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Friday, 8 November, 2024
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‘बहुत कुछ गलत हो गया’- मध्य प्रदेश निकाय चुनावों में हार के बाद आत्ममंथन की मुद्रा में है BJP

बीजेपी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और राज्य पार्टी प्रमुख वी.डी. शर्मा के गढ़ों समेत 16 मेयर पदों में से 7 में हार गई है, वहीँ कांग्रेस ने 1999 के बाद से अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 5 पदों पर जीत हासिल की.

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नई दिल्ली: मध्य प्रदेश नगरपालिका चुनाव के दूसरे चरण, जिसके परिणाम बुधवार को घोषित किए गए, में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने तीन स्थानीय निकायों में महापौर का पद गंवा दिया है और इनमें से दो पद अब कांग्रेस के पास चले गए हैं.

भाजपा के जिन नेताओं से दिप्रिंट ने बात की उन्होंने पार्टी की इस हार के लिए अंदरूनी कलह, मेयर उम्मीदवारों के खराब चयन और अति आत्मविश्वास को जिम्मेदार ठहराया.

बीजेपी द्वारा गंवा दिए गए एक मेयर पदों में से एक मुरैना में था जो केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का गढ़ है. इसे दूसरी बड़ी हार कटनी में मिली है जो कि मध्य प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष और लोकसभा सांसद वी.डी. शर्मा का गढ़ माना जाता है. कटनी में यह पद बीजेपी के बागी उम्मीदवार के पास चला गया है.

17 जुलाई को घोषित किए गए पहले चरण के चुनावों के परिणाम की गिनती को एक साथ मिला दें तो बीजेपी ने 2015 के विपक्ष का सूपड़ा साफ करने वाली जीत से काफी नीचे आते हुए इस चुनाव में दांव पर लगे 16 मेयर पदों में से केवल नौ पर जीत हासिल की है.

इस बीच, कांग्रेस का आंकड़ा शून्य से बढ़कर पांच हो गया है और आम आदमी पार्टी (आप) ने भी पहली बार सिंगरौली में पद पर एक जीत हासिल की है.

महापौर के पांच पदों पर कब्जे के साथ कांग्रेस ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया क्योंकि मध्य प्रदेश ने साल 1999 में ही इस पद के लिए प्रत्यक्ष चुनाव शुरू किया था. इससे पहले पार्टी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2009 में हुआ था, जब उसने देवास, उज्जैन और कटनी में मेयर पदों पर जीत हासिल की थी.

अपने इस जबरदस्त नुकसान के बावजूद, बीजेपी के सूत्रों के अनुसार, राज्य के लगभग 80 प्रतिशत नगर निगमों और परिषदों में अभी भी बीजेपी का बहुमत है. पार्टी ने 40 नगरपालिका परिषदों में से 24 और 169 नगर परिषदों में से 123 में जीत हासिल की है.

स्थानीय निकाय चुनाव के ये नतीजे राज्य में विधानसभा चुनाव होने से एक साल पहले आए हैं.


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‘आंतरिक कलह, उम्मीदवारों का खराब चयन, अति आत्मविश्वास’

दिप्रिंट के साथ बात करते हुए, मध्य प्रदेश के एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने स्वीकार किया कि यह हार पार्टी के लिए एक झटका है लेकिन इसके बावजूद पार्टी ने नौ मेयर पदों पर जीत हासिल की है.

उन्होंने कहा, ‘अगर हम इसकी तुलना 2015 के परिणाम से करें तो यह निश्चित रूप से एक बड़ा झटका है लेकिन अभी भी अधिकांश निगमों और नगर परिषदों में बहुमत हमारे पास ही है.’

उन्होंने कहा कि सबसे चिंताजनक परिणाम राज्य के उत्तरी हिस्से में स्थित चंबल बेल्ट – जहां मुरैना स्थित है – से आए हैं और वह भी ‘इस क्षेत्र से एक बहुत वरिष्ठ नेता’ के आने के बावजूद.

बीजेपी के मध्य प्रदेश अध्यक्ष शर्मा ने कहा कि पार्टी इस हार की पूरी तरह से समीक्षा करेगी और खुद को हुए नुकसान के कारणों की जांच करेगी.

शर्मा ने दिप्रिंट से कहा, ‘देखिए, बीजेपी ने स्थानीय निकाय चुनावों में 95 प्रतिशत सीटें जीती हैं. यह केवल मेयर चुनावों में हुआ है कि हमने उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं किया है. हम इसकी समीक्षा करेंगे और आवश्यक बदलाव करेंगे.’

हालंकि, उन्होंने इस बात की ओर इशारा करते हुए नुकसान को काफी कम बताया कि भले ही बीजेपी ने ‘मेयर [पदों] को खो दिया है लेकिन इसके पास पहले से अधिक पार्षद हैं. जैसे कि रीवा में या फिर कटनी में भी.’

भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता के मुताबिक विधानसभा चुनाव से एक साल पहले आए इन नतीजों ने पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल को प्रभावित किया है.

इस नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो शुरू से ही गलत हो गईं. मेयर पद के लिए स्थानीय उम्मीदवारों का चयन उनके प्रदर्शन पर आधारित नहीं था. कार्यकर्ताओं ने बहुत मेहनत की लेकिन वरिष्ठ नेताओं के बीच लगातार हो रही अंदरूनी कलह ने उनके किए-कराए पर पानी फेर दिया.’


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तोमर और शर्मा के गढ़ों में हारी बीजेपी

बुधवार को घोषित परिणामों से पता चलता है कि बीजेपी ने देवास और रतलाम में मेयर पदों पर जीत हासिल की है. मुरैना और रीवा में कांग्रेस जीती है, जबकि कटनी में इस पद पर भाजपा की बागी उम्मीदवार प्रीति सूरी ने जीत हासिल की है. 2015 में भाजपा ने इन सभी पांचों पदों पर जीत हासिल की थी.

पार्टी को सबसे बड़ा झटका कटनी और मुरैना से लगा है.

मुरैना में कांग्रेस की मेयर पद की प्रत्याशी शारदा सोलंकी ने भाजपा की मीना जाटव को 12,874 मतों से हराया. जाटव को मिले 41,403 वोटों की तुलना में सोलंकी ने 54,277 वोट हासिल किए. यह हार न केवल केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बल्कि मध्य प्रदेश से आने वाले एक अन्य केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा किए गए आक्रामक प्रचार के बावजूद हुई है.

राज्य बीजेपी अध्यक्ष शर्मा के गढ़ और जबलपुर संभाग में आने वाले कटनी में बीजेपी की बागी सूरी ने पार्टी की आधिकारिक उम्मीदवार ज्योति दीक्षित को 5 हजार से अधिक मतों से हराया.

शर्मा के खजुराहो संसदीय क्षेत्र में कटनी जिले के तीन विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं.

बीजेपी के लिए एक और महत्वपूर्ण नुकसान रीवा हुआ है. यह एक ऐसा नगर निकाय जिस पर से भाजपा ने 24 वर्षों के बाद पहली बार अपना नियंत्रण खो दिया. यहां, आठवें दौर की मतगणना के अंत में कांग्रेस के मेयर पद के प्रत्याशी अजय मिश्रा 9,299 मतों से आगे चल रहे थे.

मध्य प्रदेश में भाजपा के एक नेता ने दिप्रिंट को बताया कि मेयर प्रत्याशी को चुनने के कारण पार्टी कटनी से हार गई है.

इस नेता ने कहा, ‘प्रीति सूरी (एक पूर्व पार्षद) एक मजबूत उम्मीदवार थीं. अपने सामाजिक कार्यों के कारण उन्हें अपने क्षेत्र के लोगों की काफी सद्भावना मिला है. उन्होंने कोविड के दौरान जहां जरूरत थी वहां खून उपलब्ध कराकर और पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करके लोगों की मदद की.’

इस नेता का दावा है कि पार्टी भाजपा के पूर्व राज्य मंत्री संजय पाठक के दबाव के आगे झुक गई और उसने दीक्षित को अपने मेयर उम्मीदवार के रूप में चुना.

इस नेता ने कहा, ‘उन्होंने (पाठक ने) कटनी में पार्टी की जीत सुनिश्चित करने का वादा किया था लेकिन हम अंदरूनी कलह के कारण हार गए.’

एक अन्य बीजेपी नेता ने दिप्रिंट को बताया कि हालांकि मुरैना (चंबल) और कटनी दोनों में मिली हार काफी मायने रखती है. मगर रीवा और सिंगरौली में हुई हार का मतलब है कि राज्य के विंध्य क्षेत्र में पार्टी के पांव उखड़ रहें हैं.

विंध्य मंडल में राज्य के रीवा, सतना, सीधी और सिंगरौली जिले शामिल हैं. जबकि चंबल में तीन जिले – मुरैना, भिंड और श्योपुर – शामिल हैं.

इस नेता का कहना था, ‘मुरैना के उम्मीदवार को तोमर की वजह से तरजीह दी गई लेकिन अब हम न केवल मेयर की सीट गंवा चुके हैं. बल्कि नगर निगम में भी हमारी संख्या कम हो गई है. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अगले साल के विधानसभा चुनावों में परिणाम अलग होंगे क्योंकि नगरपालिका चुनावों में लोग ‘शहरी मुद्दों’ के आधार पर मतदान करते हैं.

