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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतयोगेंद्र यादव का ये मानना गलत है कि ओवैसी की AIMIM ‘मुस्लिम भाजपा’ बन जाएगी

योगेंद्र यादव का ये मानना गलत है कि ओवैसी की AIMIM ‘मुस्लिम भाजपा’ बन जाएगी

योगेंद्र यादव को डर है कि अगर मुसलमान किसी मुसलमान की अगुवाई वाली पार्टी को वोट देने लगे तो फिर सेक्यूलर मोर्चे सिर्फ अलग-अलग जातियों के नुमाइंदे बनकर रह जाएंगे.

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मैंने खुद को दिप्रिंट में छपे योगेंद्र यादव के हालिया कॉलम का जवाब देने के लिए मजबूर किया है जिसमें उन्होंने ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लेमीन या एआईएमआईएम के उदय को एक चिंताजनक खबर बताकर कलंकित किया है.

हालांकि चुनाव विश्लेषक से राजनेता बने योगेंद्र यादव की सतही आलोचना का तर्क के हिसाब से कोई मतलब नहीं बनता, लेकिन ये एक नापसंदगी का खुला इज़हार ज़रूर है. अगर हम ध्यान से देखें तो पाएंगे कि बिहार विधानसभा चुनावों में, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी की कामयाबी के बारे में ज़्यादातर नेता जो कुछ कहते हैं वो दरअसल ये स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं कि मुस्लिम वोट अब उनकी निजी बपौती नहीं है जिसे वो मानकर चल सकते हैं.

हैदराबाद के बाहर एआईएमआईएम के उदय से खासकर भारत के हिंदी भाषी इलाकों में ज़्यादातर सेक्यूलर सियासी मोर्चे बराबर से हिल गए हैं. जब बिहार चुनावों के नतीजे घोषित हुए और तेजस्वी यादव के राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की अगुवाई वाले महागठबंधन के अच्छे प्रदर्शन के बावजूद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को और पांच साल के लिए सत्ता मिल गई तो बहुत से कांग्रेसी नेता नाखुश थे. एक समय तो ऐसा लगा कि जैसे कांग्रेस पूरा चुनाव हार जाने से उतनी मायूस नहीं थी जितनी एआईएमआईएम के सीमांचल में पांच सीटें जीतने से थी, जो कभी उसका गढ़ हुआ करता था.

बिहार में कांग्रेस के सबसे बड़े मुस्लिम नेताओं में से एक तारिक अनवर ने ट्विटर पर लिखा, ‘एनडीए को ओवैसी का शुक्रिया अदा करना चाहिए, जिन्होंने बिहार में एक और बार सरकार बनाने में उनकी मदद की’.

युवा कांग्रेस के आधिकारिक फेसबुक पेज पर भी इसी आशय के पोस्टर्स और कार्टूंस शेयर किए गए- एआईएमआईएम भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की बी-टीम है और ओवैसी ने बिहार जीत में एनडीए की मदद की है. लेकिन चुनावी आंकड़े ऐसे सभी दावों को ध्वस्त कर देते हैं. हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है कि कांग्रेस ने ऐसा बनावटी दावा किया है. दिसंबर 2018 में तेलंगाना विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी ने कहा था: ‘टीआरएस बीजेपी की बी-टीम है, एआईएमआईएम बीजेपी की सी-टीम है’.


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योगेंद्र यादव को वास्तविकता जांचने की ज़रूरत

योगेंद्र यादव की आलोचना निंदात्मक और चतुराई भरी है. उनका आरोप है कि एआईएमआईएम ‘विशेष रूप से एक हानिकारक सियासी संगठन है’. वो हैदराबाद स्थित पार्टी का इतिहास बताते हैं और जिस समय हैदराबाद एक आज़ाद रियासत थी, तब ‘भारत या पाकिस्तान’ के मामले में उसके रुख को लेकर भारत के प्रति उसकी वफादारी और निष्ठा पर सवाल खड़े करके उसे अवैध करार देने की कोशिश करते हैं. मैंने भी अभी तक नहीं देखा कि किसी दूसरी सियासी पार्टी की वफादारी पर इस बात को लेकर सवाल उठ रहे हों, कि उसके संस्थापक सदस्यों ने 1947 से पहले क्या किया था. हम जानते हैं कि कांग्रेस किस तरह हिंदू महासभा के संस्थापक मदन मोहन मालवीय और लाला लाजपत राय जैसे हिंदू राष्ट्रवादी, यहां तक कि वीडी सावरकर तक को सराहती थी.

अतीत के लिए अगर कांग्रेस की आलोचना होती भी है, तो वो उसकी गलतियों और भूलों या ज़्यादा से ज़्यादा उनके मुस्लिम तुष्टिकरण पर केंद्रित होती है. लेकिन योगेंद्र यादव ने एआईएमआईएम को उसकी गलतियों के लिए ‘संदिग्ध’ करार नहीं दिया है. उसकी बजाये उन्होंने भारत के प्रति पार्टी की वफादारी और निष्ठा पर सवाल खड़े किए हैं.

