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Friday, 1 November, 2024
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पवार झगड़े में किसका साथ दें समझ नहीं पा रहे, कई NCP विधायक विधानसभा सत्र के दौरान लॉबी में बैठे रहे

एनसीपी के कई विधायक 4 अगस्त को समाप्त हुए 3-हफ्ते तक चले मानसून सत्र में बमुश्किल शामिल हुए. जो लोग सदन में बैठे, उन्होंने एक-दूसरे पर कटाक्ष करने से परहेज किया.

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मुंबई: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता अजीत पवार द्वारा अपनी पार्टी से नाता तोड़कर महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल होने के लगभग एक महीने बाद, एनसीपी के अधिकांश विधायक अभी भी असमंजस में हैं कि किस खेमे का समर्थन किया जाए. यह महाराष्ट्र विधानसभा के हाल में समाप्त हुए सत्र के दौरान साफ साफ दिखा – पवार के कदम के बाद यह पहला मौका था जिसमें राकांपा के अधिकांश विधायक मुश्किल से ही शामिल हुए.

पार्टी सुप्रीमो शरद पवार के खेमे के एक वरिष्ठ एनसीपी विधायक ने दिप्रिंट को बताया कि तीन सप्ताह का मानसून सत्र, जो 4 अगस्त को समाप्त हुआ, कई विधायक केवल अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए पहुंचे.

उन्होंने कहा, “जिन्होंने पाला बदल लिया है वे परेशान हैं. हम सदन के अंदर उनकी उपस्थिति की गिनती कर रहे थे और मुश्किल से कुछ ही लोग थे – आप उन्हें अपनी उंगलियों पर गिन सकते हैं. वे वहां लॉबी में थे, लेकिन सदन के अंदर नहीं; अंदर वाले भी बस दो-चार मिनट के लिए आते और चले जाते. कई विधायकों की कोई सक्रिय भागीदारी की. सभी भ्रमित हैं.”

2 जुलाई को, अजित पवार अपने चाचा शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी – जो कि विपक्षी महा विकास अघाड़ी का हिस्सा है – से अलग हो गए और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली राज्य सरकार में उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. इसके बाद, उन्हें और उनके खेमे के कई एनसीपी विधायकों को कैबिनेट विभाग आवंटित किए गए, जिसमें खुद पवार को वित्त और योजना मंत्रालय मिला. उन्होंने एनसीपी के अधिकांश विधायकों का समर्थन होने का दावा किया है, और पार्टी के नाम और प्रतीक पर दावा करने की कोशिश की है.

हालांकि, एनसीपी के दोनों खेमों के सूत्रों ने कहा कि कुछ विधायकों ने सार्वजनिक रूप से एक गुट का समर्थन किया है, लेकिन कई अभी भी तटस्थ हैं और उन्होंने किसी भी पक्ष का समर्थन करते नजर आने से बचने के लिए विधानसभा सत्र के दौरान सदन में नहीं बैठने का फैसला किया है. गौरतलब है कि किसी भी खेमे ने यह घोषणा नहीं की है कि कितने विधायक उनके साथ हैं.

वरिष्ठ राकांपा नेता अनिल देशमुख ने कहा,“यह सच है कि कई लोग विधानसभा में आए लेकिन सदन के अंदर नहीं बैठे. हालांकि, उनकी अनुपस्थिति का कारण अभी तक ज्ञात नहीं है.”

विधानसभा में एनसीपी ऑफिस के एक अधिकारी के अनुसार, पार्टी उपस्थिति रिकॉर्ड बनाए रखने में बहुत खास नहीं रही है क्योंकि “भ्रम की स्थिति है”.

विधान भवन के रिकॉर्ड के अनुसार – जहां राज्य विधानमंडल के दोनों सदन स्थित हैं – 82 प्रतिशत विधायकों ने मानसून सत्र में भाग लिया. हालांकि, विधान भवन ने पार्टी-वार विवरण साझा करने से इनकार कर दिया.

एनसीपी के जो विधायक सदन में बैठे, उन्होंने भी एक-दूसरे पर निशाना साधने से परहेज किया.

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई ने कहा, “इसका कारण यह हो सकता है कि कई विधायक अभी भी निर्णय नहीं ले पा रहे हैं और दोनों खेमे अधिक विधायकों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं.”

देसाई ने कहा, “वे अभी भी नहीं जानते कि क्या करना है. जिन लोगों ने पाला बदल लिया है, उन्हें लगता है कि उन्हें फिर से चुने जाने के लिए अभी भी शरद पवार की जरूरत पड़ सकती है, जबकि जो लोग तटस्थ रहे हैं, उन्हें लगता है कि अगर वे अपनी निष्ठा दिखाते हैं, तो उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए धन नहीं मिल सकता है, ”.


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सेना विभाजन के साथ तुलना करें

पिछले साल भी विधानसभा का मानसून सत्र शिवसेना में टूट के बाद आयोजित किया गया था. लेकिन एनसीपी खेमों का संयमित आचरण अब पिछले साल प्रतिद्वंद्वी सेना के बीच सार्वजनिक कटुता के बिल्कुल विपरीत है, जब उद्धव ठाकरे गुट ने शिंदे के नेतृत्व वाले विद्रोहियों पर “देशद्रोही” के रूप में हमला किया था.

