रांची: लोकसभा चुनाव के नतीजों के ठीक 13 दिन बाद 17 जून को भाजपा नेतृत्व ने केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान को झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए प्रभारी और असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा को सह-प्रभारी नियुक्त किया. यह तब हुआ जब राज्य के प्रमुख नेताओं का आदिवासी इलाकों में सफाया हो गया.
तब से तीन महीने बीत चुके हैं, सरमा कम से कम 16 बार राज्य का दौरा कर चुके हैं, जिनमें से ज्यादातर दौरा दो दिवसीय था. त्रासदी से पीड़ित परिवारों से मिलने से लेकर आदिवासियों के साथ ‘मन की बात’ सुनने तक, भाजपा के रणनीतिकार झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो)-कांग्रेस गठबंधन को चुनाव में हराने के अपने मिशन के तहत राज्य भर में घूम रहे हैं.
चौहान और सरमा 23 जून को पहली बार रांची पहुंचे जहां उनका गर्मजोशी से स्वागत हुआ. इसके बाद दोनों नेताओं ने बैठक किया और नेताओं व कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाया. इसके बाद उन्होंने मीडिया से बात की, जिसमें उन्होंने हेमंत सोरेन सरकार पर तीखे हमले किए और दावा किया कि झारखंड में भाजपा लोगों को सुशासन वाली सरकार देगी.
इसके बाद झारखंड में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ दोनों चुनाव प्रभारियों की बैठकों और मंथन का सिलसिला तेज हो गया. सरमा ने सबसे पहले राज्य के वरिष्ठ नेताओं अर्जुन मुंडा, सुदर्शन भगत, समीर उरांव, गीता कोड़ा, सीता सोरेन और अरुण उरांव से मुलाकात की और आदिवासी इलाकों में भाजपा का सफाया होने के कारणों का पता लगाया. इनमें से कई नेता अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित लोकसभा सीटों पर हार गए थे.
इसके बाद झारखंड में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ दोनों चुनाव प्रभारियों की बैठकों और मंथन का सिलसिला तेज हो गया. सरमा ने सबसे पहले राज्य के वरिष्ठ नेताओं अर्जुन मुंडा, सुदर्शन भगत, समीर उरांव, गीता कोड़ा, सीता सोरेन और अरुण उरांव से मुलाकात की और आदिवासी इलाकों में भाजपा के सफाए के कारणों का पता लगाया. इनमें से कई नेता अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित लोकसभा सीटों पर हार गए थे. इसके साथ ही सरमा ने बांग्लादेशी घुसपैठियों और संथाल परगना में जनसांख्यिकी परिवर्तन के मुद्दे पर सत्तारूढ़ दलों के खिलाफ नया मोर्चा खोल दिया.
इसी चुनावी मुद्दे पर चलते हुए सरमा ने 14 सितंबर को रांची में पत्रकारों से कहा कि घुसपैठियों के कारण आदिवासियों का अस्तित्व खतरे में है. उन्होंने अपनी बात के समर्थन में झारखंड हाईकोर्ट में केंद्र द्वारा दाखिल हलफनामे का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि झारखंड में एनआरसी की जरूरत है और राज्य सरकार को एनआरसी लागू करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए.
सिंहभूम की पूर्व सांसद गीता कोड़ा ने दिप्रिंट को बताया कि दिल्ली से भेजे गए दोनों नेता अनुभवी और चतुर रणनीतिकार हैं.
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता ने कहा, “सरमा की पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ लगातार बैठकें और आम लोगों तक उनकी पहुंच ने झामुमो और हेमंत सोरेन दोनों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. हिमंत जी जानते हैं कि कार्यकर्ताओं की क्षमता को कैसे सामने लाया जाए. वे खुद को एक कार्यकर्ता के रूप में पेश करते हैं, न कि किसी बड़े चेहरे या नेता के रूप में. वे दुश्मनी नहीं फैलाते. वे आदिवासी भावनाओं और मुद्दों को भी अच्छी तरह समझते हैं.”
