नई दिल्ली: तीन मौजूदा राज्यसभा सांसदों मुख्तार अब्बास नकवी, सैयद जफर इस्लाम और एमजे अकबर के कार्यकाल जून और जुलाई में खत्म होने के बाद बीजेपी का संसद में कोई मुस्लिम प्रतिनिधि नहीं होगा.
सत्तारूढ़ दल के लोकसभा में 301 सदस्य हैं लेकिन उनमें से कोई भी मुस्लिम नहीं है.
केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री नकवी 7 जुलाई को संसद के उच्च सदन को अलविदा कहेंगे. इस्लाम का कार्यकाल 4 जुलाई को समाप्त हो रहा है, जबकि अकबर 29 जून को अपने पद से मुक्त हो जाएंगे. जहां 10 जून को 15 राज्यों की 57 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होना है. वहीं, बीजेपी के उम्मीदवारों की सूची में कोई मुस्लिम नहीं है.
बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रमुख जमाल सिद्दीकी ने मुसलमानों पर खराब प्रतिनिधित्व की जिम्मेदारी डालते हुए कहा कि उन्होंने चुनावी रूप से समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए गलत मंच चुना है.
सिद्दीकी ने कहा, ‘नकवी साहब, जफर साहब और अन्य मुस्लिम नेता अपनी योग्यता के कारण राज्यसभा में हैं, न कि उन पर किए गए विश्वास के कारण. नकवी साहब पार्टी के शीर्ष नेताओं में शुमार हैं. (ड्यूश बैंक के पूर्व प्रबंध निदेशक) जफर साहब की फाइनेंस पर अच्छी पकड़ है और हम सभी जानते हैं कि एक पत्रकार के रूप में एमजे अकबर कितने लोकप्रिय हैं.’
उन्होंने कहा, ‘बीजेपी ने कभी किसी को सदन में नहीं भेजा और न ही धर्म के आधार पर उन्हें हटाया. यह सच नहीं है कि पार्टी में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं है लेकिन एक समुदाय के रूप में हमें आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है. मुसलमानों ने गलत लोगों को अपना हीरो माना है’
सिद्दीकी ने कहा कि पार्टी के पास नकवी और जफर को फिर से नामित नहीं करने के अपने कारण हो सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘ हो सकता है पार्टी के पास उनके लिए और महत्वपूर्ण भूमिकाएं हों.’
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कम प्रतिनिधित्व बीजेपी के लिए चिंता का विषय बन जाएगा.
2022 के उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले सिद्दीकी ने दिप्रिंट के साथ एक साक्षात्कार में कहा था कि बीजेपी को कम से कम 20 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारना चाहिए. मोर्चा ने उन सीटों की पहचान की है जहां मुस्लिम वोटरों का असर है. इनमें से 100 सीटों ऐसी हैं जिसमें 30 प्रतिशत अल्पसंख्यक आबादी का दबदबा है. जबकि 140 सीटों पर 20 प्रतिशत अल्पसंख्यक वोट है और लगभग 40 सीटें ऐसी हैं जहां 60-70 प्रतिशत वोट मुस्लिमों के हैं ’
लेकिन बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में मुसलमानों को मैदान में नहीं उतारने के अपने 2017 के पैटर्न को दोहराया. इसके सहयोगी, अपना दल (सोनेलाल) ने हैदर अली को मैदान में उतारा लेकिन वह सुआर से समाजवादी पार्टी के दिग्गज आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम खान से हार गए.
मोहसिन रजा 2017 में योगी आदित्यनाथ सरकार में एकमात्र मुस्लिम चेहरा थे. अपने दूसरे कार्यकाल में वह उनकी जगह दानिश आजाद अंसारी को अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री के रूप में ले आए. रजा की तरह, अंसारी के भी मंत्री के रूप में बने रहने के लिए विधान परिषद का रास्ता अपनाने की संभावना है.
सिद्दीकी ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह सच है कि समुदाय में संभावित प्रतिभाशाली नेताओं की कोई कमी नहीं है लेकिन दुर्भाग्य से वे गलत मंच का उपयोग कर रहे हैं. यही कारण है कि समुदाय ज्यादा प्रगति नहीं कर सका. अगर मुसलमान हमसे जुड़ते हैं और बीजेपी में शामिल होने के इच्छुक हैं तो उन्हें निश्चित रूप से पार्टी में आगे बढ़ने का मंच और अवसर दिया जाएगा.’
