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Wednesday, 20 August, 2025
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‘0 प्लस 0 बराबर 0’ — ‘लिटमस टेस्ट’ में खाली हाथ रहने पर बीजेपी का ठाकरे भाइयों पर तंज

ठाकरे भाइयों ने BEST एम्प्लॉयीज़ को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी चुनाव में गठबंधन कर लड़ाई लड़ी, लेकिन एक भी सीट नहीं मिली. शशांक राव के नेतृत्व वाले पैनल ने जीत दर्ज की.

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मुंबई: अलग-अलग राह पर चल रहे ठाकरे भाइयों के फिर से साथ आने की चर्चा के बीच, जिस पहले चुनाव में उन्होंने मिलकर हाथ आज़माया, उसमें दोनों की पार्टियां पूरी तरह खाली हाथ रहीं.

उद्धव ठाकरे की शिवसेना और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने मिलकर BEST एम्प्लॉयीज़ को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी का लोकल चुनाव लड़ा. बुधवार सुबह घोषित नतीजों में पता चला कि ठाकरे भाइयों के नेतृत्व वाले “उत्कर्ष पैनल” को सभी 21 सीटों पर हार मिली.

वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पैनल ने इस हार को अपनी जीत की तरह मनाया. भाजपा का “सहारा समृद्ध पैनल”, जिसे प्रसाद लाड और प्रविण डेरेकर लीड कर रहे थे, उसे सात सीटें मिलीं. यूनियन नेता शशांक राव के नेतृत्व वाला तीसरा पैनल, जिसे उन्हीं के नाम पर रखा गया है, ने 14 सीटें जीतकर चुनाव में कब्ज़ा जमाया.

लाड ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “जो कहते थे मुंबई हमारी है, बीएमसी हमारी है और अगर हम ये चुनाव जीतेंगे तो बीएमसी चुनाव भी जीतेंगे—उन्हें अब सबक मिल गया कि ठाकरे ब्रांड काम नहीं करता. मुझे जितनी सीटें मिलीं, उससे ज़्यादा खुशी इस बात की है कि ठाकरे ब्रांड को शून्य सीटें मिलीं. हमने 100 प्रतिशत लिटमस टेस्ट पास कर लिया है.”

BEST को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी के 15,123 सदस्य हैं, जिनमें BEST के मौजूदा और पूर्व कर्मचारी शामिल हैं. ज़्यादातर कर्मचारी मुंबई के, मराठी भाषी लोग हैं. इसलिए इस चुनाव को मराठी वोट बैंक की निष्ठा का छोटा-सा इशारा माना जा रहा है.

इस बार चुनाव काफी कड़ा रहा और रिकॉर्ड 84 प्रतिशत मतदान हुआ. शिवसेना (यूबीटी)-मनसे सदस्यों ने आरोप लगाया कि भाजपा पैनल ने वोटरों को रिश्वत देकर अपने पक्ष में वोट डलवाए.

पिछला चुनाव नौ साल पहले हुआ था, जब शशांक राव के पिता शरद राव के नेतृत्व वाला पैनल जीता था.

दिल्ली में पत्रकारों से बातचीत में शिवसेना (यूबीटी) के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने नतीजों को नज़रअंदाज़ करते हुए इन्हें सिर्फ ट्रेड यूनियनों के बीच की लड़ाई बताया.

उन्होंने कहा, “ऐसी को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी के चुनाव ज़्यादातर यूनियनें अपनी ताकत दिखाने के लिए लड़ती हैं. ठाकरे ब्रांड कभी फेल नहीं होगा. हालांकि, इस पर तब तक टिप्पणी नहीं करूंगा जब तक पूरी जानकारी न हो. को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी का चुनाव कोई इम्तहान नहीं होता. ये तो प्राथमिक टेस्ट भी नहीं है.” राउत ने आगे कहा कि कुछ नेता आपस में आए और चुनाव लड़े. “ये चुनाव पार्टी लाइनों पर नहीं लड़े जाते. ये किसी की बड़ी जीत या हार नहीं है.”