साथ ही साथ, योगेंद्र यादव ये इल्ज़ाम भी लगाते हैं कि एआईएमआईएम एक सांप्रदायिक संगठन है. हालांकि वो इतने ईमानदार ज़रूर हैं कि इस बात को मानते हैं कि एआईएमआईएम एकमात्र सांप्रदायिक संगठन नहीं है. वो लिखते हैं कि शिरोमणि अकाली दल (एसएडी), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल), मिल्ली काउंसिल, ऑल इंडिया युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) और केरल कांग्रेस के बहुत से गुट भी उतने ही सांप्रदायिक हैं.

एआईयूडीएफ, जैसा कि यादव कहते हैं, सिर्फ इस मामले में अलग है कि ये अपने नाम में सांप्रदायिक नहीं है. मेरी समझ में नहीं आता कि उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) को इसमें शामिल क्यों नहीं किया जो ब्रह्मणों की नुमाइंदगी करती है, आम आदमी पार्टी (आप) जो बनियों की नुमाइंदगी करती है, समाजवादी पार्टी (एसपी) जो उत्तर प्रदेश में यादवों की नुमाइंदगी करती है, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) जो बिहार में यादवों की प्रतिनिधि है, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) जो यूपी में दलितों की प्रतिनिधि है, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) जो राजभरों की प्रतिनिधि है, अपना दल जो कुर्मियों का प्रतिनिधि है और बहुजन वंचित अघाड़ी जो महाराष्ट्र में दलितों की नुमाइंदगी करती है. गौरतलब है कि योगेंद्र यादव ने केवल तीन पार्टियों का नाम लिया जो तीनों अल्पसंख्यक समुदायों की नुमाइंदगी करती हैं- सिख, ईसाई और मुसलमान.

अंत में, योगेंद्र यादव की सबसे बड़ी चिंता ये है कि असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम वो उपयुक्त साझीदार हो सकती है जिसकी हिंदू प्रमुख राजनीति को तलाश है. मुझे डर है कि उन्हें याद दिलाना पड़ेगा कि हिंदुत्व की राजनीति पहले ही दो चुनाव जीत चुकी है और ऐसा लगता है कि एआईएमआईएम की सहायता के बिना ही राज्य की सभी संस्थाओं को संकट में डाल चुकी है.

नरेंद्र मोदी सरकार पहले से भी अधिक बहुमत के साथ फिर से चुनकर आ गई है और सब कुछ के बावजूद उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है. हिंदू प्रमुख राजनीति वास्तव में अवसरों की तलाश में थी जो उन्हें सेक्यूलर नेताओं ने खुद दे दिए हैं. सेक्यूलर पार्टियों द्वारा राम मंदिर भूमि पूजन के स्वागत ने, हिंदू बहुसंख्यक राजनीति को वैधता दे दी. सेक्यूलर पार्टियों द्वारा अयोध्या फैसले के स्वागत और मुसलमानों से जुड़े मुद्दों पर इन पार्टियों की लगातार खामोशी ने भी यही काम किया.


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सेक्यूलर पार्टियों से दोष को सरकाना

योगेंद्र यादव के लिए इस ओर से आंखें फेर लेना आसान है लेकिन सच्चाई ये है कि मोदी का दूसरा कार्यकाल शुरू होने के बाद से हिंदू बहुसंख्यक राजनीति ‘हिंदू ख़तरे में हैं’ से हटकर, ‘मुसलमानों को डर के जीना पड़ेगा’ पर आ गई है.

अपनी बात को जताने के लिए बीजेपी को असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी की ज़रूरत नहीं है. अभी तक मुसलमान वोटों को अपने पक्ष में मानकर चलते हुए सेक्यूलर पार्टियां उन्हें उनकी जायज़ नुमाइंदगी देकर, सामाजिक न्याय को कायम करने में नाकाम रही हैं. सच्चर कमेटी, कुंडू कमेटी और दूसरे बहुत से शोध कार्यों की रिपोर्ट्स साफतौर पर, मुसलमानों को लेकर सेक्यूलर पार्टियों की नाकामी की तरफ इशारा करती हैं. इन पार्टियों ने हिंदू बहुसंख्यक सियासत के न सिर्फ काम करने का, बल्कि फलने-फूलने का रास्ता साफ किया है.

