 33 पर जीत हासिल की थी. लेकिन 2019 में पार्टी एक भी सीट पर अपना दबदबा कायम नहीं रख पाई. कांग्रेस को आंध्र में एक बड़ी हार का सामना करना पड़ा था.
राज्य के विभाजन से उपजे गुस्से का मुकाबला करने में इसकी असमर्थता और अपने नेताओं का मुख्यमंत्री वाई एस जगमोहन रेड्डी की युवजना श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) की ओर पलायन, आंध्र में कांग्रेस की लोकप्रियता में गिरावट के कई कारणों में से हैं.
विभाजन के बाद पार्टी की छवि को भारी धक्का लगा. इस बात को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि आंध्र में उसका एक भी उम्मीदवार 2014 के आम और विधानसभा चुनावों में नहीं चुना गया था.
आंध्र प्रदेश में कांग्रेस का वोट शेयर 2009 के विधानसभा चुनावों में 36.55 प्रतिशत था. लेकिन 2014 में गिरकर 11.71 प्रतिशत हो गया. 2019 में पार्टी एक भी विधानसभा सीट हासिल करने में कामयाब नहीं हो पाई और उसका कुल वोट प्रतिशत महज 1.17 प्रतिशत रहा, जोकि नोटा को मिले 1.28 प्रतिशत से भी कम था.
2019 के आंध्र लोकसभा चुनावों में भी पार्टी का यही हाल थे. कांग्रेस को कुल वोटों का महज 1.3 प्रतिशत हासिल हुआ जबकि नोटा ने 1.5 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था.
विभाजन के मसले से निपटने के लिए राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान राज्य में प्रवेश करने के एक दिन बाद आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा देने का आश्वासन दिया. आंध्र के विभाजन के बाद के मतदाताओं की यह लंबे समय से मांग रही है.
उन्होंने सीएम जगन के तीन राज्यों की राजधानियों के प्रस्ताव पर भी हमला बोला, जबकि अमरावती को आंध्र की एकमात्र राजधानी होने का समर्थन किया.
राजनीतिक विश्लेषक पुरुषोत्तम रेड्डी ने कहा, ‘जब गांधी केरल और कर्नाटक का दौरा कर रहे थे, तब कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश में भी कुछ गति पकड़ी थी. रेड्डी समुदाय, जो रायलसीमा क्षेत्र में वोट बैंक पर हावी है, जिसमें से कुरनूल एक हिस्सा है, ने महसूस किया कि कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के विकल्प के रूप में उभरने की क्षमता हो सकती है. यह स्पष्ट नहीं है कि कांग्रेस को यह नहीं पता था कि जमीनी नब्ज क्या है, इसलिए वे इसे भुनाने में विफल रहे.’
रेड्डी के मुताबिक, राहुल गांधी को रायलसीमा में अपनी यात्रा के दौरान स्थानीय समूहों के साथ ज्यादा बातचीत करनी चाहिए थी. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘रायलसीमा क्षेत्र के लोगों को हमेशा लगता रहा था कि उन्हें छोड़ दिया गया है. वे यहां एक उच्च न्यायालय चाहते हैं, यहां राजधानी का हिस्सा चाहते हैं, और गांधी का यहां आकर ये कहना कि अमरावती को एकमात्र राजधानी घोषित किया जाए, शायद उनके लिए अच्छा नहीं है.’
उन्होंने यात्रा से पहले मुख्यमंत्री एन. किरण कुमार रेड्डी (अविभाजित आंध्र के अंतिम मुख्यमंत्री) की अनुपस्थिति की ओर भी इशारा किया.
आंध्र कांग्रेस के सूत्रों ने बताया कि वरिष्ठ कांग्रेसी को परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु के कारण यात्रा से दूर रहना पड़ा. उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव के दौरान भी मतदान नहीं किया था.
अभी के लिए, आंध्र में कांग्रेस की पुनरुद्धार रणनीति में राज्य इकाई के भीतर युवा नेताओं को बढ़ावा देना और अपने संगठन का पुनर्निर्माण करना शामिल है. वह धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाह रहे है. लेकिन फिलहाल तो पुनरुत्थान की राह लंबी, मुश्किल और विकट राजनीतिक विरोधियों से भरी हुई है.
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