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Monday, 23 December, 2024
होममत-विमतप्रिय शेख हसीना, रोहिंग्या अगर हिंदू या बौद्ध होते तो क्या आप उन्हें शरण देतीं?

प्रिय शेख हसीना, रोहिंग्या अगर हिंदू या बौद्ध होते तो क्या आप उन्हें शरण देतीं?

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‘आप रोहिंग्याओं के लिए आंसू बहा चुकी हैं लेकिन आपने मुझे शरणार्थी बना दिया. पिछले 24 साल से मैं एक देश से दूसरे देश भटक रही हूं.’

आपको रोहिंग्याओं के लिए बहुत दर्द है. उनके ऊपर जो गुजर रही है उसे सुनकर आप रो चुकी हैं. इस सबसे प्रताड़ित अल्पसंख्यक समुदाय को कोई भी देश शरण नहीं दे रहा था, आपने दी. आज मुझे आपके जैसा कृपालु प्रधानमंत्री दूसरा कोई नहीं दिखता. आपकी तुलना जर्मनी की एंजेला मेर्केल से की जा रही है.

करीब 40 हजार रोहिंग्या भारत में चले आए हैं. भारत सरकार ने उन्हें निकाल बाहर करने का फैसला किया है. अमीर इस्लामी मुल्क भी उन्हें स्वीकार करने को राजी नहीं हैं. पाकिस्तान भी राजी नहीं है. कट्टरपंथी मुस्लिम मुल्क वैसे तो रोहिंग्याओं के समर्थन में खूब शोर मचाते हैं मगर वे भी उन्हें अपने यहां नहीं आने देना चाहते. आखिर बांग्लादेश जैसे गरीब देश को आगे आना पड़ा.

आपने लाखों रोहिंग्याओं को नाफ नदी में डूबने, ख़ुदकुशी करने, भूखे मरने से बचा लिया है. आपको नोबल पुरस्कार देने की बातें होने लगी हैं. और मुझे आपके ऊपर गर्व हो रहा है. हालांकि मैं नोबल पुरस्कार को उतना महान नहीं मानती हूं. आंग सान सू जैसे कई कुपात्र लोगों को यह पुरस्कार मिल चुका है. पुरस्कार की ख्वाहिश रखकर कुछ करना और पुरस्कार के बारे में सोचे बिना गरीबों के लिए काम करना, दो अलग बातें हैं. मेरा मानना है कि आपने पुरस्कार की खातिर सताए लोगों का साथ नहीं दिया. असली पुरस्कार तो आपके प्रति लोगों का प्यार है, खासकर रोहिंग्याओं जैसों का नोबल पुरस्कार तो उसके सामने कुछ भी नहीं है.

आपने कहा है, “बांग्लादेश 16 करोड़ लोगों को खिलाता है. सात लाख रोहिंग्याओं को खिलाने में उसे कोई दिक्कत नहीं होगी. हमारे पास इतनी क्षमता है”. आपने जो कहा है वैसा कहने की हिम्मत अमीर देश नहीं कर पाए. बांग्लादेश जैसे गरीब देश ने उम्मीद जगाई है और मानवता का परिचय दिया है.

आपने कहा है, “हम म्यानमार के शरणार्थियों के साथ हैं और तब तक उनकी मदद करेंगे जब तक वे अपने मुल्क नहीं लौट जाते”. इतना भी कहने की हिम्मत कितने लोग कर पाए हैं? कुछ रोहिंग्याओं में इस्लामी आतंकवादी बनने की प्रवृत्ति होगी, इसलिए उन पर भरोसा करने को कोई तैयार नहीं है. आपने अपने यहां के नागरिको से भी कहा है कि वे शणणार्थियों के साथ अमानवीय व्यवहार न करें. केवल आपने ही दिखा दिया है कि मुस्लिम देश भी मानवीय हो सकते हैं. हालांकि आपने कहा है कि म्यानमार रोहिंग्याओं को वापस बुलाए, उन्हें नागरिकता दें, उन्हें सुरक्षा दें लकिन आपको शायद पता है कि म्यानमार रोहिंग्याओं को वापस कबूल नहीं करेगा. वे कई पीढ़ियों तक बांग्लादेश में बने रहेंगे. बिना किसी हुनर के बेरोजगारों की बड़ी आबादी चोरी, नशाखोरी, आतंकवाद की ओर मुड़ जाएगी. ऐसा पहले हो चुका है और आगे भी होगा.