इस स्थिति के लिए सेक्यूलर पार्टियों की असंगत नीतियां ज़िम्मेदार हैं. यही एक अवसर था जिसका हिंदू बहुसंख्यक राजनीति को इंतज़ार था. हम उससे गुज़र चुके हैं. योगेंद्र यादव और दूसरों को डर है कि अगर मुसलमान, किसी मुसलमान की अगुवाई वाली पार्टी को वोट देने लगेंगे तो फिर हर सेक्यूलर मोर्चे को सिर्फ वही बनना पड़ेगा जो वो वास्तव में है- अलग-अलग जातियों की नुमाइंदगी करने वाले राजनीतिक संगठन. एआईएमआईएम कोई सेक्यूलर पार्टी नहीं है, चूंकि हिंदू उसे वोट नहीं देते. समाजवादी पार्टी सेक्यूलर पार्टी है, चूंकि यादवों के अलावा उसे मुसलमान भी वोट देते हैं.

योगेंद्र यादव गलत समझ रहे हैं. वो हिंदू बहुसंख्यक राजनीति को सामने लाने का दोष, हिंदू बहुसंख्यकों की बजाय मुसलमानों को दे रहे हैं- जैसे कि अगर असदुद्दीन ओवैसी या कोई दूसरा मुस्लिम सियासी संगठन न होता, तो हिंदू बहुसंख्यक राजनीति खत्म हो गई होती. अब समय है कि हिंदू समुदाय के सदस्य, मुसलमानों को दोष देने की बजाए, अपने झमेलों की ज़िम्मेदारी खुद लें, जैसा कि बीजेपी करती है.

योगेंद्र यादव की धर्मनिरपेक्षता की मांग ये है कि मुसलमान हिंदुओं की अगुवाई वाली पार्टियों को वोट दें, जैसा कि वो 1947 से तकरीबन पूरी ईमानदारी से करते आ रहे हैं. मुसलमानों के एआईएमआईएम को वोट देने का- जोकि एक मुस्लिम पार्टी है- उनकी नज़र में मतलब ये है कि मुसलमान धर्मनिर्पेक्षता को खारिज कर रहे हैं.

इस सोच के साथ एक बड़ी समस्या है. अगर योगेंद्र यादव ये सुझाव देते हैं कि धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए मुसलमानों को सही मायनों में अपनी नुमाइंदगी का एक बेहतरीन मौका गंवा देना चाहिए, तो इस धर्मनिरपेक्षता को नहीं बचाया जाना चाहिए. असदुद्दीन ओवैसी का उदय सेक्यूलर पार्टियों के, बीजेपी की हिंदू बहुसंख्यक सियासत के मुकाबले, खड़े होने या न होने के जवाब में है.

योगेंद्र यादव को ये नहीं मान लेना चाहिए कि एआईएमआईएम एक ‘मुस्लिम बीजेपी’ बन जाएगी. उसकी बजाए एक बार के लिए हिंदू बहुसंख्यकों को, एक मुसलमान लीडर के पीछे खड़े होकर, भारत की धर्मनिरपेक्षता को बचाना चाहिए.

आखिरकार अपने भाषणों में हिंदू बहुसंख्यक राजनीति का मुकाबला करने या संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का मुज़ाहिरा करने में कोई दूसरा राजनेता असदुद्दीन ओवैसी की बराबरी नहीं कर सकता. सेक्यूलर पार्टियों के अनुमोदन के बिना भी, कोई मुसलमान लीडर सेक्यूलर हो सकता है, ये मानने की योगेंद्र यादव की अनिच्छा, असल में इस्लाम का भय है.

(शरजील उस्मानी छात्र नेता हैं और फ्रैटर्निटी मूवमेंट के महासचिव हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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2 टिप्पणी

  1. मुसलमान कभी भी सेक्युलर नहीं होता।।।उनका धर्म उनको इस बात पर मजबूत करता है कि बो कट्टर हो।यही सच है बाकी सब बकवास बाए है।।।ओर अब सभी को इसी को धयन मै रखकर पॉलिटिक्स करना है।

  2. सबसे पहली बात तो ये की AIMIM भारत की आजादी के बाद भी हैदराबाद में सैन्य कार्रवाई होने तक भारत विरोधी रही ,दूसरी बात यह कि सेक्युलर पार्टियों में भले ही किसी जाति विशेष की बहुलता हो लेकिन उसमें मुस्लिमो को पर्याप्त प्रतिनिधित्व है ,वो ओवैसी की तरह मुसलमानों को भड़काने का काम नहीं करतीं और उनके मुस्लिम उम्मीदवार हिंदुओं के भी भरपूर वोट पाते हैं,जबकि ओवैसी की पार्टी ने सिर्फ मुस्लिम कैंडिडेट उतारे ,उनके सहयोगी दलों को मुस्लिम वोट नहीं मिले जबकि ओवैसी के उम्मीदवारों को हिन्दू वोट मिले ,इसलिए ओवैसी की राजनीति ज़्यादा विभाजन कारी है ,आज जो लोग भाजपा को हिन्दू राजनीति करने का दोष देते हैं कोई उनसे पूछे क्या किसी देश का प्रधानमंत्री ये कहे कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यक का है तो उस देश के बहुसंख्यक समाज पर क्या गुज़रेगी

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