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Friday, 22 November, 2024
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झारखंड में 80 सीटें एक तरफ, एक सीट पर है सबकी नजर

झारखंड में सभी लोग सीएम रघुवर दास और सरयू राय की लड़ाई का आनंद ले रहे हैं और परिणामों का अनुमान लगा रहे हैं.

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रांची: झारखंड में 81 सीटों के लिए मतदान होना है, लेकिन यहां चर्चा बस एक सीट पर है. लोग अपने विधानसभा से ज्यादा सीएम रघुवर दास और सरयू राय की लड़ाई का आनंद ले रहे हैं और परिणामों का अनुमान लगा रहे हैं. साफ है कि 80 सीट एक तरफ और जमशेदपुर पूर्वी एक तरफ हो चुका है.

एग्रिको, जहां रघुवर दास का घर है, लोग रघुवर-रघुवर कर रहे हैं. हालांकि, यहां से बाहर निकलते ही माजरा बदल जा रहा है. सिलेंडर छाप के पोस्टर पटे पड़े हैं. बीजेपी समर्थक मिथिलेश गुप्ता से पूछा क्या होगा इस बार, उन्होंने इशारों में कहा जो दिख रहा है, वही है इस बार.

कांग्रेस जिलाध्यक्ष विजय खान अलग उम्मीद जताए बैठे हैं कहते हैं पहले तो लोग रघुवर दास से त्रस्त हैं, इसके बाद बीजेपी से. दोनों ही नेता बीजेपी के ही हैं, भले ही एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं. इसमें लोग अब केवल गौरव वल्लभ की तरफ उम्मीद लगाए बैठे हैं.

अंग्रेजी दैनिक टेलीग्राफ के पत्रकार अनिमेष बिसोई कहते हैं सरयू को बीजेपी नहीं, रघुवर से नाराज कार्यकर्ताओं का सपोर्ट मिला है. इसकी संख्या को किसी ने भी कम आंका, तो ये बड़ी गलतफहमी होगी. इसको राजस्थान के चुनावी नारे मोदी तुझसे बैर नहीं, बसुंधरा तेरी खैर नहीं से समझेंगे तो आसानी होगी. इसका असर ये है कि जब प्रचार के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए तो उन्होंने इशारों में यही कहा कि जहां कमल है, वहीं नरेंद्र मोदी है.

पुलिस मुख्यालय कवर कर रहे रांची के एक सीनियर क्राइम रिपोर्टर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि खुफिया रिपोर्ट में भी यही कहा गया है कि परिणाम एक तरफा नहीं होने जा रहा. रघुवर और सरयू के बीच हार जीत का अंतर बहुत कम होने जा रहा है.

इस सीट पर प्रचार के लिए पीएम मोदी खुद पहुंचे. इसके अलावा सभा न होने के बावजूद गृहमंत्री अमित अमित शाह ने तीन दिसंबर को पहले और फिर पांच दिसंबर को बीजेपी कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने होटल के बंद कमरे में कार्यकर्ताओं की बैठक ली. पत्रकार अनिमेष बिशोई के मुताबिक गुरूवार यानी 5 दिसंबर को ही पूरे पांच साल में रघुवर दास ने पहली बार स्थानीय पत्रकारों को बुलाकर प्रेस कॉन्फ्रेंस किया गया.


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दोहरा सकता है इतिहास, लेकिन सरयू ने रास्ता थोड़ा मोड़ दिया है. साल 1995 में ऐसी ही तस्वीर बनी थी. तब के बीजेपी के कद्दावर नेता दीनानाथ पांडेय जमशेदपुर पूर्वी से तीन बार विधायक रह चुके थे. उनका टिकट काट कर बीजेपी ने रघुवर दास को टिकट दे दिया था. वो बगावत कर बैठे और निर्दलीय चुनी मैदान में उतर गए. परिणाम आज भी रघुवर दास के कार के नंबर में दर्ज है. रघुवर 1101 वोट से चुनाव जीत गए थे.

ठीक इसी तरह साल 2005 में जमशेदपुर पश्चिमी तीन बार विधायक रह चुके मृगेंद्र प्रताप सिंह का टिकट काटकर सरयू राय को उम्मीदवार घोषित किया. मृगेंद्र प्रताप बाबूलाल मरांडी की सरकार में वित्त और अर्जुन मुंडा की सरकार में विधानसभा अध्यक्ष भी रहे थे. इन्होंने भी बगावत किया और राजद से टिकट ले लिया. उन्हें मात्र 5588 वोट मिले और वह तीसरे स्थान पर रहे.

