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Thursday, 21 November, 2024
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झारखंड की आदिवासी सीटों पर हार के बाद BJP ने ‘बांग्लादेशी घुसपैठियों’ के कारण ‘जनसांख्यिकी परिवर्तन’ का मुद्दा उठाया

हाल ही में हाईकोर्ट ने सोरेन सरकार को बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए कहा है, जो विपक्षी पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है. झारखंड में नवंबर-दिसंबर में चुनाव होने हैं.

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रांची: झारखंड चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेता ‘बांग्लादेशी घुसपैठियों’ और संथाल परगना में जनसांख्यिकी परिवर्तन का मुद्दा उठा रहे हैं. उनका आरोप है कि सरकार ने इस क्षेत्र में आदिवासियों को हाशिये पर धकेल दिया है.

झारखंड हाईकोर्ट का 3 जुलाई का निर्देश भाजपा के लिए एक बड़ा झटका है, जो आम चुनावों में आदिवासी सीटों पर मिली करारी हार से परेशान है. इसने हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली झामुमो-कांग्रेस सरकार को घुसपैठियों की पहचान करने और उन्हें वापस भेजने के लिए कार्ययोजना तैयार करने के लिए तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया है.

जून के आखिरी सप्ताह में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा था कि संथाल परगना क्षेत्र में आदिवासियों की जनसंख्या निरंतर घटना एंव मुसलमानों की जनसंख्या में अप्रत्याशित वृद्धि “खतरे की घंटी” है.

मई के आखिरी सप्ताह में दुमका में एक लोकसभा चुनाव रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झामुमो-गठबंधन पर “घुसपैठियों को बढ़ावा देने” का आरोप लगाया था, जो आदिवासी महिलाओं को निशाना बना रहे थे.

झारखंड में नवंबर-दिसंबर में चुनाव होंगे, जहां 81-सदस्यीय विधानसभा में एसटी के लिए 28 सीटें आरक्षित हैं. इनमें से 18 सीटें संथाल परगना में हैं. 2019 में भाजपा ने इनमें से केवल चार सीटें जीती थीं.
हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में झामुमो ने संथाल परगना की दुमका और राजमहल दोनों एसटी सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा के निशिकांत दुबे ने लगातार चौथी बार गैर-आरक्षित सीट गोड्डा जीती थी.

दुमका, साहिबगंज, गोड्डा, जामताड़ा, पाकुड़, देवगढ़ जिलों से मिलकर बना संथाल परगना डिवीजन झारखंड के पूर्वी और पूर्वोत्तर हिस्सों को बनाता है और पश्चिम बंगाल के साथ अपनी सीमा साझा करता है. इस क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा संथाल आदिवासियों और मुसलमानों का वर्चस्व है, जबकि ओबीसी, एससी की भी अच्छी खासी आबादी है.

इस बीच, सामाजिक कार्यकर्ता डेनियल दानिश ने झारखंड हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें पिछले कुछ वर्षों में संथाल परगना में जनसांख्यिकी में आए बदलाव को उजागर किया गया था. याचिकाकर्ता के वकील राजीव कुमार ने कहा कि अदालत को बताया गया कि कैसे घुसपैठ ने जनसांख्यिकी को बदलना शुरू कर दिया है और गरीब आदिवासियों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर दिया है.

कुमार ने दिप्रिंट को बताया, “अदालत को यह भी बताया गया कि बांग्लादेश में एक प्रतिबंधित संगठन स्थानीय आदिवासी लड़कियों को फंसा रहा है और संथाल परगना के कई हिस्सों में उनसे शादी कर रहा है. सीमावर्ती क्षेत्र में कई अवैध मदरसे हैं, जहां घुसपैठिए पहले शरण लेते हैं और फिर स्थानीय क्षेत्र में बस जाते हैं.”

वकील ने बताया कि सरकार को दो सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने को कहा गया है और संथाल परगना के सभी छह उपायुक्तों को घुसपैठियों की पहचान करने और उन्हें निर्वासित करने के लिए कार्ययोजना तैयार करने का आदेश दिया गया है.

मामले की सुनवाई 18 जुलाई को फिर होगी.

अदालत के निर्देशों का स्वागत करते हुए भाजपा प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने दिप्रिंट से कहा कि भाजपा लगातार इस मामले को उठा रही है और आरोप लगाया है कि झामुमो और कांग्रेस घुसपैठियों को पनाह दे रहे हैं.


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राजनीति या चिंता का कारण?

संथाल परगना में आदिवासियों की तेज़ी से घटती जनसंख्या पर चिंता जताते हुए भाजपा के बाबूलाल मरांडी ने कहा कि 1951 में आदिवासियों की आबादी 44.69 प्रतिशत थी, जो 2011 में 16 प्रतिशत घटकर 28.11 प्रतिशत रह गई.

उन्होंने 30 जून को दुमका में कहा, “इस दौरान मुस्लिम आबादी 9.44 से बढ़कर 22.73 प्रतिशत हो गई. संथाल परगना के साहिबगंज और पाकुड़ जिले की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. सरकार को इस गंभीर मामले की ज़मीनी स्तर पर जांच के लिए एसआईटी गठित करनी चाहिए.”

