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Wednesday, 20 November, 2024
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कोल प्रोजेक्ट से लेकर ‘गोपनीय’ बैठकों तक- पवार-अडाणी की दोस्ती और कैसे यह कांग्रेस की उलझने बढ़ाती रही है

अडाणी के लिए एनसीपी प्रमुख शरद पवार के ‘समर्थन’ ने सहयोगी दल कांग्रेस की उलझनें बढ़ा दी हैं, लेकिन ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है. पवार-अडाणी के संबंध वर्षों पुराने हैं और इसे लेकर पहले भी टकराव हुआ है.

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मुंबई: जून 2014 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष शरद पवार अहमदाबाद से सड़क मार्ग के जरिये माउंट आबू हिल स्टेशन के एक बंगले तक पहुंचे, और वहां उन्होंने तीन दिन उद्योगपति गौतम अडाणी के अतिथि के तौर पर बिताए.

यह बैठक, जिसके बारे में दोनों ही पक्षों ने सार्वजनिक रूप से कोई चर्चा तक नहीं की, ऐसे समय पर हुई थी जब महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने में तीन महीने बाकी थे. उस समय इस बातचीत को लेकर यही माना गया कि एनसीपी के अपनी सहयोगी कांग्रेस के साथ समीकरण बदल रहे हैं, जो तब महाराष्ट्र में सरकार में थी, और भाजपा के साथ निकटता बढ़ रही है जो कि कुछ महीनों पहले ही केंद्र में सत्तासीन हुई थी.

आखिरकार ऐसा हुआ भी. विधानसभा चुनावों से कुछ समय पहले ही एनसीपी ने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया और अंततः राज्य में सरकार बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजाप) को बाहर से समर्थन दिया.

अब आठ साल से अधिक समय बीतने के बाद पवार-अडाणी समीकरण एक बार फिर सवाल खड़े कर रहे हैं, भले ही राजनीतिक पर्यवेक्षक इस पर हैरान न हो रहे हों.

पिछले हफ्ते, अस्सी वर्षीय पवार ने कांग्रेस-नीत विपक्ष से अलग राह अपनाई और अडाणी समूह के प्रति अपना समर्थन जताया. वह एनडीटीवी के साथ खास बातचीत कर रहे थे, जो कि इस गुजराती कारोबारी के स्वामित्व वाला एक समाचार समूह है.

एनसीपी फिलहाल महा विकास अगाड़ी (एमवीए) का हिस्सा है, जो तीन महाराष्ट्र में तीन विपक्षी दलों का गठबंधन है, और इसके अन्य दो दलों में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और कांग्रेस शामिल हैं.

कांग्रेस लगातार आरोप लगी रही है कि जबसे अमेरिका स्थित शॉर्टसेलर हिंडनबर्ग रिसर्च की जनवरी की एक रिपोर्ट में अडाणी समूह पर स्टॉक हेरफेर और अन्य कदाचारों का आरोप लगाया गया है, मोदी सरकार इस समूह को बचाने में लगी है.

लेकिन एनडीटीवी के साथ बातचीत में इस विवाद पर चर्चा करते हुए पवार ने कहा कि ऐसा लगता है कि ‘देश के एक निजी औद्योगिक समूह को जानबूझकर निशाना बनाया गया है.’

उन्होंने कांग्रेस की अगुआई में विपक्ष की तरफ से की जा रही अडाणी के खिलाफ आरोपों की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच कराने की मांग को भी खारिज कर दिया. इसके बजाय, उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश के नेतृत्व में जांच बैठा दी है.

उन्होंने कहा, ‘एक बार जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामले की जांच के लिए समिति की घोषणा की जा चुकी है तो जेपीसी जांच की कोई आवश्यकता नहीं रही जाती है.’

हालांकि अंदरूनी राजनीतिक सूत्र अडाणी के साथ पवार के रिश्तों के बारे में लंबे समय से जानते हैं और यह बात कांग्रेस को कहीं न कहीं अखरती रही है, खासकर जब वह अपने सहयोगी के राजनीतिक उद्देश्यों को लेकर अटकलें लगाती है.

यद्यपि पार्टी अक्सर ही अडाणी-पवार संबंधों पर अपनी ‘आंखें मूंद लेने’ का विकल्प अपनाती रही है लेकिन महाराष्ट्र कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि ऐसा हमेशा संभव नहीं होता है.

पदाधिकारी ने कहा, ‘कभी-कभी ये रिश्ते अविश्वास उत्पन्न करते हैं, जैसा कि अभी हो रहा है. अडाणी से संबंध रखना एक बात है, लेकिन यह तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ये संकेत देने जैसा है कि ‘मैं भले ही विपक्ष में हूं, लेकिन अहम मुद्दों पर आपका समर्थन कर सकता हूं.’ वैसे भी शरद पवार का जोड़-तोड़ करते रहते हैं.’

