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Wednesday, 20 November, 2024
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ब्रह्मपुत्र संकट में: सैटलाइट इमेज द्वारा हुई चीन की साजिशें बेनकाब

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छवियां बताती हैं कि चीन एक गुप्त सुरंग के जरिए ब्रह्मपुत्र के पानी को रेगिस्तान की ओर मोड़ रहा है. 

यह शायद पहली बार पुख्ता सबूत के तौर पर हाथ आया है, जहां चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र का संभावित डायवर्जन किया जा रहा है। हालिया उपग्रहीय चित्र भी तिब्बत के यारलांग त्सांगपो में एक बड़े डैम को दिखा रहे हैं, जिसमें एक भूमिगत सुरंग भी है, जिसमें लगभग एक किलोमीटर तक ब्रह्मपुत्र की पूरी धारा समाहित है.

ब्रह्मपुत्र भारतीयों और तिब्बतियों के लिए एक समान पवित्र है और इसका उद्गम तिब्बत के पुरांग काउंटी में आंग्सी ग्लेशियर से है. यह हाल ही में ख़बरों में रहा है, जब भारतीय हिस्से में इसका पानी काला पडने लगा जिसे चीन द्वारा ताकलामाकन रेगिस्तान की बंजर ज़मीन की तरफ ब्रह्मपुत्र को मोड़ने की योजना से भी जोड़ा गया.

हालांकि, भारत सरकार ने पानी मोड़ने की किसी भी परियोजना के सबूत न होने की बात कही है, लेकिन 26 नवंबर 2017 को अमेरिकी व्यावसायिक कंपनी डिजिटल-ग्लोब द्वारा प्राप्त उपग्रह के चित्र एक नयी परियोजना को काफी आगे के चरण में दिखा रहे हैं. यह रिपोर्ट- जो कि हालिया उपग्रहीय चित्रों पर आधारित है- केवल वास्तविक धरातल की स्थिति को जांचती है. माप बहुत ही कम रेजोल्यूशन की तस्वीरों पर की गयी है और शायद ‘बिल्कुल सटीक’ न हों.

नयी परियोजना

उपलब्ध चित्र एक नया 200 मीटर चौड़ा बांध दिखाते हैं, जिसने ब्रह्मपुत्र के पानी को पूरी तरह रोक दिया है. पूरी नदी को जबरन 50 मीटर चौड़े दो इनलेट में मानो मोड़ा गया है, जो नदी के पश्चिम में है. पानी का प्रवाह लगभग 900 मीटर के बाद दो आउटलेट्स के जरिए बाहर आता है, जो रूप-रंग में बिल्कुल इनलेट्स की तरह हैं.

फिलहाल, निर्माणाधीन यह प्रोजेक्ट- शन्नान शहर से 60 किमी पूर्व में स्थित है। यह स्थान शांगरी काउंटी से 40 किमी पूर्व है.

Source: Vinayak Bhat

इस प्रोजेक्ट के ऊपर सवाल असल में एक दूसरे प्रोजेक्ट ने खड़ा कर दिया है- त्सांगमो या सांगमू डैम- यहां से 13 किमी दूर डाउनस्ट्रीम (धार की निचाई में) बना है. यह बांध 2015 के अंत से काम करने लगा है और इसकी क्षमता 510 मेगावाट है। बीजिग ने त्सांगमो डैम पर भारत की आपत्तियों पर कोई ध्यान नहीं दिया था.

संभावित मोड़ (डायवर्जन) की योजना

त्सांगमो के अपस्ट्रीम (धारा के ऊपर की ओर) 13 किमी दूर एक और बांध बनाया गया है, जो पूरे पानी को पहाड़ों की ओर मोड़ता है. इसी से यह धारणा भी बनती है कि इसका उद्देश्य केवल पनबिजली उत्पादन नहीं है. शायद इस प्रोजेक्ट का एक उद्देश्य ब्रह्मपुत्र के एक हिस्से को ताकलमाकन रेगिस्तान के सूखे इलाकों में भी भेजना है.

