नई दिल्ली: लोकसभा में बुधवार को तीन अहम विधेयक पेश किए जाएंगे, जिनमें यह प्रावधान होगा कि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और केंद्र व राज्य मंत्रियों को गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी या हिरासत में लिए जाने पर पद से हटाया जा सकेगा. यह तब लागू होगा जब मामले में कम से कम पांच साल या उससे अधिक की सज़ा का प्रावधान हो.
प्रस्तावित बिलों के मुताबिक, जिन्हें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह लोकसभा में पेश करेंगे, अगर इनमें से कोई निर्वाचित प्रतिनिधि गिरफ्तार होकर लगातार 30 दिन तक हिरासत में रहता है, तो 31वें दिन उसे इस्तीफा देना होगा या फिर वह अपने पद से अपने आप हटा दिया जाएगा.
फिलहाल संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ्तार होकर हिरासत में लिए गए पीएम, सीएम या केंद्र/राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों के मंत्रियों को हटाया जा सके. आमतौर पर वे गिरफ्तारी से पहले ही इस्तीफा दे देते हैं, जैसे दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (एक्साइज केस में) या झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (कथित ज़मीन घोटाले में). हालांकि, केजरीवाल ने छह महीने तक जेल से ही दिल्ली सरकार चलाई, उसके बाद आतिशी को मुख्यमंत्री बनाया गया. वहीं झारखंड में, झामुमो के वरिष्ठ नेता चंपई सोरेन ने तब तक मुख्यमंत्री पद संभाला जब तक सोरेन जेल में रहे.
अभी तक कानून केवल उन जनप्रतिनिधियों को हटाने की व्यवस्था देता है, जिन्हें दोषी ठहराया गया हो.
लेकिन प्रस्तावित कानून कहता है कि हिरासत से छूटने के बाद प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री को दोबारा प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री बनाए जाने से कोई रोक नहीं होगी. दिप्रिंट ने इन तीनों बिलों की प्रति देखी है.
संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025 का उद्देश्य अनुच्छेद 75, 164 और 239AA में संशोधन करना है, ताकि पीएम या केंद्र मंत्री परिषद के मंत्री और सीएम या राज्य मंत्रिपरिषद/दिल्ली की सरकार के मंत्री को हटाने का कानूनी ढांचा तैयार किया जा सके.
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025 का उद्देश्य जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 54 में संशोधन करना है, ताकि ऐसे मामलों में मुख्यमंत्री या मंत्री को हटाने का कानूनी ढांचा प्रदान किया जा सके.
केंद्र शासित प्रदेश शासन (संशोधन) विधेयक, 2025 का उद्देश्य केंद्र शासित प्रदेश अधिनियम, 1963 की धारा 45 में संशोधन करना है, ताकि किसी केंद्र शासित प्रदेश के मुख्यमंत्री या मंत्री को हटाने का कानूनी ढांचा प्रदान किया जा सके.
लोकसभा की संशोधित कार्यसूची के अनुसार, इन तीनों विधेयकों को लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सदस्यों वाली संयुक्त समिति को भेजा जाएगा.
मंगलवार रात जब ये बिल सांसदों के बीच बांटे गए, तो विपक्षी नेताओं की ओर से इनकी ज़बरदस्त आलोचना शुरू हो गई.
कांग्रेस के लोकसभा उपनेता गौरव गोगोई ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया, “गृह मंत्री अमित शाह के ये बिल जनता का ध्यान मिस्टर राहुल गांधी की ज़ोरदार वोट अधिकार यात्रा से भटकाने की एक बेताब कोशिश के सिवा कुछ नहीं हैं…साफ है कि बिहार में बदलाव की हवा बह रही है.”
कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे एक “दुष्चक्र” बताया.
