चंडीगढ़: तीन विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने के नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले का पंजाब की चुनावी समीकरणों पर भारी असर पड़ने की संभावना है, जिसमें अमरिंदर सिंह-भाजपा गठजोड़ को सबसे ज्यादा फायदा होने की उम्मीद है.
इस महीने की शुरुआत में कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले अमरिंदर ने घोषणा की थी कि अगर भाजपा किसान आंदोलन का समाधान कर देती है तो वह उसके साथ चुनाव-पूर्व गठबंधन करने के लिए तैयार हैं.
अब, कृषि कानूनों वाले मुद्दे के परिदृश्य से बाहर होने के साथ ही मतदाताओं के लिए भाजपा, अमरिंदर की सहायता से, एक और विकल्प के रूप में उभरने की उम्मीद कर रही है. फिलहाल सत्तारूढ़ कांग्रेस के अलावा, आम आदमी पार्टी (आप) और शिरोमणि अकाली दल (शिअद)-बसपा गठबंधन भी इस राज्य में, जहां अगले साल की शुरुआत में चुनाव होने हैं, सत्ता पाने की दौड़ में हैं.
नीचे की पंक्तिओं में इस बात पर चर्चा की गयी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुक्रवार को कानून वापसी की घोषणा इस राज्य के विभिन्न राजनीतिक खिलाड़ियों की चुनावी संभावनाओं को कैसे प्रभावित कर सकती है.
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भाजपा
गुरुपर्व के दिन इन कानूनों को निरस्त करने की घोषणा के साथ ही मोदी ने भाजपा को राज्य में राजनैतिक वनवास से बाहर निकालने की कोशिश की है. इस पार्टी द्वारा अब अपनी एक ‘गलती’ को दूर करने का श्रेय लेने और और किसानों के सामने झुकने का फैसला करने की उम्मीद है क्योंकि इसका उद्देश्य पंजाब में बहुसंख्यक वोट बैंक के रूप में उपस्थित सिखों को लुभाना है.
पंजाब से आने वाले भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुग ने शुक्रवार को दिए अपने एक बयान में कहा, ‘किसानों के एक वर्ग द्वारा लंबे समय तक विरोध के मद्देनजर प्रधानमंत्री ने तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के मामले में असाधारण उदारता का प्रदर्शन किया है’.
किसानों ने इस राज्य में भाजपा नेताओं के लिए प्रचार करना या अपने कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें करना भी लगभग असंभव बना दिया था. हालांकि, शुक्रवार की यह घोषणा भाजपा नेताओं के लिए राहत की सांस लाने वाली बात होगी, फिर भी पंजाब में कभी भी एक प्रमुख राजनीतिक पक्ष नहीं रही इस पार्टी के लिए अपने दम पर चुनावी जीत हासिल करना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर है.
पिछले साल, भाजपा के सबसे पुराने सहयोगियों में से एक शिअद ने कृषि कानूनों के मुद्दे पर उससे अपना नाता तोड़ लिया था.
अकाली दल की सहयोगी के तौर पर भाजपा ने 117 सीटों वाली पंजाब विधानसभा में 23 और यहां की 13 संसदीय सीटों में से तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था. पंजाब में भाजपा की पकड़ शहरी एवं अर्ध-शहरी क्षेत्रों और पठानकोट, जालंधर और होशियारपुर जैसे जिलों तक सीमित है, जहां हिंदू मतदाता हावी हैं.
पंजाब में भाजपा का वोट शेयर हमेशा 10 फीसदी से कम रहा है. हालांकि 2004 के संसदीय चुनावों में ही पार्टी का वोट शेयर बढ़कर 10.5 प्रतिशत हो गया था. 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 7.18 फीसदी वोट मिले थे और 2017 में यह और अधिक घटकर 5.4 फीसदी पर आ गया था. 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को कुल वोटों का सिर्फ 8.7 फीसदी हिस्सा मिला था.
