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Friday, 15 November, 2024
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AAP और BJP में फिर क्यों छिड़ा विवाद, अब चंडीगढ़ प्रशासन सेवा नियमों में बदलाव पर आमने-सामने आए दोनों दल

गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की है कि चंडीगढ़ प्रशासन के कर्मचारी अब केंद्रीय सिविल सेवा नियमों के तहत काम करेंगे. इस पर पंजाब की आप सरकार ने कड़ी आपत्ति जताई है.

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नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को घोषणा की कि चंडीगढ़ प्रशासन के कर्मचारी अब केंद्रीय सिविल सेवा नियमों के तहत काम करेंगे. इसे लेकर केंद्र और पंजाब की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के बीच एक नई खींचतान शुरू हो गई है.

हालांकि, शाह ने दावा किया कि यह कदम कर्मचारियों को ‘बड़े पैमाने पर’ लाभ पहुंचाने वाला होगा. वहीं भाजपा के कुछ नेताओं ने यह स्वीकारा है कि चंडीगढ़ के कर्मचारियों को केंद्रीय सिविल सेवा नियमों के तहत लाना आप पर लगाम कसने की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा है. गौरतलब है कि आप को पंजाब में बड़ी जीत के बाद राष्ट्रीय राजनीति में एक व्यवहार्य विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है.

आप नेताओं ने शाह की इस घोषणा पर कड़ी प्रतिक्रिया जताई है. पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान का कहना है कि वह केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) चंडीगढ़ पर राज्य की ‘वास्तविक दावेदारी’ के लिए ‘लड़ने’ को पूरी तरह तैयार हैं. चंडीगढ़ पिछले कुछ समय से इस क्षेत्र में एक राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है.

मान सरकार के लिए एक और व्यावहारिक चिंता यह भी है कि पंजाब प्रशासन के कर्मचारी अपने वेतन में संशोधन की मांग कर सकते हैं ताकि उनका वेतन चंडीगढ़ के अपने समकक्षों के बराबर हो सके.

आप के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से कहा कि इस तरह की मांग से राज्य सरकार पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है, जो अभी ही 2.82 लाख करोड़ रुपये कर्ज के बोझ से दबी है.

चंडीगढ़ का अलग ही तरह का दर्जा, और नए नियमों के मायने

चंडीगढ़ को वैसे तो एक केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा हासिल है, लेकिन साथ ही यह पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों की राजधानी भी है. इसकी अपनी एक प्रशासनिक व्यवस्था है, जिसका नेतृत्व एक प्रशासक करता है. यह पद मौजूदा समय में बनवारीलाल पुरोहित के पास है, जो पंजाब के राज्यपाल भी हैं.

प्रशासनिक ढांचे में शीर्ष पर हैं एजीएमयूटी (अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश) कैडर से जुड़े सिविल सेवक और पंजाब और हरियाणा से प्रतिनियुक्ति पर आने वाले सिविल सेवा कैडर के अधिकारी.


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केंद्रशासित क्षेत्र प्रशासन में उनके मातहत काम करने वाले लगभग 23,000 कर्मचारी हैं, जो स्वास्थ्य, शिक्षा, पुलिस आदि विभागों और एक नगर निगम की जिम्मेदारी संभालते हैं.

चंडीगढ़ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ताजा बदलाव इन्हीं 23,000 कर्मचारियों को प्रभावित करेगा, न कि सिविल सेवकों को.

अधिकारी ने कहा कि ये 23,000 कर्मचारी पंजाब सेवा नियमों के तहत काम करते रहे हैं. इसका सीधा मतलब यह है कि अभी तक चंडीगढ़ के प्रशासनिक कर्मचारियों की सेवा शर्तें पंजाब सरकार की तरफ से पंजाब के कर्मचारियों के लिए तैयार नियमों के आधार पर तय होती थीं, और ‘यही व्यवस्था अब बदलने जा रही हैं.’