संथाल परगना एसटी मोर्चा के भाजपा संयोजक रवींद्र टुडू ने आरोप लगाया कि घुसपैठिए आदिवासियों की मासूमियत का फायदा उठा रहे हैं.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा कि वोट बैंक की खातिर इन घुसपैठियों को राजनीतिक और प्रशासनिक दोनों स्तरों पर संरक्षण मिलता है. उन्होंने कहा, “बांग्लादेशी और बाहरी फेरीवाले जो साइकिलों पर दूरदराज के गांवों में रोजमर्रा का सामान बेचते हैं, आदिवासी महिलाओं को ठगते हैं और फिर स्थानीय इलाके में बस जाते हैं.”

राजमहल के भाजपा विधायक अनंत ओझा ने मुख्य निर्वाचन अधिकारी को 28 जून को एक ज्ञापन सौंपकर पश्चिम बंगाल की सीमा से लगे कई “संवेदनशील” मतदान केंद्रों में मतदाताओं की संख्या में वृद्धि की उच्च स्तरीय जांच की मांग की.
ओझा ने इस मामले में साहिबगंज जिले के डिप्टी कमिश्नर-कम-रिटर्निंग इलेक्शन ऑफिसर का ध्यान भी आकर्षित किया था.

विपक्ष के नेता अमर कुमार बाउरी ने दावा किया कि सरकार संथाल परगना में आदिवासियों को “खत्म” करने पर तुली हुई है. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “पाकुड़ में भी बूथों पर इसी तरह की (हिंदू-मुस्लिम) असमानता देखी जाती है. पार्टी ने स्थिति की समीक्षा के लिए एक समिति बनाई है.”

राजमहल और पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र राजमहल संसदीय क्षेत्र का हिस्सा हैं. राजमहल में मतदाताओं की संख्या 2019 में 3,01,353 से बढ़कर 2024 में 3,44,446 हो गई. इसी तरह पाकुड़ में मतदाताओं की संख्या 3,20,132 से बढ़कर 3,76,403 हो गई. कुल मिलाकर, 2024 के आम चुनावों में 2,18,946 अतिरिक्त मतदाता होंगे.

साहिबगंज के डिप्टी कमिश्नर हेमंत सती ने दिप्रिंट को बताया, “सभी दलों के ब्लॉक-स्तरीय एजेंटों के साथ दावों की पुष्टि करने के लिए जांच चल रही है. निष्कर्षों के अनुसार कार्रवाई की जाएगी.”

जामताड़ा से कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी ने विपक्षी दल द्वारा उठाए गए मुद्दों पर सवाल उठाया. अंसारी ने दिप्रिंट से कहा, “घुसपैठिए कौन हैं और कहां हैं? भाजपा केवल विभाजन पैदा करना चाहती है. कोई भी आरोप लगाने से पहले, भाजपा को केंद्र से घुसपैठियों के प्रवेश को रोकने के लिए कहना चाहिए. यह (मामला) केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में है.”

लेकिन शाहदेव ने पिछले साल राज्य खुफिया विभाग द्वारा सभी उपायुक्तों को भेजे गए पत्र का हवाला देते हुए कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के प्रवेश की सूचना है. भाजपा प्रवक्ता ने आरोप लगाया, “घुसपैठिए पहले संथाल परगना पहुंचते हैं, जिसके बाद वे सीमावर्ती क्षेत्र के मदरसों में शरण लेते हैं. फिर उनके नाम मतदाता सूची में दर्ज किए जाते हैं और साजिश के तहत उन्हें बसाया जाता है.”

जामताड़ा जिला भाजपा अध्यक्ष सुमित शरण ने शनिवार को दिप्रिंट से कहा, “जनसांख्यिकी परिवर्तन खतरनाक बिंदु पर पहुंच गया है. राजनीतिक संरक्षण में घुसपैठिए कई जगहों पर बसते देखे जा रहे हैं. इसका असर लोकसभा के नतीजों पर भी पड़ा है.”
2 जुलाई को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस में भाग लेते हुए भाजपा सांसद दुबे ने झारखंड सरकार पर वोट बैंक की राजनीति के लिए बांग्लादेशी घुसपैठियों को शरण देने का आरोप लगाया और पाकुड़ के गोपीनाथपुर गांव में हुई झड़पों को उजागर किया.

पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित गोपीनाथपुर गांव में 17 जून (ईद-उल-अजहा) को झड़प हुई थी, जिसमें पड़ोसी राज्य के उपद्रवियों ने कथित तौर पर तोड़फोड़, आगज़नी और बमबाजी की थी. भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया था. फिलहाल सीमावर्ती गांव में पुलिस गश्त जारी है.

21 जून को बौरी के नेतृत्व में भाजपा के चार विधायकों का एक दल स्थिति का जायजा लेने गांव पहुंचा था और 25 जून को एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन से इस प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच के आदेश देने का आग्रह किया था.

राजनीतिक विश्लेषक चंदन मिश्रा ने दिप्रिंट से कहा, “इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठियों का मामला चुनाव में जोरदार तरीके से उठाएगी. जिस तरह के मामले सामने आ रहे हैं, उससे साफ पता चलता है कि आने वाले समय में संथाल परगना के लिए यह चिंता का विषय बनता जा रहा है. सामाजिक ताने-बाने में बदलाव के साथ-साथ इसका असर राजनीति में भी देखने को मिल रहा है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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