scorecardresearch
Monday, 6 May, 2024
होमराजनीतिहिमाचल प्रदेश में बीजेपी-कांग्रेस के बीच नया विवाद शुरू— मेयर चुनाव में विधायकों को मतदान का अधिकार

हिमाचल प्रदेश में बीजेपी-कांग्रेस के बीच नया विवाद शुरू— मेयर चुनाव में विधायकों को मतदान का अधिकार

बीजेपी 'चुनाव प्रक्रिया के बीच में विधायकों को असंवैधानिक मतदान का अधिकार' देकर बहुमत जुटाने के लिए कांग्रेस सरकार के खिलाफ अदालत जाने की योजना बना रही है. कांग्रेस का कहना है यह 'कानून में कोई नया बदलाव नहीं' है.

Text Size:

नई दिल्ली: सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा मेयर चुनाव के लिए विधायकों को मतदान का अधिकार दिए जाने के बाद पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में एक नया राजनीतिक विवाद छिड़ गया है.

विपक्षी पार्टी बीजेपी ने सरकार पर “चुनाव प्रक्रिया के बीच में विधायकों को असंवैधानिक मतदान का अधिकार” देकर बहुमत जुटाने का आरोप लगाया है और मामले को अदालत में ले जाने की योजना बनाई है.

हिमाचल प्रदेश में पांच नगर निगम है – शिमला, पालमपुर, मंडी, सोलन और धर्मशाला. यहां मेयर और डिप्टी मेयर का कार्यकाल ढाई साल का होता है, जिसके बाद नए चुनाव होते हैं.

शिमला को छोड़कर सभी निगमों में मेयर और डिप्टी मेयर अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं.

पालमपुर (24 नवंबर) और मंडी (25 नवंबर) में मेयर चुनाव के लिए चुनाव अधिसूचना 21 नवंबर को जारी की गई थी, जबकि सोलन और धर्मशाला के लिए अभी तारीख की घोषणा नहीं की गई है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

पालमपुर में कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार गोपाल नाग और राज कुमार क्रमशः मेयर और डिप्टी मेयर चुने गए, जहां विधायक कांग्रेस के हैं. मंडी में बीजेपी ने मेयर और डिप्टी मेयर का पद बरकरार रखा. यहां के विधायक भी बीजेपी के हैं.

लेकिन विवाद 23 नवंबर को शुरू हुआ, जब सरकार ने हिमाचल प्रदेश नगर निगम अधिनियम, 1994 में संशोधन के संबंध में कहा, “विधान सभा के सदस्य, जो नगर निगम में पदेन पार्षद भी होते हैं, के पास अन्य पार्षदों की तरह समान मतदान अधिकार हैं.”

दिप्रिंट से बात करते हुए, हिमाचल बीजेपी अध्यक्ष राजीव बिंदल ने विधायकों को मतदान का अधिकार दिए जाने को “लोकतंत्र की हत्या” करार दिया.

उन्होंने कहा, “सरकार चुनाव के बीच में नियमों में बदलाव के लिए संचार कैसे जारी कर सकती है? यदि सरकार किसी कानून में संशोधन करना चाहती है तो उसे राज्य विधानसभा के माध्यम से संशोधन करना होगा. सत्र होने वाला है और बदलाव किया जा सकता है, लेकिन एक बार भी चुनाव के लिए अधिसूचना की घोषणा नहीं की गई है.”

उन्होंने आगे कहा, “पिछले दरवाजे से मतदान के अधिकार की अनुमति दी गई है और हम इस मामले पर अदालतों का दरवाजा खटखटाने के लिए कानूनी विशेषज्ञों से बातचीत कर रहे हैं.”

पार्टी सूत्रों ने बताया कि विरोध के एक हिस्से के रूप में बीजेपी विधायकों ने मंडी और पालमपुर के मेयर चुनाव में हिस्सा नहीं लिया.

बीजेपी अब धर्मशाला नगर निगम चुनावों को लेकर चिंतित है, जहां पार्टी समर्थित मेयर ने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया है और कांग्रेस अपना उम्मीदवार चुनने का लक्ष्य लेकर चल रही है.

अब तक शिमला, सोलन और पालमपुर नगर निकायों पर कांग्रेस का नियंत्रण है, जबकि मंडी और धर्मशाला में बीजेपी के पास बहुमत है.

