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Saturday, 21 December, 2024
होममत-विमतयोगी की पुलिस ने अखिलेश को क्यों रोका, क्यों फोड़ा धर्मेंद्र का सर

योगी की पुलिस ने अखिलेश को क्यों रोका, क्यों फोड़ा धर्मेंद्र का सर

योगी अपने समर्थकों को शायद दिखाना चाहते हों कि वह स्ट्रांगमैन हैं और जिन लोगों ने सत्ता में रहते उन्हें रुलाया था, उन्हें वह हर हाल में रुलाकर छोड़ेंगे.

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इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वार्षिकोत्सव समारोह में जाने से समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव को रोक दिया गया. रोकने के पीछे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह तर्क दिया कि सपा अराजकता बढ़ाना चाहती है और विश्वविद्यालय प्रशासन ने आशंका जताई थी कि अखिलेश के आने पर हिंसा हो सकती है.

अखिलेश यादव का अब तक का कोई ऐसा ट्रैक रिकॉर्ड नहीं रहा है कि वे जहां गए हों, वहां हिंसा हुई हो. अखिलेश भाषण देने में सौम्य हैं. वह किसी समुदाय, जाति, धर्म विशेष को ललकारते नहीं हैं, उसे उकसाते नहीं हैं. कड़ी से कड़ी बात मुस्कुराते हुए कह देते हैं. कभी-कभी तो इतने व्यंग्यात्मक अंदाज में हमले करते हैं कि मीडिया के लिए समझना मुश्किल हो जाता है कि वह क्या कह रहे हैं.

जब आदित्यनाथ सरकार ने साधुओं के लिए पेंशन देने की व्यवस्था की थी तो जबरदस्त व्यंग्य किया था अखिलेश ने. साधु सामान्यतया आरएसएस भाजपा के प्रचारक होते हैं और आदित्यनाथ खुद साधु रहे हैं, इसे देखते हुए अखिलेश ने पत्रकारों से कहा कि आप लोग भी हमारा प्रचार करिए, सत्ता में आते ही आपलोगों को यशभारती दिया जाएगा और पेंशन भी मिलेगी. इसके अलावा उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि रामलीला में सीता, राम, हनुमान बनने वालों को भी पेंशन दी जानी चाहिए. मीडिया को व्यंग्य समझ में नहीं आया और उसने इसे खबर के रूप में दिखाया था.


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इतने चुटीले अंदाज में व्यंग्यात्मक तरीके से बात कह देने वाले और हमेशा मुस्कुराते हुए बात करने वाले अखिलेश से किस तरह की हिंसा की संभावना है? इसे समझने के लिए सपा और आदित्यनाथ की राजनीति की पृष्ठभूमि में जाना जरूरी है. जब मुलायम सिंह यादव 2007 में मुख्यमंत्री थे तब सांसद रहते आदित्यनाथ ने अधिकारियों को धमकी दी और असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया. पुलिस अधिकारियों को गुस्सा आया और उन्होंने सांसद से अपने स्टाइल में निपट लिया. परिणाम यह हुआ कि सांसद महोदय कहने लायक भी नहीं बचे कि उनके साथ क्या-क्या हो गया.

संसद में पहुंचे तो समाज सेवा, परिवार छोड़ने, आईएसआई और प्रशासन के स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार के मसले उठाने जैसे भावनात्मक मुद्दे पर भाषण देकर बिलखने लगे. उस दौरान लोकसभा अध्यक्ष के चेयर पर कम्युनिस्ट सांसद सोमनाथ चटर्जी बैठे हुए थे. उन्होंने एक भावुक व्यक्ति की तरह सांसद को सुरक्षा दिलाने का वादा किया.


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आदित्यनाथ सांसद के रूप में बहुत उग्र रूप में नजर आते रहे हैं. गोरखपुर मंडल में जब काफिला निकलता था तो उसमें सैकड़ों गाड़ियां होती थीं और इलाके में पूरी तरह से दहशत का माहौल होता था. ऐसे में प्रशासन को कानून व्यवस्था बनाए रखने में पसीने छूट जाते थे. ऐसी तमाम घटनाएं हुईं, जब आदित्यनाथ उन जगहों पर गए, जहां हिंदू-मुस्लिम विवाद हुआ और वहां पर दंगे जैसा माहौल बना. ऐसे मंचों पर योगी का स्वागत किया गया, जहां मुस्लिम महिलाओं को कब्र से खोदकर बलात्कार करने, मुस्लिमों को नेस्तनाबूत करने, उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाने, उनसे मतदान का अधिकार छीन लेने की बात कही जाती रही है.

उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी बनाई और भाजपा से अलग एक समानांतर संगठन खड़ा किया. इसमें बड़ी संख्या में इलाके के युवा शामिल हुए, जो बेरोजगार थे. वे सांसद निधि ठेका पाने लगे. मंदिर की ओर से चलने वाले स्कूल, कॉलेज, अस्पताल में समायोजित किए गए. उन्हें रोजगार का साधन मिला और उन्होंने आर्थिक लाभ होने पर योगी का औरा फैलाने में मदद की. योगी का रुतबा बढ़ता गया.

अखिलेश यादव से योगी का सीधा टकराव 2015 में हुआ, जब वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने जा रहे थे, उस समय इलाहाबाद विश्वविद्यालय की अध्यक्ष ऋचा सिंह ने योगी के आने का विरोध किया था. उस समय ऋचा सिंह किसी दल में नहीं थीं. हालांकि बाद में वे सपा में शामिल हो गईं और विधानसभा चुनाव भी लड़ा. योगी को मिर्जापुर के विंध्याचल में रोका गया और उन्हें वापस भेज दिया. उसके बाद योगी ने कहा कि उत्तर प्रदेश प्रशासन सरकार के दबाव में ऐसा कर रहा है.

संसद में रोने के ठीक 10 साल बाद योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए. मुख्यमंत्री के रूप में भी वह मंच से लोगों को धमकाने और धमकी भरी चेतावनी देने के लिए जाने जाते रहे हैं. मुख्यमंत्री रहते जब वह देवरिया जिले में रेलवे क्रॉसिंग पर बच्चों की मौत के बाद गए तो वहां उन्होंने मौजूद लोगों को धमकियां दीं. उसका वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ.

संभव है कि अखिलेश को इलाहाबाद विश्वविद्यालय जाने से रोकना उनकी बदले की कार्रवाई हो. इस बात की पूरी संभावना है कि वह अपने समर्थकों को दिखाना चाहते हों कि वह स्ट्रांगमैन हैं और जिन लोगों ने सत्ता में रहते उन्हें रुलाया था, उन्हें वह हर हाल में रुलाकर छोड़ेंगे. हालांकि यह कहना थोड़ा मुश्किल है कि इसका राजनीतिक असर क्या होगा. योगी समर्थक और उनकी हिंदू युवा वाहिनी के लोगों का उत्साह तो निश्चित रूप से बढ़ेगा और वह इसे मुख्यमंत्री की ओर से लिया गया बदला और उनकी जीत के रूप में देखेंगे.

वहीं इसकी प्रतिक्रिया के रूप में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं में आक्रोश होगा और वे सपा की ओर गोलबंद होंगे.यह अखिलेश को रोकने के बाद साफ-साफ नजर भी आया और बगैर किसी आह्वान के सपा के लोग पूरे प्रदेश में सक्रिय हो गए. उन्होंने धरने प्रदर्शन किए और मुख्यमंत्री का पुतला फूंका. यहां तक कि बसपा अध्यक्ष मायावती ने भी अखिलेश का समर्थन करते हुए इसे सरकार की निरंकुशता करार दिया.

इसका आकलन मुश्किल है कि सामान्य मतदाताओं पर इसका क्या असर पड़ेगा, जो हर चुनाव में पाला बदल लेते हैं. उन्हें मुख्यमंत्री की अपने ही राज्य के नेताओं को रोकने, उन्हें न जाने देने की कार्रवाई सही लगेगी या गलत. पश्चिम बंगाल में योगी का विमान न उतरने देने और उसके तत्काल बाद केंद्र सरकार द्वारा कोलकाता के पुलिस प्रमुख के ऊपर छापे की कार्रवाई और उसके बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के धरने की चर्चा खत्म भी नहीं हुई थी कि योगी ने अपने ही राज्य के नेता को रोककर सुर्खियां बटोर लीं. ममता ने योगी को रोककर संभवतः यह संदेश दिया कि दूसरे राज्य से आकर भड़काऊ भाषण देने वालों को राज्य में घुसने नहीं दिया. वहीं योगी क्या संदेश देना चाहते हैं, यह समझ पाना मुश्किल बना हुआ है.

(लेखिका सामाजिक और राजनीतिक मामलों की टिप्पणीकार हैं.)

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