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Friday, 19 April, 2024
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जवान विवाहित स्त्रियां भारतीय घरों में कम सोती और ज्यादा काम करती हैं- स्टडी

हमने वक्त के इस्तेमाल का सर्वे यह जानने के लिए किया कि पैड नौकरियों में इतनी कम युवा भारतीय महिलाएं क्यों हैं?

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इस तथ्य पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है कि भारत में कामकाजी स्त्रियों में सिर्फ पांच में एक ही नौकरी में है. दलीलें ये दी जाती हैं कि स्त्री के साथ विवाह, बच्चे की परवरिश और घरेलू काम के तय कायदे और उपयुक्त नौकरियों का अभाव दोनों ही महिलाओं के आड़े आते हैं.

यह संभव नहीं है कि कोई एक पहलू महिलाओं की नौकरी में हिस्सेदारी की उलझन को पूरी तरह सुलझा दे. हालांकि, जवान भारतीय स्त्रियां कैसे अपना दिन बिताती हैं और कैसे वह विवाह और नौकरी से बदल जाता है, इसकी जानकारी से स्त्रियों के लिए तय कायदे की अड़चनों पर रोशनी पड़ सकती है. खासकर भारतीय जवान स्त्रियों के लिए फुरसत और काम के पलों (नौकरी और घरेलू काम दोनों में) की जानकारी से हमें यह जानने में मदद मिल सकती है कि क्यों वे नौकरियों में नहीं जा सकतीं या छोड़ देती हैं. जैसा कि हाल के वर्षों में खासकर ग्रामीण इलाकों में देखा गया है.

हमने 2019-20 में किए गए ‘वक्त के इस्तेमाल’ की राष्ट्रीय प्रतिनिधि सर्वे से ‘रोजाना वक्त के इस्तेमाल’ के पैटर्न का व्यक्तिगत स्तर के डेटा निकाला. फिर, हमने 20-29 आयुवर्ग की महिलाओं पर गौर किया, जिन्होंने अपनी प्राथमिक स्थिति घरेलू काम या नौकरी बताई है. यही वह उम्र है, जिसमें महिलाओं को विवाह और बच्चे को जन्म देने की वजह से अपने वक्त बिताने के तरीके में बड़ी तब्दीली करनी पड़ती है. लड़कियों की पढ़ाई का स्तर ऊपर उठने से, खासकर शहरों में यही वह उम्र है, जब वे अपने करियर और कार्यस्थल में प्रोन्नति की ख्वाहिशें पालती हैं. हमने उन युवा लड़कियों पर गौर नहीं किया, जो पढ़ाई में व्यस्त हैं क्योंकि उनके रोजाना की गतिविधियां ज्यादातर उनकी पढ़ाई के इर्दगिर्द ही घूमती हैं.


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विवाहित और नौकरीशुदा का मतलब कम सोना, ज्यादा काम

घर-परिवार की देखभाल ज्यादातर महिलाओं के लिए फुलटाइम जॉब है. पूरी तरह घरेलू काम में जुटी जवान स्त्रियों के रोजाना करीब आठ घंटे घर के काम और बच्चे/बुजुर्गों की सेवा वगैरह में बीतता है. यह भी संभव है कि वे अपने काम को पूरे दिन फैला दें और घरेलू काम में वक्त की जरूरत से ज्यादा वक्त लगाती हैं.

नौकरीशुदा जवान स्त्रियों को रोज 1.5 घंटे ज्यादा काम करना पड़ता है यानी उन्हें नौकरी और घरेलू काम को मिलाकर 9.5 घंटे काम करना पड़ता है. औसतन 5 घंटे 15 मिनट उन्हें पैड नौकरी में काम करना पड़ता है और 4 घंटे से कुछ ज्यादा घरेलू काम में लगाना पड़ता है. पैड नौकरी में लगे घंटों के हिसाब से घरेलू काम के घंटे नहीं घटते हैं, इसलिए नौकरीशुदा महिला के लिए काम का कुल बोझ बढ़ जाता है.

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अगर हम जवान स्त्रियों की वैवाहिक स्थिति को ध्यान में रखें और फिर उनके काम के रोजाना (नौकरी और घरेलू दोनों) घंटों को जोड़ें तो विवाहित और नौकरीशुदा महिलाओं के लिए यह 10 घंटे बैठता है. उनके काम के तरीके भी घरेलू काम के पक्ष में झुके रहते हैं. वे पैड नौकरी में आधा घंटा कम काम करती हैं. वे कुल 10 घंटे काम के वक्त में औसतन 4 घंटे 45 मिनट ही काम करती हैं.

इसके उलट, अविवाहित और नौकरीशुदा महिलाएं सिर्फ 1.5 घंटे ही घरेलू काम करती हैं और पैड नौकरी में करीब 6 घंटे 40 मिनट काम करती हैं. इसका मतलब यह है कि नौकरीशुदा जवान स्त्रियों के लिए विवाह और बच्चे की जिम्मेदारी घरेलू काम का वक्त 1.5 घंटे से बढ़कर करीब 5 घंटे 20 मिनट हो जाता है.

लिहाजा, विवाहित और नौकरीशुदा महिलाओं को फुरसत, नींद, खुद की देखरेख वगैरह के वक्त में कटौती करनी पड़ती है. इसके साथ नौकरी और घरेलू काम के दोहरे बोझ से सामाजिक गतिविधियों में उनकी हिस्सेदारी भी घट जाती है. इन सभी गतिविधियों के लिए इन महिलाओं के पास थोड़ा समय होता है. वे फुरसत की गतिविधियों में बमुश्किल 1 घंटे 20 मिनट ही बिता पाती हैं जबकि गैर-नौकरीशुदा विवाहित महिलाएं करीब 2 घंटे निकाल लेती हैं. यही नहीं, नौकरीशुदा विवाहित महिलाएं गैर-नौकरीशुदा विवाहित महिलाओं के मुकाबले खुद की देखरेख और सोने में 45 मिनट कम समय बिताती हैं.

ग्राफिक – रमनदीप कौर | दिप्रिंट

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कार्यबल में ज्यादा महिलाओं को कैसे लाएं

आश्चर्य नहीं कि कुछ ही महिलाएं तालमेल बिठा पाती हैं और विवाह के बाद पूर्णकालिक काम कर पाती हैं. हालांकि पैड नौकरी में उपयुक्त नौकरी का अभाव कुछ कम प्रतिशत महिलाओं के लिए सही हो सकता है. विवाह से महिला के लिए घरेलू काम का तरीका काफी बदल जाता है तो इससे हमें यह पता चलता है कि विवाह के बाद पूर्णकालिक काम से महिला को रोजना शारीरिक और मानसिक स्थिति को संभाले रखना मुश्किल हो जाता है.

जब तक घरेलू काम का बोझ परिवार के सभी सदस्यों में बराबर नहीं बंटता या उसके लिए बाहरी मदद नहीं ली जा सकती, भारत में ज्यादा महिलाओं का नौकरी करना और उसे लंबे समय तक चलाए रखना संभव नहीं है.

इसके अलावा, देश में अगर ज्यादा महिलाओं को पैड नौकरी में लाना है तो पूरे देश में लगभग एक समान विवाह के बाद स्त्री की भूमिका पर बड़े बदलाव की दरकार है.

विद्या महांबरे चेन्नै में ग्रेट लेक्स इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर और डायरेक्टर (रिसर्च) हैं, सौम्या धनराज गुड बिजनेस लैब की सीनियर रिसर्च फेलो हैं और शांभवी चंद्रा मद्रास स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की ग्रेजुएट हैं. विचार निजी हैं. 

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें) 


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