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Thursday, 21 November, 2024
होममत-विमतज़ोमैटो, स्विगी के डिलीवरी एजेंट्स की मांग-आपूर्ति असंतुलन को दूर कर सकते हैं इलेक्ट्रिक व्हीकल्स

ज़ोमैटो, स्विगी के डिलीवरी एजेंट्स की मांग-आपूर्ति असंतुलन को दूर कर सकते हैं इलेक्ट्रिक व्हीकल्स

2027 तक भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स का बाजार 2021 में 7 अरब डॉलर से बढ़कर 2027 तक 30 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है.

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भारत में पिछले वित्त वर्ष में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स या ईवी की बिक्री में 218% की ग्रोथ दिखी है. हालांकि, बिजनेस के किसी भी नए सेक्टर में ऊंची ग्रोथ रेट आम बात है, और ईवी का हिस्सा वित्त वर्ष 2021 में कुल बिक्री के 1% से कम रहा है. वैसे तो देश में ईवी अपनाने की रफ्तार नियमित रूप से बढ़ रही है, लेकिन इस सेक्टर में तरक्की की कहानी को तेज रफ्तार देने के लिए काफी कुछ किया जाना है.

इलेक्ट्रिक व्हीकल्स में अलग-अलग स्टेकहोल्डरों के लिए एक बड़ा मौका है. खासतौर से बड़ी होती गिग इकोनॉमी के लिए- जिसकी विशेषता हैं छोटी अवधि के अनुबंध और फ्रीलांस काम- ईवी रोजगार के ऐसे मौके ला सकता है जो आर्थिक रूप से वंचित लोगों के सशक्तीकरण को बढ़ावा दे सकते है. एथर एनर्जी, ब्लूस्मार्ट और युलु जैसे नामी ईवी स्टार्टअप्स समेत भारतीय ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के लिए, ईवी मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपोर्ट के मौके बनते हैं.

भारत सरकार के लिए, जो अब जी20 की अध्यक्षता करने जा रही है, ये ‘एनर्जी ट्रांजिशन’- जीवाश्म ईंधन से नवीकृत ऊर्जा तक- के मुद्दे पर काम करके दिखाने का मौका है. एनर्जी ट्रांजिशन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाल ही में जारी किए गए नए जी20 एजेंडा का एक अहम हिस्सा है. अगर भारत इन मौकों का ठीक से फायदा उठाता है और जी20 की अपनी अध्यक्षता का अच्छा इस्तेमाल करता है, तो ये ईवी अपनाने में दुनिया की अगुवाई कर सकता है.


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भारतीय गिग इकोनॉमी के लिए ईवी

नीति आयोग की एक हालिया पॉलिसी ब्रीफ में अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक भारतीय गिग इकोनॉमी में 2.35 करोड़ कर्मचारी होंगे, जो कि 2020-21 में सिर्फ 77 लाख थे. दूसरे अनुमानों में और ज्यादा बड़े आंकड़े दिए गए हैं. अनौपचारिक बाजारों का एक बड़ा हिस्सा मोबिलिटी पर निर्भर करता है. इसलिए, कर्मचारियों की सिर्फ संख्याओं के आधार पर गिग इकोनॉमी ईवी को अपनाए जाने के लिए बड़ा मौका पेश करती है.

उदाहरण के लिए, ज़ोमैटो और स्विगी जैसे डिलीवरी प्लेटफॉर्म्स को बार-बार उन डिलीवरी एजेंट्स की कमी का सामना करना पड़ता है जो अपने खर्च पर आना-जाना कर सकें. दूसरी तरफ, ऐसे अनौपचारिक रोजगार ढूंढ़ने वालों की कमी कभी नहीं होती. किफायती टू-व्हीलर इलेक्ट्रिक व्हीकल्स रोजगार में मांग-आपूर्ति के इस तरह के असंतुलन को दूर करने का मौका पेश करते हैं.

साथ ही, ऐसे ईवी मॉडल जिन्हें चलाने के लिए कोई लाइसेंस या रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं होती, वे बाजार का दायरा काफी बढ़ाते हैं. ऐसे मॉडल का एक उदाहरण है 25 किलोमीटर/घंटा की गति सीमा वाले युलु स्कूटर. भारतीय शहरों में बेंगलुरु एक कामयाब उदाहरण बनकर उभरा है.