मुरैना जिला भाजपा अध्यक्ष योगराज गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया कि ये परिणाम पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है.

उन्होंने कहा, ‘हमें यह देखना होगा कि हम अपने सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद क्यों हार गए. कांग्रेस ने परिषद में बड़ी संख्या में सीटें जीतीं, जो चिंताजनक बात है.’

मुरैना में कांग्रेस ने 19 वार्डों में जीत हासिल की. वहीं भाजपा ने 15 और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने आठ वार्ड जीते.

हालांकि, बीजेपी के लिए उम्मीद की एक किरण खरगोन, जहां अप्रैल में रामनवमी के जुलूस के बाद सांप्रदायिक झड़पें हुईं थीं, में उसकी जीत से आई है. यहां कांग्रेस को मिले चार और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन द्वारा जीते गए तीन वार्डों की तुलना में पार्टी ने नगरपालिका चुनाव में दांव पर लगे 33 में से 19 वार्ड जीते.

एआईएमआईएम ने जबलपुर में दो, खंडवा में एक और बुरहानपुर में एक वार्ड जीता है.


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‘आत्ममंथन का समय’

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कटनी में विजयी हुई बागी उम्मीदवार प्रीति सूरी पार्टी की जिला सचिव थीं जिन्हें पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का संरक्षण प्राप्त था.

उन्होंने कहा, ‘इसीलिए टिकट न मिलने के बाद उनमें अकेले लड़ने लायक विश्वास था. दो वरिष्ठ नेताओं के बीच की लड़ाई की कीमत हमें इस सीट से चुकानी पड़ी.’

राज्य बीजेपी के एक नेता ने कहा कि पार्टी आम आदमी पार्टी (आप) के बढ़ते प्रभाव को लेकर भी चिंतित है.

इस नेता ने कहा कि इन चुनावों का जायजा लेने और पार्टी के ‘खराब प्रदर्शन’ के कारणों की पहचान करने के लिए बुधवार को एक अनौपचारिक समीक्षा बैठक की गई.

पार्टी के एक अन्य नेता ने इस ओर इशारा किया कि यह तथ्य कि भाजपा अभी भी ‘वार्ड चुनाव में 80 प्रतिशत से अधिक’ जीतने में सफल रही है, यह दर्शाता है कि लोग पार्टी के पक्ष में थे लेकिन उन्होंने मेयर उम्मीदवारों को खारिज कर दिया.

पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘महापौर पद के उम्मीदवार की चयन प्रक्रिया के दौरान, उन लोगों के बारे में प्रतिक्रिया (फीड बैक) साझा की गई थीं जिनके चुनाव हारने की संभावना थी. लेकिन जमीनी प्रतिक्रिया को कभी गंभीरता से नहीं लिया गया और वरिष्ठ नेताओं ने अपने करीबी सहयोगियों को चुना. इसलिए यह तो होना ही था.’

अब राज्य में समग्र चुनाव प्रबंधन, शर्मा और चौहान ने पार्टी के मामलों को कैसे संभाला. इस पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं.

एक अन्य पदाधिकारी ने कहा, ‘पूरे देश में मतदाता कांग्रेस को नकार रहे हैं लेकिन फिर भी मध्य प्रदेश में अगर मतदाता कांग्रेस को चुन रहा है तो ज्यादा आत्ममंथन की जरूरत है. यहां भी कुछ नया प्रयोग करने की जरूरत है और चुनाव लड़ने का वही आजमाया हुआ और परखा हुआ फॉर्मूला काम नहीं करेगा.’

राज्य के एक अन्य बीजेपी नेता ने कहा कि यह तथ्य की पार्टी ने स्थानीय निकायों में 80 प्रतिशत सीटें हासिल की है. यह जाहिर करता है कि भाजपा के पार्षद जीत रहे थे और उसके बूथ बरकरार थे.

उन्होंने कहा, ‘हमारे मेयर उम्मीदवारों का चयन वरिष्ठ नेताओं की हनक और उनकी पसंद के अनुसार किया गया था. राज्य में सत्ताधारी दल होने के बावजूद, जनता हमारे पार्षदों पर अपना विश्वास कायम रखे हुए है. तो यह जमीन पर मौजूद कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं है. लोगों ने राज्य के नेताओं द्वारा थोपे गए उम्मीदवारों को खारिज कर दिया है.’

उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस की चुनावी रणनीति चतुराई भरी थी.

इस नेता का कहना था, ‘उनकी प्रचार अभियान की रणनीति बेहतर थी लेकिन उनका अंतिम छोर पर लोगों से उनका जुड़ाव उतना मजबूत नहीं है. इसलिए उन्हें पर्याप्त पार्षद पद नहीं मिले हैं.’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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