बीजेपी विधायक राकेश जामवाल ने दिप्रिंट को बताया, “कांग्रेस सरकार ने सबसे पहले जिला कलेक्टर और कानून विभाग से विधायकों के मतदान के अधिकार के बारे में पूछा. जिला अधिकारियों ने कहा कि मौजूदा कानून में विधायकों को वोट देने की अनुमति देने का कोई प्रावधान नहीं है और यहां तक ​​कि उनके अपने विभाग ने भी इसके खिलाफ सलाह दी है, लेकिन मुख्यमंत्री ने सबकी राय के खिलाफ फैसला लिया है. हम इस मामले को अदालत में चुनौती दे रहे हैं.”


यह भी पढ़ें: अल्पसंख्यक मोर्चा ने 3 राज्यों में 10 मुसलमानों के लिए मांगा टिकट, BJP को नहीं मिले ‘योग्य दावेदार’


धर्मशाला के पूर्व बीजेपी मेयर ओंकार नेहरिया ने कहा, “अगर कांग्रेस निर्दलियों को लुभाने में कामयाब होती है और विधायक (सुधीर शर्मा) अपना वोट डालते हैं तो धर्मशाला में हेरफेर की संभावना है.”

कांग्रेस ने अपनी ओर से इसका बचाव किया है और चुनावों से इसे कानून की गलत व्याख्या करार दिया है.

हिमाचल के कैबिनेट मंत्री हर्षवर्द्धन चौहान ने दिप्रिंट को बताया, “यह (विधायकों को वोट देने का अधिकार) कोई नई बात नहीं है. चूंकि विधायक चुनाव प्रक्रिया में हिस्सेदारी की मांग कर रहे थे, इसलिए हमने कानून विभाग से पूछा कि क्या नगर निगमों के लिए ऐसा किया जा सकता है. इसने राय दी कि छोटी नगर पालिकाओं और नगर पंचायत चुनावों के लिए यह पहले से ही चलन में था.”

हालांकि, कांग्रेस के धर्मशाला विधायक ने मेयर चुनाव में विधायकों को मतदान का अधिकार देने के फैसले का विरोध किया है.

शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, “यह मेरी निजी राय है कि मेयर चुनाव के लिए विधायकों को मतदान का अधिकार उचित नहीं है. कल सांसदों को विधानसभा में वोटिंग का अधिकार दिया जा सकता है. कर्तव्यों का स्पष्ट विभाजन है. विधायक पार्षदों को सुझाव दे सकते हैं, लेकिन मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव में उन्हें मतदान का अधिकार देना उचित नहीं लगता.”

संख्याएं कैसे ढेर हो जाती हैं

पालमपुर में, कांग्रेस ने 2021 में हुए नगर निगम चुनावों में 15 में से 11 वार्ड जीते थे, जबकि बीजेपी और निर्दलीय ने दो-दो वार्ड जीते थे. 2021 में मंडी में बीजेपी ने 15 में से 11 वार्ड जीते थे जबकि बाकी पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी.

सोलन में पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 17 वार्डों में से नौ, बीजेपी ने सात और एक निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी. यहां का मेयर कांग्रेस समर्थित है. हालांकि, कांग्रेस यहां अंदरूनी कलह का सामना कर रही है, जिससे बीजेपी को उम्मीद है कि कुछ पार्षद पार्टी छोड़ सकते हैं और इस नगर निगम को सुरक्षित करने में उनकी मदद कर सकते हैं.

धर्मशाला में, 17 सीटों में से, बीजेपी ने पहले आठ, कांग्रेस ने पांच और निर्दलीय ने चार सीटें जीती थीं. हालांकि, 2022 के हिमाचल विधानसभा चुनावों में बीजेपी धर्मशाला सीट कांग्रेस के सुधीर शर्मा से हार गई.

जबकि बीजेपी वर्तमान में दो निर्दलीय विधायकों के समर्थन से धर्मशाला नगर निकाय को नियंत्रित करती है, अगर कांग्रेस को तीन निर्दलीय विधायकों और एक विधायक वोट का समर्थन मिलता है, तो वह बीजेपी से निकाय छीन सकती है.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: क्या चुनावी आचार संहिता बेमानी है? चुनावी राज्य में मोदी की नीतिगत घोषनाओं से उठने लगे हैं सवाल


 

share & View comments