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Thursday, 21 November, 2024
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LS में खराब प्रदर्शन के बाद विधानसभा चुनाव को लेकर सतर्क BJP, बिहार और राजस्थान में बनाए नए पार्टी प्रमुख

बिहार में सम्राट चौधरी की जगह दिलीप जायसवाल और राजस्थान में सीपी जोशी की जगह मदन राठौर को अध्यक्ष बनाया गया. बताया जा रहा है कि ‘जातिगत भावनाओं’ को ध्यान में रखते हुए बदलाव किए गए हैं.

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नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने बिहार में नए अध्यक्ष की नियुक्ति की है, ताकि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को बढ़त मिल सके.

भाजपा ने गुरुवार को सम्राट चौधरी की जगह एमएलसी दिलीप जायसवाल को राज्य इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया.

पार्टी ने वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद मदन राठौर को राजस्थान का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है. राठौर ने सी.पी. जोशी की जगह ली है, जो चूरू लोकसभा क्षेत्र से सांसद भी हैं. राजस्थान में इस साल के अंत में उपचुनाव होने हैं.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, केंद्रीय नेतृत्व ने दोनों राज्यों में जातिगत भावनाओं को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया है.

जायसवाल बिहार के खगड़िया जिले से हैं और वैश्य समुदाय से आते हैं. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “इस कदम का उद्देश्य विधानसभा चुनाव से पहले वैश्य समुदाय का समर्थन हासिल करना है. यह समुदाय अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के अंतर्गत आता है और आबादी का एक बड़ा हिस्सा है.”

पार्टी के एक अन्य पदाधिकारी ने दावा किया कि सम्राट चौधरी, जो राज्य के उपमुख्यमंत्री भी हैं, अपने स्वयं के समुदाय – कुशवाहा और कोइरी – का समर्थन हासिल करने में असमर्थ रहे, जिसके परिणामस्वरूप लोकसभा चुनाव में पार्टी की सीटों की संख्या घटकर 12 रह गई. भाजपा ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था.

बिहार विधान परिषद के तीसरी बार सदस्य रहे जायसवाल को हाल ही में राज्य में मंत्री का पद दिया गया है. जायसवाल ने अपने ही विभाग में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और कहा कि बिना रिश्वत के कोई काम नहीं हो रहा है.

पार्टी के एक अन्य पदाधिकारी ने कहा कि सम्राट चौधरी से पार्टी के कई वरिष्ठ नेता असहज हैं, जबकि जायसवाल व्यवस्था को समझते हैं.

एक अन्य नेता ने कहा, “जायसवाल एक अनुभवी व्यक्ति हैं और उन्हें पता है कि सबको साथ लेकर कैसे चलना है. वे सिक्किम भाजपा के प्रभारी भी रहे हैं और पिछले दो दशकों से बिहार में कोषाध्यक्ष हैं. उन्हें पता है कि पार्टी कैसे काम करती है और क्या जरूरी है. यह कदम निश्चित रूप से काडर को प्रेरित करेगा, जो खुद को दरकिनार महसूस कर रहे थे, खासकर लोकसभा चुनावों के दौरान क्योंकि उनके विचारों पर विचार नहीं किया गया था.”

एक अन्य नेता ने कहा कि चौधरी को पार्टी के “एक व्यक्ति, एक पद” मानदंड के कारण बदला गया था. “इसके अलावा, राज्य इकाई अव्यवस्थित थी. कार्यकर्ताओं की बात नहीं सुनी जा रही थी, ‘प्रवास’ नहीं हो रहा था जो होना चाहिए था. यह गलत दृष्टिकोण का मामला था और जिस तरह से चीजें सामने आईं, उससे केंद्रीय नेतृत्व नाखुश था.”

‘लोकसभा प्रवास’ एक चुनाव-पूर्व अभियान था जिसका उद्देश्य भगवा पार्टी की जमीनी स्तर पर मौजूदगी को मजबूत करना था.

राजस्थान में, जहां पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा, सूत्रों ने बताया कि सी.पी. जोशी ने पद छोड़ने की इच्छा जताई थी और दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात भी की थी.

राजस्थान में एक ब्राह्मण और एक ओबीसी

पिछले साल मार्च में विधानसभा चुनाव से पहले जोशी को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था और जातिगत समीकरण को साधने की जरूरत महसूस की गई थी, क्योंकि मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा भी ब्राह्मण चेहरा थे.

राजस्थान के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “राज्य इकाई में शीर्ष पदों पर बैठे कई अन्य नेता भी ब्राह्मण थे. इसलिए जातिगत समीकरण को बनाए रखने की जरूरत महसूस की गई, यही वजह है कि पार्टी ने ओबीसी नेता राठौर को प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर चुना.”

69 वर्षीय मदन राठौर वर्तमान में राजस्थान से राज्यसभा सदस्य हैं. वे पहले विधायक भी रह चुके हैं. राठौर पाली जिले से हैं और 2003-08 और 2013-18 में मुख्यमंत्री रहीं वसुंधरा राजे के कार्यकाल में दो बार विधायक रह चुके हैं.

एक पदाधिकारी ने कहा, “उनके नाम पर इसलिए भी विचार किया गया क्योंकि वे तेली-घांची जाति से हैं. पाली जिले में भाजपा बहुत मजबूत स्थिति में है. राजस्थान से इस जाति के किसी नेता को मंत्री नहीं बनाया गया है और न ही केंद्र में इस जाति का कोई नेता है. इससे पार्टी के लिए सामाजिक संदेश जाएगा.”

भाजपा ने अपने राज्यसभा सांसद डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल को राजस्थान का पार्टी प्रभारी और पार्टी की राष्ट्रीय सचिव विजया राहटकर को सह-प्रभारी घोषित किया.

एक अन्य पार्टी नेता ने कहा कि राठौड़ की आरएसएस पृष्ठभूमि ने भी उनके मामले में मदद की.

भाजपा ने 2014 में सभी 25 सीटें और 2019 में 24 सीटें जीती थीं, जबकि एक सहयोगी ने शेष सीट जीती थी. हालांकि, राजस्थान में पार्टी को झटका लगा क्योंकि उसने 25 में से केवल 14 सीटें जीतीं, बाकी सीटें कांग्रेस (आठ सीटें) और उसके सहयोगियों के हाथों चली गईं.

पार्टी अब पांच विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों के लिए कमर कस रही है और जातिगत समीकरणों में बदलाव का उद्देश्य पार्टी की चुनावी संभावनाओं को बेहतर बनाना है.

एक नेता ने कहा, “वह पार्टी के एक वरिष्ठ नेता हैं और राज्य में भाजपा का ओबीसी चेहरा हैं. उन्होंने वास्तव में 2023 के विधानसभा चुनावों के लिए टिकट मांगा था, लेकिन उन्हें मना कर दिया गया था. इससे परेशान होकर उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल करने का फैसला किया, लेकिन बाद में पार्टी नेताओं के समझाने पर उन्होंने अपना नामांकन वापस ले लिया. कई लोगों का कहना है कि वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे बात की थी, जिसके बाद उन्होंने अपना फैसला बदल दिया.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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