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Sunday, 3 November, 2024
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‘नाराजगी’ या BJP सरकार के खिलाफ फूटा गुस्सा? अग्निपथ योजना ने HP में चुनाव नतीजों पर कैसे असर डाला

मोदी सरकार ने रक्षा खर्च घटाने के उद्देश्य के साथ जून में अग्निपथ योजना शुरू की थी. लोकनीति, सीएसडीएस-द हिंदू की तरफ से किए गए सर्वेक्षण से पता चलता है कि हिमाचल में हर दो में से एक मतदाता इसके खिलाफ था.

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नई दिल्ली: क्या मोदी सरकार की विवादास्पद अग्निपथ योजना को लेकर लोगों का गुस्सा हिमाचल प्रदेश में जयराम ठाकुर सरकार की चुनावी हार की वजह बना? निश्चित तौर पर हां, यदि एक हालिया सर्वे के निष्कर्षों को सही माना जाए तो.

लोकनीति, सीएसडीएस-द हिंदू के एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि चार साल की अवधि के लिए 17.5 से 21 साल तक उम्र वाले सैनिकों की भर्ती संबंधी सरकार की योजना हिमाचल में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हार की एक वजह हो सकती है.

गौरतलब है कि जून में घोषित अग्निपथ योजना का उद्देश्य रक्षा खर्च को घटाना है. हालांकि, हिमाचल सहित पूरे देश में इसे व्यापक विरोध का सामना करना पड़ा था

15 से 24 नवंबर के बीच किए गए सर्वेक्षण से पता चला कि हर दो में से एक मतदाता इस योजना के खिलाफ था. केवल 19 प्रतिशत उत्तरदाता पूरी तरह से इस नीति के समर्थक थे जबकि 14 प्रतिशत ने आंशिक रूप से योजना का समर्थन किया.

योजना का विरोध करने वालों में से 55 फीसदी ने कांग्रेस को वोट दिया. आंशिक रूप से योजना का समर्थन करने वालों में 46 फीसदी ने कांग्रेस और इतने ही मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया, जबकि बाकी ने अन्य पार्टियों या निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन किया.

हालांकि, दिप्रिंट ने जिन भाजपा नेताओं से बात की वे पूरी तरह इस बात से सहमत नहीं हैं कि अग्निपथ योजना की वजह से पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है.

हिमाचल भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप ने दिप्रिंट को बताया कि किसी एक ऐसे मुद्दे को इंगित करना मुश्किल है, जो हार की वजह बना हो.

उन्होंने कहा, ‘यह एक करीबी मुकाबला था और हम 5 प्रतिशत सीटें 1,000 से कम मतों के अंतर से हारे. हार के कारण बहुत ज्यादा स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन फिर भी हम यह पता लगाने के लिए आकलन करेंगे कि हमसे कहां चूक हुई. विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में मुद्दे अलग थे. यहां तक कि चुनाव अभियान के दौरान भी हमने योजना के प्रति युवाओं में कोई नाराजगी नहीं देखी.’

लेकिन एक राजनीतिक पर्यवेक्षक का मानना है कि अग्निपथ योजना से होने वाले नुकसान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रमेश चौहान ने दिप्रिंट को बताया, ‘चुनाव परिणाम हमेशा एक ही मुद्दे पर (आधारित) नहीं होते हैं, बल्कि इसमें कई फैक्टर काम करते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘इस चुनाव में 3-4 प्रमुख मुद्दे थे जिन्होंने भाजपा के वोट शेयर को प्रभावित किया—पुरानी पेंशन योजना, विरोध कर रहे किसानों (सेब उत्पादकों) के मुद्दे, और अग्निपथ योजना.’

उन्होंने कहा कि हिमाचल की स्थिति ऐसी है कि कुछ जिलों में हर घर में परिवार का कम से कम एक सदस्य सशस्त्र बलों में है. उन्होंने कहा, ‘सेना में 4 साल सेवाएं देने के बाद भविष्य की अनिश्चितता को लेकर इस योजना ने निश्चित तौर पर युवाओं को प्रभावित किया और मतदान के नतीजों से यह जाहिर भी होता है.’