उन्होंने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, “गिरफ्तारी के लिए कोई गाइडलाइन नहीं मानी जाती! विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियां अंधाधुंध और असंतुलित हैं. नया प्रस्तावित कानून मौजूदा #CM आदि को गिरफ्तारी के तुरंत बाद हटा देगा. विपक्ष को अस्थिर करने का सबसे आसान तरीका यही है—पक्षपाती केंद्रीय एजेंसियों को विपक्षी मुख्यमंत्रियों की गिरफ्तारी के लिए छोड़ दो और उन्हें चुनाव में हराने में नाकाम रहने के बावजूद मनमानी गिरफ्तारियों से हटा दो!! और सत्ताधारी दल के किसी मौजूदा सीएम को कभी हाथ तक नहीं लगाया जाता!!”
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क्या कहते हैं ये बिल
संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025 का उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 75 में संशोधन कर उसमें उपधारा 5 के बाद नई उपधारा 5(A) जोड़ना है. इसमें कहा गया है कि अगर कोई “प्रधानमंत्री, जो किसी भी अवधि में लगातार 30 दिनों तक पद पर रहते हुए, किसी ऐसे अपराध के आरोप में गिरफ्तार और हिरासत में लिया जाता है, जो किसी वर्तमान कानून के तहत दंडनीय है और जिसमें पांच साल या उससे अधिक की सज़ा हो सकती है, तो राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर उसे पद से हटा देंगे.”
हालांकि, अगर व्यक्ति इस्तीफा नहीं देता है, तो वह अगले दिन से प्रधानमंत्री के पद पर नहीं रहेगा.
इसी तरह, अगर कोई केंद्रीय मंत्री, जो किसी भी अवधि में लगातार 30 दिनों तक पद पर रहते हुए किसी अपराध के आरोप में गिरफ्तार और हिरासत में लिया जाता है, जो पांच साल या उससे अधिक की कैद से दंडनीय है, तो “प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा 31वें दिन उस मंत्री को पद से हटा दिया जाएगा.”
यदि 31वें दिन तक राष्ट्रपति को हटाने की सलाह नहीं दी जाती है, तो वह व्यक्ति मंत्री पद से स्वतः हटा दिया जाएगा.
कानून का उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 164 और अनुच्छेद 239AA में संशोधन करना भी है ताकि किसी राज्य और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) दिल्ली में मुख्यमंत्री या मंत्री को मंत्रिपरिषद से हटाने का प्रावधान किया जा सके.
इसमें एक नई उपधारा जोड़ने का प्रस्ताव है, जिसके अनुसार, अगर किसी मुख्यमंत्री के साथ ऐसा मामला होता है, तो उसे गिरफ्तारी और हिरासत के बाद 31वें दिन तक इस्तीफा देना होगा. ऐसा न करने पर उसे पद से हटा दिया जाएगा. हालांकि, विधेयक यह भी स्पष्ट करता है कि इस उपधारा में ऐसा कुछ नहीं है जो मुख्यमंत्री या मंत्री को हिरासत से रिहा होने के बाद, राज्यपाल द्वारा पुनः मुख्यमंत्री या मंत्री के रूप में नियुक्त होने से रोक सके.
लेकिन विधेयक यह नहीं बताता कि किस तरह के आपराधिक आरोपों के आधार पर गिरफ्तारी या हिरासत होगी, सिवाय इसके कि कोई भी आरोपित अपराध पांच साल या उससे अधिक की सज़ा से दंडनीय होना चाहिए.
वस्तु और कारण विवरण में कहा गया है, “…निर्वाचित प्रतिनिधि भारत की जनता की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं. उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर केवल जनहित और लोगों के कल्याण में काम करें…कोई मंत्री, जिस पर गंभीर आपराधिक आरोप लगे हों और जो गिरफ्तार होकर हिरासत में हो, वह संवैधानिक नैतिकता और सुशासन के सिद्धांतों में बाधा डाल सकता है और अंततः जनता द्वारा उस पर जताए गए संवैधानिक विश्वास को कमजोर कर सकता है.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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