इस बीच, एनसीपी नेताओं का कहना है कि पवार के केवल अडाणी ही नहीं, बल्कि सभी उद्योगपतियों के साथ अच्छे संबंध हैं.

एनसीपी के राज्यसभा सांसद मजीद मेमन ने दिप्रिंट से कहा कि इस मामले में अडाणी को पवार का समर्थन ‘राजनीतिक मजबूरियों से बाहर उनके व्यक्तिगत संबंधों में निहित’ हो सकता है.

मेमन ने कहा, ‘शरद पवार उन असाधारण राजनीतिक नेताओं में शुमार रहे हैं जो सभी पक्षों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध रखने में विश्वास करते हैं. वह राजनीतिक माहौल में चौंकाने वाले बयान देने और उसके बाद सफलतापूर्वक आलोचना से बाहर निकलने और उसे सही ठहराने के लिए जाने जाते हैं.’


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कोयला, बिजली, ‘दोस्ती’

राजनीतिक टिप्पणीकार प्रताप अस्बे ने दिप्रिंट के साथ बातचीत में कहा कि पवार दशकों से अडाणी के करीबी रहे हैं और ‘उद्योगपति का समर्थन करने वाले पहले राजनेताओं में से एक हैं.’ साथ ही कहा कि यह किसी से छिपा नहीं है कि दोनों अक्सर मिलते रहे हैं.

अस्बे ने कहा, ‘मुझे इन बैठकों में कोई राजनीतिक संदेश नहीं दिख रहा.’

फिर भी, अडाणी और पवार के बीच के समीकरणों को लेकर कई बार कुछ अजीब स्थितियां उत्पन्न होती रही हैं.

ऐसा ही एक वाकया उस समय का है जब पवार कांग्रेस के नेतृत्व वाली पूर्व संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में केंद्रीय कृषि मंत्री थे.

2013 में, यूपीए सरकार ने औद्योगिक गतिविधियों से बाघों की आबादी खतरे में पड़ने के मद्देनजर जब तडोबा टाइगर रिजर्व के पास कंपनी को आवंटित कोयला खदानों को रद्द कर दिया तो पवार अडाणी समूह के समर्थन में सामने आए थे. केंद्रीय पर्यावरण मंत्री के तौर पर कांग्रेस के नेता जयराम रमेश के कार्यकाल के दौरान कोयला ब्लॉकों का आवंटन रद्द किया गया था.

लगभग उसी समय, पवार ने अडाणी समूह के बिजली संयंत्र को गोंदिया में स्थापित करने पर जोर दिया था, जो एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल से संबंधित है. 2015 में प्रकाशित अपनी आत्मकथा लोक मजे संगति में एनसीपी प्रमुख ने लिखा है कि कैसे उनके आग्रह पर ही अडाणी समूह ने थर्मल पावर कारोबार में प्रवेश किया था.

पवार ने उसी किताब में ‘मेहनती, सरल और जमीन से जुड़े’ बताते हुए अडाणी की प्रशंसा की थी.

राजनीतिक निहितार्थ?

2021 में जब उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार—जिसमें एनसीपी भागीदार थी—महाराष्ट्र की सत्ता में थी तो पवार और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बीच अडाणी के अहमदाबाद स्थित आवास पर बैठक होने की अफवाहें थीं. हालांकि, संबंधित पक्षों में से किसी ने भी बैठक की पुष्टि नहीं की थी.

एनसीपी के नवाब मलिक ने ऐसी कोई बैठक होने की बात से साफ इनकार कर दिया था. शाह ने जरूर सांकेतिक रूप से संवाददाताओं से कहा था, ‘सब कुछ सार्वजनिक नहीं किया जा सकता’, और तत्कालीन महाराष्ट्र भाजपा प्रमुख चंद्रकांत पाटिल ने कहा कि पवार और शाह ‘किसी काम’ के लिए मिले हो सकते हैं.

हालांकि, बैठक ऐसे समय में हुई जब एमवीए सरकार का केंद्र सरकार के साथ लगातार टकराव जारी था और उसने पवार के संभावित राजनीतिक वार्ताओं पर सवाल भी उठाए.

मुंबई यूनिवर्सिटी में रिसर्चर डॉ. संजय पाटिल ने दिप्रिंट से कहा कि शरद पवार के उद्योगपतियों के साथ संबंध कभी गोपनीय नहीं रहे हैं, लेकिन समय-समय पर उनके साथ बैठकों के राजनीतिक निहितार्थ निकाले जाते रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘एमवीए का एकजुट रहना अतिआवश्यक होने के बावजूद शरद पवार का अडाणी के पक्ष में बोलना दर्शाता है कि यहां किसी तरह की राजनीतिक बातचीत चल रही है.’