शहर में 7,500 युलु स्कूटर हैं जिनमें 60% की सवारी करने वाली डिलीवरी एजेंट होते हैं. ईवी से बड़े पैमाने पर उन कर्मचारियों को फायदा मिल सकता है जिन्हें एक जगह से दूसरी जगह कम वजन के सामान लेकर जाना होता है. किफायती इलेक्ट्रिक व्हीकल्स भारत के वंचित वर्गों को सशक्त बना सकते हैं और उनकी सामाजिक हैसियत को बढ़ा सकते हैं. साथ ही, इस वर्ग से आने वाली मांग भारतीय ईवी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए एक बड़ा अवसर है.

ईवी मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपोर्ट की संभावना

2027 तक भारतीय ईवी बाजार के 30 अरब डॉलर का हो जाने का अनुमान है, जो 2021 में 7 अरब डॉलर का था. नीति आयोग का अनुमान है कि 2030 तक, भारत में ईवी की बिक्री दोपहिया और तिपहिया वाहनों में 80%, कॉमर्शियल व्हीकल्स में 70%, निजी वाहनों में 30%, और बसों में 40% होगी. ये अनुमान 2070 तक देश के कार्बन न्यूट्रल होने के लक्ष्य से मेल खाते हैं.

हालांकि, एक हालिया विश्लेषण में कहा गया है कि उद्योग में उत्साहजनक रुझानों के बावजूद, 2030 तक नीति आयोग का ईवी बिक्री अनुमान 40% तक गिर सकता है. इसलिए, मन्युफैक्चरर्स के लिए सही वक्त है कि वे आगे बढ़ें और ईवी के सभी संभावित बाजारों की तलाश करें, खासतौर पर गिग इकोनॉमी से जुड़े बाजारों की, क्योंकि गिग इकोनॉमी से आने वाली डिमांड ईवी की बिक्री में बड़ा इजाफा कर सकती है. वित्त वर्ष 2021 में जितने नए वाहन रजिस्टर्ड हुए, उनमें 95% दोपहिया और तिपहिया थे- और यही इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की डिमांड के लिए एक मजबूत आधार है. इसके अलावा, घरेलू मोर्चे पर क्षमताएं स्थापित करने से भारत के लिए वैश्विक बाजार महत्वपूर्ण रूप से खुल सकते हैं.

बाजार के कई खिलाड़ियों ने न सिर्फ घरेलू स्तर पर बल्कि एक्सपोर्ट के लिए भी भारत की ईवी संभावनाओं को बढ़ाया है. 2019 में बजाज ऑटो के साथ भागीदारी के बाद, युलु ने प्रोडक्ट डिजाइन, मैन्युफैक्चरिंग और इंजीनियरिंग प्रॉसेस में बड़े कदम उठाए हैं. इलेक्ट्रिक व्हीकल्स में इसकी विशेषज्ञता और दोपहिया वाहनों के निर्यात बाजार में बजाज की मजबूती भारत से ईवी एक्सपोर्ट में मदद कर सकती है.

इसके अलावा, दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु में शहरी प्राधिकरणों के साथ युलु की साझेदारी इसकी पार्किंग और चार्जिंग के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने का भरोसा दिलाती है. इसी तरह, भारत की सबसे बड़ी दोपहिया निर्माता हीरो मोटोकॉर्प ने हाल ही में अपना पहला इलेक्ट्रिक स्कूटर विडा वी1 लॉन्च किया है, और अगले साल की शुरुआत में इसका लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रवेश करना है. ये कंपनियां भारत के ईवी निर्यात कौशल को बेहतर कर रही हैं, जिससे देश को लैटिन अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया जैसे प्रासंगिक बाजारों में जगह बनाने में मदद मिल रही है. लेकिन भारत को ईवी निर्माण में अपनी पूरी क्षमता हासिल करने के लिए निर्बाध और ठोस नीतियों की जरूरत होगी.


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ईवी नीतियों में जरूरी बदलाव

इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को बढ़ावा देने की सरकार की मुख्य नीति दिखती है 2019 फेम (फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक एंड हाइब्रिड व्हीकल्स इन इंडिया) स्कीम के दूसरे फेज में, जिसमें 2022 के लिए 10,000 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान है. इसके अतिरिक्त इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को बढ़ावा देने के मकसद से एडवांस्ड ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजी (एटीटी) प्रोडक्ट्स और एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल्स (एसीसी) के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) स्कीमें भी हैं- जो नए इलेक्ट्रिक व्हीकल्स खरीदने के लिए सब्सिडी देती हैं.

