मुंबई: नई दिल्ली में रविवार को संपन्न हुए एनसीपी के दो दिवसीय सम्मेलन में अजीत पवार बिना भाषण दिए बीच में ही चले गए. इसके बाद देश की राजधानी के साथ-साथ महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में अटकलों का बाजार गरमा गया.
हालांकि पवार ने सफाई दी कि उनका ‘वाकआउट’ वास्तव में ‘वॉशरूम ब्रेक’ के लिए था और वह वैसे भी कभी भी राष्ट्रीय सम्मेलनों में नहीं बोलते. लेकिन संभावित दरार पर सवाल निराधार नहीं थे.
अजीत पवार की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं अक्सर उनके और राकांपा प्रमुख शरद पवार के बीच टकराव की स्थिति का कारण बनती रही हैं. पवार उत्तराधिकार मुद्दे पर चुप्पी साधी रहते हैं और इसलिए यह अनिश्चितता बनी हुई है कि पार्टी में उनकी राजनीतिक विरासत और वर्चस्व अजीत या फिर उनकी बेटी सुप्रिया सुले में से किसे सौंपी जाएगी. सुप्रिया बारामती से सांसद हैं.
इस महत्वपूर्ण सवाल का अधिवेशन में कोई जवाब नहीं मिल पाया, क्योंकि वहां पवार के बाद के युग पर कोई चर्चा नहीं की गई. 1999 में पार्टी के गठन के बाद से पद संभाल रहे 81 साल के शरद पवार को एनसीपी अध्यक्ष के पद के लिए फिर से चुन लिया गया था.
फिर से चुने जाने से ये तो पता चल गया कि फिलहाल शरद पवार उत्तराधिकार के मसले पर साफ-साफ कुछ भी कहने के इच्छुक नहीं हैं. जैसा अब तक चलता आया है, उसे वैसे ही चलने देते रहना चाहते हैं.
दिप्रिंट से बात करते हुए मुंबई के राजनीतिक टिप्पणीकार प्रताप अस्बे ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि वह उत्तराधिकारी चुनेंगे. इस बारे में उनका विचार यह होना चाहिए कि जनता ही तय करे कि पार्टी की बागडोर कौन संभालेगा. वह चीजों को अपने हिसाब से चलने देंगे.’
उन्होंने कहा, ‘अगर वह अभी किसी को उत्तराधिकारी चुनते हैं, तो उनके फैसले को लेकर कई तरह के विचार सामने आएंगे, चर्चाएं होंगी और राजनीति की जाएगी. इसलिए शायद अभी वह पूरी तरह से विवाद से बचना चाहते हैं.’
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पवार अपने पत्ते दिखाने को तैयार क्यों नहीं?
शरद पवार के करीबी माने जाने वाले राकांपा के पूर्व मंत्री दिलीप वलसे पाटिल ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने कभी नहीं सोचा कि पवार साहब के बाद पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा. उत्तराधिकार के बारे में उनकी ओर से कोई संकेत नहीं दिया गया है. मुझे नहीं लगता कि इसके बारे में सोचने की कोई वजह है.’
एनसीपी नेताओं ने दिप्रिंट से बात की और कहा कि शरद पवार के बाद एनसीपी के भविष्य को लेकर पार्टी के भीतर कभी कोई औपचारिक या अनौपचारिक चर्चा नहीं हुई है. एक अनकहा समझौता है कि अजीत पवार महाराष्ट्र में बागडोर संभालेंगे, जबकि सुप्रिया सुले दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का प्रतिनिधित्व करेंगी. लेकिन राकांपा अध्यक्ष का पद कौन संभालेगा, इसका अंदाजा किसी को नहीं है.
पार्टी के एक वरिष्ठ विधायक ने कहा, ‘हालांकि राकांपा एक राष्ट्रीय पार्टी है, लेकिन हर कोई जानता है कि इसका वास्तविक अस्तित्व मूलरूप से महाराष्ट्र में है और यहां का काम अजीत दादा बेहद कुशलता से संभाल रहे हैं. केंद्र में यह काम सुप्रिया ताई कर रही हैं.’
पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, ‘अजीत दादा ने सांसद के रूप में शुरुआत की थी, लेकिन वह महाराष्ट्र में काम करना चाहते थे. इसका एक कारण यही है. वह कहते हैं कि वह राष्ट्रीय सम्मेलनों को संबोधित नहीं करना चाहते, जबकि वह राज्य सम्मेलनों में काफी लंबा बोलते हैं.
उन्होंने कहा, ‘दूसरी ओर, सुप्रिया ताई को दिल्ली में रहना पसंद है. एक सांसद के रूप में उन्होंने कई पुरस्कार जीते हैं. वह समय-समय पर पार्टी के काम में राकांपा सदस्यों की मदद करने के लिए अपने पद का इस्तेमाल करती रही हैं. इसलिए, मुझे लगता है कि दोनों के क्षेत्राधिकार साफ हैं.’