शाह ने रविवार को घोषणा की कि सेवा नियमों में अब लागू होने वाले बदलाव का मतलब होगा सेवानिवृत्ति आयु 58 वर्ष से बढ़कर 60 वर्ष (और कॉलेज प्रोफेसरों के मामले में 65 वर्ष) हो जाएगी, अतिरिक्त भत्ते और महिला कर्मचारियों को मातृत्व अवकाश की अवधि भी बढ़ जाएगी.

आप के खिलाफ ‘जुझारू रवैया’

अमित शाह के इस दावे को दोहराते हुए कि सेवा नियमों में बदलाव से कर्मचारियों को फायदा होगा, चंडीगढ़ भाजपा महासचिव रवींद्र भट्टी ने दिप्रिंट से कहा कि कर्मचारियों की तरफ से ‘लंबे समय से की जा रही मांग’ पूरी हो गई है.

उन्होंने कहा, ‘इससे न केवल नगरपालिका कर्मचारियों बल्कि केंद्र शासित प्रदेशों के सभी कर्मचारियों को लाभ होगा.’

साथ ही, भट्टी आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल पर हमला करने से भी नहीं चूके.

भट्टी ने दावा किया, ‘हमने केजरीवाल का ट्रैक रिकॉर्ड देखा है कि कैसे उन्होंने एमसीडी (दिल्ली नगर निगम) कर्मचारियों का जीना हराम कर दिया था…इसलिए केंद्र को कार्रवाई करनी पड़ी.’

भाजपा के एक दूसरे नेता ने कहा, ‘अमरिंदर सिंह (पूर्व मुख्यमंत्री) ने पंजाब में एक दोस्ताना सरकार सुनिश्चित की थी जिसे केंद्र-राज्य संबंधों के बारे में पता था. लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार की अपनी महत्वाकांक्षाओं के साथ केजरीवाल ने टकराव वाला रुख अपना रखा है…हम चंडीगढ़ नगर निगम को सशक्त बनाना चाहते हैं.’

भाजपा नेता ने कहा कि इससे पार्टी को आप के खिलाफ ‘जुझारू रवैया’ अपनाने में मदद मिलेगी.

8 जनवरी को भाजपा चंडीगढ़ नगर निगम के तीनों शीर्ष पदों—मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर—पर कब्जा जमाने में सफल रही थी. हालांकि नगर निकाय चुनावों में उसे अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी आप से कम ही सीटें मिली थीं.

चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव के नतीजों ने 27 दिसंबर को त्रिशंकु सदन की स्थिति पैदा कर दी थी, जिसमें आप ने शहर के 35 वार्डों में से 14 में और भाजपा ने 12 में जीत हासिल की थी. हालांकि इससे पहले 2016 के चुनाव में भाजपा को 20 सीटें मिली थीं. कांग्रेस ने आठ सीटें जीतीं, लेकिन इसकी एक पार्षद हरप्रीत कौर बबला बाद में भाजपा में शामिल हो गईं. शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने एक वार्ड में जीत हासिल की.

जैसा पहले उल्लेख किया गया है, पंजाब के सीएम भगवंत मान ने सोमवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की घोषणा पर यह कहते हुए कड़ी आपत्ति जताई कि यह पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के खिलाफ है.

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार, ‘चंडीगढ़ प्रशासन में चरणबद्ध तरीके से अन्य राज्यों और सेवाओं के अधिकारियों और कर्मियों को ला रही है.’

बाद में एक प्रेस कांफ्रेंस में पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल चीमा ने कहा कि आप केंद्र सरकार के इस फैसले का विरोध करेगी और इसके खिलाफ ‘सड़क से संसद तक’ लड़ेगी.

उन्होंने कहा, ‘केंद्र सरकार जानबूझकर चंडीगढ़ पर पंजाब के दावों को कमजोर करने वाले कदम उठा रही है.’ साथ ही मान की बात को दोहराते हुए यह भी कहा कि यह कदम पंजाब पुनर्गठन अधिनियम की ‘मूल भावना’ के खिलाफ है.

आप ने कहा कि चंडीगढ़ प्रशासन कर्मचारियों पर कौन-से सेवा नियम लागू होंगे, यह मसला पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966 पर आधारित है.

हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ को पृथक किए जाने के दौरान इसी कानून के तहत पंजाब की क्षेत्रीय और प्रशासनिक सीमाओं को फिर से निर्धारित किया गया था.

अधिनियम की धारा 81 से 85 तक, जो पब्लिक डोमेन में है, अखिल भारतीय सेवाओं, अन्य सेवाओं, अधिकारियों के लगातार एक ही पद पर रहने, राज्य लोक सेवा आयोगों संबंधी प्रावधानों के बारे में व्यवस्था देती हैं. हालांकि, कानून विशेष रूप से इस बात को रेखांकित नहीं करता है कि कौन से सेवा नियम किस पर लागू होने चाहिए.

पंजाब के दो वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों का कहना है कि विशिष्ट कानूनी स्वीकृति की बात की जाए तो सेवा नियमों का मामला हमेशा कुछ अस्पष्ट ही रहा है.

एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त के तहत कहा, ‘केंद्र सरकार पहले भी चाहती तो नियमों में बदलाव कर सकती थी. लेकिन उसने ऐसा करने के लिए यही समय चुना है. शायद यह उनके लिए राजनीतिक स्तर पर फायदेमंद हो.’

कुछ भाजपा नेताओं का भी यही मानना है कि इस कदम से पंजाब सरकार को कुछ परेशानी होगी, और उनकी पार्टी को कुछ लाभ मिल सकते हैं.

भाजपा के एक अन्य नेता ने कहा, ‘इस फैसले के बाद पंजाब के राज्य कर्मचारी भी चंडीगढ़ प्रशासन के कर्मचारियों के समान वेतन की मांग को लेकर आंदोलन शुरू कर सकते हैं, जिससे पंजाब पर बोझ बढ़ेगा.’

वहीं, ऐसा किसी संभावना को देखते हुए आप में थोड़ी बेचैनी है, लेकिन वरिष्ठ नेताओं ने फिलहाल इस पर चुप्पी साधना ही बेहतर समझा है.

दूसरे भाजपा नेता ने कहा कि बदलाव के संभावित चुनावी लाभ भी हैं.

उन्होंने कहा, ‘चंडीगढ़ में सरकारी कर्मचारियों की खासी तादात है. लोकसभा चुनाव में अब सिर्फ दो साल बचे हैं. किरण खेर (चंडीगढ़ से भाजपा सांसद) जनता की नाराजगी के कारण भले ही जीत न पाएं लेकिन इस फैसले से भाजपा का वोटबैंक मजबूत जरूर होगा.’

‘एक पैटर्न का हिस्सा’

पंजाब सरकार के एक दूसरे अधिकारी ने कहा कि सेवा नियम के मुद्दे को अलग-थलग करके नहीं देखा जाना चाहिए.

अधिकारी ने कहा, ‘हाल ही में केंद्र सरकार ने बीबीएमबी (भाखड़ा-ब्यास प्रबंधन बोर्ड) मुद्दे से संबंधित एक अधिसूचना जारी की है. इसे भी पंजाब के मामलों में दखल की कोशिश माना जा रहा है. हालिया घटनाक्रम इसके तुरंत बाद ही आया है. इसलिए, इसके पीछे राजनीति की बात से इंकार नहीं किया जा सकता.’

पिछले महीने, पंजाब में भाजपा को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक दलों ने बीबीएमबी में दो प्रमुख पदों पर नियुक्तियों संबंधी नियमों में संशोधन के केंद्र के फैसले पर विरोध जताया था. बीबीएमबी (पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत) एक वैधानिक निकाय है जो सतलुज और ब्यास नदियों के जल संसाधनों के प्रबंधन की जिम्मेदारी संभालता है.

चीमा ने सोमवार को अपनी प्रेस कांफ्रेंस में भी बीबीएमबी का हवाला दिया. बीबीएमबी को लेकर हंगामे का जिक्र करते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा-नीत केंद्र सरकार ‘पंजाब विरोधी फैसले’ ले रही है और ये सब कोशिशें चंडीगढ़ पर पंजाब के ‘अधिकारों’ को छीनने की रणनीति का हिस्सा हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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