फेम-II का एक बड़ा फीचर है डोमेस्टिक वैल्यू एडिशन (डीवीए)- आधारित सब्सिडी. हालांकि, हाल ही में छोटे ईवी स्टार्टअप्स ने फेम-II की सब्सिडी का भुगतान न किए जाने की वजह से सरकार पर भेदभावपूर्ण बर्ताव करने का आरोप लगाया है. टू- व्हीलर ईवी के लिए 50,000 रुपए और थ्री- व्हीलर ईवी के लिए 1 लाख रुपए तक की सब्सिडी का प्रावधान है, ऐसे में सब्सिडी का भुगतान न होना बाजार को प्रभावित कर सकता है.

डीवीए की गणना में ऐसी चिंताओं का हवाला देते हुए सरकार डीवीए आंकड़ों को डिजिटाइज करके फेम-II को संशोधित कर रही है. हालांकि, फेम-II के तहत सब्सिडी पर थोड़ा पुनर्विचार करने की जरूरत है. इंडिविजुअल ईवी यूनिट के लिए सब्सिडी के बजाय, बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए सब्सिडी देना ईवी बाजार के लिए बेहतर होगा. साथ ही, ईवी, जैसे इलेक्ट्रिक स्कूटरों और उनकी बैट्रीज के लिए दी जा रही सब्सिडी को इससे डीलिंक किया जाना चाहिए.

कुछ मामलों में नीतिगत अड़चनों को दूर करने में तेजी आई है. जीएसटी काउंसिल जल्द ही लिथियम- आयन बैट्री और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स पर टैक्स को तर्कसंगत बना सकती है. अभी इन दोनों पर 18% जीएसटी है जिसे घटाकर 5% किया जा सकता है. ईवी कंपोनेंट के मामले में, दिसंबर 2022 तक एक नई पीएलआई स्कीम की उम्मीद है, जिसमें फोकस होगा एडवांस्ड ईवी बैट्री टेक्नोलॉजीज पर, जो एसीसी पीएलआई स्कीम का हिस्सा नहीं हैं.

भारत को ईवी अपनाए जाने के भू- राजनीतिक प्रभावों को लेकर भी ध्यान रखना होगा. इसे सुनिश्चित करना होगा कि ईवी कंपोनेंट के लिए चीन पर मौजूदा निर्भरता को बढ़ाए बगैर इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को बढ़ावा मिले. भारत को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि चार्जिंग प्वॉइंट्स समेत जरूरी बुनियादी ढांचा मौजूद रहे.

यह अच्छी बात है कि इंडोनेशिया, भारत और ब्राजील की तीन उभरती अर्थव्यवस्थाएं जी20 की मौजूदा त्रिवेणी बनाते हैं. सामाजिक विविधता और ढेरों चुनौतियों के बीच, इन देशों- खासतौर पर भारत- में ईवी अपनाए जाने की कामयाबी जलवायु परिवर्तन के कठोर प्रभावों से लड़ने में दुनिया के लिए एक प्रेरणा का काम कर सकती है.

आर. के. मिश्रा कार्नेगी इंडिया में नॉन-रेसिडेंट स्कॉलर हैं. शताक्रतु साहू कार्नेगी इंडिया में टेक्नोलॉजी एंड सोसाइटी रिसर्च प्रोग्राम के प्रोग्राम को-ऑर्डिनेटर और रिसर्च असिस्टेंट हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.

यह लेख प्रौद्योगिकी की भू-राजनीति की पड़ताल करने वाली सीरीज का हिस्सा है, जो कार्नेगी इंडिया के 7वें ग्लोबल टेक्नोलॉजी समिट की थीम है. विदेश मंत्रालय के साथ संयुक्त मेजबानी में ये समिट 29 नवंबर से 1 दिसंबर तक होगी. रजिस्टर करने के लिए यहां क्लिक करें. प्रिंट इसमें डिजिटल सहयोगी है. सभी लेख यहां पढ़ें.

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(अनुवाद: अदिता सक्सेना)
(संपादन: इन्द्रजीत)


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