गुरुग्राम: लोकसभा चुनावों में अपना खाता खोलने में तक में विफल रहने और केवल 0.87 प्रतिशत वोट शेयर दर्ज करने के साथ, जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) को हरियाणा में खतरे का सामना करना पड़ रहा है और इससे भी बदतर, राज्य चुनाव से पहले संगठित होने के लिए समय बहुत कम बचा है.
चूंकि, राज्य में चुनाव अक्टूबर में होने हैं, इसलिए जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला के समर्थक प्रार्थना कर रहे होंगे कि पूर्व उपमुख्यमंत्री 2019 की तरह ही प्रदर्शन करें, जब संसदीय चुनावों में एक भी सीट नहीं जीतने के बाद विधानसभा चुनावों में उन्होंने 10 सीटें जीती थीं.
जेजेपी अक्टूबर 2019 से मार्च 2024 तक चार साल से अधिक समय तक हरियाणा में भाजपा के साथ गठबंधन में सत्ता में रही, लेकिन, क्षेत्रीय पार्टी द्वारा लोकसभा सीटों में हिस्सेदारी के लिए दबाव डालने के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने जेजेपी से संबंध तोड़ लिए.
इसके बाद दुष्यंत ने हरियाणा की सभी 10 संसदीय सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. हालांकि, उन सभी का प्रदर्शन बहुत खराब रहा — किसी को भी अपनी ज़मानत बचाने तक के लिए पर्याप्त वोट नहीं मिले.
उम्मीदवारों को अपनी ज़मानत बचाने के लिए कम से कम वैध मतों का छठा हिस्सा हासिल करना होता है. हरियाणा के अधिकांश संसदीय क्षेत्रों में 12 लाख से अधिक वैध मत पड़े.
जेजेपी ने दुष्यंत की मां और दो बार की विधायक नैना चौटाला को हिसार से मैदान में उतारा था, लेकिन उन्हें 22,032 वोट मिले. भिवानी-महेंद्रगढ़ से उम्मीदवार पूर्व विधायक राव बहादुर सिंह को सिर्फ 15,265 वोट मिले.
गुड़गांव से गायक-रैपर राहुल यादव फाजिलपुरिया को सिर्फ 13,278 वोट मिले. चौटाला के गृह जिले सिरसा में रमेश खटक को सिर्फ 20,080 वोट मिले.
राजनीतिक विश्लेषक पवन कुमार बंसल ने कहा कि जेजेपी और इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) दोनों ने संसदीय चुनाव में खराब प्रदर्शन किया है, जिन्हें क्रमशः 0.87 प्रतिशत और 1.74 प्रतिशत वोट मिले हैं.
बंसल ने दिप्रिंट से कहा, “हालांकि, दोनों पार्टियों के बीच बड़ा अंतर यह है कि इनेलो नेता अभय सिंह चौटाला ने किसानों के समर्थन में विधायक पद से इस्तीफा दे दिया, जबकि जेजेपी पर किसान विरोधी होने का ठप्पा लगा हुआ है. पार्टी ने 2019 में भाजपा के खिलाफ किसानों के वोट मांगे और फिर सरकार बनाने के लिए उसी पार्टी का समर्थन किया. जब किसान एक साल से अधिक समय तक दिल्ली में प्रदर्शन करते रहे, तब भी जेजेपी सत्ता का आनंद लेती रही.”
उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव में इनेलो का भविष्य उसके सुप्रीमो और ओम प्रकाश चौटाला के स्वास्थ्य पर निर्भर करेगा, जबकि जेजेपी का भविष्य अंधकारमय होने वाला है. ओपी चौटाला दुष्यंत के दादा हैं.
हालांकि, जेजेपी सुप्रीमो अजय सिंह चौटाला ने दावा किया कि संसदीय चुनाव अलग होते हैं और विधानसभा चुनाव के समय स्थिति काफी अलग होगी.
चौटाला ने बुधवार को दिप्रिंट से कहा, “इस बार लोगों ने भाजपा को दंडित करने के लिए कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया. यहां तक कि हमारे अपने समुदाय के लोगों ने भी हमें बताया कि इस बार वे अपना वोट बर्बाद नहीं करना चाहेंगे, क्योंकि इससे भाजपा को मदद मिलेगी. विधानसभा चुनाव आने पर मुद्दे पूरी तरह से अलग होंगे और मुझे यकीन है कि जेजेपी अपने 2019 के प्रदर्शन से कहीं बेहतर प्रदर्शन करेगी.”
जेजेपी की स्थापना दिसंबर 2018 में ओपी चौटाला परिवार में पारिवारिक दरार के बाद हुई थी. 23 सितंबर, 2018 को गोहाना में पार्टी के संरक्षक चौधरी देवीलाल की जयंती के अवसर पर उनके समर्थकों द्वारा एक रैली में शक्ति प्रदर्शन के बाद दुष्यंत और उनके छोटे भाई दिग्विजय को इनेलो से निलंबित कर दिया गया था.
जेजेपी ने 2019 में जींद विधानसभा उपचुनाव में अपनी चुनावी शुरुआत की, लेकिन दिग्विजय विजेता के मंच पर नहीं रुके. हालांकि, वे कांग्रेस के रणदीप सिंह सुरजेवाला को तीसरे स्थान पर धकेलने में सफल रहे, जबकि भाजपा के कृष्ण मिड्ढा चुनाव जीत गए.
2019 के लोकसभा चुनावों में जेजेपी 4.9 प्रतिशत वोट शेयर के साथ खाली हाथ रही. दुष्यंत हिसार से हार गए, एक सीट जो उन्होंने 2014 में आईएनएलडी उम्मीदवार के रूप में जीती थी, भाजपा के बृजेंद्र सिंह से.
लेकिन, उस साल अक्टूबर में जेजेपी ने 14.8 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 10 विधानसभा सीटें जीतीं और हरियाणा में गठबंधन सरकार चलाने के लिए भाजपा — जिसने 90 सदस्यीय सदन में 40 सीटें जीतीं — के साथ साझेदारी की.
यह दोस्ती इस साल मार्च में खत्म हो गई जब भाजपा ने राज्य में सत्ता परिवर्तन के दौरान दुष्यंत और जेजेपी के मंत्रियों को हटा दिया, जिसके तहत वरिष्ठ सहयोगी ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को नियुक्त किया.
अपने अभियान के दौरान, दुष्यंत और उनकी पार्टी के उम्मीदवारों को भाजपा उम्मीदवारों की तरह ही किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा. अप्रैल में दुष्यंत के पिता अजय सिंह चौटाला ने सोमवार को इनेलो में फिर से शामिल होने की इच्छा व्यक्त की थी, बशर्ते उनके पिता और इनेलो प्रमुख ओ.पी. चौटाला उन्हें निमंत्रण दें. अब यह देखना बाकी है कि पांच साल पुरानी पार्टी इस कठिन परिस्थिति से खुद को बाहर निकालने के लिए क्या रास्ता अपनाती है.
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