मुंबई: अजीत पवार का अचानक बिना किसी कारण के गायब हो जाना हमेशा खबर बन जाता है. अभी इस महीने की शुरुआत का ही उदाहरण लें, जब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता ने अपने दिन के कार्यक्रम को रद्द कर दिया और कथित तौर पर सबकी पहुंच से बाहर हो गए.
उनके अचानक यूं गायब होने की खबरें क्यों सुर्खियों में आ जाती हैं, इसके कई उदाहरण हैं.
सितंबर 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से लगभग एक महीने पहले, पवार ने विधानसभा अध्यक्ष को विधायक के रूप में अपना इस्तीफा ईमेल किया और फिर कुछ दिनों के लिए सबकी पहुंच से बाहर हो गए.
कथित महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक घोटाले से संबंधित एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय की तरफ से उनके चाचा और राकांपा प्रमुख शरद पवार और अन्य राकांपा और कांग्रेस नेताओं के साथ-साथ उनका खुद का नाम आने के बाद इस्तीफा देना और फिर गायब हो जाना सामने आया था.
वरिष्ठ पवार ने पत्रकारों के सवालों का यह कहते हुए बचाव किया था कि जिस तरह से परिवार को ‘निशाना’ बनाया जा रहा है, शायद उससे उनका भतीजा काफी परेशान था.
फिर चुनाव के बाद राज्य में एक त्रिशंकु सरकार बनाने की कवायद हुई. उस समय शरद पवार कांग्रेस, एनसीपी और अविभाजित शिवसेना को महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के रूप में एक साथ लाने की कोशिश कर रहे थे, तो अजित पवार दूसरी बार फिर से गायब हो गए. वह राजभवन में भारतीय जनता पार्टी के देवेंद्र फडणवीस के साथ फिर से प्रकट हुए.
एनसीपी के कुछ विधायकों के समर्थन के साथ जूनियर पवार के समर्थन ने फडणवीस को राज्य में 72 घंटे तक चलने वाली सरकार बनाने में मदद की थी.
इसलिए 7 अप्रैल को, जब पवार कथित तौर पर पुणे में एक कार्यक्रम को रद्द करने के बाद पहुंच से बाहर हुए, तो उनके एमवीए गठबंधन को छोड़ने, भाजपा के साथ हाथ मिलाने और महाराष्ट्र में एक और राजनीतिक खेल खेलने की संभावना की अफवाहें उड़ने लगीं.
नाराज पवार ने बाद में साफ किया कि वह घर पर आराम कर रहे थे, ‘एसिडिटी’ की समस्या काफी बढ़ गई थी, सो वह उसके इलाज में व्यस्त थे. उन्होंने टेलीविजन चैनलों पर यह कहते हुए जमकर निशाना साधा कि वो ‘उन्हें बदनाम करने’ में लगे हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि हो सकता है पवार वास्तव में एसिड रिफ्लक्स से परेशान हो, लेकिन चार बार के महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम के विभिन्न रहस्यमयी कदमों ने उनकी बातों पर विश्वास न करने का पर्याप्त आधार दिया है.
विश्लेषकों के मुताबिक, फिलहाल की स्थिति सिर्फ एक पिच तैयार करने के लिए है. आने वाले समय में संभावनाओं के लिए उन्होंने अपने दरवाजे खुले रखें हैं. हो सकता है कि इस बीच अपने सहयोगियों को अनुमान लगाकर वह अपनी पार्टी और एमवीए के भीतर अपने लिए अधिक पावर के लिए सौदेबाजी करें.
मुंबई के राजनीतिक टिप्पणीकार अभय देशपांडे ने दिप्रिंट को बताया, ‘भतीजा ठीक वही कर रहा है जो उसके चाचा करने के लिए जाने जाते हैं. वह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के साथ थे, लेकिन बोलते भाजपा के पक्ष में थे.’
उन्होंने कहा, ‘वह (अजीत पवार) किसी भी संभावना के लिए पिच तैयार कर रहे हैं. ठीक वैसे ही, जैसे उनके चाचा ने करना अकलमंदी समझा था.’
