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Saturday, 21 December, 2024
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बिहार चुनाव से पहले मिलिए नए तेजस्वी यादव से, ज्यादा परिपक्व और पार्टी पर जिनकी है मजबूत पकड़

एनडीए नेता भी निजी तौर पर स्वीकार करते हैं कि तेजस्वी ने विधानसभा चुनावों की तैयारी को ज़्यादा परिपक्वता से हैंडल किया है.

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पटना: बिहार के इस चुनावी सीज़न में एक नए तेजस्वी यादव दिख रहे हैं- राष्ट्रीय जनता दल पर कहीं ज़्यादा मज़बूत पकड़, खासकर इस पर कि उम्मीदवार किसे बनाना है. और उनके इस नए रूप ने दोस्तों और विरोधियों का ध्यान समान रूप से खींचा है.

दो हफ्ते पहले आरजेडी की अगुवाई वाला महागठबंधन सीटों के बंटवारे के बारे में एक प्रेस वार्ता करने जा रहा था, जब अचानक खबर आई कि तेजस्वी के विद्रोही स्वभाव के बड़े भाई तेज प्रताप यादव अपने घर पर बेहोश हो गए हैं.

विकासशील इंसान पार्टी जो बाद में सीटों के बंटवारे में देरी को लेकर महागठबंधन छोड़कर पदस्थ एनडीए में शामिल हो गई, के अध्यक्ष मुकेश साहनी ने कहा, ‘प्रेस वार्ता में देरी करते हुए तेजस्वी फौरन अपने भाई के घर गए. मैं उनके साथ था. हमने देखा कि तेज प्रताप बेहोश नहीं हुए थे. वो नाराज़ थे क्योंकि तेजस्वी ने उन्हें पांच सीटें नहीं दी थीं, जो वो अपने समर्थकों के लिए चाहते थे’.

साहनी ने कहा, ‘तेजस्वी तेज प्रताप को एक तरफ ले गए, उनसे बात की और उन्हें अपने साथ लाकर प्रेस कॉनफ्रेंस में अपने बगल में बिठा भी लिया’.

लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के परिवार की भीतरी तकरार- तेजस्वी बनाम तेज प्रताप और उनकी सबसे बड़ी बहन मीसा भारती- आरजेडी के लिए एक बड़ी बाधा रही है. पिछले साल के लोकसभा चुनावों में तेज प्रताप ने तेजस्वी द्वारा चुने गए पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ अपने पांच उम्मीदवार उतार दिए और अपनी अलग रह रही पत्नी के पिता चंद्रिका राय के खिलाफ सारण में प्रचार भी किया जबकि जहांनाबाद में उनके उम्मीदवार को इतने वोट मिल गए कि उसने आरजेडी की हार पक्की कर दी.

लेकिन इस महीने होने जा रहे विधानसभा चुनावों से पहले तेजस्वी ने पार्टी और आयोजनों पर पूरा नियंत्रण कर लिया है और उन्हें अपने पिता लालू का पूरा समर्थन हासिल है, जो रांची जेल में रहते हुए भी पार्टी अध्यक्ष बने हुए हैं. एक वरिष्ठ आरजेडी नेता ने दिप्रिंट से कहा कि पिछले दो महीने में तेजस्वी सिर्फ एक बार रांची गए हैं लेकिन वो हर रोज़ अपने पिता से सलाह मश्विरा करते हैं और लालू ने परिवार के दूसरे सदस्यों को साफ कर दिया है कि तेजस्वी का कहा ही आखिरी होगा.

इसलिए उन्होंने मनेर विधायक बिरेंदर यादव को हटाने की, मीसा भारती की मांग नहीं मानी, जो लोकसभा चुनावों में पाटलीपुत्र से अपनी हार के लिए, बिरेंदर को ज़िम्मेदार मानती हैं, चूंकि जिस क्षेत्र में उनका प्रभाव है वहां के आरजेडी समर्थकों में मतदान कम रहा था.