इस इलाके के भूगोल को अगर ध्यान से पढ़ें तो साफ पता लता है कि चीन शायद ब्रह्मपुत्र के पानी को परियोजना-स्थल से 1100 किमी दूर उत्तर-पश्चिम ले जाने की योजना बना रहा है.

नीचे दिए गए चित्र में दिखाए गए रास्ते से भूमिगत सुरंग का संभावित मार्ग पता चलता है जो अपने रास्ते में किसी भी जलाशय को नहीं छूता. प्रोजेक्ट की जगह और ताकलमाकन रेगिस्तान के बीच की ऊंचाई का अंतर भी इशारा करता है कि पानी के लिए बिल्कुल सीधी निचाई उपलब्ध होगी ताकि पानी प्राकृतिक तौर पर बह सके और बीच में बस बड़े स्टोरेज-वेल ही बनाने पड़ें, और कुछ नहीं.

Source: Vinayak Bhat

भारत चूंकि ब्रह्मपुत्र के डाउनस्ट्रीम में है, इसलिए उसके पानी पर पूरा हक इसी का है. किसी भी तरह इसे मोड़ना भारत की कृषि को नुकसान पहुंचाएगा. किसी भी आपातकाल में, इस परियोजना से अचानक ही पानी छोड़ने पर भी भारतीय इलाकों में तबाही मच सकती है.

काला पानी

उपग्रह के चित्र दिखाते हैं कि चीन ने इस परियोजना के चारों तरफ धूल को बिठाने के लिए पॉलीमर रेज़िन अधेसिव का छिड़काव किया है. इनका इस्तेमाल बड़े निर्माण-कार्यों के समय किया जाता है, पर कभी भी पानी के नजदीक के प्रोजेक्ट में इसका इस्तेमाल नहीं होता, क्योंकि यह मनुष्यों और जानवरों के लिए ख़तरनाक होता है. ऐसा कुछ पनबिजली निर्माण कार्य के इंजीनियर बताते हैं.

रेज़िन स्प्रे को पिछले दो महीनों से देखा गया है. इसके प्रोजेक्ट की जगह से भारत में पानी पहुंचने का संभावत समय 15 से 20 दिनों का है. ब्रह्मपुत्र नदी का असम की तरफ रंग गहरा (काला) हो रहा है, जैसी कि मीडिया रिपोर्ट हैं. यह शायद प्रोजेक्ट की जगह पर रेज़िन अधेसिव के इस्तेमाल की वजह से हो रहा है.

निर्माण कार्य ज़ोरों पर

उपग्रह के चित्र साफ तौर पर स्टोन क्रशर और सीमेंट के कारखानों को दखा रहे हैं. इसके उत्पाद ज़ाहरि तौर पर सुरंग के अंदर निर्माण के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं. इस सुरंग से निकले सामान क नदी से सड़क के स्तर तक जमा किया जा रहा है. अधिकतर पत्थरों को अलग आकार तोड़ दिया गया है और इनमें से कुछ तो नदी में पानी के प्रवाह के साथ बह गए होंगे.

बड़ी तादाद में टिपर और वैसे वाहन इस इलाके से सामान लाते और ले जाते दिखाई दे रहे हैं. प्रोजेक्ट से पूर्व की ओर एक प्रशासनिक इलाका भी दिखाई दे रहा है, जहां लाल छत वाले घर औऱ बैरक दिखाई दे रहे हैं, जो शायद स्टाफ के रहने के लिए बनाए गए हैं और प्रशासकीय कार्यों का भी निष्पादन यहीं से होता है.

कर्नल विनायक भट (सेवानिवृत्त) भारतीय सेना के एक सैन्य खुफिया अधिकारी रहे हैं,जिन्हें उपग्रही इमेजरी विश्लेषण का विशाल अनुभव है।

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