ठाकरे खेमे ने विद्रोहियों के खिलाफ आक्रामक तरीके से आरोप लगाए, आरोप लगाया कि विभाजन इंजीनियर किया गया था और यह विचारधारा में अंतर का नतीजा नहीं था, बल्कि प्रत्येक विधायक को 50 करोड़ रुपये के भुगतान के साथ रिश्वत दी गई थी – और शिंदे खेमे ने उसी तरह से जवाबी हमला किया. दोनों पक्षों ने आधिकारिक शिव सेना के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए भी लड़ाई लड़ी, चुनाव आयोग (ईसी) ने अंततः शिंदे खेमे के दावे को मान्यता दी.

एनसीपी के मामले में, अजीत पवार के समूह ने इसी तरह पार्टी के नाम और प्रतीक पर दावा करते हुए चुनाव आयोग को पत्र लिखा है, और आयोग ने शरद पवार गुट से जवाब मांगा है.

हालांकि, शरद पवार के वफादार जितेंद्र अवहाद ने कहा है कि पार्टी में कोई विभाजन नहीं है और अजित पवार खेमे से सबूत मांगा है. मीडिया रिपोर्ट्स में उनके हवाले से कहा गया, ”हमारी पार्टी में कोई विभाजन नहीं हुआ है. हमने भारत के चुनाव आयोग को पत्र लिखकर बताया है कि उन्हें भेजे गए पत्र पर संज्ञान लेने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हम एकमात्र एकल पार्टी हैं.

कन्फ्यूज्ड विधायक

एनसीपी के कई विधायक पूरे सत्र के दौरान गायब रहे, हालांकि उन्हें सदन के बाहर एक-दूसरे से बातचीत करते देखा गया.

एक विधायक जिन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई लेकिन सत्र में भाग नहीं लिया, उन्होंने यह कहने से इनकार कर दिया कि वह सदन में क्यों नहीं थे. उन्होंने कहा, “मैं वहां सभा के लिए गया था, मैं दूसरों के बारे में नहीं जानता. सुना था कि विधायक चेतन तुपे अस्वस्थ हैं. बाकी के बारे में नहीं पता. मैं वहां था.”

दिप्रिंट ने हडपसूर के विधायक तुपे तक पहुंचने की कोशिश की, जो एक भी बैठक में शामिल नहीं हुए और अभी तक किसी भी खेमे के प्रति अपनी निष्ठा की घोषणा नहीं की है. हालाँकि, कॉल अनुत्तरित रहीं.

सत्र के पहले दिन, 17 जुलाई को, टुपे ने अपने सोशल मीडिया पेजों पर पोस्ट किया कि वह अस्पताल में हैं, किसी बीमारी से उबर रहे हैं, और कुछ दिनों तक गायब रहेंगे. सत्र समाप्त होने के तुरंत बाद उन्होंने अपनी सामाजिक व्यस्तताओं के बारे में पोस्ट करना शुरू कर दिया.

इस बीच सदन के अंदर एनसीपी मंत्रियों के अलावा विधायक नरहरि ज़िरवाल और सरोज अहिरे सरकार के साथ दिखे, जबकि अनिल देशमुख, जयंत पाटिल, जितेंद्र अवहाद, राजेश टोपे और रोहित पवार नियमित रूप से विपक्ष की बेंच पर बैठे.

दूसरे सप्ताह के पहले दिन, सांसद सुनील तटकरे – जो अब अजीत पवार गुट द्वारा नियुक्त प्रदेश अध्यक्ष हैं – और शरद पवार गुट के उनके समकक्ष विधायक जयंत पाटिल को एक-दूसरे को गले लगाते देखा गया.

बाद में, पाटिल ने कहा कि उन्होंने एक चुटकुला साझा करने के बाद तटकरे को गले लगाया था और राजनीतिक आधार पर कोई अन्य निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिए.

उन्होंने कहा,“हमारे बीच एक निजी मजाक के बाद हमने एक-दूसरे को गले लगा लिया. हालांकि हम अलग-अलग पार्टियों (राकांपा गुट) में हैं, लेकिन अन्य पार्टियों के लोगों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखना अच्छा है. ”

अजित पवार खेमे के एक नेता ने दिप्रिंट को बताया कि वे ‘अभी भी उम्मीद कर रहे हैं कि कई लोग प्रतीक्षा करो और देखो की स्थिति में हैं’ और उनके साथ जुड़ेंगे.

शरद पवार गुट के एक नेता ने इस भावना को साझा किया, लेकिन अपने पक्ष के लिए. “इनमें से बहुत से लोग अभी भी दुविधा में हैं कि किसका समर्थन किया जाए. साथ ही, कई लोगों को डर है कि अजित दादा (पवार) के वित्त मंत्री होने के कारण अभी उनकी निष्ठा दिखाने से फंड आवंटन पर असर पड़ सकता है.’

उन्होंने कहा, “अगर अजीत दादा और प्रफुल्ल पटेल कहते हैं कि उनके साथ 40 से अधिक लोग हैं, तो कम से कम 35 या उससे अधिक लोग सदन के अंदर दिखने चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं था.”

एनसीपी नेताओं का कहना है कि शरद पवार ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है – कि वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ नहीं जा रहे हैं, लेकिन किसी को भी ऐसा करने से नहीं रोकेंगे.

पार्टी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि वित्त मंत्री के रूप में, अजीत पवार ने पिछले महीने विधायकों को अनुपूरक बजट से उनके निर्वाचन क्षेत्रों में काम करने के लिए धन वितरित करते समय दोनों एनसीपी खेमों के बीच कोई अंतर नहीं किया है.

(अनुवाद/ पूजा मेहरोत्रा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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