भाजपा विधायक अनंत ओझा ने भी दोनों वरिष्ठ नेताओं द्वारा निभाई जा रही भूमिका की सराहना की. राजमहल विधायक ने कहा, “चौहान और सरमा के अनुभव और चुनावी तैयारियों के कारण सत्तारूढ़ दलों की मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं. हिमंत बिस्वा मुखर हैं. वे तुष्टीकरण की राजनीति का विरोध करते हैं. बांग्लादेशी घुसपैठियों सहित हर महत्वपूर्ण सवाल पर वे मुखर हैं. वे अपने भाषणों में भाजपा कार्यकर्ताओं से सीधे जुड़ते हैं. यही बात झामुमो-कांग्रेस को परेशान करती है.”
जैसा कि अपेक्षित था, जेएमएम और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने लोगों के बीच दरार पैदा करने के लिए सरमा पर कटाक्ष किया है. सोरेन ने सरमा और चौहान का नाम लिए बिना कहा, “बाहर से आने वाले भाजपा नेता समाज को बांटने में लगे हुए हैं. वे बकवास करते रहते हैं. उनका सारा ध्यान हिंदू, मुस्लिम और बांग्लादेशी घुसपैठियों पर रहता है.”
झारखंड में नवंबर-दिसंबर में चुनाव होने वाले हैं.
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची के मास कम्युनिकेशन विभाग के विजिटिंग फैकल्टी शंभूनाथ चौधरी ने दिप्रिंट से कहा, “झारखंड की चुनावी राजनीति में जो तस्वीर उभर रही है, उससे एक बात साफ है कि सरमा ने सत्ताधारी दलों में हलचल मचा दी है. यहां तक कि भाजपा भी उनके अगले कदम पर नजर बनाए हुए है.”
उन्होंने कहा, “पिछले 100 दिनों में झारखंड में चुनाव सह-प्रभारी के तौर पर एक महीने बिताने वाले दूसरे राज्य के सीएम का यह कहना बहुत कुछ कहता है. उन्हें एक रणनीतिकार माना जाता है, जो सत्ता हासिल करने के लिए गणित और जोड़-तोड़ करते हैं. जाहिर है, वे न केवल चुनाव के दौरान बल्कि इसके नतीजों के बाद भी संभावनाओं को तलाश सकते हैं. जेएमएम को इस बात का अहसास है.”
यह भी पढ़ेंः झारखंड की आदिवासी सीटों पर हार के बाद BJP ने ‘बांग्लादेशी घुसपैठियों’ के कारण ‘जनसांख्यिकी परिवर्तन’ का मुद्दा उठाया
पाकुड़, बेंगाबाद का दौरा सुर्खियों में रहा
इन तीन महीनों के दौरान, सरमा की बेंगाबाद (गिरिडीह) और पाकुड़ की यात्रा को मीडिया ने खूब कवर किया. 1 अगस्त को सरमा दो दिवसीय दौरे पर पहुंचे, जिसके दौरान वे पाकुड़ के केकेएम कॉलेज छात्रावास पहुंचे, जहां 26 जुलाई की रात आदिवासी छात्रों और पुलिस के बीच झड़प हुई थी.
उन्होंने आदिवासी छात्रों से मुलाकात की और घटना की जांच तथा दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की.
बाद में, सरमा ने पाकुड़ जिले के गैबाथान गांव का दौरा किया, जहां 18 जुलाई को स्थानीय आदिवासियों और एक अन्य समूह के बीच भूमि विवाद को लेकर झड़प हुई थी, जिसे भाजपा ने घुसपैठिया करार दिया था. इसके बाद उन्होंने झारखंड सरकार पर उन्हें गोपीनाथपुर जाने से रोकने का आरोप लगाया, जहां भाजपा ने कहा था कि मुहर्रम के आसपास दो समूहों में झड़प हुई थी.
2 अगस्त को झारखंड के मुख्यमंत्री ने असम के मुख्यमंत्री पर “घृणा की राजनीति” करने का आरोप लगाया. सोरेन ने कहा, “उनके (भाजपा) मुख्यमंत्री का राज्य बाढ़ के कारण डूब रहा है और अपने लोगों को बचाने के बजाय, वे समाज को बांटने के लिए यहां आए हैं. मैंने उन्हें बाढ़ राहत भेजी, लेकिन वे यहां केवल घृणा की राजनीति करते हैं.”
सरमा और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी इसके बाद गिरिडीह जिले के बेंगाबाद पहुंचे और हवलदार चौहान हेम्ब्रम के परिजनों से मिले, जिनकी 12 अगस्त को हजारीबाग के एक अस्पताल में एक सजायाफ्ता कैदी ने हत्या कर दी थी. हेम्ब्रम की मां से मिलने के बाद सरमा ने कहा, “झामुमो या कांग्रेस के किसी भी विधायक ने अभी तक आदिवासी पीड़ित के परिवार से मुलाकात नहीं की है.”
