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Monday, 16 December, 2024
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NCP के मूल वोट बैंक को बनाए रखना चाहते हैं अजित पवार, बोले- ‘सेक्युलर’ विचारधारा को नहीं छोड़ा

इस साल के लोकसभा चुनावों में सिर्फ़ 1 सीट जीतने के बाद, महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री, चल रही जन सम्मान यात्रा में अपने भाषणों में ‘शिव-फुले-शाहू-अंबेडकर’ विचारधारा की याद दिला रहे हैं.

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मुंबई: पिछले हफ़्ते जब अजीत पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने जन सम्मान यात्रा शुरू की, तो पार्टी प्रमुख ने “शिव-फुले-शाहू-अंबेडकर” विचारधारा की बात की और समर्थकों को भरोसा दिलाया कि पार्टी इसे कभी नहीं छोड़ेगी. नासिक के येओला शहर में यात्रा के दूसरे दिन बोलते हुए, अजीत ने कहा, “हम सत्ता से चिपके नहीं हैं. सत्ता आती-जाती रहती है, लेकिन जब हमारे पास सत्ता होती है, तो उसका इस्तेमाल समाज की बेहतरी के लिए किया जाना चाहिए. यशवंतराव चव्हाण से हमें यही शिक्षा मिली है. हमारी पार्टी शिव-फुले-शाहू-अंबेडकर की विचारधारा पर कायम है. हमने इस विचारधारा को नहीं छोड़ा है और मरते दम तक इसे नहीं छोड़ेंगे. यह मेरा आपसे वादा है.”

अजित की एनसीपी कथित तौर पर इस बात पर जोर देने की पूरी कोशिश कर रही है कि हिंदुत्व के एजेंडे को मानने वाली पार्टियों जैसे कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और एकनाथ शिंदे की अगुआई वाली शिवसेना के साथ हाथ मिलाने के बावजूद, गुट ने एनसीपी की मूल धर्मनिरपेक्ष विचारधारा को नहीं छोड़ा है.

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री ने कई मुस्लिम मतदाताओं से बातचीत करने के अलावा, चल रहे अभियान के दौरान इस विचारधारा का बार-बार जिक्र किया है. स्वतंत्रता दिवस के लिए पार्टी के ‘संविधान सभा और प्रस्तावना वाचन मिशन’ की घोषणा करते हुए, उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा था: “इस गतिविधि का मुख्य उद्देश्य प्रस्तावना के प्रति सम्मान दिखाना है, जो भारतीय संविधान की आत्मा है, हर घर में संविधान को जगाना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की अपने आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता दिखाना है.”

राजनीतिक विश्लेषक अभय देशपांडे ने दिप्रिंट से कहा कि अजीत पवार के लिए एनसीपी के मूल वोट बैंक को बचाए रखना बहुत जरूरी है. उनके अनुसार, मुसलमान किसी खास पार्टी की परवाह नहीं करते, वे सिर्फ “बीजेपी और सहयोगी दलों” को देखते हैं.

देशपांडे ने कहा, “लोकसभा के नतीजों से साफ है कि उन्होंने अजीत पवार को अलग नजरिए से नहीं देखा है. वे बीजेपी और सहयोगी दलों को एक ही मानते हैं.”

उन्होंने कहा, “वे बीजेपी के साथ जाने से होने वाले नुकसान को कम करना चाहते हैं. वे अपनी मूल पहचान को बनाए रखना चाहते हैं. उन्हें उम्मीद रही होगी कि विधायक अपने करिश्मे से कोर वोट बैंक को अपने पक्ष में कर सकेंगे… लेकिन जिस तरह से मुसलमानों ने सुनील तटकरे को वोट किया उसने बाकी रुझानों को दरकिनार कर दिया.”

इस साल के लोकसभा चुनाव में अजित पवार की एनसीपी ने चार सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन वह सिर्फ़ एक सीट ही जीत पाई.

एक अन्य राजनीतिक विशेषज्ञ प्रकाश अकोलकर ने दिप्रिंट को बताया कि उनके लोगों तक पहुंचने की कोशिश के बावजूद, इसका कोई खास असर नहीं होगा.

उन्होंने कहा, “बीजेपी के साथ गठबंधन करने के बाद अजित पवार को एहसास हो गया होगा कि उनके मूल मतदाता किस तरह से उनसे दूर हो गए हैं. वह उनसे अपील करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन अल्पसंख्यकों ने मोदी विरोधी ताकतों को वोट देने का मन बना लिया है.”