हालांकि, सरयू राय ने यहां चालाकी की है. अपनी सीट जमशेदपुर पश्चिमी के बजाय जमशेदपुर पूर्वी में उतर गए. इस सीट से कुल 20 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं.

प्रमुख प्रत्याशियों का प्रोफाइल

रघुवर दास

लगातार पांच बार रहे हैं विधायक, पहली बाजी 1101 तो आखिरी बाजी 70157 मतों से जीत चुके हैं. रघुवर दास
सन 1995 में बीजेपी के ही दिग्गज नेता रहे की टिकट काट दी गई. वह बगावत कर बैठे, लेकिन बाजी हार गए. जीत का सेहरा रघुवर दास के सिर सजा. उन्हें कुल 26880 वोट मिले और उन्होंने अपने निटकटम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के केपी सिंह को 1101 वोट से हराया. दूसरी बार सन 2000 में 47963 मतों से, तीसरी बार 2005 में 18398 मतों से, चौथी बार 2009 में 22963 मतों से और पांचवी बार 2014 में 70157 के भारी मतों से एकतरफा जीत हासिल की. उस विधानसभा चुनाव में रघुवर दास को 61 प्रतिशत वोट मिले थे.

जेपी आंदोलन से अपने राजनैतिक कैरियर की शुरूआत करने वाले रघुवर दास ने पहले सन 1977 में जनता पार्टी ज्वाइन किया. तीन साल बाद 1980 में उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया. यहां जिला समिति से होते हुए राज्य बीजेपी अध्यक्ष और फिर शीबू सोरेन की छह महीने वाली सरकार में उप-मुख्यमंत्री तक बनें.

सरयू राय

ईमानदार और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़नेवाले नेता की छवि वाले सरयू राय भी जयप्रकाश आंदोलन से जुड़े रहे हैं. फिर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए. अविभाजित बिहार में सन 1998 से 2004 तक बिहार विधान परिषद (एमएलसी) के सदस्य रहे. पहली बार सन 2005 में जमशेदपुर पश्चिमी सीट से उन्होंने चुनाव लड़ा और विधायक बने.

हालांकि 2009 के चुनाव में वह कांग्रेस के बन्ना गुप्ता से 3000 मतों से हार गए. अपने राजनैतिक करियर में इन्होंने जगन्नाथ मिश्रा, लालू प्रसाद यादव, मधु कोड़ा के भ्रष्टाचार के खिलाफ जमकर लड़ाई लड़ी. तीनों ही जेल गए. यही नहीं, बिहार के पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता कीर्ति झा आजाद के पिता चंद्रशेखर झा आजाद के खिलाफ भी भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ी है.

गौरव बल्लभ

पहली बार चुनावी मैदान में उतरे गौरव बल्लभ मूल रूप से राजस्थान के रहने वाले हैं. जमशेदपुर के जेवियर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में गेस्ट फैकल्टी हैं. चार्टर्ड अकाउंटेंट रहे गौरव नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बैंक मैनेजमेंट पूना में अस्सिटेंट प्रोफेसर, महर्षि दयानंद सरस्वती यूनिवर्सिटी अजमेर से एमकॉम में गोल्ड मेडलिस्ट भी रहे हैं. यही नहीं उन्होंने 20 देशों में रिसर्च पेपर भी प्रस्तुत किया है.

दूसरे चरण में 20 सीटों के लिए हो रहे मतदान में कुल 260 उम्मीदवार मैदान में हैं. इसमें सुपर हॉट सीट जमशेदपुर ईस्ट के अलावा बहरागोड़ा, घाटशिला, पोटका, जुगसलाई, जमशेदपुर पश्चिमी, सरायकेला, खरसांवा, चाईबासा, मझगांव, जगन्नाथपुर, मनोहरपुर, चक्रधरपुर, तमाड़, तोरपा, खूंटी, मांडर, सिसई, सिमडेगा और कोलेबिरा शामिल हैं. इन 20 सीटों, जिसमें 16 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं.

जिन बड़े नेताओं की किस्मत दांव पर लगी है उनमें विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव (बीजेपी, सिसई), मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा (बीजपी, खूंटी), पूर्व मंत्री बंधु तिर्की (जेवीएम, मांडर), विधायक चंपई सोरेन (जेएमएम, सरायकेला), पूर्व राज्यसभा सांसद प्रदीप बलमुचू (आजसू, घाटशिला), पूर्व आईएएस अधिकारी जेबी तुबिद (बीजेपी, चाईबासा) शामिल हैं.

(आनंद दत्ता स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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