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Friday, 22 November, 2024
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कर्नाटक के CM बसवराज बोम्मई ने अपने 2 महीने के कार्यकाल में सारे दांव सही चले, RSS को किया खुश

अपने दफ्तर में 60 दिन पूरे कर लेने वाले कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने इस अवधि में जहां पूरे जोश से आरएसएस का बचाव किया, और पार्टी व सरकार के बीच अंतर पाटने की कोशिश की, वहीं येदियुरप्पा के विश्वस्त सहयोगी के तौर पर अपनी छवि से उबरने की भी कोशिश की.

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बेंगलुरू: बसवराज बोम्मई ने मंगलवार को कर्नाटक में मुख्यमंत्री के तौर पर काम करते हुए दो महीने का समय पूरा कर लिया.

बोम्मई ने अपने पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के विश्वस्त सहयोगी वाली छवि से उबरने की कोशिशों के बीच इन 60 दिनों के कार्यकाल के दौरान सरकार और पार्टी के बीच समन्वय बढ़ाने के उपाय किए लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह है कि वह संघ के साथ तालमेल बैठाते नजर आए.

जनता पार्टी के एक पूर्व नेता के तौर पर बोम्मई के भाजपा के भीतर ही यह कहकर खासी आलोचना की जाती रही है कि वह मूलत: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े नहीं रहे हैं.

शायद इस आलोचना का जवाब देने के लिए ही बोम्मई राज्य विधानसभा के साथ-साथ सदन के बाहर भी पूरे उत्साह के साथ आरएसएस का बचाव करते दिखे.

इसका ताजा उदाहरण है रविवार का घटनाक्रम, जब बोम्मई ने मीडिया से कथित तौर पर कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) ‘भारत के सच्चे इतिहास के बारे में बताएगी और बच्चों को राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाएगी.’

बेलगाम में उनका यह बयान कर्नाटक विधानसभा के अंदर कांग्रेस को यह जवाब दिए जाने के कुछ ही दिनों बाद आया है कि अगर एनईपी को आरएसएस ने तैयार किया है तो उन्हें ‘गर्व’ होगा.

बोम्मई ने सदन में कहा था कि ‘राष्ट्रीय राष्ट्रीय शिक्षा नीति यदि आरएसएस का एजेंडा है तो इसमें कुछ गलत नही हैं’,

उन्होंने यह बात तब कही थी जब विपक्ष के नेता सिद्धरमैया ने एनईपी को ‘नागपुर शिक्षा नीति’ करार दिया था. मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि ‘राष्ट्र, राष्ट्रवाद और आरएसएस एक ही हैं.’ और ‘आरएसएस का मतलब ही राष्ट्रवाद है.’

एक हफ्ते पहले 21 सितंबर को भी बोम्मई ने आरएसएस का बचाव किया था जब विधानसभा ने चाणक्य यूनिवर्सिटी बिल, 2021 को मंजूरी दी जिसके तहत सेंटर फॉर एजुकेशन एंड सोशल स्टडीज (सीईएसएस) समर्थित संस्थान के निर्माण को मंजूरी दी गई थी.

कांग्रेस का कहना था कि यह यूनिवर्सिटी ‘आरएसएस समर्थित’ है, क्योंकि सीईएसएस के अधिकतर सदस्य संगठन से जुड़े हैं. पार्टी ने 175 करोड़ रुपये की भूमि यूनिवर्सिटी के लिए महज 50 करोड़ में आवंटित किए जाने के पीछे सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाए.

इस पर काफी आक्रामक तरीके से जवाब देते हुए बोम्मई ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों के लिए भूमि आवंटित करने में कुछ भी गलत नहीं है, साथ ही जोड़ा कि उनकी सरकार ‘10 ऐसी यूनिवर्सिटी’ को अनुमति देने के लिए तैयार है.

नंजनगुड में एक मंदिर तोड़े जाने पर अपनी सरकार की आलोचना के बाद अवैध धार्मिक स्थलों के संरक्षण के लिए पिछले हफ्ते एक बिल पेश करने का बोम्मई का फैसला भी संघ या पार्टी की नजरों से छिपा नहीं रहा है.

भाजपा विधायक और आरएसएस कार्यकर्ता डॉ. भरत शेट्टी ने दिप्रिंट को बताया, ‘उन्होंने पार्टी, संघ और सरकार के विधेयकों के पक्ष में अपने मजबूत तर्कों के साथ विधायकों को भरोसे में लिया है. सदन पटल पर एनईपी के बचाव का उनका तरीका बहुत प्रभावशाली था.’

शेट्टी ने कहा कि सितंबर में पार्टी की कार्यकारी समिति की बैठक में बोम्मई के भाषण को सभी ने सराहा था. शेट्टी ने कहा, ‘वह ईमानदार हैं और एक सामान्य नेता की बजाये राजनेता के तौर पर सामने आए हैं.’

संघ से जुड़े रहे भाजपा के अन्य नेताओं की भी मुख्यमंत्री के अब तक के कार्यकाल के बारे में यही राय है.

बोम्मई के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के ठीक बाद भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया था, ‘जब बोम्मई को मुख्यमंत्री चुना गया तो पार्टी और संघ के विश्वस्त कार्यकर्ताओं को काफी निराशा हुई क्योंकि वह विचाराधारा के मामले में मूलत: उससे जुड़े नहीं थे.’

बोम्मई कैबिनेट में मंत्री इस वरिष्ठ नेता का रुख अब नरम पड़ गया है. येदियुरप्पा की नेतृत्व शैली के साथ बोम्मई की तुलना करते हुए इस मंत्री ने कहा, ‘पार्टी और सरकार के बीच समन्वय है. वह चिंताओं पर ध्यान देते हैं और अपने पूर्ववर्ती के विपरीत काफी धैर्य से काम लेते हैं.’