हालांकि बारामती के विधायक पवार को लेकर अटकलें यह भी लगाई जा रही हैं कि वह शायद एकनाथ शिंदे की तरह एक विद्रोह का नेतृत्व करते हुए भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं. खुद पवार या राकांपा के वरिष्ठ नेताओं ने इन अफवाहों की आंच को कम करने के लिए मजबूती से खंडन से नहीं किया है.
पिछले हफ्ते पत्रकारों से बात करते हुए एनसीपी के महाराष्ट्र प्रमुख जयंत पाटिल ने अफवाहों को ‘निराधार’ बताया. जबकि शरद पवार ने एनसीपी द्वारा संभावित रूप से बीजेपी को समर्थन दिए जाने के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया.
एनसीपी की बारामती सांसद और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने संवाददाताओं से कहा कि वह अफवाहों पर विश्वास नहीं करती हैं. हालांकि उन्होंने यह भी कहा, ‘अभी धूप है, लेकिन मैं इसका अनुमान नहीं लगा सकती कि 15 मिनट में बारिश होगी या नहीं.’
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अजीत पवार की रहस्यमय चालें
2019 में महाराष्ट्र में फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार का समर्थन करने के तीन दिनों के भीतर, अजीत पवार राकांपा में लौट आए थे. तब राज्य विधानमंडल के एंट्री गेट पर चचेरे भाई सुले ने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया था.
हालांकि वैधानिक तौर पर वह किसके साथ है यह साफ होने के बावजूद पवार ने हवाओं में रहस्य को बरकरार रखा है.
मुंबई विश्वविद्यालय के एक शोधकर्ता डॉ संजय पाटिल ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुझे लगता है कि अजीत पवार अपनी पार्टी के भीतर लगातार सौदेबाजी कर रहे हैं. हो सकता है कि वह पार्टी में ज्यादा पावर और ज्यादा नियंत्रण के लिए बात कर रहे हों. उनकी रहस्यमयी चालों के पीछे यही कारण है. लेकिन ऐसा लगता है कि शरद पवार इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं.’
जब वह महाराष्ट्र की एमवीए सरकार (2019 से 2022) के हिस्से के रूप में डिप्टी सीएम थे, तो उनके द्वारा उठाए गए कदमों ने पार्टी में कई लोगों की भौहें तान दी थीं, मसलन हिंदुत्व विचारक विनायक दामोदर सावरकर के चित्र पर माल्यार्पण करना और भारतीय जनसंघ के विचारक दीनदयाल उपाध्याय को श्रद्धांजलि ट्वीट करना और फिर उसे डिलीट कर देना.
जून 2022 में एकनाथ शिंदे के विद्रोह के बाद शिवसेना के विभाजन के बाद एमवीए भी सत्ता से चली गई और अगले महीने पवार को महाराष्ट्र में विपक्ष का नेता नामित किया गया. लेकिन उनके राजनीतिक इरादों के बारे में फिर भी रहस्य बना रहा.
नाम न छापने की शर्त पर कांग्रेस के एक वरिष्ठ विधायक ने कहा, ‘सभी विपक्षी विधायकों के बीच एक आम भावना है कि अजीत दादा (शिवसेना-भाजपा) सरकार को उतने आक्रामक तरीके से नहीं घेर रहे हैं, जितना कि उन्हें विपक्ष के नेता के रूप में करना चाहिए. वह भाजपा पर नरमी बरत रहे हैं ताकि उन्हें केंद्रीय एजेंसियों के गुस्से का सामना न करना पड़े.’
कथित महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पिछले हफ्ते प्रवर्तन निदेशालय की पहली चार्जशीट ने इस संदेह को और मजबूत कर दिया है. कई अन्य विपक्षी विधायकों ने दिप्रिंट से बात करते हुए इस ओर इशारा किया है.
चार्जशीट में आरोपियों में से एक के रूप में पवार का नाम नहीं था. लेकिन पवार ने खुद मीडिया से कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें ‘क्लीन चिट’ दे दी गई है. जांच अभी भी चल रही है.
