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Saturday, 23 November, 2024
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लालू प्रसाद यादव चारा-घोटाले के दूसरे मामले में दोषी करार, सज़ा 3 जनवरी को

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यह अभियोजन राजद के लिए बड़ा धक्का है, जो बिहार में सत्ता गंवाने के नुकसान से अभी उबरने का संघर्ष ही कर रही है. नेतृत्व की जिम्मेदारी तेजस्वी यादव पर.

नयी दिल्ली: सीबीआई की विशेष अदालत ने शनिवार को रांची में राजद सुप्रीमो और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले के दो दशक से भी पुराने दूसरे मामले में दोषी करार दिया.

यह अभियोजन राजद के लिए बड़ा धक्का है, जो बिहार में सत्ता गंवाने के नुकसान से अभी उबरने का संघर्ष ही कर रही है, जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजद-जद(यू) की महागठबंधन सरकार से नाता तोड़कर भाजपा की सहायता से राजग की सरकार बना ली.

शनिवार की दोष-सिद्धि (कनविक्शन) देवघर कोषागार से 1994 औऱ 1995 के बीच 84.5 लाख की अवैध निकासी का है, जब लालू बिहार के मुख्यमंत्री थे. देवघर अब झारखंड में है.

चारा घोटाले के पांच मुकदमे हैं, जिनमें विभिन्न ज़िलों से लगभग 900 करोड़ की राशि निकालने का आरोप है. यह रकम कथित तौर पर जाली पत्रों के आधार पर और बढ़ी हुई कीमतों के साथ चारा का वितरण करने के नाम पर निकाली गयी. इसमें तत्कालीन बिहार सरकार का पशुपालन विभाग शामिल था.

इस मामले में कुल 34 अभियुक्त थे, जिसमें से 11 की मौत हो चुकी है. एक सीबीआई का गवाह बन चुका है। लालू के अलावा दूसरे नामचीनों में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र और पूर्व पशुपालन मंत्री विद्यासागर निषाद, पूर्व सांसद जगदीश शर्मा और आर के राणा औऱ पूर्व भाजपा विधायक ध्रुव भगत के साथ कई नौकरशाह भी हैं.

मिश्र को इस मामले में छोड़ दिया गया है, पीटीआई ने कहा.

900 करोड़ का घोटाला

चारा घोटाले का पता जनवरी 1996 में तब चला, जब पटना में पशुपालन विभाग के कार्यालय पर छापा पड़ा. मार्च 1996 में पटना हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दिया और जून में सीबीआई ने चार्जशीट फाइल की, जिसमें लालू और दूसरों को सह-अभियुक्त बनाकर नकली बिल के आधार पर सार्वजनिक धन का 900 करोड़ उड़ाने का आरोपित बनाया गया.

अक्टूबर 2013 में सीबीआई कोर्ट ने लालू को पांच साल की जेल और 25 लाख रुपए का जुर्माना किया. यह सज़ा चाइबासा कोषागार से 1994-95 में 78 नकली अलॉटमेंट-लेटर्स के आधार पर 37.7 करोड़ की अवैध निकासी के संदर्भ में सुनाई गयी थी. चाईबासा अब झारखंड में है.

लालू को सुप्रीम कोर्ट से दिसंबर 2013 में जमानत मिली और उसके पहले दो महीने उनको जेल में बिताने पड़े थे.

हालांकि, इस सज़ा से उनकी सांसदी भी गयी और 11 वर्षों तक उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी गयी.

लालू को तात्कालिक राहत तब मिली जब झारखंड उच्च न्यायालय ने अलग मामलों में उनके खिलाफ चल रहे ट्रायल पर रोक लगा दी. कोर्ट ने कहा कि एक ही अपराध के लिए उसी तरह के मामलों में एक ही आदमी के खिलाफ समान सबूतों के आधार पर अलग-अलग मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है.

इस साल मई में, सीबीआई की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बदल दिया और लालू प्रसाद को चारा घोटाले के बाकी बचे चार मामलों में ट्रायल झेलने को कहा. सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई को 9 महीने में सारा मुकदमा खत्म करने को कहा. बाकी फैसले भी जल्द ही आने की उम्मीद है.

पार्टी को धक्का

लालू के जेल जाने से शायद पार्टी को गहरा धक्का लगेगा, राजनीतिक प्रेक्षक ऐसा मानते हैं. इसका मतलब होगा कि उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव, जिनको उनके वारिस के तौर पर बनाया भी जा रहा है, को सारी कमान हाथ में लेनी होगी. तेजस्वी बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं.

हालांकि, परिवार के और सदस्यों के साथ ही तेजस्वी भी सीबीआई और ईडी की जांच झेल रहे हैं, जो आय से अधिक कमाई के मामले हैं.

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