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कांगड़ा, हमीरपुर में नुकसान

सर्वेक्षण के दौरान रैंडम आधार पर चयनित 28 विधानसभा क्षेत्रों के 110 मतदान केंद्रों में कुल 2,844 मतदाताओं की राय जानी गई.

एक क्षेत्रवार विश्लेषण से पता चला है कि अग्निपथ का विरोध करने वालों में से करीब 57 प्रतिशत पश्चिमी क्षेत्रों से थे, जिसमें कांगड़ा जिला भी शामिल है. वहीं 43 प्रतिशत पूर्वी क्षेत्र के थे.

सर्वेक्षण कहता है, इसके अलावा 18 से 25 वर्ष की आयु वर्ग के हर पांच में से तीन युवा मतदाता ने इस योजना का विरोध किया.

चौहान ने कहा कि और, यह चुनाव परिणामों में स्पष्ट नजर भी आता है. भाजपा का गढ़ माने जाने वाले कांगड़ा जिले में पार्टी ने 15 में केवल चार सीटें जीती हैं. भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और उनके बेटे केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के गृहनगर हमीरपुर में तो भाजपा सभी पांच विधानसभा सीटों पर हार गई.

भाजपा के एक अन्य गढ़ ऊना में पार्टी केवल पांच सीटों में से एक पर जीत हासिल कर पाई है.

मंडी जिले के सुंदरनगर से चुने गए हिमाचल भाजपा महासचिव राकेश जामवाल का मानना है कि पुरानी पेंशन योजना और भाजपा की अंतर्कलह सबसे बड़े कारण रहे हैं, जिन्होंने वास्तव में पार्टी को नुकसान पहुंचाया.

जामवाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘चुनाव प्रचार के दौरान मुझे ऐसा कोई युवा नहीं मिला जिसने अग्निपथ योजना के बारे में बात की हो. हम बागी उम्मीदवारों के कारण हारे. हमारे 21 सदस्यों ने पार्टी के खिलाफ बगावत की और हमारे वोटों को बांटने के लिए निर्दलीय उम्मीदवारों के तौर पर खड़े हुए. इसके अलावा अगर कोई कारण है तो वो पुरानी पेंशन योजना है, जो अभी भी एक मुद्दा बनी हुई और इसकी वजह से हमारे वोट घटे हो सकते हैं.’

पूर्व मंत्री और भाजपा नेता अनिल शर्मा सर्वेक्षण के निष्कर्षों से सहमत हैं, लेकिन साथ ही कहते हैं कि कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री कौन होगा, इस पर बने रहे सस्पेंस ने भी पार्टी को कुछ हद तक नुकसान पहुंचाया है.

शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, ‘अन्य मुद्दे भी थे जो हार की वजह बने, जैसे पुरानी पेंशन योजना और महिलाओं को 1,500 रुपये देने का कांग्रेस का वादा. साथ ही कांग्रेस से मुख्यमंत्री कौन बनेगा, इसे लेकर कुछ उम्मीदों ने भी वोटों का बंटवारा किया. जहां भी सीएम पद के लिए कांग्रेस के मजबूत दावेदार मैदान में थे, उस निर्वाचन क्षेत्र के लोगों ने उनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए अधिक वोट दिए.

यद्यपि, कांग्रेस ने चुनाव से पूर्व अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं की थी, उसने बाद में राज्य सरकार का नेतृत्व करने के लिए सुखविंदर सिंह सुक्खू को चुना है.

बहरहाल, कांग्रेस नेताओं का मानना है कि अग्निपथ योजना के खिलाफ मतदाताओं में गुस्सा अभी भी दिख रहा है.

पालमपुर से निर्वाचिता कांग्रेस नेता आशीष बुटेल ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारे कई युवा सशस्त्र बलों में कार्यरत हैं. और उन्हें अपने भविष्य को लेकर चिंता सता रही है. युवा बहुत गुस्से में थे, और भाजपा सरकार के खिलाफ गुस्सा था.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: रावी द्विवेदी)

(संपादन: आशा शाह)


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