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Saturday, 15 June, 2024
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2 वोटर ID, 2 राशन कार्ड: ओडिशा-आंध्र बॉर्डर पर इन गांवों को मिल रहा दोनों राज्यों की योजनाओं का लाभ

इन 21 गांवों के निवासी 2 राज्य सरकारों के लिए वोट कर सकते हैं और 2 वोट केंद्र सरकार के लिए डाल सकते हैं. यहां ओडिशा और आंध्र प्रदेश दोनों सरकारें काम करती हैं और ग्रामीणों को दोनों से लाभ मिलता है.

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कोटिया: आंध्र प्रदेश और ओडिशा में अधिकांश मतदाता जल्द ही दो वोट डाल पाएंगे क्योंकि लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ होने वाले है. लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो चार वोट डाल सकते हैं. कोटिया क्लस्टर में आपका स्वागत है, विशाखापत्तनम से लगभग 150 किमी दूर आंध्र-ओडिशा सीमा पर सुदूर पहाड़ियों में बसे 21 विवादित गांवों का एक समूह. यहां, निवासियों का कहना है कि अगर वे चाहें तो वे दो राज्य सरकारों के लिए वोट कर सकते हैं और केंद्र में भी हर राज्य की तरफ से एक-एक वोट डाल सकते हैं. स्थानीय अधिकारियों के अनुसार, इन गांवों की कुल आबादी 5,000 से अधिक है.

वे यह सब एक ही दिन में करने में सक्षम होंगे – आंध्र प्रदेश की सभी 25 लोकसभा सीटों और ओडिशा की कोरापुट, बरहामपुर, नबरंगपुर और कालाहांडी सीटों के साथ-साथ इनके अंतर्गत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में चौथे चरण में 13 मई को मतदान होगा.

ये गांव ओडिशा में कोरापुट लोकसभा क्षेत्र व पोट्टांगी विधानसभा सीट और आंध्र प्रदेश में अराकू लोकसभा क्षेत्र व सलूर विधानसभा सीट के अंतर्गत आते हैं. कुछ लोग स्थिति का पूरा फायदा उठाने की योजना बना रहे हैं. उड़िया में गंजीपदर और तेलुगु में गंजीभद्रा के नाम से जाने जाने वाले गांव में एक मतदाता, उड़िया में बोलते हुए कहते हैं, “मैंने सुबह ओडिशा में मतदान करने की योजना बनाई है और बाद में आंध्र के एक बूथ पर जाऊंगा.”

Ganjeipadar in Odia near Kotia is known Ganjaibadra in Telugu | Prasad Nichenametla | ThePrint
कोटिया के निकट स्थित गांव जिसे ओडिया में गंजीपदर के नाम से और तेलगु में गंजीभद्रा के नाम से जाना जाता है | प्रसाद निचेनमेटला | दिप्रिंट

कुछ किलोमीटर दूर आंध्र की ओर दोराला ताड़ीवलसा में एक महिला भी यही कहती है. उनके पास दो मतदाता पहचान पत्र हैं और पिछली बार उन्होंने दोनों पक्षों को वोट दिया था. “हम हर बार ऐसा ही करते हैं. मैं इस बार भी अपने दो वोटों का उपयोग करूंगी. दो चुनाव साथ होते हैं तो यह चार वोट हो जाता है.

निवासी खुशी-खुशी अपने दो मतदाता पहचान पत्र दिखाते हैं – एक अंग्रेजी/तेलुगु में जो उन्हें आंध्र प्रदेश के अराकू निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता के रूप में दर्शाता है और दूसरा अंग्रेजी/उड़िया में उन्हें ओडिशा के कोरापुट के मतदाता के रूप में दर्शाता है. उनका कहना है कि मतदान के दिन के अंत तक उनके बाएं और दाएं दोनों हाथों की तर्जनी उंगलियों पर स्याही लगा दी जाएगी.

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न तो राज्य और न ही चुनाव अधिकारी इस बारे में बहुत चिंतित हैं. फिलहाल, दोनों सरकारें यहां काम करती हैं और दोनों ही निवासियों को लाभ देती हैं.

आंध्र प्रदेश में पार्वतीपुरम मान्यम जिले के कलेक्टर और जिला निर्वाचन अधिकारी निशांत कुमार दिप्रिंट को बताते हैं, “हां, यह एक अजीब स्थिति है जिससे हम अवगत हैं. वहां के कुछ स्थानीय लोगों ने दो अलग-अलग राज्यों में अपने आपको मतदाता के रूप में रजिस्टर करवा रखा है, इसलिए उनके पास दो मतदाता कार्ड हैं.”

कुमार के अनुसार, आंध्र प्रदेश और ओडिशा दोनों के मुख्य निर्वाचन अधिकारी इस मामले से अवगत हैं, लेकिन तत्काल समाधान की संभावना नहीं है.

