नई दिल्ली: पंजाब विधानसभा चुनावों के नतीजों का राष्ट्रीय राजनीति पर खासा असर पड़ने के आसार है, क्योंकि राज्य के लोगों ने यहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस जैसे परंपरागत राजनीतिक दलों के बजाये एक नए विकल्प के पक्ष में मतदान किया है.
पंजाब की सत्ता हासिल करने के बाद आम आदमी पार्टी- जो 2015 से दिल्ली में सत्तासीन है- अब एकमात्र ऐसी गैर-कांग्रेसी, गैर-भाजपा पार्टी बन गई है जिसकी एक से ज्यादा राज्यों में सरकार होगी.
भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) की वेबसाइट के अनुसार, गुरुवार शाम तक, आप ने 65 सीटें हासिल की थीं और 117 सदस्यीय पंजाब विधानसभा में 42 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 27 और सीटों पर आगे चल रही थी. उत्तराखंड, गोवा और उत्तर प्रदेश के चुनावों में इसके प्रदर्शन के बारे कहने-सुनने के लिए कुछ खास नहीं रहा है.
अरविंद केजरीवाल, मौजूदा समय में दिल्ली के मुख्यमंत्री, ने 2012 में जब पार्टी की स्थापना की थी, तबसे ही आप खुद को राष्ट्रीय स्तर पर एक वैकल्पिक राजनीतिक ताकत के तौर पर पेश कर रही है. भाजपा के देश में प्रमुख सत्ताधारी दल बनने और कांग्रेस के लगातार पतन के बीच यह पार्टी देश के मुख्य विपक्षी दल की जगह हासिल करने की आकांक्षा रखती रही है.
हालांकि, आप दिल्ली में सबसे प्रभावशाली ताकत के रूप में उभरी, लेकिन इससे बाहर उसे ज्यादा सफलता नहीं मिली. यह पंजाब में जरूर एक बड़ी ताकत के तौर पर उभरी जब 2014 में अपने पहले लोकसभा चुनाव में 24 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 13 सीटों में से चार सीटों पर कब्जा जमाया, और 2017 के विधानसभा चुनावों में 20 सीटों पर सफलता के साथ आप को यहां प्रमुख विपक्षी दल का दर्जा मिल गया, हालांकि चुनाव आयोग (ईसी) के आंकड़ों के मुताबिक इसके वोट शेयर में करीब 15 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई.
प्रमुख नेताओं के पार्टी छोड़ने और अंदरूनी कलह ने जल्द ही आप को ढलान पर ला दिया. चुनाव आयोग के रिकॉर्ड के मुताबिक, 2019 के आम चुनावों में इसके प्रदर्शन में भारी गिरावट देखी गई, जिसमें पार्टी ने राज्य में केवल एक सीट जीती और उसका वोट शेयर घटकर 7.4 प्रतिशत रह गया.
गुरुवार के नतीजे आप की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को बढ़ावा देने वाले हैं. क्योंकि अब पार्टी इस साल के अंत में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव वाले राज्यों गुजरात और हिमाचल प्रदेश में मजबूती से अपने कदम जमाने की कोशिश कर सकती है और यह भी माना जा रहा है कि केजरीवाल गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा मोर्चे में एक बड़ी भूमिका तलाशने के लिए अपनी नई राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल करेंगे.
यह भी पढ़े: पंजाब में आम आदमी पार्टी भारी जीत की ओर, कांग्रेस और अकाली दल रुझानों में बहुत पीछे
‘आप को बड़ी सफलता, लेकिन आगे चुनौतियां भी कम नहीं’
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज में राजनीतिक विश्लेषक प्रवीण राय ने दिप्रिंट को बताया, ‘पंजाब के नतीजों के साथ केजरीवाल की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को एक मजबूत आधार मिला है और उनकी पार्टी अब 2024 में भाजपा को चुनौती देने वाले प्रमुख विपक्षी दलों के तौर पर उभर सकती है.’
वहीं, दिल्ली यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर तनवीर एजाज ने कहा, ‘लेकिन आगे चुनौतियां भी कम नहीं हैं.’