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‘ज़ीरो प्लस ज़ीरो बराबर ज़ीरो’

पिछले दो महीनों से ठाकरे भाइयों (राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे) के बीच सुलह और सत्ता में बैठी महायुति (बीजेपी, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी) के खिलाफ मिलकर चुनाव लड़ने के संकेत मिल रहे थे. जुलाई में दोनों भाइयों ने एक बड़ा संयुक्त जनसभा भी किया था, जिसमें उन्होंने महायुति सरकार की तीन-भाषा नीति और हिंदी थोपने के आरोप का विरोध किया था.

दोनों ओर के नेता स्थानीय मराठी जनता के हित के लिए संभावित गठबंधन के संकेत दे रहे थे. बीईएसटी कोऑपरेटिव क्रेडिट कमेटी का चुनाव ऐसा पहला मौका था जब दोनों पार्टियों ने मिलकर मैदान में उतरने की कोशिश की.

शिवसेना (यूबीटी) के नेता सुहास सामंत, जिन्होंने पार्टी को चुनाव में उतारा, उन्होंने कहा, “दोनों पार्टियों ने चुनाव के लिए काम किया. ये एक प्रयोग था. दोनों दलों के कार्यकर्ता ज़मीन पर उतरे और प्रचार किया. इसमें किसी भी पार्टी की गलती नहीं है.”

उन्होंने कहा कि एमएनएस और शिवसेना (यूबीटी) के गठजोड़ ने बीजेपी को सतर्क कर दिया था और पार्टी ने पूरी ताकत झोंक दी ताकि यह पैनल हार जाए.

इलेक्शन जीतने वाले यूनियन नेता शशांक राव ने कहा, “मुद्दा ये नहीं कि दो भाई साथ आए या नहीं. अगर आप लोगों के लिए काम करेंगे, तो जनता आपको वोट देगी, चाहे आप अकेले ही क्यों न हों. मज़दूरों ने ये दिखा दिया है.”

उन्होंने आरोप लगाया कि ठाकरे-नेतृत्व वाली शिवसेना ने हमेशा बीईएसटी में निजीकरण और कर्मचारी-विरोधी नीति का समर्थन किया है, जबकि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और मंत्री आशीष शेलार जैसे बीजेपी नेता हमेशा बीईएसटी के मुद्दे में सहयोगी रहे हैं.

बीजेपी नेता (जैसे लाड) का कहना था कि सहकारी क्रेडिट कमेटी के चुनाव जो कभी पार्टी लाइनों पर नहीं लड़े गए, इस बार भी वैसे ही हुए.

लाड ने कहा, “बीजेपी ने किसी भी तरह से मेरा साथ नहीं दिया. शिवसेना (यूबीटी) ने माहौल बनाने की कोशिश की. उन्हें लगा कि राज ठाकरे का नाम इस्तेमाल करेंगे तो सहानुभूति मिलेगी, लेकिन ये दांव उल्टा पड़ गया.”

शिवसेना (यूबीटी) और एमएनएस के खाली हाथ लौटने के बाद बीजेपी नेताओं ने दोनों पार्टियों पर तंज कसना शुरू किया.

महाराष्ट्र बीजेपी प्रवक्ता केशव उपाध्याय ने सोशल मीडिया पर लिखा, “एक के पास खोने के लिए कुछ नहीं है और दूसरे के पास जीतने के लिए. ऐसे दो ज़ीरो को जोड़ दीजिए और उसके साथ कितने भी ज़ीरो जोड़ दीजिए, गणित का जवाब ज़ीरो ही रहेगा. यहां तक कि जो बच्चे स्कूल नहीं गए, वे भी जानते हैं, लेकिन जब कोई ये देखना ही न चाहे तो क्या होता है? इसका जवाब बीईएसटी कोऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटी चुनाव ने दे दिया.”

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई ने कहा कि शिवसेना (यूबीटी)-एमएनएस को इस चुनाव को ठाकरे भाइयों की एकता की परीक्षा के तौर पर पेश नहीं करना चाहिए था.

उन्होंने कहा, “कभी किसी सहकारी क्रेडिट सोसायटी का चुनाव इतना हाई-प्रोफाइल नहीं हुआ था. एमएनएस-शिवसेना (यूबीटी) ने इसे बहुत अहम बना दिया. अब ज़ाहिर है बीजेपी उनकी हार का फायदा उठाएगी. नतीजा दोनों पार्टियों के लिए छवि और कार्यकर्ताओं के मनोबल पर ज़बरदस्त झटका है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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