मुस्लिम आउटरीच

मुस्लिम आउटरीच कार्यक्रम कोई नई बात नहीं है. फरवरी में लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान भी अजित ने मुस्लिम मतदाताओं तक पहुंचने का प्रयास किया था, ताकि उन्हें भरोसा दिलाया जा सके कि भाजपा से हाथ मिलाने के बावजूद उनकी विचारधारा नहीं बदली है और जब तक वे सत्ता में हैं, वे उनके खिलाफ कोई अन्याय नहीं होने देंगे.

कांग्रेस के पूर्व नेता बाबा सिद्दीकी को पार्टी में शामिल करने से लेकर बारामती में उर्दू स्कूल बनाने के इरादे की घोषणा तक, अजित ने मतदाताओं को अपनी “धर्मनिरपेक्ष साख” के बारे में याद दिलाने का प्रयास किया.

हालांकि, मुस्लिम वोट बैंक महा विकास अघाड़ी की ओर चला गया, जैसा कि चुनाव के नतीजों से पता चलता है.

इस साल जून में एनसीपी के स्थापना दिवस पर भी, अजीत को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने याद दिलाया था कि चुनावों में हार का एक कारण अल्पसंख्यकों द्वारा उन्हें वोट न देना भी था. जवाब में, उन्होंने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से “मूल मतदाताओं से अपील करने और उन्हें पार्टी की विचारधारा की याद दिलाने” के लिए कहा था.

पार्टी के उपाध्यक्ष सलीम सारंग ने दिप्रिंट से कहा, “हालांकि, लोकसभा और विधानसभा अलग-अलग हैं. लोकसभा चुनावों के दौरान, एक नैरेटिव सेट किया गया था कि संविधान को बदल दिया जाएगा. यह इस बार काम नहीं करेगा. अजीत पवार विकास के लिए खड़े हैं. और मुसलमानों को यह समझना चाहिए.”

8 अगस्त को, महाराष्ट्र कैबिनेट ने बाबासाहेब अंबेडकर शोध और प्रशिक्षण संस्थान (BARTI) और छत्रपति शाहू महाराज शोध और प्रशिक्षण और मानव विकास संस्थान (SARTHI) की तर्ज पर एक नया ‘अल्पसंख्यक शोध और प्रशिक्षण संस्थान’ (MRTI) स्थापित करने का फैसला किया.

राज्य के बजट में भी उपमुख्यमंत्री ने घोषणा की कि अल्पसंख्यक छात्रों को विदेश में शिक्षा प्राप्त करने के लिए छात्रवृत्ति मिलेगी. उन्होंने यह भी घोषणा की कि राज्य सरकार ने मौलाना आज़ाद अल्पसंख्यक निगम के लिए शेयर पूंजी में उल्लेखनीय वृद्धि करके इसे 1,000 करोड़ रुपये कर दिया है.

अजीत ने चल रही जन सम्मान यात्रा के दौरान अपने भाषण में वक्फ विधेयक पर भी टिप्पणी की, जिसे अब संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया गया है. उन्होंने कहा, “यह विधेयक जेपीसी को भेजा गया है, जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों मौजूद रहेंगे. हमारी पार्टी ने फैसला किया है कि अगर कोई प्रस्ताव आपको (मुसलमानों को) अस्वीकार्य है, तो हम उस पर आपसे चर्चा करेंगे. और मैं आपसे वादा करता हूं कि मैं अल्पसंख्यकों के खिलाफ किसी भी तरह का अन्याय नहीं होने दूंगा.”

सारंग ने कहा कि भाजपा के साथ गठबंधन के बावजूद अजित अल्पसंख्यकों के विकास के लिए काम करने में सक्षम हैं. “वास्तव में, चूंकि विधान परिषद में कोई मुस्लिम एमएलसी (विधान परिषद का सदस्य) नहीं है, इसलिए अजित दादा ने आश्वासन दिया है कि अगली बार वे मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारेंगे. कोई भी अन्य नेता मुसलमानों के लिए उस तरह काम नहीं कर रहा है, जिस तरह से अजित पवार कर रहे हैं.”

देशपांडे ने कहा कि अपनी राजनीतिक स्थिति को सुरक्षित रखने के लिए अजित को 40-50 विधायकों की संख्या को बरकरार रखना होगा. उन्होंने कहा,”भाजपा मतदाता अजित पवार को लेकर थोड़ा अनिच्छुक है. मतदाता स्वाभाविक रूप से शिंदे की ओर जाता है, लेकिन पवार की ओर इतनी आसानी से नहीं जाता. और इसलिए, अगर उन्हें अपना मूल वोट बैंक या अपने गठबंधन के वोट भी नहीं मिलते हैं, तो यह उनके लिए एक समस्या होगी,”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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