एजाज ने कहा, ‘दिल्ली के विपरीत पंजाब के पूर्ण राज्य होने के नाते केजरीवाल को ग्रामीण बुनियादी ढांचे, खाद्य सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा, कृषि जैसे क्षेत्रों से जुड़े शासन के मुद्दों को भी देखना जिसका अभी तक उनके पास कोई खास अनुभव नहीं है. अगर उन्हें विपक्षी मोर्चे के नेता के तौर पर उभरना है, तो उन्हें अगले एक साल में इन क्षेत्रों में कुछ कर दिखाना होगा.’
उन्होंने आगे कहा, ‘इसके अलावा, एकजुट विपक्षी प्रयासों से जुड़ने के खिलाफ रुख अपनाना भी उनके लिए कारगर नहीं होगा. केजरीवाल के लिए बेहतर यही होगा कि गठबंधन के मामले में बेहतर राजनीतिक पैंतरे अपनाएं और साझा हितों और राजनीतिक फायदों का पूरी सावधानी के साथ आकलन करें.’
‘केजरीवाल किसी और के नेतृत्व वाले विपक्षी मोर्चे से नहीं जुड़ेंगे’
आप के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि केजरीवाल फिलहाल आकार ले रहे किसी संयुक्त विपक्षी मोर्चे से दूरी बनाए रख सकते है, जिसके प्रयास खासतौर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तेलंगाना में उनके समकक्ष के. चंद्रशेखर राव की अगुआई में चल रहे हैं.
विपक्षी खेमे के राजनीतिक नेताओं ने कहा, खास तौर पर दोनों नेताओं ने अभी तक केजरीवाल के समर्थन के लिए उनसे संपर्क नहीं साधा है, क्योंकि वे विधानसभा चुनाव के नतीजों की प्रतीक्षा कर रहे थे.
आप के वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘अरविंद केजरीवाल इन नेताओं के साथ शिष्टाचार मुलाकातों से परहेज नहीं करेंगे. लेकिन मौजूदा स्थिति में वह खुद को दूसरों के नेतृत्व वाले किसी विपक्षी मोर्चे से जोड़ने नहीं जा रहे हैं. जहां तक उनके विपक्षी मोर्चे का नेतृत्व करने का सवाल है, तो इसका आकलन किया जा रहा है.’ साथ ही जोड़ा कि राज्य विधानसभा चुनावों के संबंध में पार्टी का अगला बड़ा लक्ष्य गुजरात है.
आप के वरिष्ठ नेता और दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमने दिल्ली से शुरुआत की और शासन का एक सफल मॉडल लेकर आए, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, सार्वजनिक परिवहन आदि क्षेत्रों में काफी सुधार हुआ. पंजाब में मिली प्रतिक्रिया ने हमें आने वाले दिनों में देशभर में अपने शासन मॉडल को सामने रखने के लिए प्रोत्साहित किया है.’
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय, जो आप के दिल्ली संयोजक भी हैं, ने कहा कि आप ‘स्पष्ट नजरिये के बिना किसी संयुक्त विपक्षी गुट के गठन पर बहुत अधिक जोर देने में भरोसा नहीं करती है.’
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘भारत ने अतीत में विपक्षी एकता के कई उदाहरण देखे हैं और यहां तक कि उनकी सरकारें भी बनीं, लेकिन इससे भूख, गरीबी, असमानता, बेरोजगारी आदि जैसी समस्याओं का कोई समाधान नहीं निकला.’
यह पूछे जाने पर कि क्या अब केजरीवाल की विपक्षी चेहरे के तौर पर ब्रांडिंग की जाएगी, गोपाल राय ने कहा, ‘2024 के आम चुनावों में भाजपा को टक्कर देने के लिए सर्वश्रेष्ठ दावेदार का चयन जनता ही करेगी. अपनी ओर से हम केवल एक ठोस शासन मॉडल विकसित करने और इसे राज्यों के लोगों के बीच तक ले जाने की कोशिश कर सकते हैं. हालांकि, निश्चित तौर पर अरविंद केजरीवाल के लिए मजबूत संभावनाएं हैं.’
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़े: BJP छोड़ सपा में शामिल हुए नेता दिख रहे हैं बेअसर, स्वामी प्रसाद मौर्य की सीट भी फंसी