कांग्रेस और जेडी(एस) को डर है कि भाजपा 2008 के सफल ‘ऑपरेशन कमल’ को दोहराएगी क्योंकि भाजपा ने दल बदल-विरोधी कानून को चकमा देने की कोशिश करते हुए सरकार बनाने में मदद के लिए खनन माफ़िया जी. जनार्दन रेड्डी को मैदान में उतार दिया है।
नई दिल्ली: अवैध खनन मामले में जेल में समय बिताने और बार-बार राष्ट्रीय भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा दूर किए जाने के बाद खनन माफिया गली जनार्दन रेड्डी ने एक बार फिर पार्टी में अपना महत्व बना लिया है।
कुख्यात ‘ऑपरेशन कमल’ के पीछे के मास्टरमाइंड को, कर्नाटक में भाजपा की सरकार को सुनिश्चित करने के लिए, एक बार फिर से दायित्व सौंप दिया गया है क्योंकि भाजपा को यहाँ बहुमत नहीं मिला है और उसके पास कांग्रेस और / या जनता दल (एस) के विधायकों पर दबाव बनाकर अपने पाले में लाने का एकमात्र रास्ता शेष बचा है जिसके द्वारा वह सरकार बनाने में सफल हो सकती है
2008 में जब कर्नाटक में कमल खिला था, भाजपा आनंदित थी लेकिन ये खुशी अल्पकालिक थी। इसके पास सरकार बनाने के लिए तीन सीटें कम थीं। उस समय भाजपा का आला कमान ‘रणनीतिकार’ रेड्डी पर आश्रित हो गया जिन्होंने ‘ऑपरेशन कमल’ की शुरुआत की और इसे कार्यान्वित किया। ऑपरेशन कमल दल बदल विरोधी कानून के इर्द गिर्द काम करने, और यह सुनिश्चित करने कि पार्टी 112 के जादुई आंकड़े को पार करे, के लिए आवश्यक समर्थन प्राप्त करने का एकमात्र तरीका था।
दस साल बाद, कर्नाटक आज उसी परिस्थिति में है। कांग्रेस और जेडी(एस) के सूत्रों ने कहा है कि ‘ऑपरेशन कमल 2.0’ की शुरुआत फिर से हो सकती है क्योंकि भाजपा को बचाने के लिए रेड्डी आ चुके हैं। रेड्डी के करीबी सूत्रों ने बताया कि वह विचार-विमर्श हेतु भाजपा आला कमान से मिलने के लिए दिल्ली रवाना हो चुके हैं।
ऑपरेशन कमल भाग 1
2008 में जो स्थिति थी, वह 2018 की स्थिति से काफी हद तक मेल खाती है। बी.एस. येदियुरप्पा और भाजपा ने 110 सीटें जीतीं, लेकिन बहुमत से तीन सीट कम रह गयी। उस समय दल बदल-विरोधी कानून का उल्लंघन किये बिना विधायकों को अपने पक्ष में शामिल करने के साथ उनका समर्थन जुटाने के लिए बड़े पैमाने पर मंत्रणायें की गयीं। उस समय रेड्डी ने एक नुस्ख़ा इज़ाद किया। कथित तौर पर पूरी भाजपा ने तीन कांग्रेसी विधायकों और चार जेडी(एस) विधायकों पर मंत्रिमंडल में जगह देने का वादा और एक भारी मौद्रिक मुआवजे की पेशकश करते हुए दवाब बनाया था। उन विधायकों ने दोबारा भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और सात में से पांच ने जीत हासिल की और आसान बहुमत दिलवाते हुए भाजपा की ताकत को 110 से 115 तक ले गए।
ऑपरेशन कमल का चातुर्य ये था कि भाजपा दल बदल विरोधी कानून को निर्बाध रूप से चकमा देने में कामयाब रही। यह कानून ये बताता है कि यदि कोई सदस्य स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ता है तब उसे अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता। कानून की इस अस्पष्टता या अपर्याप्तता का रेड्डी ने लाभ उठाया और सुनिश्चित किया कि पार्टी सदस्य पार्टी की सदस्यता से इस्तीफ़ा दें।
इस सूत्र की सफलता ने भाजपा को इतना बढ़ावा दिया कि वे हर मिलने वाले मौके पर इस ‘नई खोज’ का उपयोग करने की कोशिश करते रहे हैं, चाहे वह ग्राम पंचायत स्तर हो या संसदीय चुनाव।
ऑपरेशन कमल भाग 2?
2018 के कर्नाटक चुनाव के बाद, एक उसी प्रकार की स्थिति उत्पन्न हो चुकी है, लेकिन जेडी (एस) के एच. डी. कुमारस्वामी और कांग्रेस के सिद्धारमैय्या दोनों भाजपा के द्वारा चलाये जाने वाले इस “ब्रह्मास्त्र” के लिए तैयार थे।
उन्होंने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि उनके विधायकों के साथ सौदेबाजी नहीं की जाए। संभावित बीजेपी की योजना के बारे में पूछे जाने पर कुमारस्वामी ने चेतावनी दी कि “यदि आप ऑपरेशन कमल का प्रयास करते हैं, तो हम भी आपकी पार्टी के कई विधायकों को अपने दल शामिल कर सकते हैं।”
सिद्धारमैय्या ने भी इसे स्पष्ट करते हुए 15 मई को राजभवन के बाहर संवाददाताओं से कहा, “उन्हें कोशिश करने दीजिये, परन्तु वे सफल नहीं होंगे।”
इस उथलपुथल के बीच दो विधायक, आनंद सिंह और नागेंद्र, जो रेड्डी कैम्प के सदस्य हैं, वे दोनों संपर्क से बाहर हैं। दोनों विधायक हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए थे और विजय प्राप्त की थी। इनका संबंध लंबे समय से जनार्दन रेड्डी के साथ रहा है, और इन पर 16,000 करोड़ के अवैध खनन घोटाले में रेड्डी की सहायता करने का भी आरोप लगाया गया है।
हालांकि जेडी(एस) और कांग्रेस ने इस बात का विश्वास दिलाया है कि वे दोनों उनके साथ हैं, परन्तु बेंगलुरू में हुई विधायक दल की बैठक में इन दोनों की अनुपस्थिति संदेहपूर्ण है।
Read in English: Reddy’s ‘Operation Kamala’ in Karnataka: This is what its version 2.0 could look like