अगस्त के आखिरी हफ्ते में सरमा रांची जिले के हुआंगहातु गांव में आदिवासी समुदायों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रेडियो संदेश ‘मन की बात’ को सुनने पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने गांवों के बूथ कार्यकर्ताओं से चुनावी रणनीति पर भी चर्चा की. हाल ही में 8 सितंबर को उन्होंने झारखंड आबकारी सिपाही भर्ती परीक्षा के फिजिकल टेस्ट के दौरान जान गंवाने वाले दो युवकों के पीड़ित परिवारों से मुलाकात की. अब तक 14 मौतें हो चुकी हैं और भाजपा इन त्रासदियों के लिए सरकार की लापरवाही को जिम्मेदार ठहरा रही है.
अगले दिन सरमा ने रांची हवाई अड्डे पर मीडिया को बताया कि कांग्रेस के 12-14 विधायक और झामुमो के दो-तीन विधायक उनसे नियमित संपर्क में हैं, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा में उन्हें शामिल करने के लिए अभी पर्याप्त जगह नहीं है.
इसके बाद झारखंड सरकार ने सरमा और चौहान पर कार्रवाई करने के लिए अपनी रणनीति बदल दी, जब उसने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर भाजपा झारखंड प्रभारी और सह-प्रभारी को “संकीर्ण राजनीतिक लाभ” के लिए आधिकारिक मशीनरी का उपयोग करके “सांप्रदायिक तनाव भड़काने” से रोकने के लिए कहा.
लेकिन इससे सरमा का काम नहीं रुका. 19 सितंबर को, असम के सीएम ने सोरेन पर सीधा हमला करते हुए उन पर इंडियन यूनियन ऑफ मुस्लिम लीग (IUML) के नेताओं की मेजबानी और स्वागत करने का आरोप लगाया, लेकिन अमित शाह सहित भाजपा नेताओं के प्रति “अनादर” दिखाया.
यह हमला तब किया गया जब IUML के एक प्रतिनिधिमंडल ने रांची में सोरेन के आवास पर “शिष्टाचार भेंट” के लिए उनसे मुलाकात की.
राजनीतिक विश्लेषक बैजनाथ मिश्रा ने दिप्रिंट से कहा, “भले ही हिमंत बिस्वा सरमा को उत्तर पूर्व के प्रमुख रणनीतिकार के रूप में देखा जाता है, लेकिन वे एक गंभीर नेता नहीं हैं. वे राजनीतिक शतरंज पर हिंदू-मुस्लिम कार्ड के खिलाड़ी हैं. साथ ही, वे किसी भी सवाल या अपने बयान का मजाकिया जवाब देते हैं, जो लोगों को आकर्षित करता है.”
एक बात तो साफ है कि झारखंड चुनाव में चौहान और सरमा अलग-अलग भूमिका में हैं. लेकिन चौहान की रणनीति और राजनीतिक अनुभव बीजेपी के लिए सरमा की तुलना में ज्यादा कारगर साबित हो सकते हैं. झामुमो विधायक दशरथ गगराई ने दिप्रिंट से कहा कि सरमा को झारखंड में दूसरे दलों के नेताओं को अपने पाले में लाने और हेमंत सोरेन सरकार द्वारा किए जा रहे जनकल्याणकारी कार्यों में बाधा डालने के लिए भेजा गया है.
सरमा ने ही पिछले सप्ताह अगस्त में घोषणा की थी कि पूर्व मुख्यमंत्री और झामुमो के दिग्गज नेता चंपई सोरेन भाजपा में शामिल हो रहे हैं.
खरसावां के विधायक गगराई ने कहा, “सरमा इन दो कार्यों को अंजाम देकर केंद्रीय नेतृत्व के सामने खुद को खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. अगर असम के सीएम को झारखंड के आदिवासियों की इतनी चिंता है, तो दूसरे राज्यों के आदिवासियों को, जो दशकों से असम में रह रहे हैं, चाय जनजाति के बजाय अनुसूचित जनजाति क्यों नहीं कहा जाता.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ेंः पूर्व CM चंपई सोरेन हुए भाजपा में शामिल, झारखंड चुनाव में झामुमो पर क्या पड़ेगा असर