A Andhra Pradesh govt-run anganwadi at Dorala Tadivalasa | Prasad Nichenametla | ThePrint
दोराला ताड़ीवलसा में आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा संचालित आंगनवाड़ी | प्रसाद निचेनामेतला | दिप्रिंट

अधिकारियों का कहना है कि यह विवाद भारत में ब्रिटिश शासन के समय से ही चल रहा है और एक मामला 1968 से सुप्रीम कोर्ट में है, जिसमें दोनों राज्य “ठोस सबूतों के साथ” दावा कर रहे हैं कि ये गांव उनके राज्य का हिस्सा हैं. अनुचित तरीके से किए गए सर्वेक्षण को इसका कारण बताया गया है.

पूर्वी घाट की इन लहरदार पहाड़ियों में जटापु, कोंध, कोंडाडोरा और मूकाडोरा जैसे समुदायों की बड़ी जनजातीय आबादी के कारण, दोनों लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र और दोनों विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित हैं.


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बुनियादी ढांचा बनाम वेलफेयर

ऐसा प्रतीत होता है कि प्रत्येक राज्य निवासियों को अपनी ओर लुभाने की कोशिश कर रहा है – ओडिशा बुनियादी ढांचे पर जोर देकर और आंध्र कल्याणकारी योजनाओं की झड़ी लगाकर.

यदि आप आंध्र की ओर से यात्रा कर रहे हैं, तो नेरेल्लावलसा पहला विवादित गांव है जो आपको मिलेगा. भास्कर राव गेम्मेली, जो लगभग 50 वर्ष के हैं, ओडिशा की नवीन पटनायक सरकार द्वारा संचालित पीडीएस आउटलेट पर अपना मासिक राशन 5 किलो चावल लेने के लिए यहां आए हैं.

इसके बाद वह अपने मुला-ताड़ीवलसा गांव में लौट आएंगे और फिर कुछ दिन बाद आंध्र प्रदेश की पीडीएस आउटलेट खुलने जगन मोहन रेड्डी सरकार द्वारा दिए गए चावल को लेने के लिए यहां दोबारा आएंगे. उनके पास दो मतदाता पहचान पत्र के साथ दो पीडीएस राशन कार्ड हैं.

नेरेल्लावलसा में ओडिशा सरकार के आउटलेट से पीडीएस चावल एकत्र करते ग्रामीण. वे कुछ दिनों में एपी सरकार के राशन के लिए वापस आएंगे | प्रसाद निचेनमेटला | दिप्रिंट

एक फर्लांग दूर, ओडिशा के पोट्टांगी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की एक स्वास्थ्य टीम जांच करने के लिए घर-घर जा रही है. टीम में एक सहायक नर्स दाई, एक फार्मासिस्ट, एक ड्राइवर और एक सहायक शामिल हैं.

डॉक्टर और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जैसी सुविधाओं के साथ आंध्र की 104 सर्विस वैन कुछ दिनों में यहां आ जाएगी.

दूसरी ओर, यहां बेहतर स्थिति में सड़कें ओडिशा द्वारा बनाई गई हैं, जैसे कि ओडिया बोर्ड वाले अच्छी तरह से निर्मित स्कूल, आंगनवाड़ी, छात्रावास और पुलिस स्टेशन हैं. नवीन पटनायक सरकार ने ब्रिटिश काल की एक सड़क का भी जीर्णोद्धार किया है.

British-era road restored by the Naveen Patnaik government in Kotia | Prasad Nichenametla | ThePrint
कोटिया में नवीन पटनायक सरकार द्वारा जीर्णोद्धार करवाई गई ब्रिटिशकालीन सड़क | प्रसाद निचेनमेटला | दिप्रिंट

एक स्थानीय सरकारी अधिकारी घाट की संकरी सड़कों पर बिजली के दो खंभों की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि नए, मजबूत खंभों को ओडिशा ने लगाया है.

जबकि पोडू (पहाड़ी ढलानों पर खेती करना) इन आदिवासी लोगों का मुख्य व्यवसाय है, एक आधिकारी ने कहा कि दो सरकारों द्वारा दिए गए राशन, पेंशन और अन्य कल्याणकारी लाभों की वजह से, “उन्हें वास्तव में आजीविका के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है.


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‘यह दुविधा कब तक बनी रहेगी?’

हालांकि कोटिया के अधिकांश ग्रामीण इससे चिंतित नहीं दिखते हैं, या कहें कि दोनों सरकारों के बेहतर सुविधाएं मिलने की वजह से खुश हैं, लेकिन कुछ का कहना है कि अब दशकों से चले आ रहे विवाद का अंत होना चाहिए.

आंध्र प्रदेश, जो कोटिया को अपने पार्वतीपुरम मान्यम जिले का हिस्सा होने का दावा करता है, और ओडिशा, जो इसे कोरापुट के अंतर्गत शामिल करता है, दोनों के बीच प्रशासनिक मामलों को लेकर टकराव होता रहता है.