अपनी ताकत दिखाते हुए अजीत पवार अक्सर अपने चाचा के साथ टकराव की स्थिति में आ जाते हैं. ऐसा एक बार तब हुआ था, जब उन्होंने कहा था कि एनसीपी भगवा झंडे का इस्तेमाल करेगी, जिस पर शिवाजी की छवि लगी होगी. लेकिन उनके इस बयान को वरिष्ठ नेता पवार ने अस्वीकार कर दिया था. या फिर तब, जब उन्होंने अपने चाचा द्वारा केंद्र सरकार के फैसले की आलोचना करने के बावजूद, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले की प्रशंसा की.
2019 में वरिष्ठ पवार के लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने और अजीत पवार के बेटे पार्थ को मावल निर्वाचन क्षेत्र से नामित करने के फैसले को अजीत पवार की जीत के रूप में देखा गया था. लेकिन पार्थ ने चुनाव हारने वाला परिवार का पहला खिलाड़ी बनकर एक रिकॉर्ड बना दिया.
सबसे साफ तौर पर नजर आने वाला विद्रोह तब था, जब अजीत ने 2019 में तख्तापलट का नेतृत्व किया और भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार बनाई. हालांकि सरकार तीन दिनों के भीतर गिर गई था. लेकिन यह राकांपा कैडर के बीच अजीत की निर्विवाद लोकप्रियता थी, जिसकी वजह से शरद पवार ने खुले दिल से पार्टी में फिर से उनका स्वागत किया.
हमेशा कहा यह जाता रहा है कि सुप्रिया सुले को राष्ट्रीय राजनीति में अधिक दिलचस्पी है. वह चार बार सांसद रही हैं (राज्यसभा में एक कार्यकाल और तीन बार लोकसभा में जीतीं). लेकिन उन्होंने महाराष्ट्र में भी अपनी छवि बनाने के प्रयास किए हैं.
2017 में उन्होंने राज्य के युवाओं और महिलाओं के साथ बातचीत करने के लिए राज्यव्यापी दौरा शुरू किया. 2019 में उन्होंने शिवसेना और कांग्रेस के साथ महा विकास अघाड़ी गठबंधन सरकार के गठन की पूरी प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
2016 में पीटीआई को दिए गए एक इंटरव्यू में सुले ने कहा था कि उनके पिता के राजनीतिक उत्तराधिकारी के बारे में ‘लोग तय करेंगे’ और ‘राजनीतिक जीवन जीन्स से नहीं आता है’
‘कोई व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं’
अजीत पवार और सुप्रिया सुले के अलावा पार्टी में राजनीतिक महत्वाकांक्षा वाले बड़े नेताओं की एक लंबी कतार है, जैसे कि महाराष्ट्र राकांपा अध्यक्ष जयंत पाटिल और पूर्व कैबिनेट मंत्री जैसे राजेश टोपे, छगन भुजबल और भी कई.
पहले उद्धृत पार्टी पदाधिकारी ने कहा कि जहां तक अन्य नेताओं का सवाल है, वे जानते हैं कि आज उनके पास जो राजनीतिक कद है, वह पवार साहब द्वारा दिए गए अवसरों की वजह से है. उनकी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सरकार और पार्टी के भीतर कई पद हैं.
एनसीपी के एक दूसरे विधायक ने बताया कि नई दिल्ली में पार्टी के सम्मेलन में एनसीपी के भविष्य के नेतृत्व के बारे में कोई बात नहीं हुई थी. उन्होंने कहा, ‘पवार साहब ने स्वीकार किया कि वह बूढ़े हैं और उनकी कोई व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है’
वह आगे बताते हैं, ‘समान विचारधारा वाली ताकतों को एक साथ लाकर केंद्र में भाजपा सरकार से लड़ने की पार्टी की तत्काल प्राथमिकता को देखते हुए, यह जरूरी था कि वह एनसीपी अध्यक्ष के रूप में बने रहें.’
विधायक ने कहा कि पवार की ‘कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा का न होना’ वाली टिप्पणी, विपक्षी एकता के वार्ताकार होने के नाते प्रधानमंत्री पद पर नजर गड़ाए रखने की अटकलों के संदर्भ में अधिक थी.
उन्होंने कहा, ‘कई राजनीतिक दल पहल कर रहे हैं. पवार साहब के सभी दलों के साथ अच्छे संबंध हैं. इसके चलते वह कांग्रेस सहित सबको एक साथ लाने के काम को बखूबी अंजाम दे सकते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘यह राकांपा की राष्ट्रीय स्थिति को मजबूत करेगा. इसके अलावा कुछ भी नहीं है जो वह अपने लिए चाहते हैं.’
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