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समस्याओं से सामना

ऐसा लगता है कि बोम्मई अपने हालिया बयानों और फैसलों से संघ की तरफ से तो शानदार अंक हासिल करने में सफल रहे हैं, लेकिन सब कुछ इतना आसान भी नहीं है.

भाजपा के एक राष्ट्रीय महासचिव ने दिप्रिंट को बताया, ‘नव-निर्वाचित सरकार के लिए हनीमून की अवधि छह महीने होती है, लेकिन बोम्मई की तरह मध्यावधि में बनी सरकार के लिए यह अवधि केवल तीन महीने है.’

बोम्मई के लिए ‘हनीमून पीरियड’ अब खत्म हो रहा है और जो मुद्दे येदियुरप्पा की परेशानी बने हुए थे वे धीरे-धीरे ही सही लेकिन निश्चित तौर पर फिर से सामने आने लगे हैं.

पिछले हफ्ते विधानसभा सत्र के दौरान भाजपा विधायकों ने धन की कमी पर चिंता जताई थी— यह एक ऐसी शिकायत है जो वे येदियुरप्पा के समय भी उठाते रहे हैं. विकास कार्यों के लिए धन की कमी का मुद्दा पूर्व मुख्यमंत्री के साथ विधायकों की नाराजगी की एक बड़ी वजह था. अभी तो बोम्मई ने फंड जारी करने के लिए एक महीने का समय मांगा है.

उसी सत्र के दौरान भाजपा विधायक बासनगौड़ा पाटिल यतनाल ने राज्य में लिंगायत समुदाय के एक प्रभावशाली और संख्या की लिहाज से काफी अहम माने जाने वाले उप-समूह उप-पंचमाली लिंगायतों को आरक्षण कोटे की 2ए श्रेणी में शामिल करने का मुद्दा उठाया. भाजपा के ही एक अन्य विधायक अरविंद बेलाड के भी इसमें शामिल होने से सरकार की खासी किरकिरी भी हुई है.

इस साल फरवरी में पंचमसाली लिंगायतों ने राज्य में बड़े पैमाने पर आंदोलन किए थे, जिससे लिंगायतों के ताकतवर नेता के रूप में तत्कालीन मुख्यमंत्री येदियुरप्पा की छवि खराब हुई थी. जैसे ही यह मामला फिर उठा, येदियुरप्पा की तरह ही बोम्मई ने भी समुदाय के नेताओं से कहा कि इस मामले में पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट की प्रतीक्षा करें.

भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के साथ-साथ राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि सत्ता में बोम्मई का हनीमून पीरियड खत्म हो रहा है और अब उन्हें और कड़ी चुनौतियों के लिए तैयार रहना चाहिए.

राजनीतिक विश्लेषक और लोकनीति नेटवर्क के नेशनल कोऑर्डिनेटर डॉ. संदीप शास्त्री ने दिप्रिंट को बताया, ‘अब तक हनीमून पीरियड था और लोग शांत थे. लेकिन जल्द ही वे जमीनी स्तर पर और कार्रवाई और नतीजों की उम्मीद करेंगे. इस तथ्य को देखते हुए कि कर्नाटक में भाजपा विधायक काफी बटा हुआ है, बोम्मई पर पार्टी के सभी वर्गों को खुश रखने के लिए बहुत दबाव होगा. उन्हें धीरे-धीरे मुखर होना पड़ेगा.’

हालांकि, शास्त्री ने कहा कि आलाकमान का समर्थन बोम्मई के लिए फायदेमंद है.

विश्लेषक ने कहा, ‘उनके लिए सबसे अच्छी बात यह है कि उन्हें पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का समर्थन हासिल है. केंद्रीय नेतृत्व ने उन पर अलग-अलग पॉवर सेंटर का भी बोझ नहीं डाला. उसे इसका प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करना चाहिए. उन्हें जो अधिकार मिले हैं, अगर उसका इस्तेमाल न किया तो लोग इसे कमजोरी के रूप में देखेंगे.’

यद्यपि मंत्रिमंडल के गठन के दौरान उनमें दृढ़विश्वास की कमी और केंद्रीय नेतृत्व पर अत्यधिक निर्भरता को लेकर विपक्ष ने बोम्मई की काफी आलोचना की थी लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की तरफ से उनके नेतृत्व को मिले समर्थन ने स्थितियों में काफी बदलाव किया है.

ग्रामीण विकास और पंचायती राज (आरडीपीआर) मंत्री के.एस ईश्वरप्पा ने दिप्रिंट को बताया, ‘पिछले दो महीनों ने कैबिनेट को ज्यादा विश्वास से भर दिया है. बोम्मई सबसे खुलकर बात करते हैं. हर हफ्ते हमारी कैबिनेट की बैठक होती है. मंत्री और विधायकों के बीच संवाद की स्थिति काफी बेहतर हुई है. स्थितियां पहले की तुलना में अच्छी हुई है.’

बमुश्किल तीन हफ्ते पहले ही ईश्वरप्पा इस विचार से खासे नाराज थे कि पार्टी अगला चुनाव बोम्मई के नेतृत्व में लड़ेगी.

येदियुरप्पा के करीबी, पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, ‘बोम्मई को चुनने का पार्टी का फैसला हैरान करने वाला था, यहां तक कि यह संघ के लिए भी सुखद नहीं था. बी.एस. येदियुरप्पा की विदाई के बाद संघ को अपने किसी खास व्यक्ति को कुर्सी मिलने की उम्मीद थी.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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