तेजस्वी ने तेज प्रताप के समर्थकों के लिए पांच सीटों की मांग भी नहीं मानी लेकिन जब तेज प्रताप ने हसनपुर सीट से पर्चा भरा तो भाई के साथ समस्तीपुर ज़रूर गए.


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‘ज़्यादा परिपक्व’

आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कहा कि आरजेडी के 144 उम्मीदवारों की सूची (अन्य 99 सहयोगियों को दिए गए हैं) से ज़ाहिर होता है कि बिहार के नेता प्रतिपक्ष और आरजेडी व नीतीश कुमार की जेडी(यू) के गठबंधन के समय डिप्टी सीएम रहे तेजस्वी में अधिक परिपक्वता आ गई है.

तिवारी ने कहा, ‘मुझे तेजस्वी पहले से अधिक परिपक्व लगते हैं. आरजेडी की लिस्ट देखिए- इसमें एक नई सोशल इंजीनिरिंग है. आरजेडी ने समाज के सभी तबकों को जगह देने की कोशिश की है’.

उन्होंने कहा, ‘आरजेडी ने ईबीसी वर्गों को 18 सीटें दी हैं- वो वर्ग जिसे पहले के मौकों पर अनदेखा किया जाता था. उसने उच्च जातियों को सिर्फ कांग्रेस के लिए नहीं छोड़ दिया है और इस वर्ग से एक दर्जन से अधिक उम्मीदवार उतारे हैं. तेजस्वी ने उन वर्गों तक पहुंचने का वास्तविक प्रयास किया है जिन्हें आरजेडी के खिलाफ समझा जाता है’.

ये परिपक्वता उसमें भी नज़र आती है, जिस तरह तेजस्वी ने गठबंधन को संभाला किया है और वो स्पष्ट रहे हैं कि किसे गठबंधन में रखना है, किसे नहीं रखना है. उन्होंने लोकसभा सहयोगियों- आरएलएसपी, वीआईपी और एचएएम को छोड़ दिया. वो पार्टियां जो पहले 40 में से 13 सीटों पर लड़ीं थीं लेकिन उनमें से कोई पार्टी, ना तो एक भी सीट पाई और ना ही उन्हें उन जातियों के वोट मिले जिनके प्रतिनिधित्व का वो दावा करते हैं. इनकी बजाए उन्होंने वाम पार्टियों को साथ ले लिया.

आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने कहा, ‘इस बार हमने उनके दवाब में आने और गैर-अनुपातिक सीटों की मांग मानने से इनकार कर दिया’.

वाम पार्टियां भले ही हाशिए पर चली गईं हों लेकिन ज़मीनी स्तर पर उनके कैडर मौजूद हैं. मसलन, सीपीआई(एम) का महादलितों या ईबीसी और दलितों के 21 वर्गों में जनाधार है जिन्होंने नीतीश कुमार को वोट दिया है. तेजस्वी सीपीआई (एमएल) की 40 सीटों की मांग को भी, 19 पर लाने में कामयाब हो गए. कुल मिलाकर, वाम पार्टियों को राज्य की 243 में से 29 सीटें मिली हैं.

आरजेडी के लिए कांग्रेस को संभालना ज़्यादा मुश्किल रहा है क्योंकि अपने सिमटे हुए जनाधार के बावजूद वो अनुपात से अधिक सीटें मांग रही थी. इस बार भी कांग्रेस ने 75 सीटों की मांग की और अकेले चुनाव में उतरने की धमकी दी. तेजस्वी ने जो बातचीत की अगुवाई कर रहे थे, सौदा करके उसे 70 सीटें दे दीं.

एक वरिष्ठ आरजेडी नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘हम कांग्रेस को छोड़ना गवारा नहीं कर सकते क्योंकि उससे हमारे मुसलमान मतदाताओं के लिए एक और रास्ता खुल जाएगा…राष्ट्रीय राजनीति में हमारी भूमिका भी कमज़ोर पड़ जाती’.