उन्होंने कहा, ‘शरद पवार कभी भी कुछ हल्के अंदाज में नहीं कहते और इस समय अडाणी के लिए उनका समर्थन राहुल गांधी के अभियान और एमवीए की एकता के आह्वान से एकदम अलग राह पर नजर आ रहा है.’

पिछले साल जून में जब एमवीए सरकार सत्ता में थी, तब पवार ने अपने गृह नगर बारामती में अडाणी की मेजबानी भी की थी, जबकि अरबपति उद्योगपति एक साइंस पार्क का उद्घाटन करने के लिए वहां गए थे.

पवार के पोते और कर्जत जमखेड से एनसीपी विधायक रोहित पवार अडाणी को एयरपोर्ट से आयोजन स्थल तक ले गए. इसके अलावा, उनकी बेटी और बारामती से सांसद सुप्रिया सुले और भतीजे तथा बारामती विधायक अजीत पवार सहित पूरा पवार परिवार पूरे दिन वहां मौजूद रहा.

एनसीपी ने कहा ‘सबके दोस्त’, कांग्रेस आश्वस्त नहीं

महाराष्ट्र के एक वरिष्ठ एनसीपी विधायक जितेंद्र आव्हाड ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि शरद पवार के सभी प्रमुख उद्योगपतियों के साथ घनिष्ठ व्यक्तिगत संबंध हैं और अडानी के साथ उनके संबंधों को किसी अलग नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘वह इसी तरह के हैं. आप किसी भी उद्योगपति की बात करें तो शरद पवार के उनके साथ निजी संबंध होंगे जो उन्होंने 60 वर्षों में बनाए हैं. इस तरह उन्हें सबसे ज्यादा प्रोजेक्ट तब मिले जब वे सीएम थे. शरद पवार और अन्य राजनेताओं के बीच बुनियादी अंतर यही है कि उनके सभी के साथ परिवार जैसे रिश्ते हैं.’

आव्हाड ने यह भी याद दिलाया कि कैसे बजाज भाइयों, राहुल और शिशिर ने 2002 में अपने झगड़े में बतौर मध्यस्थ पवार पर भरोसा जताया था. उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी के अजीत गुलाबचंद और शरद पवार के बीच रिश्ते इतने करीबी है कि वे एक-दूसरे को सीधे उनके नाम से बुलाते हैं, वहीं नुस्ली वाडिया भी एनसीपी प्रमुख को करीबी दोस्त मानते हैं.

नाम न छापने की शर्त पर एनसीपी के एक अन्य नेता ने कहा कि पवार एक उद्योगपति पर केंद्रित राजनीतिक लड़ाई के पक्ष में नहीं हैं. उन्होंने कहा, ‘(अडाणी का) साम्राज्य नष्ट करने से केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को ही नुकसान होगा.’

मेमन ने भी इस बात को रेखांकित किया कि पवार और विपक्ष की राय में एकमात्र अंतर यही है कि वह किसी के पीछे पड़ जाने या बेवजह ही अपमान करने के पक्ष में नहीं हैं.

यह स्वीकारते हुए अडाणी साम्राज्य को लेकर चिंताएं जाहिर की गई थीं, मेमन ने कहा कि यहां तक कि पवार को भी इस मुद्दे की तह तक जाने से परहेज नहीं है.

मेमन ने आगे कहा, ‘मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान के साथ पिछले नौ सालों के दौरान कई बड़े सौदों के बारे में रिपोर्टें हैं और इसे लेकर कुछ संदेह भी जताया गया कि क्या सरकार अनुचित ढंग से अडाणी को लाभ पहुंचा रही है, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ. विपक्षी नेता केवल इतना ही कह रहे हैं कि इस तरह के कथित संदिग्ध सौदों में सच्चाई की गहन और पूरी ईमानदार से जांच होनी चाहिए. मुझे नहीं लगता कि शरद पवार भी इससे असहमत होंगे.’

उन्होंने कहा, ‘इस पर राय में एकमात्र अंतर यही है कि वह जेपीसी के बजाये सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त समिति की जांच में ज्यादा भरोसा कर रहे हैं जिसमें विपक्षी नेता सदस्य नहीं होते हैं.’

हालांकि, महाराष्ट्र कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पवार की पहल से कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में कुछ अविश्वास उपजा है. उन्होंने कहा, ‘कोई नहीं जानता कि आगे उनका कैलकुलेशन क्या होगा या वह अगला कदम क्या उठाएंगे.’

उन्होंने कहा, ‘शरद पवार ने हमसे अलग रुख अपनाने का फैसला किया, लेकिन इससे भी ज्यादा बड़ी बात है उन्होंने जिस तरह से ऐसा किया. अडाणी समूह के स्वामित्व वाले एक चैनल को दिए एक इंटरव्यू में अडाणी को समर्थन देना आश्चर्यजनक है.’

(अनुवाद : रावी द्विवेदी | संपादन : आशा शाह )

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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