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लोकसभा में कोई मुसलमान नहीं, बीजेपी की विधानसभाएं
17 वीं लोकसभा में, बिहार के खगड़िया निर्वाचन क्षेत्र से लोक जनशक्ति पार्टी के चौधरी महबूब अली कैसर बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से एकमात्र मुस्लिम सांसद हैं.
2019 के आम चुनाव में बीजेपी ने 6 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे लेकिन सभी हार गए. 2014 में पार्टी के 7 उम्मीदवारों को भी हार का सामना करना पड़ा था.
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के स्तर पर भी बीजेपी का मुस्लिम प्रतिनिधित्व ज्यादा नहीं है. बिहार में सैयद शाहनवाज हुसैन और उत्तर प्रदेश में मोहसिन रजा और बुक्कल नवाब राज्यों में पार्टी का मुस्लिम चेहरा हैं.
असम में 31 विधायक मुस्लिम हैं लेकिन इनमें से कोई भी भाजपा या उसके सहयोगी दल का सदस्य नहीं है.
2022 में उत्तर प्रदेश में मुस्लिम विधायकों की संख्या बढ़कर 34 हो गई लेकिन इनमें से कोई भी बीजेपी से नहीं जुड़ा है. योगी आदित्यनाथ सरकार में दानिश आजाद अंसारी एकमात्र मुस्लिम चेहरा हैं लेकिन उन्होंने 2022 का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा.
पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक 44-43 मुस्लिम विधायक हैं. इनमें से एक भारतीय धर्मनिरपेक्ष मोर्चा से है बाकि तृणमूल कांग्रेस से हैं. 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 9 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे लेकिन इन सभी को हार का सामना करना पड़ा था.
राजस्थान के पूर्व मंत्री यूनुस खान 2018 में बनी वसुंधरा राजे सरकार में भाजपा के एकमात्र मुस्लिम मंत्री थे. उन्होंने कहा कि किसे मैदान में उतारा जाए, यह फैसला पार्टी के सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय, संसदीय बोर्ड का होता है.
भाजपा में मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधित्व को वह कैसे देखते हैं, उन्होंने इस बारे में अधिक टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने कहा कि यह मुद्दा कहीं अधिक जटिल है.
किदवई ने दिप्रिंट को बताया, ‘आम तौर पर लोकतंत्र में दो पक्षों का परस्पर हित होता है और यह दोनों के लिए ठीक काम करता है. लेकिन दुर्भाग्य से यह जनसंघ के समय से ही बीजेपी और मुसलमानों के बीच एक समस्या रही है. यह थोड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन एक साधारण समीकरण नहीं है. दोष बीजेपी के मत्थे मढ़ा जा सकता है लेकिन वोट बैंक की राजनीति को देखते हुए उन्हें भी विविधता और प्रतिनिधित्व की जरूरत है.’
उन्होंने कहा कि मुसलमान भी बीजेपी की ओर आकर्षित नहीं हैं. ‘लेकिन लोकतंत्र में सब नंबरों का खेल है. इसलिए अगर कोई समुदाय कुल आबादी का 16-18 प्रतिशत है तो उसे पार्टी और राजनीतिक पदों पर प्रतिबिंबित करना चाहिए और इसलिए यह बीजेपी के लिए चिंता का कारण है’
लंदन विश्वविद्यालय के राजनीतिक विश्लेषक और विद्वान अरविंद कुमार ने कहा, ‘यह बीजेपी की महत्वपूर्ण रणनीतियों में से एक है कि उसने राजनीति में मुसलमानों को हाशिए पर ले जाने की कोशिश की है लेकिन ऐसा आर्थिक या सामाजिक क्षेत्र में ज्यादा नहीं है.’
उन्होंने कहा,‘अगर कोई लंबे समय तक राजनीतिक कार्यालय में है तो इसका नतीजा एक शक्ति केंद्र का निर्माण होता है. वे जल्द ही एक और मुस्लिम नेता को सदन में ला सकते हैं लेकिन एक नए नेता का उतना प्रभाव और शक्ति नहीं होगी जितनी कि निवर्तमान राजनेताओं के पास है.’
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