ईडी ने सहकारी चीनी मिलों को बैंक द्वारा लोन दिए जाने के मामले में अनियमितता बरतने का आरोप लगाते हुए कहा है कि कारखानों की वित्तीय स्थिति कमजोर होने के बावजूद, कई मामलों में बिना किसी प्रतिभूति के लोन अप्रूव किया गया. उस समय कारखानों की हालत खराब दिखाई गई और कथित तौर पर कुछ राजनेताओं के करीबी रिश्तेदारों को उन्हें बेच दिया गया.
मोदी की डिग्री का मुद्दा और ईवीएम
राकांपा के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा कि पार्टी के भीतर भी कई लोग यह नहीं समझ पाते हैं कि अजित पवार कुछ ऐसी बातें क्यों करते हैं या कहते हैं जो विवाद पैदा करती हैं.
ऐसा ही एक उदाहरण उस समय का है, जब पूर्व डिप्टी सीएम पिछले साल सितंबर में एनसीपी के राष्ट्रीय अधिवेशन से बिना भाषण दिए चले गए थे. उनके समर्थकों ने उनके पक्ष में नारे लगाए थे.
जब तक वे वापस लौटे, शरद पवार ने अपनी समापन टिप्पणी शुरू कर दी थी. इस घटना के बाद राकांपा के भीतर एक संभावित आंतरिक झगड़े को लेकर कानाफूसी शूरू हो गई थी. क्योंकि अजीत पवार की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के कारण अक्सर उनके और शरद पवार के बीच खींचातानी होती रहती है और उनकी बेटी सुले के साथ टकराव बना रहता है.
अजीत पवार ने बाद में साफ किया कि उनका ‘वॉकआउट’ वास्तव में ‘वॉशरूम ब्रेक’ के लिए था और इसे किसी ओर नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए और वैसे भी वह राष्ट्रीय सम्मेलनों में कभी नहीं बोलते हैं.
पिछले हफ्ते पवार की कथित पल-पल बदलने की आदत और भाजपा के साथ गठजोड़ की संभावना एक बार फिर महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य पर हावी हो गई है.
अडानी समूह के खिलाफ अमेरिका स्थित शॉर्टसेलर हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों की संयुक्त संसदीय समिति की जांच के पक्ष में शरद पवार के नहीं होने के विवाद के बारे में बोलते हुए बारामती विधायक ने मीडिया को बताया था कि पार्टी के भीतर आखिरी फैसला शरद पवार का ही होता है.
हालांकि, उसी समय अजीत पवार ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के भरोसेमंद होने की बात भी कही. जबकि शरद पवार ने पिछले महीने ही विपक्षी दलों को चुनाव के दौरान कथित रूप से छेड़छाड़ की गई मशीनों पर चर्चा करने के लिए बुलाया था.
शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) प्रमुख उद्धव ठाकरे द्वारा इस महीने की शुरुआत में छत्रपति संभाजीनगर में एमवीए की संयुक्त रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कथित रूप से नकली यूनिवर्सिटी डिग्री के विवाद को उठाने के बावजूद अजीत पवार की इस मुद्दे की बर्खास्तगी से भी कुछ भौहें तन गईं. उन्होंने भाजपा की सफलता का श्रेय ‘मोदी के जादू’ को देते हुए मोदी की प्रशंसा की थी.
अजीत पवार के विश्वसनीय एनसीपी के एक विधायक ने दिप्रिंट से बात करते हुए पवार के भाजपा में शामिल होने की बात को ‘मीडिया की उपज’ बताया.
विधायक ने कहा, ‘सभी को लगता है कि शिवसेना विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बहुत लंबे समय तक लंबित नहीं रखा जाएगा और इस सरकार के खिलाफ फैसला जाने की संभावनाएं हैं.’
नेता उन अयोग्यता याचिकाओं का जिक्र कर रहे थे जो शिवसेना (यूबीटी) और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने पिछले साल ठाकरे के नेतृत्व वाली पार्टी के खिलाफ शिंदे के विद्रोह के बाद एक दूसरे के विधायकों के खिलाफ दायर की थी.