भले ही भाजपा यह चाहती हो कि पीएम मोदी को सिखों के ‘दोस्त’ के रूप में देखा जाए लेकिन इस पार्टी में राज्य स्तर के प्रमुख नेताओं की कमी है.
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अमरिंदर सिंह
सितंबर में पंजाब के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने के लगभग दो महीने बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एक नई पार्टी की स्थापना की घोषणा की और तभी उन्होंने भाजपा के साथ संभावित गठबंधन की बात की थी.
भाजपा का झुकाव भी उनके साथ गठबंधन की ओर है और पूर्व मुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद से गृह मंत्री अमित शाह के साथ दो बैठकें भी की हैं. शुक्रवार को अमरिंदर ने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को धन्यवाद दिया.
Great news! Thankful to PM @narendramodi ji for acceding to the demands of every punjabi & repealing the 3 black laws on the pious occasion of #GuruNanakJayanti. I am sure the central govt will continue to work in tandem for the development of Kisani! #NoFarmers_NoFood @AmitShah
— Capt.Amarinder Singh (@capt_amarinder) November 19, 2021
2 नवंबर को अमरिंदर ने एक नई पार्टी, पंजाब लोक कांग्रेस, के निर्माण की भी घोषणा की. हालांकि, कांग्रेस के उनके कई सहयोगी अभी भी अमरिंदर के पाले में नहीं आये हैं.
कृषि कानूनों के खिलाफ अमरिंदर का रुख और जब वह मुख्यमंत्री थे तब भी किसानों के लिए उनका द्वारा दिया गया समर्थन उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़त प्रदान करता है. चूंकि वह लगातार पंजाब में व्याप्त सुरक्षा संबंधी चिंताओं के बारे में बात कर रहे हैं, इसलिए शहरी क्षेत्रों में हिंदू मतदाताओं के बीच उनके प्रति अधिक आकर्षण होने की उम्मीद है.
अमरिंदर-भाजपा गठबंधन शहरी हिंदू वोट बटोरने में मदद कर सकता है.
इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन, चंडीगढ़ के डॉ प्रमोद कुमार कहते हैं, ‘अमरिंदर-भाजपा गठजोड़ पंजाब में अवश्य कुछ हिंदू वोटों को अपनी ओर खींचने में सक्षम होगा.’
अमरिंदर आने वाले कुछ दिनों में कांग्रेस, आप और अकाली दल के कई असंतुष्ट नेताओं को अपनी पार्टी में लाने की उम्मीद कर रहे हैं.
अमरिंदर खेमे के सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस द्वारा उम्मीदवारों की सूची जारी होने के बाद ही वहां से नेताओं का पलायन शुरू होगा, क्योंकि कई मौजूदा विधायकों, यहां तक कि मंत्रियों के भी टिकट पाने में विफल रहने की संभावना है.
पिछले महीने दिप्रिंट के साथ एक साक्षात्कार में अमरिंदर ने संकेत दिया था कि वह किसान नेताओं के साथ भी राजनीतिक गठजोड़ करना चाहते हैं. अब किसान आंदोलन के समाप्त होने के बाद अमरिंदर द्वारा कुछ प्रमुख किसान नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए अपने पाले में खींचने की उम्मीद है.
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कांग्रेस
आंदोलन के इस संभावित अंत ने सत्तारूढ़ कांग्रेस को एक साथ कई सारे झटके दिए हैं, जो क्योंकि यह अब कृषि कानूनों के मुद्दे पर भी मोदी सरकार की आलोचना नहीं कर सकती है.
प्रमोद कुमार कहते हैं, ‘अमरिंदर-भाजपा गठबंधन कांग्रेस के लिए एक बड़ा काम बिगाड़ने वाला कारक साबित होगा, क्योंकि यह उनसे वोट शेयर के उस हिस्से को छीन सकता है जिसे (चरणजीत सिंह) चन्नी सरकार लुभा रही थी. साथ ही, किसानों की बड़ी जीत धर्म-जाति से संबंधित मुद्दों को वास्तविक मुद्दों में बदल देगी.’