सीमा विवाद कभी-कभी तनाव का कारण बनता रहा है, जब राजनेता, विशेष रूप से प्रमुख लोग, इन पहाड़ियों पर आते हैं और कथित तौर पर शांतिपूर्ण आदिवासियों को भड़काने की कोशिश करते हैं.

पिछले साल अप्रैल में, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, जो ओडिशा से हैं, ने उत्कल दिवस के अवसर पर कोटिया क्लस्टर का दौरा किया और वहां ड्यूटी पर मौजूद आंध्र पुलिस कर्मियों की उपस्थिति पर आपत्ति जताते हुए कथित तौर पर “आंध्र वापस जाओ” के नारे लगाए.

“आपत्तिजनक टिप्पणियों” पर प्रतिक्रिया देते हुए, आंध्र प्रदेश के डिप्टी सीएम और स्थानीय (सलूर) विधायक राजन्ना डोरा ने प्रधान से माफी की मांग की, साथ ही उन्हें याद दिलाया कि क्षेत्रीय विवाद न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है, और सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है – जो दोनों राज्यों के अधिकारियों को उस क्षेत्र में काम करने की अनुमति देता है.

आंध्र प्रदेश का पक्ष लेने वाले दोराला ताड़ीवलसा के लक्ष्मण राव वंथला का कहना है कि ओडिशा के अधिकारियों ने 2021 के आंध्र पंचायत चुनावों में कोविड-19 महामारी को कारण बताते हुए स्थानीय निवासियों के मतदान पर आपत्ति जताई.

वह कहते हैं, “यह दुविधा कब तक बनी रहेगी? किसी एक प्रस्ताव पर सहमति बनाने के लिए दोनों सरकारों को एक बार नहीं, दो बार, चार या पांच बार एक साथ चर्चा करने की जरूरत है ताकि हम मजबूती से कह सकें कि हम आंध्र प्रदेश या ओडिशा के हैं.”

नवंबर 2021 में, आंध्र के सीएम जगन ने भुवनेश्वर में ओडिशा के सीएम पटनायक से मुलाकात की, जहां दोनों ने दोनों सरकारों के बीच कई लंबित मुद्दों पर चर्चा की, जैसे वंशधारा नदी पर सिंचाई परियोजना के साथ-साथ कोटिया क्लस्टर पर भी बातचीत हुई. लेकिन उसके बाद भी कोई प्रगति होती हुई नहीं दिखी है.

जिले के एक अधिकारी का कहना है, ”सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए दोनों पक्षों की ओर से दृढ़ इच्छाशक्ति और स्वस्थ सहयोग की आवश्यकता होती है.”

राजनीतिक शोर-शराबे से दूर

मैदानी इलाकों के विपरीत, जहां शहर, कस्बे और गांव चुनाव प्रचार के शोर में डूबे हुए हैं, यहां पहाड़ियों पर चिलचिलाती धूप के बीच भी केवल पक्षियों की चहचहाहट और कुछ कल-कल करती नदी धाराओं की आवाजें सुनाई पड़ती हैं.

आंध्र प्रदेश पुलिस का एक अधिकारी कोटिया के शांतिपूर्ण वातावरण के बारे में बताता है: वह कहता है कि इलाके में महीनों से कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है और लोग शायद ही कभी झगड़ों में पड़ते हैं, जिसका कारण यह है कि यहां के लोग शराब से दूरी बना के रखते हैं.

A woman walks past a local government office building in Kotia | Prasad Nichenametla | ThePrint
कोटिया में एक स्थानीय सरकारी कार्यालय भवन के पास से गुजरती एक महिला | प्रसाद निचेनामेतला | दिप्रिंट

हालांकि कोई यहां स्पष्ट रूप से कोई राजनीतिक हलचल नहीं नजर आती है, लेकिन, यहां कुछ घरों की छतों पर वाईएसआरसीपी के झंडे लगे हुए हैं. ग्रामीणों का कहना है कि जगन की वाईएसआरसीपी के पास अच्छा समर्थन है क्योंकि वहां बड़ी संख्या में कन्वर्टेड ईसाई आबादी है (जगन खुद ईसाई हैं). कोटिया में अक्सर चर्च देखे जा सकते हैं.

इन गांवों में सबसे बड़ा कोटिया पर भी ओडिया/ओडिशा का प्रभाव है. यहां ओडिया भाषा में कई सरकारी साइनबोर्ड और नवीन पटनायक की कुछ तस्वीरें हैं जो चुनाव आयोग की स्क्रीनिंग से बच गईं.

दूसरी ओर, गूगल मैप्स कोटिया को आंध्र प्रदेश की सीमाओं के अंदर दिखाता है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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