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Monday, 17 November, 2025
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बिहार में जीत के बाद, बंगाल के लिए मजबूत स्थिति में BJP, लेकिन एक नाज़ुक मसला अब भी बाकी

बिहार में BJP की बड़ी जीत ने पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा दिया है, 2024 की गिरावट के बाद आरएसएस को भी संतुष्ट किया है और अब पार्टी ममता बनर्जी और पश्चिम बंगाल को अगली बड़ी चुनौती मानकर आगे बढ़ रही है.

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नई दिल्ली: बिहार में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की जीत, जो दिल्ली, हरियाणा और महाराष्ट्र में जीत के कुछ ही महीनों बाद आई है — ने पार्टी को फिर से बड़ा भरोसा दिया है. अब पार्टी आने वाले विधानसभा चुनावों को, खासकर पश्चिम बंगाल को, अपनी अगली बड़ी चुनौती मान रही है.

पार्टी के एक कार्यकर्ता ने कहा, “हरियाणा और दिल्ली की जीत ने 2024 लोकसभा चुनावों के असर को थोड़ा कम कर दिया था, जहां पार्टी की सीटें 240 तक गिर गई थीं, लेकिन बिहार की जीत एक अहम समय पर आई है, जब पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा हुआ था और नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के इंतजार में कई महत्वपूर्ण नियुक्तियां अटकी हुई थीं.”

उन्होंने आगे कहा, “इस जीत ने हमारे कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा भर दी है और संगठन की मशीनरी को मजबूत किया है.”

विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार मिल रही जीतों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेतृत्व क्षमता और बीजेपी के संगठन की ताकत को और साबित किया है.

दिप्रिंट से बात करते हुए सी-वोटर के फाउंडिंग डायरेक्टर यशवंत देशमुख ने कहा कि बिहार की जीत दिखाती है कि बीजेपी वापस पटरी पर है.

उन्होंने परिणामों को एक “मोमेंटम बिल्डर” बताया, जो 2024 लोकसभा चुनाव के ‘ब्लिप’ को खत्म कर बीजेपी की चुनावी तैयारियों को मजबूत करता है.

उन्होंने कहा, “वे वापस आ गए हैं. मतलब, 2024 चुनाव में जो भी ‘ब्लिप’ आया था, वह उन्हीं राज्यों से आया था जहां बीजेपी सबसे मजबूत थी, जैसे उत्तर प्रदेश. यानी आंतरिक झगड़े, कुछ सांसदों का खराब प्रदर्शन — जिन पर पार्टी काबू नहीं कर पाई — वही ब्लिप था. सारे लोग कहने लगे कि अब खत्म…गया मामला.”

देशमुख ने कहा, “फिर नड्डा का आरएसएस पर बयान आया और उसके बाद जो कुछ हुआ वो सबने देखा, लेकिन उसके बाद महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली के चुनाव आए. मेरा मानना है कि बीजेपी का संगठन ही उसकी असली ताकत है. दूसरा, उन्हें उन राज्यों में अपने सहयोगियों से अच्छे रिश्ते बनाए रखने पड़ते हैं, जहां बीजेपी के पास अपना चेहरा नहीं है. यह एक सबक था, जिसे उन्होंने सीख लिया है.”

उन्होंने आगे कहा, “बीजेपी इसका परफेक्ट उदाहरण है कि कैसे वे जल्दी सीखते हैं और तुरंत बदलाव लागू कर देते हैं. यही उनकी चुनाव मशीनरी को सबसे आगे रखता है. अब हालात उनके लिए अच्छे हैं और और बेहतर दिख रहे हैं. जो ‘ब्लिप’ था, वह अब खत्म हो चुका है.”

पार्टी की जीत के तुरंत बाद, प्रधानमंत्री मोदी ने बीजेपी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए 2026 पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए ‘जंगलराज’ खत्म करने का वादा किया.

इस साल की शुरुआत में, बंगाल में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए बीजेपी ने वरिष्ठ नेता समिक भट्टाचार्य को पश्चिम बंगाल इकाई का नया प्रमुख नियुक्त किया था.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि बिहार की जीत खास इसलिए भी है क्योंकि यह दिखाती है कि मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी अब भी मजबूत है, भले ही पार्टी आरएसएस के साथ मिलकर नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर सहमति खोज रही हो.

नेताओं का कहना है कि बीजेपी को आरएसएस के साथ तालमेल बढ़ाने की ज़रूरत है, जो लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान कम दिखा था. बड़ी संख्या में आरएसएस कार्यकर्ताओं ने चुनावी काम से दूरी बनाई, जिसका असर पार्टी की सीटों पर पड़ा.

लेकिन सुधार करते हुए, दोनों संगठनों ने फिर से बेहतर तालमेल किया, जिसका परिणाम हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली की जीत के रूप में सामने आया.

नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति में देरी पर पार्टी के अंदर भी आलोचना हुई थी. कई नेताओं ने दिप्रिंट से कहा था कि इससे संगठन के अंदरूनी कामकाज पर असर पड़ा है.

इन जीतों से मोंमेटम बढ़ा है, लेकिन नया बीजेपी अध्यक्ष कौन होगा, इस पर अभी भी सस्पेंस बना हुआ है— आरएसएस और पार्टी के गुटों की खींचतान के बीच.

बीजेपी के एक नेता ने कहा, “हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल यही रहा कि नया अध्यक्ष क्यों नहीं चुना जा रहा. लोगों में यह धारणा बन गई थी कि इसका कारण आरएसएस और बीजेपी के बीच मतभेद हैं. इससे पार्टी की छवि को नुकसान हो रहा था.”

उन्होंने आगे कहा, “ऐसे में बिहार की जीत महत्वपूर्ण है. कुछ वक्त के लिए यह सवाल हमें परेशान नहीं करेगा. जीत का पैमाना भी बड़ा है, क्योंकि किसी एग्ज़िट पोल ने इसकी भविष्यवाणी नहीं की थी. यह जीत पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भविष्य के चुनावों के लिए हमें गति देगी. ये चुनाव दिखाते हैं कि पीएम मोदी के नेतृत्व में आक्रामक जमीनी कामयाबियां संभव हैं.”

पार्टी के कई नेताओं का मानना है कि बिहार का नतीजा मोदी के शासन मॉडल की मंजूरी है. वे मेहनत करने वाले ‘अनुशासित’ कार्यकर्ताओं को इसका श्रेय देते हैं.

दिप्रिंट से बात करते हुए सीपीआर के राहुल वर्मा ने कहा कि हर चुनावी जीत के साथ मोदी-शाह की जोड़ी बीजेपी और आरएसएस ढांचे के भीतर और मजबूत हो जाती है.

उन्होंने कहा, “हरियाणा और महाराष्ट्र की जीत के बाद वे पहले ही मजबूत स्थिति में थे. दोनों राज्यों में लोकसभा में बीजेपी बैकफुट पर थी. फिर दिल्ली जीता और अब बिहार. अब उनके पास और ज्यादा जगह है अपनी रणनीति लागू करने की.”

लेकिन वर्मा ने कहा कि बीजेपी के पास अभी भी कुछ चुनौतियां हैं. उन्होंने कहा, “कुछ गैर-प्रदर्शनकारी मुख्यमंत्रियों को लेकर बीजेपी ने अभी पूरी तरह अपनी तैयारी नहीं की है. लेकिन कुल मिलाकर उनकी स्थिति मजबूत है, जहां तक नए बीजेपी अध्यक्ष का सवाल है, वह ज़रूर पीएम मोदी की सहमति से ही चुना जाएगा.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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