वे कहते हैं, ‘अब सभी पार्टियां किसानों की अन्य लंबित चिंताओं, दवाओं, शिक्षा और स्वास्थ्य के संदर्भ में क्या पेशकश करती हैं, यही मुद्दा सबसे आगे रहेगा. कांग्रेस जिन दो कारकों पर ध्यान दे रही थी- दलित मुख्यमंत्री और बेअदबी- वे सब अब पृष्ठभूमि में चले जायेंगे.’
एक मात्र राजनीतिक लाभ जो उन्हें मिल सकता है वह है कुछ किसान नेताओं को चुनाव से पहले पार्टी में शामिल करवाना.
इस बीच, पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने ‘तीनों काले कानूनों’ को निरस्त करने के पीएम मोदी के फैसले का स्वागत किया है.
Much delayed but I welcome Centre's decision to repeal three black farm laws. A memorial will be constructed to honour the sacrifices of the farmers during the ‘Sangarsh’. I urge PM @narendramodi ji to make MSP a statutory right. 1/2
— Charanjit S Channi (@CHARANJITCHANNI) November 19, 2021
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आम आदमी पार्टी
आम आदमी पार्टी (आप), जो 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी, को तगड़ा लाभ होने की उम्मीद है क्योंकि किसानों के बीच का एक बड़ा समर्थक समूह आप समर्थक भी थे. सूत्रों का कहना है कि पार्टी किसान नेताओं में से किसी एक को मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में भी ढूंढ सकती है.
हालांकि, प्रमोद कुमार ने कहा कि आप के इस चुनावी राज्य में बहुत अधिक प्रभाव पैदा करने की संभावना नहीं है.
वे कहते हैं, ‘कम पिछले अनुभव वाली पार्टियों का प्रभाव भी बहुत कम पड़ता है. आप ने हमेशा पंजाब को एक और दिल्ली, जहां प्रवासियों की आबादी को मुफ्त की चीजों से लुभाया जा सकता है, के रूप में समझने की गलती की है. अब आंदोलन की समाप्ति के साथ ही आप से प्रदर्शनकारियों को जो समर्थन और सहायता मिली थी, वह बस उतने तक ही सीमित रहेगी. मतदाता अब तेजी के साथ वास्तविक मुद्दों की ओर रुख करेंगे, जहां आप के पास उन्हें देने के लिए बहुत कुछ खास नहीं है.’
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अकाली दल- बसपा
कृषि कानूनों को निरस्त करने से अकाली-बसपा गठबंधन को भी काफी राहत मिल सकती है क्योंकि उन्हें भी इन कानूनों के विरोध के बीच पूरे राज्य भर में प्रचार करना मुश्किल हो रहा था. अकाली दल को एक ऐसी पार्टी के रूप में देखा जा रहा था जिसने कृषि कानून बनाए जाने के समय भाजपा का समर्थन किया था.
प्रमोद कुमार ने कहा, ‘अब अकाली नेता भी अपने कैडर को फिर से अपने पास वापस लाने के लिए उन तक पहुंचने में सक्षम होंगे. साथ ही, आंदोलन का अंत सभी राजनीतिक दलों को एक तरह से समान धरातल पर ले आया है. हर कोई किसी न किसी तरह से कृषि कानूनों का समर्थन करने के लिए समान रूप से दोषी है.’
प्रमोद कुमार ने कहा, ‘कांग्रेस ने इसे अपने घोषणापत्र में शामिल किया था, आप ने भी इसे दिल्ली में अधिसूचित किया था, और अकाली तो उस केंद्रीय कैबिनेट का हिस्सा थे जिसने इसे मंजूरी दी थी. अब, सारा ध्यान इस बात पर केंद्रित होगा कि ये पार्टियां पंजाब में किसानों के अन्य गंभीर मुद्दों को हल करने के लिए क्या-क्या वादे करती हैं और ये पार्टियां राज्य में कृषि क्षेत्र के पुनर्गठन के लिए किस तरह का रोड मैप पेश करती हैं.’
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