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Thursday, 25 April, 2024
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मणिपुर CM के लिए बढ़ती रेस के बीच पूर्व मंत्री थोंगम बिस्वजीत ने कहा- ‘2017 तक अकेला योद्धा था’

थोंगम बिस्वजीत सिंह को मणिपुर के मुख्यमंत्री का दावेदार माना जाता है. दिप्रिंट को दिए गए एक साक्षात्कार में सिंह ने बीजेपी को खड़ा करने में अपने योगदान की चर्चा की. उन्होंने कहा, ‘पार्टी मेरे लिए सबकुछ है.

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गुवाहाटी: मणिपुर विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत के साथ बीजेपी को मिली जीत को एक हफ्ते से ज़्यादा गुजर चुके हैं. इस बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर सरगर्मी बढ़ गई है. हालिया चुनावों में बीजेपी को राज्य की 60 विधानसभा सीटों में से 32 सीटें मिली हैं.

बीजेपी ने राज्य में विधायक दल के नेता के चुनाव के लिए, सोमवार को केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण को पर्यवेक्षक और किरेन रिजिजू को सह-पर्यवेक्षक नियुक्त किया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, इस हफ्ते की शुरुआत में बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने मणिपुर के वर्तमान कार्यवाहक मुख्यमंत्री बीरेन सिंह और थोंगम बिस्वजीत सिंह को नई दिल्ली बुलाया है. थोंगम बिस्वजीत सिंह पिछली सरकार में कैबिनेट मंत्री और दो बार विधायक रह चुके हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, मणिपुर की बीजेपी प्रमुख शारदा देवी और प्रभारी संबित पात्रा भी इस मीटिंग में शामिल हुए थे.

सूत्रों के मुताबिक, बीरेन सिंह और बिस्वजीत सिंह, दोनों मुख्यमंत्री पद की रेस में हैं. इसके अलावा, कांग्रेस के पूर्व प्रमुख गोविंददास कोंथोउजाम और युमनाम खेमचंद सिंह को भी सीएम पद का दावेदार माना जा रहा है.

दिप्रिंट को गुरुवार को दिए एक साक्षात्कार में बिस्वजीत ने खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार होने की बात जाहिर नहीं होने दी. उन्होंने कहा कि मणिपुर में सरकार का नेतृत्व कौन करेगा इसका निर्णय सीतारमण और रिजिजू के आने के बाद तय होगा.

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हाल ही में दिल्ली में हुई मीटिंग के बारे में बिस्वजीत ने कहा कि मुख्यमंत्री पद को लेकर इस मीटिंग में कोई बात नहीं हुई है. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘इसको लेकर कोई भी बात नहीं हुई है. नड्डा जी (बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा) के नेतृत्व में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था और इसमें मणिपुर की टीम शामिल हुई थी. इसके बाद, हम लोगों के साथ समीक्षा बैठक की गई और 2024 के (लोकसभा) चुनाव को लेकर बातचीत हुई.’

बिस्वजीत ने खुद को साल 2015 से लेकर 2017 के बीच बीजेपी का ‘अकेला योद्धा’ बताया. साल 2015 में बीजेपी को पहली बार मणिपुर विधानसभा चुनाव में जीत मिली थी. साल 2017 में पहली बार बीजेपी राज्य में सत्ता में आई थी और बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया था.

उन्होंने कहा, ‘मैंने पार्टी को (मणिपुर में) मजबूत करने के लिए काफी मेहनत की है और इसके विकास को पक्का किया है. पार्टी मेरे लिए सब कुछ है.’


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‘मुख्यमंत्री की सीट का त्याग किया’

थोंगम बिस्वजीत सिंह ने साल 2012 में पहली बार तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर थोंगजु विधानसभा से चुनाव लड़ा.

वह चुनाव जीतने में कामयाब रहे. लेकिन, तीन साल तक टीएमसी में रहने के बाद उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और बीजेपी में शामिल हो गए. दल-बदल विरोधी कानून के तहत विधानसभा अध्यक्ष ने उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी. लेकिन, साल 2015 में हुए उपचुनाव में वह फिर से जीतने में कामयाब रहे.

बिस्वजीत ने कहा, ‘बीजेपी में काम करने की वजह से मेरी सदस्यता रद्द कर दी गई. मैंने टीएमसी छोड़ने से पहले ही बीजेपी के लिए काम करना शुरू कर दिया था.

साल 2015 में टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए खुमुकचाम जॉयकिशन ने बीजेपी को पहली बार मणिपुर विधानसभा चुनाव में जीत दिलाने में मदद की. लेकिन, साल 2016 में जॉयकिशन बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए.

बिस्वजीत ने दावा किया कि उन्हें कांग्रेस नेताओं ने बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन वह बीजेपी के लिए विश्वसनीय बने रहे.

उन्होंने कहा, ‘मैं जगह-जगह जाता था, हर किसी का दरवाजा खटखटाता था, ताकि (लोग) बीजेपी से जुड़ें. मैंने इस सबकी की तैयारी कांग्रेस को तोड़ने के लिए केंद्रीय ऑफिस से मिले निर्देशों के मुताबिक की. मैंने ऐसा करके कई कांग्रेस नेताओं को पार्टी में शामिल करवाया.’

बिस्वजीत ने मुख्यमंत्री के तौर पर बीरेन सिंह के पांच साल के कार्यकाल (2017 से 2022) पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, ‘वर्तमान कार्यवाहक मुख्यमंत्री को भी मैं ही बीजेपी में लेकर आया. यहां तक कि मैंने त्याग किया और वह मुख्यमंत्री बने. मैं हमेशा समस्याओं का हल निकालने की कोशिश करता हूं. समस्या पैदा नहीं करता.’

साल 2017 में बीरेन को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद से, बिस्वजीत और बीरेन के बीच मनमुटाव की खबरें आ रही हैं. साल 2019 में कैबिनेट में बदलाव होने के बाद, बिस्वजीत से ऊर्जा विभाग और नेशनल पीपल्स पार्टी के उपमुख्यमंत्री जॉयकुमार सिंह से वित्त विभाग की जिम्मेदारी वापस ले ली गई थी. एनपीपी, पिछली सरकार में बीजेपी की सहयोगी थी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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