उन्होंने कहा, ‘कई नेता बयान दे रहे हैं जो उन्हें एक राजनीतिक शून्य को अवसर में बदलने में मदद कर सकते हैं. इसमें कुछ अलग नहीं है. लेकिन अजीत दादा एक स्पष्टवादी व्यक्ति हैं और उनके करीबी हममें से कुछ लोगों को भाजपा के साथ हाथ मिलाने की कोई योजना नहीं है.’
जैसा चाचा वैसा भतीजा
अजीत पवार की चालों को डिकोड करने की कोशिश करने वाले राजनीतिक पर्यवेक्षकों को ये अफवाहें अक्सर एक स्क्रिप्ट की तरह लगती हैं जिसे पहले भी पढ़ा जा चुका हैं. लेकिन इसमें किरदार अलग था- राकांपा प्रमुख शरद पवार.
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले और चुनाव के महीनों बाद तक ऐसा लग रहा था कि शरद पवार कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) का हिस्सा होने के बावजूद भाजपा के करीब आ रहे हैं.
आखिरकार, उस साल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले, एनसीपी ने कांग्रेस के साथ अपना 15 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया और राज्य का चुनाव अकेले लड़ा. और चुनाव के बाद उसने राज्य में सरकार बनाने के लिए भाजपा को बाहरी समर्थन की पेशकश की.
हालांकि, जब इस बदलाव पर अमल नहीं हो सका तो एनसीपी विपक्षी बेंच पर कांग्रेस के साथ बैठ गई. लेकिन पवार ने देश के लिए पीएम की प्रतिबद्धता की प्रशंसा करते हुए मोदी कि लिए अपना प्रस्ताव खुला रखा. इसके बदले में बाद में, अस्सी वर्षीय को एक ऐसे नेता के रूप में वर्णित किया गया, जिसके पास अनुभव का भंडार था, जिसने राजनीति में अपने शुरुआती दिनों में उनका साथ दिया था.
राजनीतिक टिप्पणीकार हेमंत देसाई ने दिप्रिंट को बताया, ‘एक तरह से अजीत पवार की हरकतें शरद पवार की तरह ही हैं, लेकिन दोनों नेताओं के बीच अभी भी काफी अंतर है.
उन्होंने कहा, ‘शरद पवार अपनी विचारधारा पर बहुत मजबूत हैं और जिस तरह से बीजेपी आक्रामक रूप से हिंदुत्व विचारधारा का समर्थन कर रही है, उसे देखते हुए भाजपा के साथ सीधे गठबंधन नहीं होगा. जबकि अजीत पवार एक अधिक व्यावहारिक राजनेता हैं.’ वह आगे बताते हैं, ‘यह सच है कि अजीत पवार के अगले कदम की भविष्यवाणी करना मुश्किल है. अगर वह वास्तव में अफवाहों को खत्म करना चाहते थे, तो वह एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सकते थे और स्थिति को साफ कर सकते थे.
अजित पवार ने अब तक इस मुद्दे पर जो कुछ भी कहा है, वह कार्यकर्ता अंजलि दमानिया के एक ट्वीट पर पत्रकारों के सवालों का एक व्यंग्यात्मक जवाब है, जिन्होंने कहा था कि उन्होंने सुना है कि ‘15 विधायक अयोग्य हो जाएंगे और अजीत पवार भाजपा के साथ जा रहे हैं.’
पवार ने दमानिया का जिक्र करते हुए बस इतना कहा, ‘मेरे जैसा छोटा पार्टी कार्यकर्ता इतनी बड़ी शख्सियत के बारे में क्या कहेगा?’
मगर देसाई का मानना है कि असल कहानी अफवाहों से कहीं ज्यादा बड़ी है.
देसाई ने कहा, ‘हर कोई शरद पवार के बाद के युग में एनसीपी में अजित पवार की ‘जगह’ के बारे में बात करता है. लेकिन एक व्यावहारिक राजनेता होने के नाते वह जानते हैं कि यह सिर्फ इतना ही नहीं है, बल्कि पार्टी के सुप्रीमो के बिना एनसीपी के राजनीतिक दायरे के बारे में भी है.’ वह आगे कहते हैं, ‘यही परिदृश्य है जिसके लिए अजित पवार तैयारी कर रहे हैं.’
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(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य / संपादन: आशा शाह )
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