आपने कहा है कि 1975 में आपको शरणार्थी बनकर यूरोप में रहना पड़ा था, इसलिए आपको शरणार्थियों से हमदर्दी है.

लेकिन मैं यह नहीं समझ पाती कि आप मेरी पीड़ा को क्यों नहीं समझतीं या क्यों नहीं समझना चाहतीं. आपने मुझे शरणार्थी बना दिया है. पिछल 24 साल से मैं एक देश से दूसरे देश भटक रही हूं. मैं जी रही हूं मगर अपने देश में नहीं, क्योंकि आप मुझे अपने देश में घुसने नहीं देंगी. आप मेरी किताब पर से प्रतिबंध भी नहीं हटाएंगी. मैं अपनी सगी बहन को पावर ऑफ अटॉर्नी देना चाहती हूं और आप बांग्लादेश दूतावास के अधिकारियों को इस पर दस्तखत करने नहीं दे रही हैं. किसी व्यक्ति को अपने जीवन में और कितना प्रतिबंधित, अपमानित और कमजोर किया जा सकता है?

आप दूसरों के जीवन के लिए आंसू बहा रही हैं लेकिन एक जीवन क खुद ही तबाह कर रही हैं. जो दयालु होता है, वह सबके प्रति सद्भाव रखता है. मैंने किसी की न तो हत्या की है, न ही किसी को तकलीफ दी है. आपने जब मेरे ही देश के दरवाजे मेरे मुंह पर बंद कर दिए, तब आपकी मानवता कहां चली गई थी? अगर आप कुछ चंद लोगों की ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में यकीन रखती हैं, तो आप किसी की इस स्वतंत्रता को नहीं मानतीं. और तब आप लोकतंत्र को भी नहीं मानतीं.

आपने रजीब हैदर की हत्या का तभी तक विरोध किया जब तक आपको यह नहीं पता लगा कि वे नास्तिक हैं. देश में प्रगतिशील सोच वाले युवक एक के बाद एक मारे जा रहे हैं. नास्तिकतावादी ब्लॉगरों की हत्या पर आपने कभी शोक प्रकट नहीं किया, कभी उन्हें न्याय दिलवाने की कोशिश नहीं की. विदेशी धरती से वापस आने वाले मुसलमानों के लिए तो आप आंसू बहाती हैं मगर अपने देश में मारे गए प्रगतिशील युवकों के लिए नहीं. इन बर्बर हत्याओं के खिलाफ अगर आप नहीं बोलतीं, तो आप प्रधानमंत्री की सही भूमिका नहीं निभा रही हैं.

प्रिय प्रधानमंत्री जी, आप बराबर यह भूल जाती हैं कि आप मजहबी और गैरमजहबी, दोनों तरह के लोगों की प्रधानमंत्री हैं. अमीर, गरीब, महिला, पुरुष, हिंदू, मुसलमान, धार्मिक, अधार्मिक, सबके प्रति आपका समान फर्ज बनता है और आपके लिए सभी बराबर हैं. सभी आपसे एक तरह के सद्भाव की अपेक्षा रखते हैं. अगर ऐसा नहीं है, तो आपकी मानवता भी झूठी है और आपके आंसू भी नकली हैं.

कुछ लोग कहते हैं कि आप वोट के लिए रोहिंग्याओं को शरण दे रही हैं. आपको मुस्लिम वोट मिलेंगे. अगर रोहिंग्या हिंदू या बौद्ध होते तो क्या आप उन्हें शरण देतीं? शायद नहीं. बांग्लादेश में हिंदुओं को प्रताड़ित, निष्कासित किया जा रहा है, उनके घर जलाए जा रहे हैं. क्या आप उन लोगों के साथ कभी खड़ी हुईं? उनके लिए आपने आंसू बहाए?

बहुसंख्यकों के वोट की खातिर आप मुझे अपने देश में आने नहीं दे रही हैं, न ही आप अल्पसंख्यकों के प्रति हमदर्दी दिखा रही हैं, न ही यह कबूल कर रही हैं कि आपके यहां नास्तिकों की हत्या हो रही है. आप केवल चुनाव जीतना चाहती हैं, गद्दी चाहती हैं. एक शातिर और स्वार्थी शख्स को हम स्वतंत्र या मानवीय कैसे कह सकते है?

आपकी वह, जिसे आपने दो दशकों से शरणार्थी बना रखा है.

तस्लीमा नसरीन जानी-मानी लेखिका और टिप्पणीकार हैं.

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