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आरजेडी के पुराने सदस्यों से निपटना

आरजेडी उम्मीदवारों की सूची पर फिर से नज़र डालने पर दिखता है कि विरोधी लहर से बचने के लिए तेजस्वी ने अब्दुल बारी सिद्दीकी और लालू के ख़ासम-ख़ास भोला यादव जैसे पार्टी के पुराने नेताओं को शिफ्ट कर दिया है. सीतामढ़ी के परिहार से उन्होंने आरजेडी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राम चंद्र पुरबे को हटाकर दिल्ली में तैनात एक आईआरएस अधिकारी की पत्नी रितु जायसवाल को टिकट दिया है जो अपने पैतृक गांव में ही रहीं और ‘मुखिया’ चुनी गईं थीं.

लेकिन लिस्ट में अपराधियों से राजनेता बने लोगों की पत्नियां भी शामिल हैं.

एक अन्य आरजेडी नेता ने समझाया, ‘ये एक सियासी मजबूरी है. मसलन, तेजस्वी को रामा सिंह की पत्नी को टिकट देना था क्योंकि अपने चुनाव क्षेत्र राघोपुर में उन्हें राजपूत वोट चाहिए और रामा सिंह का वहां के कुछ इलाकों में असर है’.


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एजेंडा पर बने रहे

लॉकडाउन की शुरूआत में तेजस्वी ने कोविड-19 प्रबंधन और बिहार के प्रवासी श्रमिकों की हालत के मुद्दे उठाए थे लेकिन जब उन्हें लगा कि चुनाव प्रचार में ये मुद्दे नहीं रहेंगे तो उन्होंने इन्हें छोड़ दिया. उन्होंने पटरी बदलते हुए वो मुद्दा पकड़ लिया जिससे बिहारियों की हर जाति और वर्ग दोचार है- बेरोज़गारी.

बिहार में बेरोज़गारी की दर 46 प्रतिशत है और तेजस्वी ने वादा किया है कि अगर वो सत्ता में आते हैं तो पहली कैबिनेट बैठक में 10 लाख युवाओं को रोज़गार देंगे जिसका उनके विरोधियों ने तिरस्कार किया.

बीजेपी के चुनाव प्रभारी और महाराष्ट्र के पूर्व सीएम देवेंद्र फड़णवीस की प्रतिक्रिया थी, ‘क्या वो तमंचे बांटने का इरादा रखते हैं?’ लेकिन तेजस्वी अपनी बात पर डटे हुए हैं.

जब केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने बयान दिया कि अगर आरजेडी सत्ता में आ गई, तो ‘कश्मीरी आतंकवादी’ बिहार में आ जाएंगे तब भी तेजस्वी माहौल को सांप्रदायिक बनाने के जाल में नहीं फंसे. उन्होंने टिप्पणी की, ‘मैं बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और कुशासन के अपने मुख्य मुद्दों से नहीं भटकूंगा’.

एनडीए नेता भी निजी तौर पर स्वीकार करते हैं कि तेजस्वी ने विधानसभा चुनावों की तैयारी को ज़्यादा परिपक्वता से हैंडल किया है.

एक सीनियर बीजेपी नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘उनके पास ज़रूर कोई सक्षम सलाहकार होगा’.

आरजेडी नेता नाम छिपाते हुए कहते हैं कि अपने पत्ते अच्छे से खेलने के बावजूद बिहार को जीतना एक मुश्किल काम है. एक आरजेडी विधायक ने कहा, ‘लेकिन छह महीने पहले लड़ाई एनडीए के पक्ष में एक तरफा लग रही थी. तेजस्वी ने इसे एक मुकाबले में बदल दिया है. वो ये संदेश देने में कामयाब हो गए हैं कि वो बिहार की राजनीति में लंबे समय तक टिकने वाले हैं’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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